क्या 2019 का सेमीफाईनल होगा वर्ष 2017 ?

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–   तनवीर जाफरी –

invc-news-picsलोकसभा के आगामी आम चुनाव हालांकि निर्धारित समय के अनुसार अप्रैल-मई 2019 में  होने की संभावना है। परंतु देश की वर्तमान राजनैतिक उथल-पुथल खासतौर से देश में नोटबंदी लागू होने के पश्चात पैदा हुए हालात में 2017 में सात राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों को 2019 के लोकसभा चुनावों का सेमीफाईनल कहा जा सकता है। गौरतलब है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश में शीघ्र ही चुनाव संपन्न होने जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के साथ ही पंजाब व उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव भी जनवरी-फरवरी माह में हो सकते हैं। जबकि मणिपुर और गोआ विधानसभा के चुनाव फरवरी-मार्च 2017 में होने की संभावना है। इसके अतिरिक्त गुजरात व हिमाचल प्रदेश राज्यों के विधानसभा चुनाव नवंबर-दिसंबर में हो सकते हैं। नोटबंदी के बाद इन दिनों पूरे भारतवर्ष में  जो माहौल पैदा हुआ है उसके संदर्भ में इन चुनावों का काफी महत्व है।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को जब नोटबंदी की घोषणा की थी उस समय उन्होंने देश की जनता को नोटबंदी के जो सर्वप्रमुख कारण गिनाए थे उनमें काला धन बाहर निकालना,आतंकवाद पर नियंत्रण पाना,नकली नोटों के प्रचलन को रोकना जैसी मुख्य बातें शामिल थीं। प्रधानमंत्री ने देश की जनता से यह भी वादा किया था कि एक हज़ार व पांच सौ रुपये की नोट बंद होने के बाद जनता के सामने जो कठिनाईयां आएंगी वह पचास दिनों के बाद समाप्त हो जाएंगी। पचास दिनों की निर्धारित समय सीमा समाप्त होने के बाद 31 दिसंबर 2016 की शाम साढ़े सात बजे प्रधानमंत्री ने एक बार फिर देश को संबोधित किया। परंतु इस संबोधन में प्रधानमंत्री यह नहीं बता सके कि काला धन,आतंकवाद या नकली नोटों पर कितना नियंत्रण पाया जा सका है। बजाए इसके उन्होंने कुछ ऐसी मामूली रियायतों की घोषणा की जो रिज़र्व बैंक अथवा वित्त मंत्रालय द्वारा भी की जा सकती थीं। वैसे भी प्रधानमंत्री द्वारा उठाया गया नोटबंदी का कदम पूरी तरह विवादित एवं भ्रामक इसलिए रहा क्योंकि सरकार कई बार अपने ही बयानों व फैसलों में उलझती व आगे-पीछे हटती नज़र आई। मिसाल के तौर पर सरकार द्वारा एक हज़ार की नोट यह कहकर बंद की गई कि बड़ी नोटों से काला धन अधिक इक_ा होता है। इसके बावजूद स्वयं सरकार ने ही दो हज़ार रुपये की नोट क्यों जारी की इसका सरकार के पास कोई जवाब नहीं?

बहरहाल, नोटबंदी के सकारात्मक परिणाम क्या हुए हैं सरकार स्पष्ट रूप से इससे संबंधित कोई आंकड़ा पेश नहीं कर पा रही है। प्रधानमंत्री के 31 दिसंबर के टीवी संबोधन में उनके हतोत्साहित करने वाले भाषण से यह और साफ हो गया कि उनके पास नोटबंदी की उपलब्धियां बताने के लिए कुछ भी नहीं था। देश का उद्योग जगत यहां की बाज़ार व्यवस्था, छोटे से लेकर बड़े दुकानदार तक,श्रमिक वर्ग, किसान आदि जिस प्रकार नोटबंदी के बाद परेशानी का सामना कर रहे हैं उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आम जनता का मोह मोदी सरकार से भंग हो चुका है। हालांकि अपनी पीठ थपथपाने तथा आत्ममुग्धता में अपना कोई सानी न रखने वाले प्रधानमंत्री ने अपने नोटबंदी के कदम को शुद्धि यज्ञ की संज्ञा दी है। परंतु भारतवर्ष किसी ऐसे यज्ञ का साक्षी कभी भी नहीं रहा है जिसमें सौ से अधिक लोगों की बेवजह जानें चली गई हों। नोटबंदी के फैसले पर भ्रम में पड़ चुकी सरकार अब जनता से काले धन,नकली नोट व आतंकवाद की बातें तो कम डिजिटल लेन-देन और कैशलेस व्यवस्था की बातें अधिक कर रही है।

