क्यों बेअसर हैं आतंकवाद विरोधी फतवे?

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Fazlurrahman at Deoband while anti terrorism fatwa was issued{  तनवीर जाफरी  }

चाहे इसे कुछ पश्चिमी देशों की साजि़श का नाम दिया जाए अथवा विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या होने के नाते इस्लाम धर्म से संबंधित लोगों की आतंकवादी घटनाओं में अधिकांशत: दिखाई देने वाली भागीदारी या फिर रूढ़ीवादी व कट्टरपंथी इस्लामी विचारधारा को परवान चढ़ाने का जेहादी मिशन या फिर क्षेत्रीय समस्याओं के रूप में मिलने वाले बहाने अथवा इस्लाम के भीतर जातीय व वर्गीय संघर्ष, कुल मिलाकर दुनिया में कहीं भी कोई भी आतंकवादी घटना घटित होते ही सर्वप्रथम लोगों के ज़ेहन में एक ही बात आती है कि हो न हो यह इस्लामी जेहादी आतंकी संगठनों में से ही किसी ने यह काम अंजाम दिया है। और इन्हीं कारणों के चलते इन दिनों इस्लाम व आतंकवाद के मध्य गहरे रिश्ते होने की बात भी बड़े ही प्रभावी तरी$के से कहने की कोशिश की जा रही है। निश्चित रूप से आतंकवादी तथा इनके द्वारा अंजाम दी जाने वाली घटनाएं इस्लाम के आलोचकों को स्वयं ऐसा अवसर उपलब्ध करा रही हैं। इन्हीं परिस्थितियों के बीच विश्व के इस्लामी धर्मगुरुओं व विद्वानों की यह बहुत बड़ी जि़म्मेदारी है कि वे इस्लाम के मुंह पर पोती जाने वाली आतंकवाद रूपी कालिख को मिटाने का काम करें। और शायद यही वजह है कि गत् चार-पांच वर्षों से यह सुना जाने लगा है कि इस्लामी विद्वान,धर्मगुरु तथा मौलवी हज़रात आतंकवाद के विरुद्ध $फतवा जारी करने लगे हैं।
भारत में भी जमात-ए-इस्लामी व जमीअतुल-उलमा-ए-हिंद जैसे प्रमुख इस्लामी संगठन आतंकवाद विरोधी $फतवे जारी करने में सबसे आगे दिखाई देते हैं। दारूलउलूम देवबंद जोकि विश्व का सबसे बड़ा इस्लामी शिक्षण संस्थान माना जाता है की ओर से भी आतंकवाद विरोधी $फतवे जारी किए जाते रहे हैं। पिछले दिनों जमीअतुल-उलमाए-हिंद का तीन दिवसीय विश्व शांति सम्मेलन भारत में संपन्न हुआ। इसमें भारत के इस्लामी विद्वानों के अतिरिक्त पाकिस्तान,बंगलादेश,मालदीव,ब्रिटेन,म्यांमार,नेपाल तथा श्रीलंका जैसे देशों के इस्लामी धर्मगुरु व प्रमुख विद्वान शरीक हुए। पहले दो दिन तक जहां यह आयोजन दारूल उलूम देवबंद में आयोजित हुआ वहीं अंतिम दिन एक बड़ी जनसभा के बाद इसका समापन दिल्ली के रामलीला मैदान में किया गया। हालांकि इस्लामी विद्वानों के इस सम्मेलन में पहले किसी न किसी बड़े राजनेता को आमंत्रित किया जाता था परंतु इस बार इसमें किसी भी दल के किसी भी राजनेता को नहीं बुलाया गया। विश्वशांति सम्मेलन नामक इस आयोजन में वैसे तो कई प्रस्ताव पारित किए गए। परंतु इसमें मुख्य रूप से आतंकवाद विरोधी एक प्रस्ताव पारित किया गया। आतंकवाद जिसका संबंध केवल इस्लाम या मुसलमानों से ही नहीं बल्कि पूरे विश्व से है,की इस सम्मेलन में घोर निंदा की गई तथा उसके विरुद्ध सभी धर्मगुरुओं द्वारा ऊंची आवाज़ से एक स्वर में $फतवा जारी किया गया। यह पहला अवसर था जबकि भारत के कई पड़ोसी देशों से इस्लामी विद्वान एक ही मंच पर इक_ा हुए तथा उनमें आतंकवाद जैसे गंभीर विषय को लेकर एक समान राय बनती दिखाई दी।
