क्या अब बदलेगी धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा?

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गुजरात के मुख्यमंत्री बनने से लेकर देश के प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने तक के लगभग 13 वर्ष के स$फर में नरेंद्र मोदी ने अपने ऊपर का$फी गंभीर आरोप झेले हैं। उन का एक ऐसा विवादित राजनैतिक व्यक्तित्व रहा है जिसने संभवत: स्वतंत्र भारत के इतिहास में अब तक सबसे अधिक विरोध व आलोचना का सामना किया है। इन आलोचनाओं का मुख्य कारण गुजरात का दुर्भाग्यपूर्ण गोधरा कांड तथा उसके बाद लगभग पूरे राज्य में फैली अनियंत्रित सांप्रदायिक हिंसा रही है। इस सांप्रदायिक हिंसा के बाद हुए ज़बरदस्त धर्म आधारित ध्रुवीकरण के बाद नरेंद्र मोदी हिंदुत्व के हीरो के रूप में उभरकर सामने आए। और गत् 12 वर्षों में भारत के बहुसंख्य हिंदू समाज को अपनी ओर लुभाने के लिए ही उन्होंने तथा उनके सभी सहयोगी संगठनों ने जिसमें राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है, लगातार ऐसी कोशिशें कीं जिनसे गुजरात सहित पूरे देश में संप्रदाय आधारित ध्रुवीकरण बढ़ता गया। बहरहाल आज इसका परिणाम सामने है तथा इनकी अपार कोशिशों का नतीजा इन्हें सत्ता के रूप में हासिल हो चुका है। सवाल यह है कि सत्ता में आने के बाद अब नरेंद्र मोदी स्वतंत्र रूप से देश के प्रधानमंत्री का दायित्व निभाते हुए तथा पूर्णरूप से राजधर्म का पालन करते हुए देश के सभी नागरिकों का विश्वास जीतने में सफल हो सकेंगे? या फिर विश£ेषकों द्वारा व्यक्त की जा रही शंकाओं के अनुसार किसी गुप्त एजेंडे पर चलते हुए उनका रिमोट संघ कार्यालय के नियंत्रण में रहेगा?
देश को भयमुक्त वातावरण दिए जाने के नरेंद्र मोदी के वादों के परिपेक्ष्य में लोकसभा चुनाव परिणाम आने के तत्काल बाद घटी कुछ घटनाओं व भाजपा नेताओं की बयानबाजि़यों का जि़क्र करना यहां पूरी तरह प्रासंगिक है। उत्साहित भाजपा नेता उमा भारती ने अपनी जीत के बाद यह $फरमाया कि भाजपा किसी एक समुदाय को $खुश करने का काम नहीं करेगी। यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं कि उनका इशारा किस समुदाय की ओर है और यह वक्तव्य देकर वे दरअसल किस समुदाय को नाराज़ और किस समुदाय को $खुश करना चाह रही हैं। क्या उमा भारती के मुंह से निकले यह शब्द भाजपा की भविष्य की नीतियों की ओर इशारा कर रहे हैं? चुनाव परिणाम आते ही पुराना लखनऊ क्षेत्र में एक प्राचीन दरगाह पर कुछ लोगों ने तोडफ़ोड़ करने की कोशिश की। एक ऐसी दरगाह जिस पर सभी धर्मों के लोग माथा टेकने जाया करते थे, उस पीर की मज़ार पर बहुसंख्य समाज के कुछ लोगों द्वारा हिंदू देवी-देवताओं के चित्रों वाली टाईलें लगाने की कोशिश की गई। घटनास्थल पर हुए पथराव व धक्कामुक्की के बाद पुलिस ने हालात पर $काबू तो ज़रूर पा लिया। परंतु इस छोटी सी घटना ने उस क्षेत्र में सदियों से चले आ रहे सांप्रदायिक सौहाद्र्र को एक चोट पहुंचाने की कोशिश ज़रूर की। क्या यह चुनावी जीत से अत्यधिक उत्साहित कुछ लोगों के कुंठित प्रयास नहीं हैं? इससे भी गंभीर एक घटना दक्षिण भारत के मैंगलोर में घटी। यहां तो भाजपा का विजय जुलूस निकालने वाली एक भीड़ ने एक गांव की तीन मस्जिदों पर हमला बोल दिया। मस्जिदों के भीतर घुसकर तोडफ़ोड़ की तथा मस्जिद परिसर में खड़े होकर हर-हर मोदी के नारे बुलंद किए। एक मौलवी को भी पीटने का प्रयास किया गया जो भागकर अपने-आप को बचा पाने में सफल रहा। मात्र चुनाव परिणाम आने के बाद आने वाले इस तरह के समाचार आ$िखर देश के भविष्य के लिए क्या संदेश दे रहे हंै? क्या ऐसे बयानों या इन घटनाओं को राजधर्म का पालन करने वाले देश का वास्तविक संकेत स्वीकार किया जा सकता है? राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जिनका उल्लेख नरेंद्र मोदी ने भी अपने चुनावी भाषणों से लेकर विजयी होने तक के कई भाषणों में बड़े ही सम्मानित तरी$के से किया है, उनका यही मानना था कि हिंदू व मुस्लिम भारत माता की दो आंखों के समान हैं। आज पूरा भारतवर्ष ही नहीं बल्कि पूरा विश्व महात्मा गांधी के सर्वधर्म संभाव के उन्हीें आदर्शों के चलते तथा सत्य व अहिंसा के प्रति उनके दृढ़ संकल्प की वजह से ही उन्हें विश्व का महान नेता स्वीकार करता है। वे वास्तव में धर्मनिरपेक्षता के सच्चे प्रहरी व पैरोकार थे। देश के प्राचीन धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के वे $कद्रदान व हिमायती थे।
