कैसे बचें-कैसे पढ़ें बेटियां?

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– निर्मल रानी –

NIRMAL-RANIयह एक अजीब संयोग है कि हरियाणा की धरती से ही 22 जनवरी 2015 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसी कन्या हितकारी योजना की शुरुआत की गई थी। हरियाणा के पानीपत जैसे ऐतिहासिक शहर में आयोजित एक जनसभा में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी व स्मृति ईरानी,राज्य के राज्यपाल,मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर तथा मशहूर िफल्म अभिनेत्री माधुरी दीक्षित सहित कई मंत्रियों की उपस्थिति में प्रधानमंत्री ने देश को ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा दिया था। प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर कुछ ‘मंत्र’ भी उच्चारित किए थे जिनमें ‘बेटा-बेटी एक समान’ भी एक मंत्र था। इस अवसर पर मेनका गांधी ने जहां यह सलाह दी थी कि कन्या के जन्म को भी उत्सव की तरह ही मनाना चाहिए वहीं इस मुहिम की ब्रांड एंबेसडर माधुरी दीक्षित ने पुरुष प्रधान समाज की इस सोच पर आश्चर्य व्यक्त किया था कि बावजूद इसके कि हम चांद तथा मंगल जैसे ग्रहों तक पहुंच चुके हैं फिर भी लोग अपनी बेटियों को एक बोझ समझते आ रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तो हरियाणा की इस धरती पर बड़े ही भावुक अंदाज़ में यहां तक कह डाला था कि-‘मैं यहां एक भिक्षु की तरह कन्याओं के जीवन की भीख मांगने के लिए आया हूं। निश्चित रूप से यह आयोजन तथा मुहिम महिलाओं को शक्ति प्रदान करने तथा उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए बड़ी कारगर मुहिम साबित हो सकती थी।

परंतु दुर्भाग्यवश हरियाणा की इसी धरती से लड़कियों के साथ सौतेला व्यवहार करने,उन्हें अपमानित करने तथा उनकी इज़्ज़त व आबरू के साथ खिलावाड़  करने के अनेक समाचार मिलते रहे हैं। पिछले दिनों चंडीगढ़ में इसी सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के ‘संस्कारी’ सुपत्र ने राज्य के एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी की बेटी को देर रात परेशान करने और युवती के अनुसार उसका अपहरण करने की कोशिश की। वर्णिका कुंडु नामक युवती के अनुसार यदि उस रात पुलिस उसके बुलाने पर उसकी सहायता को न पहुंचती तो मुमकिन है उसका अपहरण कर बलात्कार हो गया होता और उसकी लाश किसी नाले में पड़ी होती। इस शर्मनाक घटना का दूसरा आश्चर्यजनक पहलू यह भी रहा कि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ मुहिम के इन्हीं झंडाबरदारों ने इस घटना के बाद अपने-अपने घुटनों को पेट की ओर मोडऩा शुरु कर दिया। बेटी बचाओ की दुहाई देने वाले यह सवाल करते सुने गए कि देर रात युवती घर से बाहर क्यों थी? पार्टी के एक ‘भक्त’ ने तो लडक़ी को बदनाम करने के लिए एक फजऱ्ी फोटो सोशल मीडिया के द्वारा प्रसारित कर यह जताने की कोशिश की कि वर्णिका कुंडु के संबंध उस नेता पुत्र विकास बराला के साथ पहले से ही थे। परंतु उसकी इस फजऱ्ी पोस्ट की जल्दी ही हवा निकल गई। गोया ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसी लोकलुभावन योजना का कोई भी पैरोकार वर्णिका के पक्ष में खड़ा होता दिखाई नहीं दिया। यहां तक कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर भी इस मामले पर यह कहते सुनाई दिए कि यह एक व्यक्तिगत मामला है और न्याय अपना काम करेगा।

उपरोक्त पूरे प्रकरण में एक बात और भी सबसे दिलचस्प रही कि बावजूद इसके कि पीडि़त युवती ने पुलिस थाने पर आपबीती बताकर अपने साथ होने वाली पूरी घटना का विस्तृत ब्यौरा दिया। जिसके अनुसार आरोपी तथा उसका एक मित्र दोनों ही वर्णिका का अपहरण करना चाह रहे थे। परंतु पुलिस ने आरोपी के पिता के ऊंचे रसूख तथा प्रभाव की वजह से आरोपी पर अपहरण की धारा नहीं लगाई। और घटना की गंभीरता को कमज़ोर करते हुए उसे रातोंरात थाने से ज़मानत पर रिहा भी कर दिया गया। हालांकि मीडिया तथा विपक्ष के दबाव के चलते गत् 9 अगस्त को विकास व उसके मित्र को अपहरण के प्रयास की कोशिश में गिरफ्तार कर जेल भी भेजा जा चुका है।  खबरों के मुताबिक इसी विकास बराला के परिवार के अन्य सदस्यों पर भी इसी प्रकार के महिला उत्पीडऩ के मुकद्दमे पहले भी दर्ज हैं। गोया समझा जा सकता है कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ जैसी मुहिम को यह परिवार किस हद तक ‘सफलता के शिखर’ पर ले जा सकता है। इसी संदर्भ में यह याद करना भी ज़रूरी है कि कुछ समय पूर्व भारतीय जनता पार्टी की एक महिला नेत्री समेत कई लोग बाल तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किए गए। इसी पार्टी के अनेक लोग महिलाओं के साथ अश£ील अवस्था में पकड़े जा चुके हैं यहां तक कि विधानसभा में अश£ील िफल्में देखने जैसे घृणित कारनामे करते हुए पकड़े गए हैं। इन सब के बावजूद इनका दावा यही है कि वे ही ‘बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ’ योजना के सबसे बड़े महानायक हैं।

