क्या ट्रंप की हार ने लिखी नेतन्याहूकी विदाई…?

0
32

– सज्जाद हैदर –

 
सियासत एक ऐसा खेल है जिसकी रूप रेखा सदैव ही पर्दे के पीछे से तय की जाती है। पर्दे के बाहर खुले आसमान के नीचे सियासत का दिखाई देने वाला रंग-रूप पर्दे के पीछे ही गढ़ा जाता है यह एक अडिग सत्य है। जिसे नकारा नहीं जा सकता। इसका मुख्य कारण यह है कि सियासी वातावरण को अपने अनुसार गढ़कर तैयार किया जाना। जिससे की सियासी हवाएं विपरीत दिशा में न जाने पाएं। राजनीति की दुनिया में कोई भी राजनेता हो उसकी रणनीति सदैव यही होती है कि सियासी वातावरण को अपने लाभ हेतु तैयार किया जाना। इसलिए कोई भी राजनेता सदैव ही अपने सियासी हित को ध्यान में रखते हुए सियासत का एजेण्डा बड़ी ही चतुराई के साथ गढ़ता है।

आज तमाम राजनेताओं की तरह ही विश्व की राजनीति में भी यही फार्मूला प्रयोग किया जा रहा है। विश्व के तमाम बड़े देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी धाक जमाने की जुगत में पूरे सियासी समीकरण को अपने अनुसार भरपूर गढ़ने का कार्य करते हैं। खास करके अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की नीति यही रहती है कि वह तमाम बड़े देशों में अपनी इच्छा के अनुसार सत्ता की कुर्सी पर कठपुतली रूपी नेता को विराजमान कर सके। यदि इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो स्थिति पूरी तरह से साफ एवं स्पष्ट हो जाती है। शाह पहेलवी का शासनकाल इसका अडिग प्रमाण है। साथ ही अरब देशों की रूप रेखा एक बड़ा उदाहरण है। इजराइल की धरती पर भी अमरीकी रिपब्लिकन ने इसी फार्मूले का प्रयोग किया गया।

बेंजामिन नेतन्याहू का जन्म तेल अवीव में 1949 में हुआ था। इनके यहूदी एक्टिविस्ट पिता बेंजिऑन को अमेरिका में एक एकैडमिक पोस्ट का प्रस्ताव मिला तो पूरा परिवार अमेरिका चला गया था। उसके बाद बेजामिन नेतन्याहू परिवार पर एक घटना घटी जिसमें भाई जोनाथन को अपनी जान गंवानी पड़ी। जोनाथन की मौत का असर नेतन्याहू के परिवार पर गहरा पड़ा। समय का पहिया घूमता रहा और बेजामिन नेतन्याहू परिवार अमेरिका में निवास करता रहा। चूँकि बेजामिन नेतन्याहू के पिता एक बड़े इतिहासकार थे इसलिए नेतन्याहू को पिता के नाम का लाभ सीधे-सीधे मिला।

सन् 1969 का समय था। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की सरकार थी यह वही पार्टी है जिस पार्टी से ट्रंप राष्ट्रपति बनकर अमेरिका की गद्दी पर विराजमान हुए। बेजामिन नेतन्याहू के पिता का रिपब्लिकन के नेताओं में सीधा संपर्क था। अपने पिता के संबन्धों का लाभ नेतन्याहू को बखूबी मिला। नेतन्याहू राजनीति की गलियों में राजनीति का ककहरा सीखने लगे। रिपब्लिकन पार्टी से जीतकर आए अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन सत्ता की कुर्सी पर विराजमान हुए। बेजामिन नेतन्याहू को सियासत की गणित सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। इसके बाद अमेरिका में आम चुनाव 1974 में हुआ जिसमें पुनः रिपब्लिकन पार्टी ने सत्ता में वापसी की 9 अगस्त 1974 को जेराल्ड फोर्ड अमेरिका के राष्ट्रपति बने। 20 जनवरी 1969 से 20 जनवरी 1977 तक अमेरिका में अनवरत रिपब्लिकन पार्टी की सरकार रही जिसमें बेजामिन नेतन्याहू सियासत के सभी गुर सीख चुके थे। बेजामिन नेतन्याहू रिपब्लिकन नेताओं की बीच अपनी पहचान स्थापित कर चुके थे। इसके बाद फिर अमेरिका में चुनाव का समय आया सदैव की भाँति रिपब्लिकन बनाम डेमोक्रेटिक की सियासी लड़ाई फिर मैदान में आई जिसमें इस बार बाजी पलट गई और डेमोक्रेटिक पार्टी चुनाव जीत गई रिपब्लिकन पार्टी को इस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। डेमोक्रेटिक पार्टी के कद्दावर नेता जिमी कार्टर अमेरिका के राष्ट्रपति बने। जिसके बाद बेजामिन नेतन्याहू का सियासी वर्चस्व ठहर गया।

