किसान आंदोलन और मीडिया की भूमिका

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– तनवीर जाफरी –

किसानों,खेतीहर मज़दूरों तथा आदिवासियों द्वारा पिछले दिनों नासिक से शुरु हुआ पैदल किसान मार्च लगभग 180 किलोमीटर की यात्रा तय कर 12 मार्च को मुंबई पहुंचा। सूत्रों के अनुसार इस मार्च में लगभग 60 हज़ार आंदोलनकारी अपनी मांगों को लेकर मुंबई स्थित विधानसभा भवन का घेराव करने के इरादे से मुंबई पहुंचे थे। परंतु उनके विधानसभा घेरने से पहले ही राज्य सरकार द्वारा किसानों की 90 प्रतिशत मांगें बिना किसी शर्त के मान ली गईं। हमारे देश में किसानों व मज़दूरों के आंदोलन पहले भी बड़े पैमाने पर होते रहे हैं। परंतु गत् 6 से 12 मार्च तक महाराष्ट्र में चला यह किसान मार्च अपने-आप में कई नज़रियों से ऐतिहासिक आंदोलन के रूप में जाना जाएगा। इस आंदोलन ने जहां किसानों,मज़दूरों तथा आदिवासियों की बेबसी,उनकी मजबूरी,लाचारी तथा गरीबी से आम लोगों को परिचित कराया वहीं इतनी बड़ी तादाद में एक साथ पैदल मार्च करने के बावजूद उनका अनुशासन भी देखने लायक रहा। इस आंदोलन ने न केवल उनकी जायज़ मांगों तथा उनके अनुशासन व बड़ी तादाद को देखते हुए सरकार को झुकने पर मजबूर किया वहीं नासिक से लेकर मुंबई के आज़ाद मैदान पहुंचने तक के रास्ते में आम जनता भी इन ‘अन्नदाताओं’ की सेवा में खड़ी देखी गई। कहीं रास्ते में जनता द्वारा किसानों को पानी तथा शरबत पिलाया जा रहा था तो कहीं उनके स्वास्थय की जांच-पड़ताल हेतु कैंप लगाए गए थे। गौरतलब है कि इस किसान मार्च में सैकड़ों किसानों के पैरों में छाले पड़ गए थे,कई किसानों के पैर फट जाने के कारण रक्त बहने लगा था तो कई के पैर व टांगे सूजन से फूल गई थीं। इस मार्च में हज़ारों बुज़ुर्ग किसान भी शामिल थे।

बहरहाल,कृषि प्रधान देश का लाचार कृषक समाज जब सडक़ों पर उतरा तो निश्चित रूप से सरकार से लेकर जनता तक सभी पक्ष तो उसके प्रति संवेदनशनशील नज़र आए। सोशल मीडिया से लेकर क्षेत्रीय समाचार पत्रों तक ने इस किसान आंदोलन से संबंधित समाचार तथा टीका-टिप्पणियां सचित्र प्रकाशित किए। एक सप्ताह तक सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों में भी यह आंदोलन पूरी तरह छाया रहा। परंतु दुर्भाग्यवश हमारे देश का बिकाऊ व दलाल प्रवृति का बन चुका इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खासतौर पर मुख्यधारा के समझे जाने वाले समाचार चैनल्स ने इस किसान आंदोलन से जुड़े समाचारों को उसके महत्व के अनुसार प्रसारित करना मुनासिब नहीं समझा। जिन दिनों में यह आंदोलन अपने शबाब पर था और सोशल मीडिया पर किसानों के लहू-लुहान पैर उनकी पत्थराती टांगें,उनके लडख़ड़ाते कदम छाए हुए थे उस समय ‘गोदी मीडिया’ मोहम्मद शमी नामक क्रिकेट खिलाड़ी तथा चियर्स गर्ल रह चुकी उसकी पत्नी, जिसने कि शमी के साथ दूसरा विवाह किया था, के मध्य धन-संपत्ति को लेकर उपजे विवाद तथा एक-दूसरे को नीचा दिखाने हेतु इनके द्वारा एक-दूसरे के विरुद्ध दिए जा रहे विवादित बयानों को मुख्य रूप से प्रसारित किए जाने में व्यस्त था।