सवाल यह है कि नोटबंदी से आहत व परेशान हो चुकी आम जनता क्या केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के विरुद्ध 2017 में होने वाले चुनावों में एकजुुट होकर केंद्रीय सत्तारुढ़ दल के विरुद्ध मतदान कर सकेगी? पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी के भीतर मची तोड़-फोड़ को देखने के बाद तो कम से कम ऐसा हरगिज़ मालूम नहीं हो रहा था। खासतौर पर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस,समाजवादी पार्टी,बहुजन समाज पार्टी,राष्ट्रीय लोकदल सहित कुछ और अन्य स्थानीय क्षेत्रीय राजनैतिक दलों में मचे सत्ता संघर्ष केबाद समाजवादी पार्टी में भी भीतरी कलह का पैदा हो जाना गोया ऐसा प्रतीत हो रहा था कि समाजवादी पार्टी ने 2017 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को थाली में सजाकर सत्ता परोसने का मन बना लिया हो। सोने में सुहागा यह भी है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन भी हैदराबाद से चलकर उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की हमदर्द पार्टी बनकर मुस्लिम मत विभाजित करने की िफराक में लगी हुई है। ऐसे में आिखर कौन सी रणनीति अपनाई जानी चाहिए जिससे नोटबंदी से परेशान जनता एकजुट होकर भाजपा को रोकने का प्रयास कर सके?

2015 में बिहार में हुआ विधानसभा चुनाव 2017 के विभिन्न राज्यों में हाने वाले चुनावों में भाजपा विरोधियों के लिए एक मिसाल साबित हो सकता है। राजनीति के सभी महारथी इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि यदि कांग्रेस,जनता दल युनाईटेड तथा राष्ट्रीय जनता दल ने चुनाव पूर्व महागठबंधन न किया होता तो विधानसभा में उन्हें 178 सीटों के साथ दो तिहाई बहुमत हासिल न हुआ होता। और नरेंद्र मोदी की उस समय जनता के बीच बनी भारी लोकप्रियता के मध्य यह महागठबंधन भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को केवल 59 सीटों पर रोक न पाता। 1977 भी  राजनैतिक दलों की ऐसी ही ऐतिहासिक एकता का गवाह है जबकि सभी परस्पर विरोधी विचारधारा रखने वाले दलों ने भी जयप्रकाश नारायण को अपना नेता मान कर ऐतिहासिक एकता का प्रदर्शन करते हुए जनता पार्टी का गठन किया था तथा कांग्रेस जैसी अजेय समझी जाने वाली पार्टी को पहली बार सत्ता से उखाड़ फेंका था। ऐसे में राजनैतिक दलों को अपने निजी स्वार्थ प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री पदों की लालसा आदि स्वार्थांे से ऊपर उठकर सोचने की ज़रूरत है। आज भारतीय जनता पार्टी भी इस बात को भली प्रकार समझ रही है कि कई हिस्सों में बंटा विपक्ष इस स्थिति में नहीं है कि वह भारतीय जनता पार्टी व उसके सहयोगी संगठनों का मुकाबला कर सके। भाजपा की इसी सोच पर 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव ने महागठबंधन कर पानी फेर दिया था।

ऐसे में यदि मायावती स्वयं को एकछत्र दलित नेता साबित करने,असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिमों के स्वयंभू रहनुमा बनने,मुलायम सिंह यादव का परिवार यादव-मुस्लिम सम्राट बनने के साथ-साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी की टांगे अपनी-अपनी ओर खींचने तथा कांग्रेस पार्टी अपने अकेले दम पर अपनी खोई हुई साख वापस लाने की िफराक में रही तो भारतीय जनता पार्टी को 2017 में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में विजयी होने से कोई नहीं रोक सकेगा। और यदि 2015 के बिहार मॉडल को अथवा 1977 के जेपी मॉडल को सामने रखकर उसका अनुसरण करते हुए चुनाव लड़ा गया तो भाजपा को प्रत्येक राज्य में नाकों चने चबाने पड़ सकते हैं। यदि भाजपा के विरुद्ध प्रत्येक राज्य में चुनाव पूर्व गठबंधन कर चुनाव नहीं लड़े गए तो न केवल इससे विपक्षी राजनैतिक दलों का नुकसान होगा बल्कि नोटबंदी से आहत जनता भी सरकार की इस जनविरोधी नीति का शिकार होने के बावजूद असहाय व बेबस बनी रहेगी।

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Tanveer JafriAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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