सन् 1981 में जब अमेरिका में आम चुनाव हुआ तो इस चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी चुनाव हार गई जिसमें रिपब्लिकन पार्टी फिर से सत्ता में आई और 20 जनवरी 1981 को रोनाल्ड रीगन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। इसी चुनाव से बेजामिन नेतन्याहू की तकदीर का सितारा चमकना शुरू हुआ। अमेरिका के इस चुनाव से बेजामिन नेतन्याहू की किस्मत का सितारा सियासी गलियों गुजरता हुआ बुलंदियों की डगर पर चल पड़ा। 1982 में नेतन्याहू को वॉशिंगटन में डिप्टी चीफ ऑफ मिशन नियुक्त किया गया। रातो-रात नेतन्याहू के सार्वजनिक जीवन को पंख मिल गए। रोनाल्ड रीगन के बाद फिर अमेरिका में आम चुनाव हुआ इस चुनाव में फिर रिपब्लिकन पार्टी की जीत हुई। इस चुनाव में अमेरिका की राष्ट्रपति की गद्दी पर बैठने वाले पूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश के पिता थे जिनका नाम जार्ज हर्बर्ट वाकर बुश था। यह 1989 तक अमेरिका के राष्ट्रपति थे। वॉशिंगटन में डिप्टी चीफ ऑफ मिशन के पद पर नियुक्ति के बाद बेजामिन नेतन्याहू बहुत ही तेजी के साथ एक बड़ा चेहरा बन गए जोकि उस समय टेलीविजन पर मजबूती के साथ पक्ष रखने के लिए अपनी पहचान बनाने में कामयाब रहे। जिससे बेजामिन नेतन्याहू की चर्चा अमेरिका की सियासी गलियों में खूब होने लगी। फिर क्या था रिपब्लिकन पार्टी ने नेतन्याहू को एक कदम और बढ़ाया और सन् 1984 में बेजामिन नेतन्याहू को यूएन में इजरायल का स्थायी प्रतिनिधि बना दिया। इसके बाद बेजामिन नेतन्याहू सन् 1998 में इजरायल वापस आ गए। अमरीकी रिपब्लिकन प्लान के अनुसार नेतन्याहू इजराईल की राजनीति में कूद पड़े। जिसके बाद अपने सधे हुए कदम के साथ बेजामिन नेतन्याहू तेजी के साथ इजराईल की राजनीति में तूफानी पारी खेलते हुए बहुत ही तेजी के साथ आगे बढ़ने लगे। 1996 में प्रधानमंत्री यित्ज़ाक रॉबिन की हत्या के बाद वक़्त से पहले चुनाव की घोषणा हुई जिसके बाद इजराईल में आम चुनाव हुआ और इस चुनाव में नेतन्याहू को सीधी जीत मिली और बेजामिन नेतन्याहू इजरायल के प्रधामंत्री बने। इसके बाद सियासी हार जीत का सिलसिला चल पड़ा और बेजामिन नेतन्याहू सियासी खेल खेलते हुए आगे बढ़ते रहे। जिसमें अमेरिका की गद्दी पर जार्ज बुश सत्ता पर विराजमान हुए। बेजामिन नेतन्याहू को बुश का भरपूर साथ मिला। और 2009 को बेजामिन नेतन्याहू इजराईल के राष्ट्रपति की कुर्सी पर विराजमान हो गए। लेकिन आम चुनाव में बुश की रिपब्लिकन पार्टी चुनाव हार गई और डेमोक्रेटिक पार्टी चुनाव जीत गई जिसमें मजबूत डेमोक्रेटिक नेता बराक ओबामा अमेरिका की सत्ता पर काबिज हुए वे अमेरिका के राष्ट्रपति बने। ओबामा के राष्ट्रपति बनते ही बेजामिन नेतन्याहू की ओबामा से कभी नहीं बनी। इसका मुख्य कारण था बेजामिन नेतन्याहू का रिपब्लिकन खेमें का होना। ओबामा लगातार प्रयास करते रहे कि इजराईल शांति पूर्वक रूप से अच्छे रिश्ते निभाए लेकिन ऐसा नही हुआ। जिसका ओबामा ने भरसक प्रयास किया। परन्तु बेजामिन नेतन्याहू इसके ठीक उलट थे।

