क्या सियासत का नई प्रयोगशाला हुई सफल

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– सज्जाद हैदर –                     

यह एक बड़ा सवाल है क्योंकि राजनीति एक ऐसा प्लेटफार्म है जिस पर खड़ा प्रत्येक राजनेता अपने चतुर और तेज दिमाग के दम पर ही अपनी पहचान स्थापित कर पाता है जोकि एक अडिग सत्य है। क्योंकि कोई भी सियासी पार्टी तभी सियासत की दुनिया में तेजी के साथ आगे बढ़ पाती है जब उस सियासी पार्टी का मुखिया अपने तमाम राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को अपने तेज दिमाग के साथ पीछे धकेलने का प्रयास करता है। क्योंकि इसका मुख्य कारण है रस्साकशी। जोकि किसी भी चुनावी क्षेत्र में सीमित मतदाता का होना क्योंकि कोई भी मतदाता किसी अलग की दुनिया से आता तो नहीं है जोकि वह आंतरिक्ष से आ जाए ऐसा तो हो नहीं सकता। इसीलिए सियासत के क्षेत्र में पूरा समीकरण मतदाताओं को ध्यान में रखकर ही बनाया जाता है। जिसमें बड़ा चक्रव्यूह जाति आधारित रचा जाता है। सियासत की दुनिया में जाति आधारित संगठन की संरचना से लेकर प्रत्यासियों के टिकट वितरण तक सभी बारीक से बारीक सियासी समीकरणों को ध्यान में रखकर गढ़ा हुआ समीकरण जातीय आधारित होता है।

आज की बदलती हुई राजनीति का नया अवतार भविष्य के गर्भ में छिपे हुए बड़े सियासी समीकरण के स्पष्ट संकेत देता हुआ दिखाई दे रहा है। जिसके प्रयोग से लेकर परिणाम तक जो संकेत दे रहे हैं वह पूरी तरह से साफ एवं स्पष्ट हैं। बिहार की धरती पर प्रयोग किये गए सियासत के नए प्रयोग ने जो परिणाम दिए हैं उससे लगभग काफी दूर तक की स्थिति साफ एवं स्पष्ट हो गई। बिहार का सियासी प्रयोग हैदराबाद की गलियों में खूब कूद-कूदकर घूम आया अब इसका अगला पड़ाव किधर होगा यह समय के साथ सामने आ जाएगा। लेकिन जिस तरह का यह नया प्रयोग सियासत की बंद गलियों में अपने चक्कर बड़े ही ध्यान पूर्वक रूप से लगा रहा है वह अपने आपमें बहुत कुछ कहता हुआ दिखाई दे रहा है। क्योंकि जिस रूप रेखा पर अब चुनाव लड़ा जा रहा है वह नए समीकरण के स्पष्ट संकेत देता हुआ दिखाई दे रहा है। जिसको बड़ी ही गंभीरता के साथ समझने की आवश्यकता है। यह एक ऐस प्रयोग है जोकि सियासत के समीकरण में दोनो दिशाओं को सीधा सियासी लाभ पहुँचा रहा है। क्योंकि हैदराबाद नगर निगम चुनाव में जिस प्रकार का सियासी मानचित्र गढ़ा गया वह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करने की चुनावी भाषा पूरी तरह से साफ संकेत दे रही थी कि यह चुनाव किस ओर जाएगा। बात यहीं तक सीमित नहीं रही हैदराबाद के चुनाव में जिस प्रकार से एक दूसरे को निशाना बनाया जा रहा था वह पूरी तरह से साफ था जिसका फायदा दोनों को सीधे-सीधे प्राप्त हुआ। क्योंकि हैदराबाद के चुनाव में भाषणों के द्वारा जिन्ना को भी कुदा दिया गया साथ ही रोहिंगिया मुसलमानों के मुद्दे को खूब तेजी के साथ गर्म किया गया जिससे के बिखरे हुए वोट बैंक बड़ी चतुराई के साथ गढ़े गए सियासी खेमे में आकर खुद ही खड़े हो गए। सभी मतदाता गढ़े हुए सियासी समीकरण के अनुसार अपने-अपने जातिगत आधार पर गतिमान हो गये। क्योंकि मतदान के बाद जब परिणाम आया तो पूरी तस्वीर साफ एवं स्पष्ट हो गई। गढ़े गए समीकरण का खाका जिस दिशा में तैयार किया गया था वह इसी बिंदु पर आधारित था की इस चुनाव में किसके वोट बैंक में सेंधमारी होना तय है। क्योंकि कोई भी मतदाता आंतरिक्ष से तो आता नहीं है। सभी मतदाता उसी चुनावी क्षेत्र के निवासी होते हैं जिस क्षेत्र में चुनाव हो रहा होता है। इसलिए आग उगलते हुए भाषणों से यह साफ संदेश जा रहा था कि इस बार किस पार्टी का सियासी जनाधार खिसकाने का प्रयास किया जा रहा है। क्योंकि जातीय आधारित भाषणों से यह साफ दिखाई दे रहा था कि आग उगलते हुए भाषण निश्चित ही मतों का बंटवारा करेगे।