महात्मा गांधी भारतवासियों की रग-रग में दौडऩे वाले धर्मनिरपेक्षता के उस प्रवाह को भलीभांति समझते व महसूस करते थे, जिसके अंतर्गत् कभी रहीम हिंदू देवी-देवताओं के भजन रचते दिखाई दिए तो कभी जायसी और रसखान ने हिंदू देवी-देवताओं की आराधना की तथा उनकी शान में तमाम भजन व $कसीदे आदि कहे। गांधी जी अंग्रेज़ों के चंगुल से देश को आज़ाद कराने के लिए हिंदू धर्म के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले कई मुस्लिम शासकों,राजनेताओं तथा नवाबों से लेकर आम जनता के जोश व तेवर से भी भलीभांति परिचित थे तथा उस जज़्बे की $कद्र करते थे। मात्र सत्ता के लिए बहुसंख्य मतों को किसी भी तरी$के से अपने पक्ष में कर राजपाट हथियाने की कोशिशों की तो वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे। परंतु बदलते समय की बदलती राजनीति ने आज देश को उस स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां न केवल महात्मा गांधी केे आदर्शों व उनके विचारों की प्रासंगिकता पर प्रश्रचिन्ह लग गया है बल्कि देश के संविधान में उल्लिखित धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा भी सवालों के घेरे में आ गई है। आज सत्ता उन शक्तियों के हाथों में है जो उदारवादियों तथा धर्मनिरपेक्षतावादियों को छद्म धर्मनिरपेक्ष कहकर पांच दशकों तक उनका उपहास करते रहे हैं। ऐेसे राजनैतिक वातावरण में प्रत्येक देशवासी के ज़ेहन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि भारतीय जनता पार्टी के नरेंद्र मोदी युग में धर्मनिरपेक्षता के मायने क्या होंगे?
यदि कांग्रेस या यूपीए के शासन काल में कथित ‘छद्म धर्मनिरेपक्षतावाद’ का बोलबाला रहा तो मोदी सरकार में ‘वास्तविक धर्मनिरपेक्षता’ का अर्थ क्या होगा? और यदि पिछली $गैर भाजपाई सरकारें भारतीय संविधान का अनुसरण व पालन करते हुए धर्मनिरपेक्षता की राह पर चल रही थीं और भाजपा को यह सब छद्म धर्मनिरपेक्षता प्रतीत होती थी तो क्या पूर्ण बहुमत वाली भाजपा भारतीय संविधान में दी गई धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा को बदलने के लिए संविधान में कोई परिवर्तन करेगी? इसमें कोई शक नहीं कि उन्हें जैसे भी हो लोकसभा की सीटों में गणित के आंकड़ों के अनुसार एक ऐतिहासिक जीत हासिल हुई है। इस जनादेश का तथा भाजपा की ऐतिहासिक जीत का स्वागत होना चाहिए तथा सरकार से यह उम्मीद रखनी चाहिए कि देश का प्रत्येक नागरिक पूरी स्वतंत्रता के साथ निर्भय होकर अपने सभी धार्मिक रीति-रिवाजों व अपनी पूजा पद्धतियों पर अमल कर सकेगा। देश का प्रत्येक नागरिक भयमुक्त होकर देश में रह सकेगा तथा अपना रोज़मर्रा का जीवन अपने रोज़ी व रोज़गार के साथ पूर्ववत् बिता सकेगा। जैसकि चुनाव परिणामों के बाद समाचार प्राप्त हुए कि इन चुनावों मे भारतीय जनता पार्टी को मुस्लिम समुदाय के लोगों के भी मत पहले से अधिक प्राप्त हुए हैं। ऐसे में भाजपा विशेषकर नरेंद्र मोदी सरकार का भी यह कर्तव्य है कि वह मुस्लिम समाज का दिल जीतने की कोशिश करे न कि उनमें भय फैलाकर बहुसंख्य मतों का ध्रुवीकरण करने का प्रयास जारी रखे।
भारतवर्ष संतों,पीरों-$फ$कीरों की ऐसी प्राचीन धरती है जहां धर्म-जाति के आधार पर समाज को विभाजित नहीं किया जा सकता। यहां मुस्लिम जुलाहा परिवार में पैदा हुए संत कबीर कभी संत रामानंदाचार्य के शिष्य के रूप में दिखाई देते हैं तो कभी गुरुनानक देव की संगत में मियां मीर व मरदाना जैसे उनके परमभक्त व सहयोगी नज़र आते हैं। भारत की सर्वधर्म संभाव की इसी पहचान ने तथा यहां के इसी धर्मनिरपेक्षतापूर्ण ढांचे ने 1400 वर्ष पूर्व हज़रत मोहम्मद के नवासे हज़रत इमाम हुसैन को उस समय भारत आने के लिए प्रेरित किया था जबकि एक दुष्ट व क्रूर मुस्लिम सीरियाई शासक यज़ीद करबला के मैदान में उनकी व उनके परिवार के सदस्यों की जान लेने पर आमादा था। $ख्वाज़ा $गरीब नवाज़, निज़ामुद्दीन औलिया व अमीर $खुसरू जैसे कई महान  संत भारतवर्ष के धर्मनिरपेक्ष व सर्वधर्म संभाव के ढांचे के कारण ही इस पवित्र धरती पर पधारे और यहीं की मिट्टी में मिलकर रह गए। क्या ऐसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा अब बदलने वाली है या यह सब शोर-शराबा मात्र केंद्रीय सत्ता की सीढिय़ां तय करने तक के लिए ही था, यह आने वाले कुछ समय में स्पष्ट हो जाएगा।
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**Tanveer Jafri –  columnist,(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.Contact Email : tanveerjafriamb@gmail.com
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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