इजराइल के अपने पहले दौरे पर गए राष्ट्रपति ओबामा ने कहा था कि अमेरिका इजराइल का सबसे बड़ा दोस्त है। इसराईल की राजधानी तेल अवीव में ओबामा ने इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू से कहा था कि इसराइल का सबसे अच्छा दोस्त होने पर अमरीका को गर्व है लेकिन साथ ही पवित्र भूमि में शांति भी लौटनी चाहिए। ओबामा खास करके फिलिस्तीन सीरिया और ईरान तथा लेबनान के मुद्दे पर इजराइल से शांति चाहते थे। लेकिन इजराईल ने खुले मन से ओबामा की नीति का स्वागत नहीं किया। और परिस्थिति के अनुसार इजराईल ने मुखौटा बदल लिया क्योंकि बराक ओबामा अमेरिका की गद्दी पर 2017 तक विराजमान रहे। लेकिन डेमोक्रेटिक की हार होते ही बेजामिन नेतन्याहू ने अपना मुखौटा उतारकर फेक दिया ओबामा की पार्टी की हार के बाद रिपब्लिकन प्रत्यासी डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका की गद्दी पर विराजमान हुए बेजामिन नेतन्याहू ने ट्रंप कि नीति का बढ़-चढ़कर साथ दिया और अपना असली चेहरा संसार के सामने पुनः प्रस्तुत किया। जिसके परिणाम स्वरूप विश्व की व्यवस्था पूरी तरह से उथल-पुथल हो गई। फिलिस्तीनियों के ऊपर बेजामिन नेतन्याहू ने भरपूर आक्रमण किया जिसमें फिलिस्तीन के आम नागरिक एवं मासूम बच्चों की भारी संख्या में जाने चली गईं। उसके बाद ईरान का परमाणु समझौता भी नहीं बचा बेजामिन नेतन्याहू और ट्रंप ने मिलकर ईरान का परमाणु समझौता तोड़ दिया जिस पर ओबामा ने हस्ताक्षर किए थे। इसके बाद ईराक और सीरिया तथा यमन में भारी उथल-पुथल हुई जिससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका की छवि को भारी नुकसान हुआ। जिससे अमेरिका अपनी अड़ियल नीति के कारण विश्व में अलग थलग पड़ता जा रहा था। अपनी तानाशाही नीति के कारण अमेरिका की दबी जुबान में विश्व के अधिकतर देश अंदर से नाखुश हुए।  

लिकुड पार्टी के नेता बेंजामिन नेतन्याहू के नेतृत्व पर सवाल पहले भी खड़े हो रहे थे। लेकिन अमेरिकी वर्चस्व के कारण नेतन्याहू अपनी लिकुड पार्टी में सभी को पछाड़ते हुए नेता के तौर पर उभरते रहे। बेंजामिन नेतन्याहू पर भारी भ्रष्टाचार के भी आरोप लगते रहे लेकिन ट्रंप के सहयोग कारण नेतन्याहू अपने विरोधियों को दबाते हुए आगे बढ़ते रहे। जबकि लिकुड पार्टी में उनके खिलाफ लगातार आवाज़े उठती रहीं लेकिन दबा दी जाती रहीं। पार्टी में ही उनके धुर विरोधी गिदोन सार थे। लेकिन गिदोन को बड़े ही ढ़ंग से किनारे कर दिया गया और नेतन्याहू सत्ता की गद्दी पर विराजमान हो गए। इजरायल में पिछले कुछ दिनों में एक के बाद एक तीन चुनाव हुए। तीसरी बार भी चुनाव हुए लेकिन बेंजामिन नेतन्याहू जीत हासिल करने से चूक गए जिसे इजरायल के चुनावी इतिहास का अबतक सबसे बड़ा डेडलॉक माना जा रहा है।

