‘क्रांति अन्ना’ की असफलता के निहितार्थ

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तनवीर जाफ़री**,,

गत् तीन दशकों से भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुखरित होकर अपनी आवाज़ बुलंद करने वाले तथा गांधीवादी सिद्धांतों पर चलते हुए अनशन व सत्याग्रह कर कई मंत्रियों व अधिकारियों को उनकी कुर्सियों से नीचे उतार देने वाले अन्ना हज़ारे आखिकार जनलोकपाल विधेयक संसद में लाए जाने के मुद्दे को लेकर चलाए जाने वाले आंदोलन में ‘असफल’ होते नज़र आए। जनहित में कई बार अपनी आवाज़ बुलंद करने वाले तथा नि:स्वार्थ व बिना किसी राजनैतिक महत्वाकांक्षा के सरकार के विरुद्ध संघर्ष छेडऩे वाले अन्ना हज़ारे जनलोकपाल के पक्ष में चलाए जाने वाले आंदोलन को लेकर आखिर क्यों मायूस हुए? सवाल यह भी है कि अन्ना हज़ारे जैसा क्रांतिकारी व्यक्ति जब भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में असफल साबित हो गया तथा सरकार इस मोर्चे पर जीतती हुई नज़र आई तो क्या देश में भविष्य में अब कभी भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध सख्त कानून बनाए जाने संबंधी इतनी बुलंद आवाज़ फिर कभी नहीं उठेगी? आंदोलन अन्ना की नाकामी से क्या ईमानदार व सदाचारी लोगों के हौसले पस्त हुए हैं? और ठीक इसके विपरीत भ्रष्टाचारियों व देश की व आम जनता की संपत्ति को दोनों हाथों से लूटकर खाने वालों के हौसले बुलंद हुए हैं? सवाल यह भी है कि अन्ना हज़ारे ने क्या सोचकर और किस बलबूते पर केंद्र सरकार के विरुद्ध इतना बड़ा आंदोलन छेड़ा था। और ऐसे क्या हालात पैदा हुए कि देश को राजनैतिक विकल्प देने की बात करने वाले अन्ना हज़ारे मात्र 24 घंटों के भीतर ही राजनैतिक विकल्प देने की अपनी घोषणा से तो पीछे हटे ही साथ-साथ जनलोकपाल विधेयक को लेकर भविष्य में किसी प्रकार के आंदोलन चलाए जाने की संभावनाओं से भी इंकार करते हुए देखे गए।

इसमें कोई शक नहीं कि कम शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद अन्ना हज़ारे अपनी उम्र व तजुर्बे के लिहाज़ से काफी बुद्धिमान, सूझबूझ रखने वाले तथा दूरदर्शी व्यक्ति हैं। परंतु जिस प्रकार शांतिभूषण, प्रशांत भूषण, अरविंद केजरीवाल,मनीष सिसोदिया, संतोष हेगड़े व किरण बेदी जैसे उच्च शिक्षित लोगों ने टीम अन्ना के रूप में अन्ना हज़ारे को घेर रखा था तथा अन्ना की आवाज़ के रूप में इन्हीं में से कोई न कोई सदस्य आंदोलन संबंधी सूचनाएं अथवा घोषणाएं जारी करता रहता था उसे देखकर आलोचकों को यह संदेह होने लगा था कि अन्ना हज़ारे अपनी टीम के सदस्यों के दबाव में आकर या उनके कहने या बहकावे में आकर कोई फैसला लेते हैं या घोषणाएं करते हैं। कुछ लोग तो यहां तक कहते थे कि अन्ना टीम के सदस्य उन्हें सरकार के विरुद्ध भडक़ाने व उकसाने का काम करते हैं। जनलोकपाल विधेयक संसद में पारित कराए जाने हेतु चलाए गए आंदोलन के दौरान भले ही इस प्रकार की स्थिति स्पष्ट रूप से देखने को न मिली हो परंतु गत् दिनों जंतरमंतर पर इस प्रकार का विरोधाभास तथा टीम अन्ना व अन्ना हज़ारे की योजनाओं के मध्य मतभेद साफतौर पर ज़रूर देखने को मिले। जनलोकपाल आंदोलन की समाप्ति के समय अन्ना हज़ारे व उनकी टीम के अलग-अलग सुर देखकर यह ज़रूर महसूस हुआ कि पूर्व में भी निश्चित रूप से ऐसे ही कई फैसलों को लेकर अन्ना को समय-समय पर आलोचना का सामना करना पड़ता था। उदाहरण के तौर पर हिसार के संसदीय उपचुनाव में टीम अन्ना द्वारा कांग्रेस प्रत्याशी का विरोध किया जाना।

