खतरनाक है संवाद के बजाए हिंसा की बढ़ती प्रवृति

0
38


– निर्मल रानी –

हमारे देश की राजनीति में गत् कुछ वर्षों से ऐसा देखा जा रहा है कि दो परस्पर विरोधी विचारधाराओं के मध्य संवाद के रास्ते तो धीरे-धीरे बंद होते जा रहे हैं और संवाद व तर्क-वितर्क की जगह हिंसा,झूठ तथा साजि़श का सहारा लिया जाने लगा है। ज़ाहिर है किसी स्वस्थ व ईमानदार लोकतांत्रिक व्यवस्था की पहचान ही स्वस्थ तर्क-वितर्क तथा संवाद से ही होती है और जब इस स्वस्थ परंपरा से मुंह मोडक़र या इसके दरवाज़े बंद कर केवल साजि़श,झूठ-फरेब, सत्ता शक्ति का दुरुपयोग, धन-बल का खुला इस्तेमाल व हिंसा को ही अपनी जीत या अपनी बात को ऊपर रखने का माध्यम बनाया जाने लगे तो निश्चित रूप से यह रास्ता लोकतंत्र के मार्ग से भटक कर तानाशाही,तबाही व कट्टरवाद की ओर ही जाता है। और कम से कम भारत जैसे विभिन्नता में एकता रखने के लिए विश्व विख्यात देश के भविष्य के लिए यह स्थिति कतई अच्छी नहीं।

पिछले कुछ दिनों से लगातार प्राप्त हो रहे समाचारों के अनुसार पंजाब तथा केरल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कई कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई। केरल में तो आरएसएस व वामपंथी संगठनों के मध्य घटित होने वाली हिंसक व जानलेवा वारदातों का सिलसिला काफी लंबा खिंचता जा रहा है। इन हत्याओं में अब तक दोनों ही विचारधाराओं व संगठनों से संबंध रखने वाले सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। देश में दर्जनों ऐसी घटनाएं भी हो चुकी हैं जिसमें विभिन्न विचारधाराओं से जुड़े कार्यकर्ता अपने ही द्वारा तैयार किए जा रहे बमों व बारूदों में हुए ब्लास्ट के परिणामस्वस्प या तो स्वयं ही मारे गए या बुरी तरह घायल हुए। अब तो यह स्थिति यहां तक आ पहुंची है कि कार्यकर्ताओं या स्वयं सेवकों से आगे बढ़ते हुए सीधे तौर पर नेताओं को ही निशाना बनाया जाने लगा है। कहीं किसी नेता पर स्याही फेंकी जा रही है तो किसी के मुंह में कालिख पोती जा रही है किसी पर जूता फेंका जा रहा है तो किसी के गाल पर थप्पड़ मारा जा रहा है या लात-घूंसों से उसकी पिटाई की जा रही है। हालांकि इस प्रकार की घटनाएं चुनिंदा लोगों द्वारा बाकायदा पूर्व नियोजित साजि़श के तहत अंजाम दी जाती हैं। परंतु यदि इस सिलसिले को सभी राजनैतिक दलों के नेताओं द्वारा बड़ी गंभीरता के साथ नियंत्रित नहीं किया गया तो भविष्य में इस प्रकार का नेता विरोधी उबाल जनता में भी देखा जा सकता है। और यदि भविष्य में ऐसी स्थिति पैदा होती है तो इसके लिए जनता तो कम वे साजि़श कर्ता नेतागण या उस विचारधारा के लोग ज़्यादा जि़म्मेदार होंगे जो संवाद की जगह लेती जा रही हिंसा की प्रवृति को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को ही यदि अकेले देखा जाए तो उस पर कथित देशद्रोह का मामला चलने के बाद अब तक दर्जनों हमले किए जा चुके हैं। भारत की धरती पर एक गरीब किसान परिवार में जन्मे इस युवा नेता को कुछ विशेष विचारधारा से जुड़े लेाग राष्ट्रद्रोही,देशविरोधी और पाकिस्तान व आतंकवाद का समर्थक साबित करने में अपनी पूरी ताकत झोंके हुए हैं। कभी उससे हवाई जहाज़ में यात्रा करने के दौरान हाथापाई की जाती है तो कभी अदालत में वकील का वेश धारण किए असमाजिक तत्व उसे बुरी तरह मारने-पीटने लगते हैं। कभी उसकी कार पर पत्थर फेंके जाते हैं तो कभी उसकी सभाओं में व्यवधान डालने की कोशिश की जाती है। पिछले दिनों हद तो उस समय हो गई जबकि लखनऊ में एक आयोजन के दौरान कन्हैया कुमार पर दक्षिणपंथी छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् तथा संघ से संबद्ध युवाओं ने मिलकर हमला बोल दिया। जबकि कन्हैया कुमार की सुरक्षा एसिड सर्वाईवर्स महिलाओं द्वारा बनाई गई मानव श्रंृखला ने की। हालांकि इस घटना के बाद कन्हैया कुमार ने अपने भाषण को और भी तेज़ धार दे डाली। सवाल यह है कि जब अदालत ने कन्हैया कुमार के विरुद्ध राष्ट्रद्रोह जैसा कोई मामला न पाते हुए उसे क्लीन चिट दे दी है फिर आिखर किसी संघ या विद्यार्थी परिषद् के लोगों को उसे देश का ग़द्दार या देशद्रोही ठहराने का क्या अधिकार है?