अवगत करा दें कि इजरायल में 120 संसदीय सीट है जिस पर किसी भी पार्टी या गठबंधन को बहुमत के लिए 60 सीटों की जरूरत पड़ती है। जिसके पास 61 सीटें होती हैं वही प्रधानमंत्री बनता है। लेकिन लिकुड पार्टी को 36 विरोधी ब्लैक एंड व्हाइट पार्टी को 33 सीटें मिली थीं। तथा अन्य सीटें अन्य दलों के पास। खास बात यह है कि चुनाव के पन्ने पलटकर देखते हैं तो लिकुड पार्टी तथा ब्लू ऐंड व्हाइट पार्टी के बीच कड़ी टक्कर रही। ट्रंप के दबाव में गठबंधन भी हुआ। नेतन्याहू को मजबूत टक्कर देने वाले कोई और नहीं इजराइल फौज के जनरल बेंजामिन गैंट्ज हैं यह एक ऐसा नाम है जिसकी बहादुरी के किस्से पूरे देश में मशहूर हैं। गैंट्ज देश के 19वें सैन्य प्रमुख हैं। खास बात यह है कि गैंट्ज के माता-पिता इजराईल के निवासी नहीं हैं वह बाहर से इस नए देश में बसने के लिए पहुंचे थे। उनकी मां पोलैंड की हैं जोकि हिटलर के होलोकास्ट में जिंदा बच निकली थीं वहीं पिता रोमानिया के हैं।

गैंट्ज की लोकप्रियता का मुख्य कारण यह है कि वह उदार व्यवस्था के हैं। गैंट्ज लगातार यह कहते आए हैं कि बहुत दिनों से हम लड़ते आए हैं। यह हमारे लिए बहुत ही हानिकारक है। गैंट्ज कहते हैं कि क्या हम अपने सामने अपने बच्चों को मरते हुए देखना चाहते हैं। क्योंकि आजतक जिस तरह से हम चारों ओर लड़ते आए हैं हमारे कितने बेटे अबतक कुर्बान हो चुके। गैंट्ज कहते हैं कि फिलिस्तीन के साथ उदार रवैया अपनाना आज की जरूरत है वर्ना हम तो मर रहे हैं साथ ही हम अपने बच्चों को भी अपने हाथ से मौत के मुँह में झोंक देंगे। गैंट्ज का कहना है कि हमें विकास चाहिए न कि युद्ध। गैंट्ज की इस बात का जमीनी स्तर पर भरपूर समर्थन मिल रहा है जिससे कि गैंट्ज एक बड़े ताकतवर नेता बनकर उभरे हैं।

नेतन्याहू को बेनी गैंट्ज के अलावा एक नई चुनौती का भी सामना करना होगा। लिकुड पार्टी से हाल ही में अलग हुए नेता गिडियॉन सार ने जिस प्रकार से लिकुड पार्टी को तोड़कर अपनी नई अलग पार्टी बनाई है उससे सीधे-सीधे नुकसान नेतन्याहू को ही होना है।

राजनीति के जानकार मानते हैं कि नेतन्याहू को अब जीतकर वापस प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँच पाना आसान नहीं होगा। क्योंकि अब परिस्थितियाँ ठीक विपरीत हो चुकी हैं। अमेरिका में अब रिपब्लिकन पार्टी सत्ता से बाहर हो चुकी अब फिर से डेमोक्रेटिक जो बाईडन राष्ट्रपति की कुर्सी पर विराजमान होंगे जोकि चुनाव जीत चुके हैं। जानकार तो यहाँ तक कहते हैं कि जो बाईडेन की नीति ओबामा की नीति है। बाईडेन और ओबामा की नीति में किसी भी प्रकार का कोई अंतर नहीं होगा। क्योंकि जो बाईडेन की जीत का ढ़ाँचा गढ़ने वाले मुख्य रणनीतिकार बराक ओबामा ही हैं। अतः पर्दे के पीछे बराक ओबामा पूरी सक्रियता के साथ खड़े हैं। जानकार तो यहाँ तक मानते हैं कि नेतन्याहू की विदाई और लिकुड पार्टी को तोड़ने की रणनीति भी ओबामा की ही बड़ी रणनीति का हिस्सा है। ओबामा ने अपनी कुशल रणनीति से नेतन्याहू को चारों खाने चित कर दिया। जिससे कि अब नेतन्याहू का सत्ता की कुर्सी तक पहुँच पाना बहुत मुश्किल दिखायी दे रहा है।

__________

 

परिचय -:

सज्जाद हैदर

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक

संपर्क –  mh.babu1986@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her/ his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here