कोरोना निर्देश : इनके लिए कुछ और तो उनके लिए कुछ और ?

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–  निर्मल रानी –

पिछले दिनों देश में कई महत्वपूर्ण त्यौहार गुज़र गए। जन्माष्टमी,मुहर्रम,ईद,बक़रीद,वामन द्वादशी तथा रमज़ान व शबे बरात जैसे अनेक त्यौहार जिनसे न केवल करोड़ों धर्मावलंबियों की आस्थाएँ जुड़ी हुई हैं बल्कि इन त्योहारों व इनसे संबंधित आयोजनों से बाज़ारों में रौनक़ भी बढ़ती है और देश की अर्थव्यवस्था पर भी इन त्योहारों की रौनक़ प्रभाव डालती है। वे सभी त्यौहार सरकारी दिशा निर्देशों के अनुसार या तो नहीं मनाए गए या अति सीमित तरीक़े से मनाए गए। या यूँ कहें कि मनाने की फ़र्ज़ अदायगी की गयी। ज़ाहिर है सरकार या अदालतों के जो भी दिशा निर्देश थे उसके पीछे का मक़सद जनहित ही था। आम लोगों को कोरोना के प्रकोप से बचाने तथा इस महामारी का और अधिक विस्तार न होने देने के उद्देश्य से ही लॉक डॉन से लेकर अनलॉक के अंतर्गत भी विभिन्न चरणों में लगाए जाने वाले तरह तरह के प्रतिबंध व दिशा निर्देश घोषित किये गए। परन्तु इन प्रतिबंधों के अंतर्गत कई दिशा निर्देश ऐसे भी हैं जो जन मानस के मस्तिष्क में तरह तरह के सवाल पैदा करते हैं।