देश के बड़े से बड़े नेता हैदराबाद में जिस प्रकार से चुनावी रैलियां कर रहे थे वह पूरी तरह से साफ था कि यह चुनाव किसी बड़ी रणनीति की प्रयोगशाला का रूप धारण कर चुका है क्योंकि किसी भी नगर निगम की 150 पार्षदों के लोकल चुनाव का जिस प्रकार से केंद्रीयकरण हो रहा था वह एक नई प्रयोगशाला को जन्म देता हुआ दिखाई दे रहा था। क्योंकि इस चुनाव को मात्र नगर निगम का चुनाव समझकर तेजी के साथ आगे बढ़ जाना पूरी तरह से गलत होगा क्योंकि सियासत का पैरामीटर पूरी तरह से इस ओर इशारा करता हुआ दिखाई दे रहा है। कि यह चुनाव मात्र एक नगर निगम का चुनाव नहीं था। अपितु यह चुनाव एक नई सियासत की प्रयोगशाला बनकर सामने आया है। जोकि आने वाले समय में दूसरे राज्यों के विधान सभा के चुनाव में पूरी तरह से अपना रूप धारण करके जनता के सामने प्रकट हो जाएगा।

राजनीति के बड़े जानकारों की माने तो आने वाले बंगाल के चुनाव में जो भी सियासी समीकरण गढ़े जाएंगे वह बिहार से लेकर हैदराबाद के चुनाव की रूप रेखा पर पूरी तरह से आधारित होगें। राजनीति के जानकार तो यहाँ तक मानते हैं कि यह हैदराबाद का चुनाव बंगाल के चुनाव की प्रयोगशाला के रूप में ढ़ाला गया था। क्योंकि किसी भी नगर निगम का चुनाव एक क्षेत्रीय चुनाव होता जिसमें नगर निगम के अंतर्गत आने वाले कार्य ही मुख्य बिन्दु होते हैं। जिसका आधार पानी और साफसफाई जैसे मुद्दों पर निर्भर होता है। लेकिन हैदराबाद का नगर निगम चुनाव इससे ऊपर उठकर राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा गया जिसमें जिन्ना से लेकर रोहिंग्या मुसलमान को मुख्य रूप से आधार बनाया गया। साथ किसी भी नगर निगम का चुनाव शहर के नाम बदलने के आधार पर नहीं लड़ा जाता क्योंकि यह क्षेत्रीय मुद्दा नहीं है क्योंकि नाम बदलने का कार्य सरकारों के द्वारा किया जाता है न कि नगर निगम के अंतर्गत किया जाता है। राजनीति के जानकारों की माने तो हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करने का मुद्दा एक बड़ी राजनीति का स्पष्ट संदेश देता हुआ दिखाई दे रहा है जोकि आने वाले समय में विधानसभा के चुनाव में बहुत ही तेजी के साथ उठाया जाएगा। जिसको मजबूती के साथ तेलंगाना के विधानसभा के चुनाव में उतारा जाएगा। साथ ही आने वाले बंगाल के चुनाव में अगर सियासत को तनिक भी यह आभास हुआ कि इस मुद्दे के आधार पर इस विधानसभा में मतदाताओं को अपने पाले में किया जा सकता है तो निश्चित ही किसी भी शहर का नाम बंगाल के चुनाव में भी तेजी के साथ घसीटा जाता है।

