केजरीवाल: बद अच्छा बदनाम बुरा?

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– तनवीर जाफरी –

unnamedभारतीय राजस्व सेवा की प्रथम श्रेणी की अफसरशाही छोडक़र जन आंदोलनों से गुज़रते हुए भ्रष्टाचार मिटाने के उद्देश्य से राजनीति में कदम रखने वाले अरविंद केजरीवाल इन दिनों विभिन्न राजनैतिक दलों के अतिरिक्त मीडिया के लिए भी घोर आलोचना का केंद्र बने हुए हैं। जिस भारतीय मीडिया को अरविंद केजरीवाल में एक सफल आंदोलनकारी,मेगासेसे अवार्ड विजेता,राजनीति की दिशा व दशा बदलने वाला नायक, भ्रष्टाचार जड़ से उखाड़ फेंकने का हौसला रखने वाला एक जुझारू नेता नज़र आता था वही मीडिया इन दिनों केजरीवाल में एक असफल,गुस्सैल,तानाशाह तथा जि़द्दी व हठधर्मीं िकस्म का नेता देख रहा है। हालांकि ज़ाहिर तौर पर कई बातें ऐसी हैं भी जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि केजरीवाल में राजनैतिक सूझ-बूझ व पार्टी को एकजुट रख पाने के हुनर की कमी ज़रूर है। अन्यथा योगेन्द्र यादव तथा प्रशांत भूषण तथा प्रो०आनंद कुमार जैसे काबिल व बेदाग छवि वाले आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्य पार्टी को छोडक़र कभी न गए होते। परंतु इसके अतिरिक्त केजरीवाल को लेकर कुछ ऐसी सच्चाईयां भी थीं जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। मिसाल के तौर पर 2012-13 में अरविंद केजरीवाल ने अन्ना हज़ारे के साथ मिलकर जनलोकपाल गठित करने हेतु जो भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन खड़ा किया था उस स्तर के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कोई दूसरी मिसाल भारत में देखने को नहीं मिलती। देश के दूर-दराज़ के इलाकों से किस प्रकार लाखों सरकारी सेवारत,गैर सरकारी कामगार,छात्र तथा युवाओं का हुजूम अपने पैसे व समय ख़र्च कर दिल्ली आ पहुंचा और अपने-आप को परेशानी में डालकर देश को भ्रष्टाचार मुक्त कराने के उद्देश्य से अन्ना-केजरीवाल जैसे नेताओं के पीछे एक स्वर में खड़ा हो गया।

हालांकि उस आंदोलन में सुनियोजित तरीके से कई ऐसे लोग भी प्रवेश कर गए जिनका मकसद भ्रष्टाचार का विरोध करना तो कम कांग्रेस को भ्रष्टाचार के विषय पर बदनाम व गंदा करना अधिक था। माना जाता है कि 2014 में कांग्रेस व संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार की पराजय में उस जनलोकपाल आंदोलन की भी बड़ी भूमिका थी। उस आंदोलन में अन्ना-केजरीवाल के साथ  दिखाई देने वाले कई नेता ऐसे भी थे जो आज भारतीय जनता पार्टी की सरकार में मंत्री,सांसद,विधायक अथवा पार्टी प्रवक्ता के रूप में देखे जा सकते हैं। जबकि देखने में जनलोकपाल आंदोलन कांग्रेस अथवा भाजपा के विरुद्ध न होकर एक भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन था और जनलोकपाल कानून बनाए जाने के मकसद से किया गया था। क्या यहां यह सवाल मुनासिब नहीं है कि उस आंदोलन के समय जो लेाग अन्ना-केजरीवाल के साथ,उनके बगल में बैठकर व उनके मुख्य सेनापति के रूप में जनलोकपाल की हिमायत करते दिखाई देते थे वही नेता आज भाजपा में सत्ता सुख तो भोग रहे हैं परंतु वे भाजपा मेें लोकपाल कानून बनाए जाने मांग क्यों नहीं उठाते? क्या इससे यह नहीं साबित होता कि उनका मकसद भ्रष्टाचार का विरोध नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी का विरोध करना और कांग्रेस को सत्ता से हटाने की साजि़श के तहत इस आंदोलन में शरीक होना मात्र था?

सत्ता और सत्ता समर्थक मीडिया द्वारा एक बार फिर अरविंद केजरीवाल व उनकी आम आदमी पार्टी के विरुद्ध बड़े ही सुनियोजित तरीके से बदनाम करने की साजि़श रची जा रही है। किसी भी नेता में जितनी भी कमियां,बुराईयां अथवा नकारात्मक बातें होनी चाहिए वे सभी केजरीवाल में बताई जा रही हैं। यहां तक कि उनकी उपलिब्धयों का बखान तो बिल्कुल नहीं परंतु उनकी नाकामियों को बढ़ा-चढ़ा कर बताया जा रहा है। गोआ तथा पंजाब में आम आदमी पार्टी का सत्ता में न आना कुछ ऐसे प्रचारित किया गया गोया पंजाब व गोआ में पार्टी ने अपनी सत्ता ही खो दी हो। बजाए इसके कि केजरीवाल की  इस बात के लिए पीठ थपथपाई जानी चाहिए थी कि पंजाब में पहली बार विधानसभा चुनाव लडऩे वाली पार्टी ने राज्य की 117 सीटों वाली विधानसभा में 23 सीटें जीतकर अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराई। इसी प्रकार गोआ में भी भले ही आम आदमी पार्टी को कोई सीट हासिल न हुई हो परंतु राज्य में आम आदमी पार्टी को एक अच्छा वोट प्रतिशत ज़रूर हासिल हुआ।