दरअसल संवाद व तर्क-विर्तक में कमी और उसकी जगह हिंसा व साजि़श रचने या झूठ,मक्कारी व फरेब की बढ़ती प्रवृति का कारण केवल यही है कि हिंसा का सहारा लेने वाली किसी भी प्रकार की विचारधारा के पास तर्क-विर्तक व संवाद के लिए जब कुछ शेष नहीं रह जाता तो ऐसे ही लोग इस प्रकार का नकारात्मक रास्ता अिख्तयार करते हैं। और ऐसी हिंसा के बाद घटना की निंदा व भत्र्सना का भी जो दौर शुरु होता है उसमें भी पक्षपात के निशान साफतौर पर नज़र आते हैं। अर्थात् यदि किसी संघ कार्यकर्ता की हत्या पंजाब,केरल अथवा बंगाल में होती है तो भाजपा अध्यक्ष अमितशाह से लेकर संघ कार्यालय तक से ऐसी घटना की निंदा संबंधी टवी्ट या बयान जारी किए जाने लगते हैं और अपने उन विरोधियों पर निशाना साधा जाने लगता है जो उनके निकटतम राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी हैं। यही स्थिति दूसरी विचारधारा के लोगों के साथ भी है। सवाल यह है क्या राजनीति में बढ़ती जा रही इस प्रकार की हिंसापूर्ण प्रवृति को रोके जाने का प्रयास समस्त विचारधारा व राजनैतिक लोगों को मिल कर नहीं करना चाहिए? क्या किसी की जान ले लेने या उसे घंूसा,मुक्का तथा जूता आदि मार कर उसका अपमान करने से किसी विचारधारा का गला दबाया जा सकता है? कन्हैया कुमार को ही यदि ले लीजिए तो यही देखा जा रहा है कि कन्हैया पर जितने अधिक हमले होते जा रहे हैं उसके भाषण की धार और भी तेज़ होती जा रही है। यही नहीं बल्कि समय के साथ-साथ तथा इन बढ़ते हुए हमलों के साथ कन्हैया कुमार को सुनने व देखने वाले लोगों की भीड़ में भी तेज़ी से इज़ाफा होता जा रहा है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक युवा वर्ग कन्हैया कुमार के प्रति आकर्षित होता जा रहा है।

परंतु दक्षिणपंथी विचारधारा रखने वाली केंद्र सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमितशाह जैसे संगठन प्रमुख जब स्वयं प्रेस वार्ता करने से गुरेज़ करते हों फिर आिखर इनके संगठन के कार्यकर्ताओं के पास इतना साहस,ज्ञान व क्षमता कहां कि वे कन्हैया कुमार द्वारा सरकार को याद दिलाए जा रहे उनके वादों का सामना कर सकें? टीवी पर प्रसारित होने वाली अनेक डिबेट में भी यह देखा जा चुका है कि कन्हैया कुमार ने अपनी वाकपटुता तथा हाजि़रजवाबी की बदौलत सरकार को आईना दिखाते हुए सत्ताधारी दल के प्रवक्ताओं की ज़ुबानें बंद कर दीं। यही वजह है कि छात्रों व युवाओं में लोकप्रिय होता जा रहा कन्हैया कुमार अपने विरोधियों की आंखों की किरकिरी बना हुआ है। राजनीति, देश और समाज की सेवा तथा विकास का एक पवित्र माध्यम है। इसे स्वार्थ,सत्ता मोह,सत्ता का दुरुपयोग,सांप्रदायिकता तथा धनार्जन का माध्यम बनाने का जो खतरनाक प्रयास हो रहा है वह देश की एकता और अखंडता के लिए बेहद खतरनाक है।अपनी विचारधारा से मेल न खाने वाले लोगों को बदनाम करने के लिए उनपर देशद्रोही होने या पाकिस्तानी अथवा आतंकी समर्थक होने का लेबल चिपका देने कीे कोशिश करना और खुद राष्ट्रभक्ति व सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रमाण पत्र बांटने की दुकान खोलकर बैठ जाना स्वस्थ लोकतंत्र की परंपरा न कभी रही है न रह सकती है। ऐसी प्रवृति से उबरने का सामूहिक प्रयास सभी राजनैतिक विचारधाराओं द्वारा किया जाना चाहिए?

_______________

 परिचय –:

 निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका


 कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !


 संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003
Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728


 Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here