सभी उपस्थित इस्लामी विद्वानों ने इस बात को स्वीकार किया कि आतंकवाद से इस्लाम धर्म की बहुत बदनामी हो रही है। जबकि आतंकवाद फैलाना या आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देना पूरी तरह से इस्लाम के विरुद्ध है। इंग्लैंड के इस्लामी विद्वान मोहम्मद इब्राहीम तारापुरी का मत था कि किसी भी समस्या के समाधान के लिए सर्वप्रथम हमें अपने पर्वाग्रहों को समाप्त करना होगा। वहीं लंका के मु$फ्ती रिज़वी साहब ने $फरमाया कि आतंक के कारण ही विकास कार्य बाधित हो रहे हैं। इस अवसर पर पाकिस्तान के प्रमुख इस्लामी विद्वान तथा पाकिस्तान की राजनीति का भी एक बड़ा चेहरा समझे जाने वाले मौलाना $फजलुर्रहमान जोकि पाकिस्तान जमीयत-उलमाए-इस्लाम के प्रभारी भी हैं, ने जहां आतंकवाद विरोधी $फतवे की हिमायत की वहीं उन्होंने भारत व पाकिस्तान के संबंधों का जि़क्र करते हुए यह भी कहा कि हमें युद्ध से परहेज़ करना चाहिए। दोनों देशों के नेताओं को चाहिए कि वे बातचीत के माध्यम से कश्मीर समस्या का समाधान करें ताकि अमन $कायम हो सके। मौलवी $फजलुर्रहमान का मत था कि यदि राजनेताओं ने यह काम कर दिया तो दोनों देशों में झगड़े की जड़ें सदैव के लिए समाप्त हो जाएंगी। पाकिस्तान के ही एक अन्य इस्लामी विद्वान मोहम्मद सईद युसु$फ ने भी आतंकवाद विरोधी $फतवे का समर्थन तो किया पर उन्होंने भी कश्मीर राग अलापते हुए कहा कि इस समस्या का समाधान करने हेतु दोनों देशों की हुकूमतों को धर्मगुरुओं से बात करनी चाहिए ताकि धार्मिक लोगों के बीच भाईचारा $कायम हो सके।
ऐसे में सवाल यह है कि केवल भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के और भी कई देशों में जारी होने वाले आतंकवाद विरोधी $फतवों के बावजूद आतंकवाद नियंत्रित होने अथवा कम होने का नाम क्यों नहीं ले रहा है। एक सवाल इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि आ$िखर क्या वजह है कि पाकिस्तान,भारत,अ$फ$गानिस्तान व बंगलादेश सहित दुनिया के अन्य कई देशों में सक्रिय इस्लामी आतंकवाद जमात-ए-इस्लामी,देवबंदी व वहाबी विचारधारा से ही क्यों प्रभाविते हैं? विश्व शांति सम्मेलन में पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करने वाले मौलवी $फज़लुर्रहमान सार्वजनिक रूप से भले ही कितनी मानवता का सब$क सिखाने वाली बातें क्यों न करते हों परंतु पाकिस्तान में फलने-फूलने वाला आतंकवाद, आतंकवादी विचारधारा तथा ऐसे विचारों को परवान चढ़ाने वाले मदरसों से उनके क्या संबंध हैं? लश्कर-ए-तैयबा व जमात-उद-दावा जैसे प्रतिबंधित संगठनों का प्रमुख भी इसी ज़हरीली विचारधारा का व्यक्ति है। भले ही भारत व अमेरिका की नज़रों में वह दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी क्यों न हो परंतु पाकिस्तान के टीवी चैनल्स उसे आलिम-ए-दीन, इस्लामी विद्वान,मज़हबी नेता जैसी सम्मानित उपाधियों के साथ संबोधित करते हैं न कि जेहादी अथवा आतंकवादी नेता कहकर। आ$िखर जब वहाबी विचारधारा के रहनुमा $फज़लुर्रहमान भारत में आकर जमात-ए-इस्लामी के मंच पर बैठकर आतंकवाद विरोधी $फतवा जारी करने का ‘प्रदर्शन’ करते हैं उसी प्रकार इसी नीति के अनुसार पाकिस्तान में वहां का तथाकथित इस्लामी विद्वान हा$िफज़ सईद स्वयं आतंकवाद विरोधी $फतवा क्यों नहीं जारी करता? $गौरतलब है कि पाकिस्तान में इस विचारधारा से संबंधित जितने भी मदरसे संचालित हो रहे हैं वहां-वहां जमाअत-ए-इस्लामी देवबंद के झंडे भी लहराते रहते हैं। रहा सवाल हा$िफज़ सईद को पाकिस्तान में इस्लामी विद्वान के रूप में स्वीकार किए जाने का तो यहां यह बताना भी ज़रूरी है कि अमेरिका की मोस्ट वांटेड सूची में हा$िफज़ सईद का नाम दूसरे नंबर पर है। अमेरिकी सूची में पहला नाम तालिबान प्रमुख मुल्ला उमर का है, दूसरा नाम हा$िफज़ सईद का तथा तीसरा अल$कायदा नेता अबूदुआ व चौथा अल$कायदा के ही यासीन-अल-मंसूरी का है। यह सभी अमेरिका की ओर से एक करोड़ डॉलर के Fazlurrahman with hafiz saeed in Jamatuddawa confrence in Pakistanइनामी व इश्तिहारी मुजरिम हैं। इनमें से तीन आतंकी तो लुकछुप कर पहाड़ो व गुफाओं में रह रहे हैं जबकि केवल हा$िफज़ सईद अकेला ऐसा व्यक्ति है जो पाकिस्तान में खुलेआम घूमता-फिरता व सार्वजनकि आयोजनों में भाग लेता नज़र आता है।