इसी तरह दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भी देखा गया। दिल्ली नगर निगम पर पहले से ही भारतीय जनता पार्टी का कब्ज़ा था। भाजपा अपने चुनाव किस अंदाज़ से और किस स्तर पर लड़ती है यह पूरा देश देख रहा है चाहे वह नगरपालिका के वार्ड स्तरीय चुनाव हों या किसी राज्य का विधानसभा अथवा लोकसभा का उपचुनाव। भाजपा व उसके रणनीतिकार प्रत्येक चुनाव को युद्ध स्तर पर लड़ते देखे जा रहे हैं। उनके लिए हर चुनाव उनकी प्रतिष्ठा का प्रश्र बना हुआ है। ज़ाहिर है दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भी यही देखा गया। केंद्रीय मंत्रियों व सांसदों से लेकर विभिन्न प्रदेशों के भाजपाई मुख्यमंत्रियों की पूरी टीम दिल्ली नगर निगम चुनाव में झोंक दी गई। नतीजतन आम आदमी पार्टी भाजपा को नगर निगम से बेदखल नहीं कर सकी। मगर भाजपा की नगर निगम दिल्ली में पुन: वापसी और आप का निगम पर कब्ज़ा न हो पाना भी यंू ही प्रचारित किया गया जैसे दिल्ली नगर निगम पर पहले आप का परचम लहरा रहा था जो अब भाजपा ने उखाड़ फेंका। हां आम आदमी पार्टी को अपेक्षित सीटें न मिल पाने के बाद पार्टी में केजरीवाल विरोधी जो स्वर बुलंद हुए तथा कई सत्ता लोभियों ने पार्टी का दामन छोड़ा,इन खबरों को मीडिया द्वारा बढ़-चढ़ कर प्रचारित व प्रसारित ज़रूर किया गया। जैसेकि इन दिनों केजरीवाल के ही एक और ‘विभीषण’कपिल मिश्रा के केजरीवाल पर लगाए जाने वाले रिश्वत जैसे सनसनीखेज़ आरोप को प्रचारित किया जा रहा है। जबकि दिल्ली में केजरीवाल सरकार अपने सीमित अधिकारों व सीमित संसाधनों के बावजूद तथा दिल्ली के उपराज्यपाल से निरंतर मिलने वाली चुनौतियों व चेतावनियों तथा केंद्र सरकार के असहयोग तथा नकारात्मक बर्ताव के बावजूद दिल्ली में विकास संबंधी कितने कार्य कर रही है,भ्रष्टाचार को नियंत्रण में कर सकने में कितनी सफलता हासिल की है इन बातों का मीडिया कभी जि़क्र करता दिखाई नहीं देता।

अरविंद केजरीवाल ने अपनी अफसरशाही की नौकरी ठुकरा कर शासन व्यवस्था तथा राजनीति से भ्रष्टाचार को जड़-मूल से समाप्त करने का संकल्प लिया है। केजरीवाल ने अदानी व अंबानी जैसे देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों के भ्रष्टाचार को उजागर करने का साहस दिखाया है। अब यहां यह कहने की ज़रूरत नहीं कि दूसरे दलों के लोग अदानी व अंबानी के साथ किस विनम्रता तथा सौहाद्र्र से क्यों और कैसे पेश आते हैं? यह भी जगज़ाहिर है कि भारतीय मीडिया के केंद्रीय सत्ता तथा देश के उद्योगपतियों से क्या संबंध हैं तथा इसपर उनके क्या प्रभाव हैं। ऐसे में क्या भाारतीय जनता पार्टी तो क्या कांग्रेस कोई भी नहीं चाहेगा कि अरविंद केजरीवाल जैसा भ्रष्टाचार का विरोध करने वाला ‘सनकी’ व्यक्ति राजनीति में सफलता की मंजि़लें तय करे। और अब तो केजरीवाल ने अपनी पत्नी को भी भारतीय राजस्व सेवा की नौकरी छोडक़र सामाजिक कार्यों में सक्रिय कर दिया है। मुझे नहीं लगता कि वर्तमान पेशेवर राजनीतिज्ञों में भी कोई एक ऐसी मिसाल मिलेगी जो इतने सम्मानपूर्ण व प्रतिष्ठित सेवाओं को छोडक़र भ्रष्टाचार का विरोध करते हुए देश के बड़े से बड़े उद्योगपतियों व नेताओं की पोल खोलने पर आमादा हो। परंतु मीडिया व नेताओं को केवल केजरीवाल का स्वभाव,उनका चिड़चिड़ापन व तानाशाही तथा एक बड़ी साजि़श के तहत उनपर लगने वाले आरोप नज़र आ रहे हंै। उनकी कुर्बानी,उनके हौसले व उनके बुलंद इरादे नहीं। गोया केजरीवाल बेवजह ही बद अच्छा और बदनाम बुरा वाली कहावत के पर्याय बनते जा रहे हैं।

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Tanveer JafriAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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