क्रोनिक किडनी डिसीज के मामले बढ़े, लोग अनभिज्ञ

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आईएनवीसी ब्यूरो
नई दिल्ली.
भारतीय लोगों में क्रोनिक किडनी डिसीज (सीकेडी) के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं और लोग इस बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ हैं। इससे बचाव के लिए किडनी में उल्टाव के लिए डायलसिस या ट्रांसप्लांट की जरूरत होती है। यह वक्तव्य हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के के अग्रवाल ने दिया।

हाल ही में संपन्न हुए एमटीएनएल परफैक्ट हेल्थ मेला में पाया गया कि 90 फीसदी से अधिक लोगों में सीकेडी फंक्शन 40 से 60 फीसदी के बीच पायी गई, खास बात ये है कि उनको इसके बारे में पता भी नहीं था।

अमेरिका के जारी आंकड़ों के मुताबिक वहां की अब 13 फीसदी आबादी क्रोनिक किडनी डिसीज की गिरफ्त में है। मधुमेह, हाइपरटेंशन, मोटापा और उम्र सम्बंधी बीमारियों में बढ़ोतरी के साथ ही किडनी डिसीज के मामले भी बढ़े हैं।

किडनी फंक्शन की स्थिति पर एक फार्मूले के मुताबिक रक्त में क्रिएटिनाइन की मात्रा के बारे में अनुमान लगाया जाता है जिसमें उम्र और लिंग भी मायने रखते हैं। क्रिएटिनाइन बेकार उत्पाद होता है जिससे कुछ काम करने के दौरान मांसपेशियों की कोशिकाएं अलग हो जाती हैं। जब किडनी में समस्या होती है तो इससे रक्त में क्रिएटिनाइन बनने लगता है। किडनी में नुकसान हो जाने के बाद लगातार एल्ब्युमिन लीक हो सकता है जो रक्त से पेशाब में निकल सकता है और इस दौरान किडनी फंकशन सामान्य भी हो सकता है।

जामा इंटरनेशनल स्टडी में दिखाया गया हे कि सिर्फ 11.6 फीसदी पुरुष और 5.5 फीसदी महिलाएं मध्यम किस्म की यानी स्टेज 3 की किडनी डिसीज के बारे में जानती हैं। इस बारे में जागरूकता फैलाकर और पेशाब में एल्ब्यूमिन की जांच करारकर इसे 22.8 फीसदी किया गया। स्टेज 4 यानी गंभीर किडनी डिसीज के बारे में सबसे ज्यादा जागरूकता फैली हुई थी यानी वे इस स्थिति के बारे में जानते थे। स्टेज 5 किडनी फेल्योर की होती है।

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