क्या है नेहरू-गांधी परिवार से ईष्र्या के कारण?

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nehru family{ तनवीर जाफ़री **,,}
2014 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव निकट आते-आते विपक्षी दलों ने यूपीए सरकार की सर्वप्रमुख घटक कांग्रेस पार्टी और विशेषकर नेहरू-गांधी परिवार पर हमले करने तेज़ कर दिए हैं। इस मुहिम में हिंदूवादी दक्षिणपंथी दल भारतीय जनता पार्टी सबसे आगे दिखाई दे रही है। लोकसभा के सभी आम चुनावों की तरह इस बार भी भाजपा देश में ऐसा वातावरण पैदा करने की कोशिश कर रही है जिससे ऐसा लगे कि पूरा देश इस समय कांग्रेस पार्टी, सत्तारुढ़ यूपीए तथा नेहरू-गांधी परिवार के विरुद्ध है तथा देश भाजपा को सत्ता सौंपने जा रहा है। भाजपाई चतुर रणनीतिकार लगभग सभी आम चुनावों में ऐसा वातावरण बनाने की असफल कोशिशें करते रहे हैं। कभी इन्होंने देश के लोगों को बेवजह या यूं कहें कि जबरन ‘|फील गुड’ एहसास कराने की नाकाम कोशिश की तो कभी पार्टी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण अडवाणी को कुछ इस तरह प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री ‘पीएम इन वेटिंग’ प्रस्तुत करने की रणनीति तैयार की कि ऐसा लगे गोया अडवाणी जी कल ही प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हों। परंतु देश की सूझबूझ रखने वाली जनता ने इन सांप्रदायिकतावादियों के इरादों व इनकी गुमराह करने वाली रणनीति को भलीभांति पहचानते हुए हर बार इनके इन मनसूबों को |खारिज कर दिया।  इस बार फिर देश में कुछ ऐसा वातावरण तैयार किया जा रहा है जिससे देश का सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण किया जा सके। गुजरात में अपनाई गई सांप्रदायिकतावादी रणनीति का पूरे देश में विस्तार किया जा सके। देश के अधिकांश राज्यों में सांप्रदायिकता के नाम पर न|फरत व विद्वेष फैलाया जा सके। और अपने इन इरादों को पूरा करते हुए किसी प्रकार सत्ता हासिल की जा सके। परंतु धर्मनिरपेक्षता की हज़ारों वर्ष पुरानी परंपरा रखने वाला भारत वर्ष सांप्रदायिकतावादियों के वर|गलाने में नहीं आने वाला। देश में सक्रिय विभिन्न धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रीय व क्षेत्रीय राजनैतिक दल दक्षिणपंथी संगठनों के इन नापाक इरादों को सफल नहीं होने देते। परिणामस्वरूप देश में राष्ट्रीय स्तर पर धर्मनिरपेक्षता का परचम लाल कि़ले पर लहराता रहता है। ज़ाहिर है हिंदुत्ववादी चरमपंथी संगठन अपनी इस नाकामी के लिए धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक संगठनों को पूरी तरह जि़म्मेदार समझते हैं। और इन संगठनों में सबसे बड़ा नाम कांग्रेस पार्टी विशेषकर नेहरू-गांधी परिवार का है जो देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की रक्षा करने हेतु हर समय तत्पर रहा है। इसीलिए भाजपाईयों की हमेशा से यह कोशिश व रणनीति रही है कि कांग्रेस पार्टी, नेहरू-गांधी परिवार तथा देश की धर्मनिरपेक्ष नीति को निशाने पर लिया जाए। परंतु देश के लोग कांग्रेस पार्टी तथा नेहरू-गांधी परिवार द्वारा देश के प्रति की गई इन की |कुर्बानियों को चूंकि भुला नहीं पाते इसलिए यह शक्तियां गांधी-नेहरू परिवार को बदनाम करने तथा उनपर तरह-तरह के लांछन लगाने से बाज़ नहीं आतीं। हद तो यह है कि गांधी-नेहरू परिवार विरोधी अपनी इस मुहिम में यह शक्तियां मर्यादा की सीमाओं का उल्लंघन करने से भी नहीं चूकतीं।  पंडित मोतीलाल नेहरू,स्वरूप रानी नेहरू,जवाहर लाल नेहरू, कमला नेहरू,विजय लक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी, |िफरोज़ गांधी, राजीव गांधी से लेकर सोनिया गांधी व राहुल गांधी तक कांग्रेस पार्टी को संरक्षण देने वाले इस परिवार में उपरोक्त नामों की श्रृंखला है जिससे पूरा देश भलीभांति वा|िक|फ है। इनमें इंदिरा गांधी तथा राजीव गांधी की हत्या के कारणों को भी देश भलीभांति जानता व समझता है। सोनिया गांधी ने एक विदेशी महिला होने के बावजूद राजीव गांधी की विधवा के रूप में संकटकालीन दौर में रहकर जिस प्रकार अपने बच्चों का पालन-पोषण भारतीय संस्कृति के अंदाज़ से किया वह भी पूरा देश देख रहा है। इन्हीं शक्तियों के विरोध के कारण जिस प्रकार सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री का पद स्वीकार करने से इंकार किया वह भी देश देख चुका है। ज़ाहिर है इन कारणों के चलते देश की निष्पक्ष व धर्मनिरपेक्ष जनता का इस परिवार के प्रति आकर्षण व रुझान होना स्वाभाविक है। परंतु नेहरू-गांधी परिवार से ईष्र्या भाव रखने वाले दक्षिणपंथी संगठन अपनी सत्ता की राह में इसी परिवार की राष्ट्रव्यापी लोकप्रियता तथा इस परिवार की सक्रियता के चलते कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रव्यापी उपस्थिति से सबसे अधिक दु:खी एवं भयभीत रहते हैं। हालांकि इन दक्षिणपंथी दलों के पास नेहरू-गांधी परिवार की ओर से त्याग करने वाले उपरोक्त नामों जैसी कोई श्रृंखला किसी भी कथित राजनेता के परिवार में नहीं पाई जा सकती। हद तो यह है कि गांधी-नेहरू परिवार का निम्न से निम्र स्तर तक जाकर विरोध करने वाले इन्हीं लोगों को अपनी राजनीति चलाने के लिए नेहरू-गांधी परिवार के ही एक सदस्य वरूण गांधी के सहयोग की भी ज़रूरत महसूस हुई।  