ज़रा सोचिए कि हम जिस मेहनतकश कृषक समाज के बल पर अपने देश को कृषि प्रधान देश रटते आ रहे हों वही कृषक समाज इतनी बड़ी तादाद में समुद्र की तरह हिलोरंे मारता हुआ 180 किलोमीटर लंबी पदयात्रा करता हुआ अपना घर-परिवार छोडक़र सडक़ों पर उतरने को मजबूर हो और जो कृषक समाज सरकार को जगाने तथा उसकी आंखें खोलने के लिए मीडिया के सहयोग की उम्मीद भी लगाए बैठा हो उस जि़म्मेदार मीडिया की प्राथमिकता देश के करोड़ों किसानों की आवाज़ बुलंद करने के बजाए किसी पति-पत्नी के आपसी विवाद के विषय में देश की जनता को चिल्ला-चिल्ला कर बताना और मिर्च-मसाला लगाकर ऐसे समाचारों को पेश करना ही रह गया है? क्या बेशर्म,बेगैरत तथा दलाल व चाटुकार मीडिया घराने के लोगों को उन गरीब,बेबस किसानों के पैरों से बहता लहू व उनके पैरों के छाले एक सप्ताह तक भी नज़र नहीं आए? आज यदि दिल्ली या मुंबई जैसे शहरों में बलात्कार,लूट जैसी कोई घटना हो जाती है या कोई दलबदलू नेता अपने राजनैतिक स्वार्थ के चलते अपना राजनैतिक धर्म परिवर्तन करता है या कहीं कोई ऐसी खबर इस तथाकथित मुख्यधारा के मीडिया के हाथ लग जाती है जिससे सांप्रदायिकतापूर्ण बहस के द्वार खुलते हों या जिससे बहस को धर्म आधारित बहस बनाकर समाज में उत्तेजना पैदा की जा सके तो ऐसी बातों में इस मीडिया की भरपूर दिलचस्पी दिखाई देती है।

आिखर क्या वजह है कि भारतीय मीडिया का एक बड़ा वर्ग किसानों, उनकी समस्याओं,उनके जीवन व उनके रहन-सहन आदि से लगभग विमुख हो चुका है? क्या वजह है कि मीडिया की दिलचस्पी शहरी दिखावेबाज़ी,झूठी शान-ो-शौकत,स्टूडियो में निर्मित सेट,सेलेब्रिटीज़ तथा रंगारंग स्टेज आदि को दिखाने में ज़्यादा है? आज मुख्य मीडिया न तो किसानों के बारे में चर्चा करता दिखाई देता है न ही वह छात्रों व शिक्षकों के समक्ष दरपेश परेशानियों व उनकी समस्याओं का जि़क्र करता है।  न ही उसे मरीज़ों व वृद्धों के दु:ख-सुख की िफक्र है न ही उसका ध्यान महामारी की तरह फैलती जा रही बेरोज़गारी पर कोई कार्यक्रम प्रस्तुत करने में है। ऐसा प्रतीत होता है कि आज-कल मीडिया का एजेंडा भी सरकारों द्वारा तय किया जा रहा है। पत्रकारिता अपने कर्तव्य तथा दायित्व से पूरी तरह अपना मुंह मोड़ती नज़र आ रही है। पत्रकारिता का अर्थ शासन व प्रशासन को जन समस्याओं से अवगत कराना व इन्हें उजागर करना नहीं बल्कि शासन व प्रशासन की ढाल बनकर इन समस्याओं पर पर्दा डालना ही रह गया है। ऐसा प्रतीत होने लगा है कि टेलीविज़न चैनल संभवत: इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके हैं कि उनकी टीआरपी तभी बढ़ेगी जब वह मोहम्मद शमी व हसीन जहां जैसे किसी जोड़े के पारिवारिक विवाद संबंधी खबरें चीख़-चीख कर पढ़ेंगे या मंदिर-मस्जिद व हिंदू-मुस्लिम जैसे विषय पर आधारित ज्वलंत बहस में घी-तेल डालने का काम करेंगे।

ज़रा सोचिए जिन किसानों ने जनता की परेशानियों व ट्रैिफक जाम के मद्देनज़र मुंबई क्षेत्र में दिन में मार्च निकालने के बजाए केवल रात में पैदल चलने का फैसला किया हो और रातों में भी आम जनता उन किसानों के साथ सहयोगपूर्ण तरीके से पेश आ रही हो उस सत्ता के दलाल मीडिया  ने देश को यह बताने में तो अपनी पूरी ताकत झोंक डाली कि किस प्रकार त्रिपुरा में वामपंथियों का िकला ढह गया। बार-बार त्रिपुरा के संदर्भ को लेकर यही मुख्य मीडिया यह बता रहा था कि भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में ‘लाल विचार’ अपना दम तोड़ रहा है। परंतु नासिक-मुंबई के 180 किलोमीटर लंबे मार्ग पर फैला ‘लाल समुद्र’ इस मीडिया को दिखाई नहीं दिया। यह वही मीडिया है जो देश के दलबदलू नेताओं से लेकर देश के उद्योगपतियों व कारपोरेट घरानों से जुड़ी मामूली खबरों को भी बढ़ा-चढ़ा कर पेश करता है। उदाहरण के तौर पर पिछले दिनों प्रसिद्ध िफल्म अभिनेत्री श्रीदेवी की मौत पर ही मीडिया द्वारा कितना हो-हल्ला किया गया तथा किस प्रकार की गैर जि़म्मेदाराना रिपोर्टिंग भी की गई। परंतु इसी मीडिया को ऐसा प्रतीत होता है कि किसानों की खबरें प्रमुखता से प्रसारित करने पर उसकी टीआरपी में कोई इज़ाफा नहीं होगा। दूसरी ओर ‘सरकार बहादुर’ भी ऐसे प्रसारण से अपनी ‘निगाह-ए-करम’ फेर सकती है।  लिहाज़ा किसानों के प्रति हमदर्दी जताने जैसा जोखिम उठाया ही क्यों जाए?

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact – :
Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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