कुछ ऐसे ही हालात जंतरमंतर पर भी गत् 2 अगस्त को उस समय पैदा हुए जबकि टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल की अनशन के दौरान हालत बिगड़ गई और सरकार की ओर से अनशन के 9 दिनों तक कोई भी नुमाईंदा किसी अनशन कारी के स्वास्थय की जानकारी लेने या आंदोलन के विषय में पूछताछ करने जंतरमंतर तक नहीं पहुंचा। अरविंद केजरीवाल के जीवन के प्रति हमदर्दी का भाव जताने वाले कई लोगों ने जिनमें कई विशिष्ट लोग भी शामिल थे यह कह कर अनशन को समाप्त कराने की घोषणा कर दी कि अब टीम अन्ना 2014 के चुनाव में सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेकर देश को एक नया राजनैतिक विकल्प देगी। परंतु इस घोषणा के अगले ही दिन यानी 3 अगस्त को अन्ना हज़ारे ने अपनी टीम की सलाह के बिना अपने विशेष अंदाज़ में बोले जाने वाली हिंदी भाषा में अपने ब्लॉग पर जो कुछ लिखा उसे देखकर निश्चित रूप से न केवल अन्ना के अंतर्मन की पीड़ा का एहसास हुआ बल्कि उनके वक्तव्य में इस बात की भी साफ झलक दिखाई दी कि 24 घंटे पूर्व टीम अन्ना द्वारा राजनैतिक विकल्प देने की जो घोषणा की गई थी यहां तक कि प्रस्तावित राजनैतिक दल का नाम भी जनता से ही पूछा जाने लगा था इन सभी बातों में अन्ना हज़ारे की अपनी कोई सहमति नहीं थी। बजाए इसके टीम अन्ना के शिक्षित व बुद्धिजीवी सदस्यों द्वारा स्वयं ऐसी जटिल व विरोधाभासी योजनाएं बनाकर अन्ना हज़ारे के नाम से उन्हें सार्वजनिक किया जा रहा था।

अन्ना हज़ारे ने अपने ब्लॉग में साफतौर पर यह लिखा कि जनता ही अच्छे या बुरे सदस्यों का निर्वाचन करती है। उन्होंने यह भी लिखा कि जनहित के लिए ही उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम छेड़ी थी। परंतु राजनीति के दलदल में उतरने से उन्होंने इंकार किया। अन्ना ने यह भी लिखा कि भ्रष्टाचार के मुक़ाबले एक ईमानदार, राजनैतिक विकल्प दिए जाने हेतु पंचायत, वार्ड,मोहल्ला स्तर पर सार्थक प्रयास किए जाने चाहिए। परंतु उन्होंने अपनी पार्टी बनाए जाने या स्वयं चुनाव लडऩे से साफ इंकार कर दिया। अन्ना ने अपनी टीम को भंग किए जाने की घोषणा भी लगे हाथों कर डाली। क्योंकि उनके अनुसार टीम का गठन जनलोकपाल विधेयक के लिए ही किया गया था। अन्ना द्वारा इस आंदोलन को समाप्त किए जाने की घोषणा के बाद अब यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या भविष्य में अब कभी भ्रष्टाचार विरोधी इतनी बड़ी मुहिम नहीं छिड़ेगी? क्या भ्रष्टाचारियों ने सदाचारियों पर बढ़त हासिल कर ली है? क्या जनता पुन: इतनी बड़ी संख्या में भ्रष्टाचार के विरुद्ध कभी आगे भी संगठित हो पाएगी? ज़ाहिर है ऐसे सवाल भी आंदोलन अन्ना के समाप्त होने के साथ ही पैदा हो गए हैं।