क्या एक ही विचारधारा के इस्लामी संगठन के दो अलग-अलग विद्वानों के परस्पर विरोधाभासी उद्घोष दुनिया को दुविधा में नहीं डालते? एक ओर जहां इसी विचारधारा का हा$िफज़ सईद भारतीय झंडे पाकिस्तान में जलाता फिरता है, कश्मीर जैसे राजनैतिक मुद्दे को इस्लाम और जेहाद से जोडऩे की कोशिश करता है वहीं मौलवी $फज़लुर्रहमान भारत में आकर आतंकवाद विरोधी $फतवा तो ज़रूर देते हैं परंतु साथ-साथ कश्मीर समस्या का राग अलापते हुए अप्रत्यक्ष रूप से यह भी बता जाते हैं कि भारत व पाकिस्तान के बीच आतंकवाद की जड़ कश्मीर समस्या में ही है। लिहाज़ा उनके अनुसार इस समस्या का समाधान पहले ज़रूरी है। परंतु ह$की$कत में वैश्विक आतंकवाद व कश्मीर समस्या का आपस में कोई प्रत्यक्ष नाता है ही नहीं। इसी ज़हरीली विचारधारा के लोग जब बामियान में महात्मा बुद्ध की प्राचीन मूर्तियों को तोपों के गोलों से उड़ाते हैं उस आतंकवाद के पीछे कौन सी कश्मीर समस्या निहित है? पाकिस्तान में अहमदिया,शिया,सिख व हिंदू समुदाय के धर्मस्थल ध्वस्त किए जाएं, इनके मंदिर-मस्जिद,गुरुद्वारे, चर्च व इमामबाड़े आतंकवाद का निशाना बनाए जाएं यहां कौन सी कश्मीर समस्या मुंह बाय खड़ी है? गर्वनर सलमान तासीर व पूर्व महिला प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की हत्या कर दी जाए इसमें कश्मीर समस्या की क्या भूमिका है? अभी भारत में आयोजित इस तथाकथित विश्व शांति सम्मेलन के चंद दिनों बाद ही अ$फ$गानिस्तान में एक चर्च में क्रिसमस के अवसर पर इसाईयों को निशाना बनाकर बड़े पैमाने पर नरसंहार क्या कश्मीर समस्या के कारण किया गया? मुस्लिम बच्चों को शिक्षा के लिए प्रेरित करने वाली बालिका मलाला को इंसानियत के दुश्मनों द्वारा शिक्षा के प्रसार का विरोध करते हुए उसपर जानलेवा हमला किया जाना क्या कश्मीर समस्या से संबंधित है? बंगला देश में आए दिन इसी  विचारधारा के लोगों द्वारा सडक़ों पर किया जाने वाला तांडव तथा बंगलादेश के अल्पसंख्यकों पर ढाया जाने वाला ज़ुल्म क्या कश्मीर समस्या के कारण है? वास्तव में कश्मीर समस्या को तो इन्हीं तथाकथित इस्लामी विद्वानों द्वारा ज़बरदस्ती एक बहाने मात्र के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि ह$की$कत कुछ और ही है। दरअसल जेहाद की शिक्षा देना तथा शहीद व गाज़ी के दर्जे हासिल करते हुए जन्नत की ओर कूच करने की मनोकामना तथा वहां इन मरने वाले लोगों को तथाकथित रूप से मिलने वाली हूरों (परियों )की लालसा जैसी शिक्षा ने तथा बचपन से ही मदरसों में बच्चों को कट्टर धार्मिक शिक्षा देकर उनकी बुद्धि भ्रष्ट किए जाने के परिणामस्वरूप ही आज यह आतंकवाद इतना विस्तृत व वृहद् आकार धारण कर चुका है कि आतंकवाद विरोधी इस प्रकार के तथाकथित $फतवे अब बेअसर साबित होने लगे हैं। और ऐसा प्रतीत नहीं होता कि आतंकवाद को लेकर ऐसा दोहरा चरित्र रखने वाले तथाकथित इस्लामी विद्वानों के $फतवे कभी भविष्य में भी कारगार साबित होंगे।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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