कुनबापरस्ती में डूबे राजनेता

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– निर्मल रानी –

ARTICLE-BY-NIRMAL-RANIकांग्रेस विरोधियों द्वारा वैसे तो परिवारवाद की राजनीति करने के लिए सबसे बदनाम परिवार होने का तमगा नेहरू-गांधी परिवार को ही दे दिया गया है। परंतु यदि हम बारीकी से इस विषय पर अध्ययन करें तो हमें यही देखने को मिलता है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी अथवा सोनिया गांधी ने भी अपनी संतान मोह में आकर उस स्तर तक नीचे जाने की कोशिश नहीं की जहां तक देश के दूसरे सत्तालोभी राजनेता जाते दिखाई दे रहे हैं। तमिलनाडु में एम करुणानिधि, बिहार में लालू प्रसाद यादव तथा रामविलास पासवान, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव, महाराष्ट्र में बाल ठाकरे का घराना जैसे और भी कई राजनेता ऐसे हैं जिन्होंने योग्यता-अयोग्यता को नज़रअंदाज़ करते हुए तथा अपने संगठन तथा प्रदेश के भविष्य को दांव पर लगाते हुए महज़ अपनी कुनबापरस्ती के लिए सभी हदों को पार करने का काम किया है।

करूणानिधि के परिवार में उनके पुत्रों के मध्य सत्ता संघर्ष की खबरें आती रहती हैं। केंद्र सरकार में किसी के साथ गठबंधन करना हो या प्रदेश की सत्ता हाथ में हो, उस समय करुणानिधि को अपनी संतानों अथवा अन्य परिजनों को प्रथम वरीयता के आधार पर मंत्री का पद देना अनिवार्य समझा जाता है। इसका अर्थ यह नहीं कि डीएमके में करुणानिधि के कुनबे के सदस्यों से अधिक शिक्षित, तजुर्बेकार अथवा वरिष्ठ नेता कोई नहीं है। बल्कि यह महज़ कुनबापरस्ती की एक पराकाष्ठा है जो करुणानिधि जैसे कई राजनैतिक घरानों में पाई जाती है। इसी रोग ने महाराष्ट्र में ठाकरे परिवार में विभाजन खड़ा कर दिया। ताज़ा तरीन उदाहरण इन दिनों सुिर्खयों में रहने वाले बिहार राज्य का है। देश में दलबदल तथा वामपंथ-दक्षिणपंथ की बहस से दूर तथा किसी भी वैचारिक प्रतिबद्धताओं को दरकिनार करते हुए केवल और केवल सत्ता के साथ रहने वाले लोकजन शक्ति पार्टी के नेता रामविलास पासवान ने 2015 में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में तथा इससे पूर्व 2014 में हुए संसदीय चुनाव में भी अपने पुत्र व भाईयों सहित कई रिश्तेदारों को पार्टी टिकट वितरित किए। चिराग पासवान नामक इनके पुत्र जो िफल्म जगत से लेकर क्रिकेट तक में अपना भविष्य आज़मा चुके हैं परंतु इन दोनों ही क्षेत्रों में असफल होने के बाद उन्हें अपने पिता की राजनैतिक विरासत को संभालने में ही सफलता दिखाई दी।

इस बार फिर जबकि बिहार के विकास बाबू कहे जाने वाले नितीश कुमार को देश की राजनीति में पलटी बाबा जैसे नए नाम से जाना जा रहा है इसमें भी पासवान कुंबापरस्ती की भूमिका निभाने में पीछे नहीं हैं। भले ही इसके नतीजे में राजग में दरारें ही क्यों न पडऩे लगें। हालांकि मु यमंत्री नितीश कुमार ने विधानसभा में विश्वासमत हासिल कर लिया है। परंतु उनकी टांग खींचने में लगे दूसरे नेता या वे नेता जो इस पलटीमारी के सत्ता परिवर्तन में केंद्र अथवा राज्य सरकार में अपनी मज का स्थान नहीं पा सके वे अवसरों की तलाश में लगे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार नितीश कुमार ने अपने नवगठित मंत्रिमंडल में भाजपा के सहयोगी घटक लोजपा के जिस  एकमात्र मंत्री को मंत्रिमंडल में शामिल किया है वह न तो विधानसभा का सदस्य है न ही विधानपरिषद का। जबकि इन दोनों ही सदनों में लोजपा के कई वरिष्ठ सदस्य मौजूद हैं। परंतु मंत्रीपद पर सुशोभित होने वाले व्यक्ति की विशेषता केवल यही है कि वह रामविलास पासवान के भाई बताए जा रहे हैं। इस घटनाक्रम से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी जैसे कई नेता नाराज़ दिखाई दे रहे हैं। और कोई आश्चर्य नहीं कि नाराज़गी के यह स्वर किसी राजनैतिक विद्रोह का रूप भी धारण कर लें।
बिहार में ही आज लालू प्रसाद यादव के साथ जो भी घटनाक्रम चलता दिखाई दे रहा है उसके लिए भी उनकी कुंबापरस्ती ही जि़ मेदार है। लालू प्रसाद यादव का भ्रष्ट होना कोई खास मायने नहीं रखता। खासतौर पर भाजपा जैसे उस दल के लोग तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुखरित होने का वैसे भी नैतिक अधिकार इसलिए नहीं रखते क्योंकि उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण रिश्तव लेते हुए कैमरे में क़ैद हो चुके हैं। व्यापम जैसा घोटाला भारतीय भ्रष्टाचार के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा व ख़तरनाक घोटाला माना जा रहा है। कर्नाट्क के रेड्डी बंधुओं के भ्रष्टाचार व अनियमितताओं के क़िस्से जगज़ाहिर हैं। येदिउरप्पा जैसे भ्रष्ट नेता भी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के ही सिपहसालार थे। ऐसे में यदि लालू भी भ्रष्ट थे या हैं तो कोई आश्चर्य का विषय नहीं है। कांग्रेस से लेकर देश के लगभग सभी राजनैतिक दलों के कोई न कोई नेता भ्रष्टाचार में संलिप्त रहे हैं। यह और बात है कि किसी ने भ्रष्टाचार करने में सफ़ाई से काम नहीं लिया और अपने भ्रष्ट निशान छोड़ गए वे तो कानून की गिरत में आ गए या जेल की सलाखों के पीछे चले गए और जो चतुर खिलाड़ी थे वे भ्रष्टाचार भी करते जा रहे हैं और भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुखरित भी होते दिखाई देते हैं। परंतु लालू प्रसाद यादव को सबसे अधिक समस्या जिस विषय को लेकर खड़ी हो रही है वह उनकी कुनबापरस्ती या परिवार के प्रति उनका मोह ही है।