अनशन व भूख हड़ताल के जिस अहिंसक हथियार से महात्मा गांधी व उनके लाखों सत्याग्रही स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेज़ों को देश छोडक़र जाने के लिए मजबूर कर दिया था आखिर वही अहिंसक अस्त्र स्वतंत्र भारत की सरकार को क्यों नहीं झुका सका? स्वयं अन्ना हज़ारे भी कई बार यह कहते हुए सुनाई दिए हैं कि देश अभी आज़ाद कहां हुआ है। गोरे गए और कालों ने आकर देश को फिर गुलाम बना लिया है। यदि हम इस विषय की गहराई से पड़ताल करें तो हम यह देखेंगे कि जहां महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में पूरा देश उनके नेतृत्व को स्वीकार कर रहा था, स्वतंत्रता हेतु हर प्रकार के संघर्ष करने को पूरा देश तैयार था। चाहे वह भूख-हड़ताल करते हुए अपने प्राण त्यागने की बात हो या फिर सीने पर गोली खाने की या अंग्रज़ों के बूटों की ठोकरें खानी हों या उनके घोड़ों की टापों के नीचे रौंदे जाने की बात हो या फिर फांसी के तख़्त पर लटकने की ज़रूरत हो, उस समय प्रत्येक हिंदुस्तानी हर प्रकार की क़ुर्बानी देने के लिए तैयार नज़र आता था। ज़ाहिर है ऐसे दृढ़ संकल्प व अभूतपूर्व इच्छाशक्ति के आगे इंसान तो क्या शायद ईश्वर भी झुक जाए। नतीजतन बलिदान देने का हौसला रखने वाली स्वतंत्रता सेनानियों की ऐसी जांबाज़ टोलियों के आगे अंग्रेज़ों को झुकना पड़ा और देश को स्वाधीनता हासिल हो गई। परंतु आज परिस्थितियां कुछ भिन्न हैं। क्या सरकार तो क्या आम आदमी। देश का बहुत बड़ा तबका नि:संदेह देश के अधिकांश लेाग सुविधा भोगी वातावरण के पोषक हो गए हैं। कम से कम समय में अधिक से अधिक पैसा कमाने की चाह लगभग हर व्यक्ति की दिखाई देती है। परिवार के सदस्य अपने परिवार के मुखिया से उसकी कमाई से अधिक चीज़ों की उम्मीद लगाए रहते हैं। प्रत्येक व्यक्ति ऐशपरस्त व सुविधाभोगी होता जा रहा है। शिक्षा, स्वास्थय व दैनिक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें भी लोगों को अधिक कमाई करने हेतु प्रोत्साहित कर रही हैं। मोटी रिश्वत देकर लोगों को नौकरियां मिल रही हैं। स्वयं अन्ना हज़ारे ने यह स्वीकार किया कि चुनाव हेतु करोड़ों रुपये ख़र्च किए जाते हैं। यह पैसे कहां से आएंगे? ज़ाहिर है जो व्यक्ति करोड़ों रुपये ख़र्च कर चुनाव जीतेगा या लाखों खर्च कर नौकरी हासिल करेगा क्या वह ख़र्चकिए गए अपने इन पैसों की वापसी की कोशिश नहीं करेगा?

उपरोक्त हालात में साफ है कि जब हमारे समाज का ही एक बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार का समर्थक, उसका पोषक,संरक्षक या कहीं न कहीं से भ्रष्टाचार में भागीदार हो फिर आखिर भ्रष्टाचार के विरुद्ध समग्र कांति की बात ही कहां से आ सकती है। लिहाज़ा अन्ना हज़ारे सहित भ्रष्टाचार के विरुद्ध परचम उठाने वाले सभी समाज सुधारकों को चाहिए कि वे राजनैतिक दांवपेंच या कानूनी झंझटों में पडऩे के बजाए देश के प्रत्येक नागरिक को भ्रष्टाचार व उसके नुकसान के बारे में समझाने व जागरुक करने का प्रयास करें। जिस प्रकार आज देश में भ्रष्टाचारियों की एक ऐसी बड़ी जमात है जो प्रतिदिन हरामखोरी की कमाई के बिना रह नहीं सकती उसी प्रकार इस देश में तमाम लोग आज ऐसे भी हैं जो यदि चाहते तो अपने जीवन में अपने पद व सत्ता के बल पर अन्य भ्रष्टाचारी नेताओं व अधिकारियों की तरह अरबों रुपये कमा लेते। परंतु उन्होंने ऐसा करने के बजाए समाज के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया। लिहाज़ा ऐसे ईमानदार लोगों को प्रेरक के रूप में जनता के बीच जाना चाहिए। धर्मगुरुओं, तथा समाजसेवी संगठनों को जन-जन को भ्रष्टाचार के विरुद्ध जागरुक करने में अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए। ऐसा दीर्घकालीन जनआंदोलन निश्चित रूप से एक न एक दिन ज़रूर अपना रंग दिखा सकता है।

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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

Tanveer Jafri ( columnist),
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC


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