भाजपा की एक भारी भरकम टीम हैदराबाद के चुनाव में पहुँची जिसमें केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा गृह मंत्री अमित शाह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस जैसी भारी भरकम टीम ने जिस प्रकार से एक नगर निगम के चुनाव का मोर्चा संभाला वह साफ संकेत है क्योंकि यह भारी भरकम टीम किसी भी नगर निगम के चुनाव की टीम नहीं है। खास करके एक नगर निगम के चुनाव में सर्जिकल स्ट्राइक जैसे बड़े मुद्दे यह साफ इशारा करते हैं कि इस चुनाव को एक प्रयोगशाला के रूप में प्रयोग किया गया था। जिसमें इन मुद्दों को धरातल पर उतारकर जनता की नब्ज़ को एक बार मजबूती के साथ टटोलने का सियासी प्रयोग किया गया है जोकि आगामी चुनाव में मजबूती के साथ बंगाल की धरती पर विधान सभा के चुनाव में दिखाई देगा।

खास करके अवैध प्रवासी एवं रोहिंगिया का मुद्दा एक राष्ट्रीय मुद्दा है जोकि निश्चित ही बंगाल के चुनाव में अपने पैर पसारेगा। क्योंकि बंगाल की धरती पर लगभग 100 विधान सभा सीटें ऐसी हैं जिसपर मुस्लिम मतदाता निर्णयक भूमिका हैं। कई जनपद ऐसे भी हैं जिनमें मुस्लिम आबादी लगभग 60 प्रतिशत से अधिक भी है वहीं कुछ जनपद ऐसे भी हैं जिनमें मुस्लिम आबादी 40 से 50 प्रतिशत की भूमिका में है। इसलिए अवैध प्रवासी एवं रोहिंगिया तथा किसी भी शहर के अंदर सर्जिकल स्ट्राईक करने जैसे मुद्दे बंगाल के चुनाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं इसलिए राजनीति के जानकारों का मानना है कि हैदराबाद का यह चुनाव मात्र एक नगर निगम का चुनाव नहीं था अपितु आने वाले तमाम राज्यों के विधान के चुनाव में प्रस्तुत किया जाने वाले गंभीर सियासी मुद्दा था। जोकि हैदराबाद के नगर निगम चुनाव की प्रयोगशाला में प्रयोग किया गया। खास करके भाजपा ने अवैध प्रवासियों को वोटर आईडी देने का भी आरोप लगाया जोकि पश्चिम बंगाल की धरती पर सियासत के मैदान का एक अहम हिस्सा होगा। जिसके आधार पर मतदाताओं के बीच सियासी पार्टियां अपनी पैठ बनाने में काफी दूर तर सफल होती दिखायी दे रही हैं। यह ऐसे मुद्दे हैं जोकि आने वाले बंगाल चुनाव में एक अहम किरदार निभाएंगे ऐसा तय माना जा रहा है। अगर हैदराबाद और बिहार की तर्ज पर बंगाल के चुनावी मौसम में औवैसी की पार्टी बंगाल के विधान सभा के चुनाव में कूद पड़ती है तो इसका सीधा-सीधा नुकसान ममता की मौजूदा सरकार को होना तय है। क्योंकि इस प्रकार की तूफानी बयानबाजी से मतों का बिखराव होना तय है जिसमें एक वर्ग के मतदाता का ध्यान औवैसी की ओर खिंचेगा। साथ ही ओवैसी मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर ही अपने प्रत्यासी उतारेंगे जिसका दृश्य बिहार और हैदराबाद के चुनाव में देखने को मिला। मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर अगर ओवैसी अपने प्रत्यासी उतार देते हैं तो बंगाल के चुनाव का नतीजा बदलना तय है। अतः हैदराबाद की धरती पर किया जाने वाला प्रयोग बंगाल की धरती पर भी सफल साबित होगा। जिसका सीधा-सीधा सियासी लाभ भाजपा और औवैसी को होना तय है।

 
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परिचय -:

सज्जाद हैदर

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

संपर्क –  mh.babu1986@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her/ his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

                                               

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