लालू यादव के राजनैतिक ह्रास की कहानी उस समय शुरु होती है जबकि 1997 में चारा घोटाले के आरोप में लालू यादव को जेल जाना पड़ा। चूंकि लालू यादव उस समय बिहार के मु यमंत्री थे इसलिए उन्हें अपने उत्तराधिकारी का चयन बहुत जि़ मेदारी के साथ तथा सोच-समझकर करना चाहिए था। परंतु उन्होंने अपनी गैर तजुर्बेकार तथा अशिक्षित पत्नी राबड़ी देवी को प्रदेश का मु यमंत्री बना डाला। ठीक है, वे ऐसा कर सत्ता को अपने घर की चहारदीवारी में कैद कर रखने में तो ज़रूर सफल रहे परंतु इसका दूरगामी परिणाम यह रहा कि इससे बिहार की कफी जगहंसाई हुई। पिछले 2015 के चुनाव में भी जब महागठबंधन की सरकार बनी तो पुत्र मोह में डूबे लालू यादव को अपने ही दो पुत्रों के सिवा तीसरा कोई वरिष्ठ व तजुर्बेकार नेता नज़र ही नहीं आया जिसे वे राज्य का उपमु यमंत्री बनाते। आज परिस्थितियां सबके सामने हैं। भाजपा के इशारे पर लालू प्रसाद यादव के साथ की जा रही बदले की कार्रवाई को तो पूरा देश देख ही रहा है परंतु साथ-साथ देश यह भी महसूस कर रहा है कि आज उनके साथ जो कुछ भी घटित हो रहा है उसके लिए उनकी कुनबापरस्ती तथा परिवारवाद ही सबसे अधिक जि़ मेदार है।
उत्तर प्रदेश में मुलायमसिंह यादव की समाजवादी पार्टी के साथ जो कुछ घटित होता हुआ दिखाई दे रहा है उसके लिए भी मुलायम सिंह यादव की कुंबापरस्ती की राजनीति ही जि़ मेदार है। यदि मुलायम सिंह यादव के करीबी लोगों पर नज़र डाली जाए तो इनके वफ़ादारों में यादव कुनबे से बाहर के लोग अधिक दिखाई देंगे जबकि जितने भी परिवार के सदस्य या भाई-भतीजे नज़र आएंगे वे सभी एक-दूसरे से बढ़त हासिल करने की िफराक़ में लगे दिखाई देंगे या फिर एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में मशगूल नज़र आएंगे। 2012 में अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के समय से लेकर समाजवादी पार्टी में इन दिनों आई भीषण दरार तक के सफर में यह बात ग़ौर से देखी जा सकती है। यह परिस्थितियां एक प्रबुद्ध राजनेता के सोचने के लिए काफी हैं कि राजनीति में कुनबापरस्ती अथवा परिवारवाद का अनुसरण करना चाहिए या नहीं। इसमें कोई शक नहीं कि कुनबापरस्ती का रोग किसी व्यक्ति की राजनीति, उसके संगठन यहां तक कि उसकी सामाजिक छवि, उसके जनाधार तथा उसके अपने राजनैतिक भविष्य तक के लिए खतरा हो सकता है।

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INVCपरिचय –

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 134003 , Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

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