                                             उदाहरण के तौर पर जिस दौरान कोरोना पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेने के लिए तेज़ी से अपना विस्तार कर रहा था उन्हीं दिनों 24-25 फ़रवरी 2020 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने दो दिवसीय दौरे पर भारत पधारते हैं। उनके आने से पूर्व हज़ारों की संख्या में अप्रवासी भारतीय तथा ट्रंप के दौरे से संबंधित अमेरिकी एजेन्सीज़ के लोग हज़ारों की तादाद में बेरोक टोक गुजरात आते हैं। अहमदाबाद में लगभग 22 किलोमीटर के मार्ग पर लाखों लोग बिना किसी सामाजिक दूरी बनाए हुए सड़कों पर इकट्ठा होते हैं। फिर सरदार बल्लभ भाई पटेल स्टेडियम में ट्रंप की शान में लगभग 50 हज़ार लोगों की मौजूदगी में ‘केम छो ट्रंप  ‘ कार्यक्रम आयोजित होता है। अहमदाबाद से आगरा तक ट्रंप के स्वागत में भीड़ ही भीड़ इकट्ठी होती है। कहीं न तो सामाजिक दूरी न मास्क न ही सेनिटाइज़र। नतीजे में गुजरात ख़ास तौर पर अहमदाबाद में कोरोना ने क्या तांडव दिखाया और अभी भी दिखा रहा है ,यह किसी से छुपा नहीं है। इसके बाद मार्च-अप्रैल के बीच मध्य प्रदेश की केवल 15  माह पुरानी सरकार को गिराने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह एक दो नहीं बल्कि अनेक बार कोरोना संबंधी दिशा निर्देशों धज्जियाँ उड़ाते हुए विधायकों व भाजपा कार्यकर्ताओं की मीटिंग लेते रहे। केवल भाजपा ही  नहीं बल्कि कांग्रेस के लोग भी भोपाल में जिस प्रकार कोरोना संबंधी दिशा निर्देशों की अवहेलना करते दिखाई पड़े,आज तक न इनपर कोई कार्यवाही करने वाला नज़र आया न ही मीडिया ने इसे चर्चा का विषय बनाया।
                                               यही स्थिति जुलाई-अगस्त माह के दौरान राजस्थान में उन दिनों फिर देखने को मिली जबकि कोरोना का प्रकोप पूरी तेज़ी के साथ निरंतर बढ़ता जा रहा था। भाजपा-कांग्रेस के बीच राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार को गिराने व बचाने का लोकतंत्र विरोधी खेल लगभग महीने भर चलता रहा। इस दौरान विधायकों को एकजुट रखने के लिए उन्हें कभी पांच सितारा होटल में तो कभी किसी रिसोर्ट में रखने व कभी बसों में बैठकर एक जगह से दूसरी जगह ‘सुरक्षित’ लाने ले जाने के दृश्य देखे गए। प्रायः हर जगह यह विधायक गण कोरोना संबंधी नियमों की पूरी तरह अनदेखी करते नज़र आए। कुछ मीडिया चैनल्स ने इस का ज़िक्र भी किया मगर कभी  ‘लोकतंत्र के इन प्रहरियों’ व ‘नीति निर्माताओं’ के विरुद्ध कोई कार्यवाही होते नहीं सुनाई दी। अभी कुछ दिन पूर्व ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में शामिल होने के बाद जब पहली बार ग्वालियर गए तो उनके कई कार्यक्रमों व क़ाफ़िलों को देखकर इस बात का तो यक़ीन ही नहीं हो रहा था कि हम कोरोना काल में जी रहे हैं या देश कोरोना के संकट से बुरी तरह जूझ रहा है।
                                                ज़रुरत पड़ने पर प्रधानमंत्री के ही आह्वान पर थाली व ताली बजाकर कोरोना भगाते भगाते स्वयं जनता ही देश के कई भागों में सड़कों पर उतर आती है तो उसे जनता की अनुशासनहीनता या कोरोना नियमों का उल्लंघन नहीं बल्कि सरकार के प्रति जनता का समर्थन व कोरोना से लड़ने हेतु जनता की एकजुटता बताया जाता है। यही स्थिति दिया,टॉर्च व मोबाइल लाइट जलाने के आह्वान के बाद भी हुई थी। यही सरकार अपने राजनैतिक लाभ के मद्देनज़र अयोध्या में शिलान्यास कार्यक्रम भी आयोजित कर लेती है तो ज़रुरत पड़ने पर जगन्नाथ पूरी की यात्रा भी निकाल ली जाती है। और अब बिहार में चुनाव के लिए भी राजनैतिक दलों ने ताल ठोक दी है। बिहार के वह बाढ़ पीड़ित जिन्हें सरकारी सहायता या प्रबंध का लाभ नहीं मिल पा रहा वे भी अपनी जान बचाने के लिए कहीं सड़कों पर,कहीं बांधों पर कहीं स्कूलों या अन्य भवनों में इकट्ठे रह रहे हैं। यहाँ सामाजिक दूरी न बनाए रखने व मास्क व सेनिटाइज़र आदि का उपयोग न कर पाने के लिए पूरी तरह सरकार ज़िम्मेदार है। क्योंकि सरकार न तो बाढ़ को नियंत्रित कर पा रही है न ही इससे प्रभावित लाखों लोगों को कोरोना के नियम क़ानून व प्रतिबंधों व दिशा निर्देशों के तहत सहायता,सुरक्षा व संरक्षण दे पा रही है।    झारखंड में कोरोना नियमों की अनदेखी करने व  मास्क न पहनने पर एक लाख रुपये का जुर्माना और 2 साल की जेल की सज़ा का क़ानून संक्रामक रोग अध्यादेश 2020 पास किया गया है। इसके अंतर्गत सुरक्षा प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने वाले और मास्क न पहनने वालों को 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। इतना ही नहीं बल्कि कोई नियमों का उल्लंघन करता है या मास्क नहीं पहनता है तो उसे 2 साल तक जेल में भी रहना पड़ सकता है। याद रखें कि झारखण्ड में आज भी करोड़ों लोगों को दो वक़्त की सुखी रोटी भी नसीब नहीं होती। वह कहाँ से मास्क ख़रीदेंगे तो कैसे जुर्माना भरेंगे? फिर जब मास्क न लगाना इतना बड़ा अपराध है तो सत्ता की जोड़ तोड़ में लगे विधायक या उनके चेले चपटे जो मोटरसाइकिल जुलूसों पर हाथों में झंडे लेकर नारेबाज़ी करते फिर रहे थे या दिया-बत्ती जलाते  व ताली-थाली बजाते हुए जश्न मना रहे थे,क्या उनके लिए कोई क़ानून नहीं ?
                                       उपरोक्त परिस्थितियां निश्चित रूप से प्रत्येक देशवासी को यह सोचने के लिए बाध्य करती हैं कि क्या कोरोना के नियम व क़ानून क़ायदे केवल जनता के पालन के लिए बनाए गए हैं। इसी जनता के रहम ो करम पर चुने जाने वाले नेताओं के लिए नहीं? ग़ौर तलब है कि इसी देश में ‘एक देश एक क़ानून’ की आवाज़ भी अक्सर सुनाई देती है। परन्तु हक़ीक़त इस अवधारणा को हरगिज़ स्वीकार नहीं करती। यहाँ अमीरों के लिए अलग क़ानून क़ाएदे हैं तो ग़रीबों के लिए अलग। मतदाताओं के लिए अलग नेताओं के अलग। सत्ता धीशों के अलग तो विपक्ष के लिए अलग। भक्तों के लिए अलग तो आलोचकों के लिए अलग। भावनाओं की बात करें तो भावनाएं भी वही हैं व उन्हीं का सम्मान किया जाना है जिन्हें सरकार या प्रशासन मान्यता दे अन्यथा धरातल पर तो यही दिखाई दे रहा है कि कोरोना संबंधी नियम क़ानून:इनके लिए कुछ और तो उनके लिए कुछ और ?

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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

 

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

 

संपर्क -: E-mail : nirmalrani@gmail.com

 

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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