आज कांग्रेस पार्टी को देश में फैले भ्रष्टाचार तथा मंहगाई के लिए जि़म्मेदार ठहराया जा रहा है। ऐसा होना भी चाहिए। परंतु मंहगाई व भ्रष्टाचार की आड़ में यह शक्तियां कांग्रेस व नेहरू-गांधी परविार का विरोध कर सत्ता पर |कब्ज़ा जमाना चाह रही हैं। उनके नापाक इरादों को भी समझना ज़रूरी है। तुलनात्मक दृष्टि से केवल दो उदाहरणों के साथ गांधी-नेहरू परिवार तथा दक्षिणपंथी संगठनों की देशभक्ति तथा देश के प्रति इनकी नीयत के बारे में भलीभांति समझा जा सकता है। देश की अखंडता की रक्षा की |कीमत इंदिरा गंाधी को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। यह तो था नेहरू-गांधी परिवार के एक सदस्य का देश के प्रति अदा किया जाने वाला कर्तव्य। तो दूसरी ओर 2002 में गुजरात में सत्तारुढ़ दक्षिणपंथी दल के मुख्यमंत्री तथा इस समय देश का प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रहे नरेंद्र मोदी ने किस प्रकार राज्य का सांप्रदायिक सद्भाव बिगाडऩे में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। सत्ता में बने रहने के लिए तथा राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने के लिए किस प्रकार हज़ारों देशवासियों के |खून की होली खेली। आज यही सांप्रदायिक ता|कतें नेहरू-गांधी परिवार को देश का दुश्मन बताती हैं तथा सवयं को राष्ट्रभक्त बताने की कोशिश करती हैं।  इसी प्रकार राजीव गांधी ने देश हित के मद्देनज़र श्रीलंका में शांति सेना भेजकर लिट्टे समर्थकों से बैर मोल ले लिया। राजीव गांधी का यह |कदम भी देश हित में उठाया गया |कदम था। उन्हें भी अपनी जान की |कुर्बानी देकर अपने इस |फैसले की |कीमत अदा करनी पड़ी। यह थी नेहरू-गांधी परिवार की दूसरी |कुर्बानी। दूसरी तर|फ 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या का विवादित बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि ढांचा राज्य की सत्तारुढ़ भाजपाई सरकार की साजि़श के तहत गिरवा दिया जाता है। राज्य सरकार हालांकि इस विवादित ढांचे की रक्षा की जि़म्मेदारी अदालत में हल|फनामा दायर कर लेती है। परंतु साथ-साथ इस ढांचे को गिराने की साजि़श में भी पूरी तरह शामिल रहती है। सीधे शब्दों में यह कहा जाए कि लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने में 1992 की कल्याण सिंह सरकार कोई कसर बा|की नहीं रखती। यह सब केवल घटनाएं मात्र नहीं हैं बल्कि इनका दुष्प्रभाव राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अब भी देखने को मिलता है। सांझी तहज़ीब रखने वाला यह धर्मनिरपेक्ष भारत इन सांप्रदायिक शक्तियों की अलोकतांत्रिक हरकतों के चलते रुसवा व बदनाम होता है। आतंकवादी ता|कतों को अपने मंसूबे पूरे करने का अवसर प्राप्त होता है। भारत विरोधी मानसिकता रखने वाली बाहरी व भीतरी शक्तियां अपने नापाक इरादों में कामयाब होती हैं। परंतु दक्षिणपंथी ता|कतें इन दुष्परिणामों की अनदेखी करते हुए लाल कि़ले पर झंडा लहराने के अपने एकसूत्रीय उद्देश्य को हासिल करने के लिए सब कुछ करने को तैयार रहती है। |गौरतलब है कि 2002 के गुजरात दंगों के बाद जब भाजपा के ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात दंगों से आहत होकर आज के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी को राजधर्म निभाने की सलाह दी थी तो उनकी ब|गल में बैठे नरेंद्र मोदी ने बड़ी ही बेशर्मी के साथ यही कहा था कि-‘मैं वही तो कर रहा हूं’। गोया स्पष्ट है कि मोदी का राजधर्म क्या है। लाशों पर राजनीति करना और सत्ता के लिए समाज में सांप्रदायिकता का ज़हर घोलना? ज़ाहिर है सांप्रदायिकतावादी ता|कतों के इन नापाक इरादों के पूरा होने की राह में सबसे बड़ा रोड़ा चूंकि कांग्रेस पार्टी व नेहरू-गांधी परिवार है इसलिए यह शक्तियां इस परिवार से न केवल ईष्या रखती हैं बल्कि इन्हें अपमानित व बदनाम करने के लिए तरह-तरह के ओछे हथकंडे भी अ|िख्तयार करती रहती हैं।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.Contact Email : tanveerjafriamb@gmail.com
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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