चंडीगढ़ की घटना से एक सबक और मिलता है कि चूंकि पीिड़त युवती एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी की बेटी थी इसलिए उसने हिम्मत से काम लिया और अपनी कार को लफंगों की गिरफ्त से बचाते हुए उन्हें पुलिस थाने तक पहुंचाने का काम किया। बावजूद इसके कि इन लफंगों ने लडक़ी की कार को ओवरटेक कर उसे रोका तथा कार का दरवाज़ा पीटकर उसे खोलने की नाकाम कोशिश की। परंतु हिम्मत से काम लेते हुए वर्णिका ने अपनी कार फिर आगे बढ़ा ली चलती कार में पुलिस से मदद मांगी। ज़रा सोचिए यदि यही वर्णिका या इसकी जगह कोई दूसरी युवती कार के बजाए स्कूटर पर होती या फुटपाथ पर पैदल जा रही होती और वासना का भूत सवार यही युवक उस लडक़ी से टकरा जाते तो उस लडक़ी का क्या अंजाम होता? ज़ाहिर है हर लडक़ी वर्णिका नहीं होती न ही हर लडक़ी के पास इतनी सूझबूझ और साहस होता है कि वह मुसीबत की ऐसी घड़ी में अपने होश-ो-हवास को पूरी तरह काबू में रखते हुए स्वयं को गुंडों से भी बचाए,साथ ही साथ पुलिस को भी बुलाए और अपराधियों को थाने तक पहुंचाने का साहस जुटाए। निश्चित रूप से एक साधारण भारतीय नारी इतनी चुस्त एवं सक्रिए नहीं होती। परंतु हमारे देश में पुरुषों का व्यवहार महिलाओं के प्रति प्राय: कैसा रहता है,वे कैसी सोच व नज़रिया रखते हैं यह बातें पूरे देश के समाचार पत्र किसी न किसी घटना के हवाले से प्रतिदिन हमें बताते ही रहते हैं।

ज़रा सोचिए कि जिस िफल्म अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान का ब्रांड अबेसडर बनाया गया,स्मृति ईरानी व मेनका गांधी जैसी महिला केंद्रीय मंत्रियों के समक्ष प्रधानमंत्री ने इस योजना की शुरुआत की क्या कभी इन महिलाओं से भी किसी ने यह पूछने का साहस किया है कि वे देर रात तक अपने घरों से बाहर क्यों रहती हैं? क्या यह सवाल अपने बिगड़ैल व आवारा मिज़ाज बेटों से मां-बाप नहीं पूछ सकते कि वे आिखर देर रात घरों से बाहर क्यों रहते हैं और कहां रहते हैं? बेटी बचाओ का अर्थ यदि कन्या भ्रुण हत्या को रोकना है तो बेटी पढ़ाओ का अर्थ महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना,उन्हें आत्म सम्मान से जीने के लिए प्रेरित करना तथा किसी की मोहताजगी से दूर रखना भी है। और यदि पढ़-लिख कर वही बेटी किसी रोज़गार से जुड़ जाती है तो उसके लिए दिन और रात क्या मायने रखते हैं? आज आिखर कौन सा क्षेत्र और कौन सा विभाग ऐसा है जहां महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंध मिलाकर काम न कर रही हों। तो क्या यह ‘संस्कारी’लोग उन महिलाओं से भी यही सवाल करेंगे कि वे देर रात घर से बाहर क्यों निकली हुई थीं? दरअसल भारत में पुरुष की महिलाओं के प्रति राक्षसी मानसिकता का प्रश्र हमारी संस्कारित दोहरी सोच का दर्पण है जो हमें समय-समय पर आईना दिखाता रहता है। भारतीय पुरुष प्रधान समाज महिला को कमज़ोर,दूसरे दर्जे का तथा भोग्या समझता आ रहा है। इसे किसी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे खोखले उद्घोषों से नहीं बल्कि बाल  संस्कारों से ही रोका जा सकता है।

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NIRMAL RANIपरिचय –

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 134003 , Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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