– सुनील दत्ता –
कृषि सब्सिडी अर्थात खाद , बीज , सिंचाई आदि पर दी जाने वाली सरकारी सहयाता को कृषि व किसानो को दी जाने वाली बड़ी सहायता के रूप में प्रचारित किया जाता है | रासायनिक खादों पर दी जाने वाली सब्सिडी केंद्र सरकार द्वारा और सिंचाई , बिजली पर सब्सिडी प्रांतीय सरकारों द्वारा दी जाती रही है | नि:संदेह कृषि क्षेत्र में मिल रही सब्सिडी से किसानो को उनके लागत के महंगे सामानों की खरीद में कुछ राहत मिलती है | हालांकि उन्हें सब्सिडी के प्रचारों से धोखा भी दिया जाता रहा है | इसमें पहला धोखा तो यही है कि यह सब्सिडी किसानो को खाद , बिजली , सिंचाई को कम मूल्य पर उपलब्द्ध कराने के लिए ही दी जाती है | जाहिर तौर पर यह बात ठीक भी लगती है | हालाकि सब्सिडी वाले मालो – सामानों के मालिको बाजारी दाम और उन मालो – सामानों के मालिको के लाभ में कोई कमी नही आती है | उन्हें न केवल सब्सिडी का पैसा मिल जाता है बल्कि सब्सिडी के चलते उन मालो – सामानों का बिक्री बाजार भी बढ़ जाता है | यह मालो के मालिको के लाभ मुनाफे का एक और स्रोत बन जाता है | अत: कृषि सब्सिडी , किसानो से कही ज्यादा धनाढ्य कम्पनियों को सहयाता पहुचाने का काम करता है | उनके लाभ एवं बाजार को बढाने का काम होता है |
सब्सिडी के सम्बन्ध में सरकारों और प्रचार माध्यमो द्वारा एक दूसरा धोखा रासायनिक खाद पर दी जाने वाली सब्सिडी की मात्रा के बारे में दिया जाता रहा है | उदाहरण – केंद्र सरकार द्वारा रासायनिक खाद पर 1999-2000 में दी गयी – 13 हजार 244 करोड़ रूपये की सब्सिडी 2008 -2009 में 76 हजार करोड़ 609 करोड़ रूपये तथा 2015 – 16 में 72 हजार 438 करोड़ हो गयी | स्पष्ट है कि अब उसकी मात्रा में पहले जैसा बढाव नही हो रहा है | फिर बढती मात्रा बढती मात्रा में दी जाती रही सब्सिडी भी किसानो के लिए दरअसल राहतकारी नही हो पा रही है | उसका प्रमुख कारण 1991 – 92 के बाद से रासायनिक खादों के मूल्य पर लगे हुए सरकारी नियंत्रण का हटाना हो रहा है |
उसके फल स्वरूप खादों के दामो में अचानक वृद्धि हुई जो लगातार बढती रही है | उदाहरण – 24 जुलाई 1991 को तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा रासायनिक खादों खासकर पोटाश , दाई पर मूल्य नियंत्रण हटाने के साथ उसके थोक मूल्य में 40% की वृद्धि कर दी गयी थी | बाद के सालो में भी रासायनिक खादों के बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों का बहाना लेकर देश में खादों के दामो में वृद्धि की जाती रही है | फलत: खादों पर दी जाने वाली 25% से 35% की सब्सिडी निष्प्रभावी ही नही बल्कि ऋणात्मक भी साबित होती रही | कयोकी सब्सिडी के मुकाबले खादों के मूल्य में वृद्धि कही ज्यादा हुई |
तीसरा धोखा कृषि सब्सिडी में खाद बिजली सिंचाई पर दी जाने वाली सब्सिडी के साथ खाध्ययान्न सुरक्षा योजना के अंतर्गत दी जाने वाली खाद्ययान सब्सिडी को मिलाकर कृषि सब्सिडी के प्रचारों द्वारा दिया जाता रहा है | असलियत यह है कि खाद्ययान सुरक्षा योजना के तहत दी जाने वाली सब्सिडी से कृषि उत्पादन वृद्धि में अथवा कृषि उत्पादों के बिक्री बाजार में कोई मद्दद नही मिलती | जबकि खाद्यान्न सुरक्षा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी का लगभग आधा है | 2015-16 में कृषि क्षेत्र को कुल मिलाकर दी गयी लगभग 2.5 लाख करोड़ की सब्सिडी में खाद्ययान योजनाओं की सब्सिडी 1.35 लाख करोड़ थी | फिर खाद्यान सुरक्षा योजना के अंतर्गत भरी सब्सिडी के जरिये अत्यंत कम मूल्य पर गेंहू – चावल की व्यापक वितरण प्रणाली से खाद्यान्नो के बाजार मूल्य भाव पर किसानो की दृष्टि से नकारत्मक असर पड़ता रहा है | उसके मूल्य भाव से अप्रत्यक्ष रूप में कमी आती रही है |
स्वभावत: इसका घाटा आम किसानो पर ही पड़ता रहा है और पड़ रहा है | सब्सिडी के बारे में उपरोक्त धोखाधड़ी भरे प्रचारों को जान्ने – समझने के साथ आम किसानो को यह जरुर जानना चाहिए की किसान के लिए सब्सिडी से कही ज्यादा आवश्यक मामला खाद – बीज – बिजली – सिंचाई आदि के मूल्य नियंत्रण का है | उनकी कीमतों को उच्चतम लाभ देने वाली कीमतों से घटाकर औसत लाभ देने वाली कीमत पर लाने व नियंत्रित करने का है | अगर सरकारे खाद , बिजली , सिंचाई से जुडी कम्पनियों को अधिकतम लाभ कमाने के लिए उच्च मूल्य निर्धारण की छूटे व अधिकार न देती तो कृषि लागत के उपरोक्त मालो – सामानों पर सब्सिडी देने की दरअसल कोई जरूरत ही नही पड़ती | वस्तुत: किसानो को लागत के मालो – सामानों के बेहिसाब बढ़ते मूल्यों पर नियंत्रण चाहिए | सब्सिडी की किसानो को तभी तक जरूरत है , जब तक लगत के औद्योगिक मालो – सामानों के दाम को न्यूनतम स्तर पर नही ला दिया जाता |
इन मांगो को अगर किसान सगठित तौर पर नही उठाते है तो किसानो को मिलती रही सब्सिडी को काटा घटाया जाना निश्चित है | अत: किसानो को न केवल सब्सिडी देने बढाने की ही मांग करनी चाहिए अपितु खाद , बीज सिंचाई बिजली आदि मूल्यों को नियंत्रित किये जाने की मांग प्रमुखता से उठाना चाहिए |
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सुनील दत्ता
स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक
वर्तमान में कार्य — थियेटर , लोक कला और प्रतिरोध की संस्कृति ‘अवाम का सिनेमा ‘ लघु वृत्त चित्र पर कार्य जारी है
कार्य 1985 से 1992 तक दैनिक जनमोर्चा में स्वतंत्र भारत , द पाइनियर , द टाइम्स आफ इंडिया , राष्ट्रीय सहारा में फोटो पत्रकारिता व इसके साथ ही 1993 से साप्ताहिक अमरदीप के लिए जिला संबाददाता के रूप में कार्य दैनिक जागरण में फोटो पत्रकार के रूप में बीस वर्षो तक कार्य अमरउजाला में तीन वर्षो तक कार्य किया |
एवार्ड – समानन्तर नाट्य संस्था द्वारा 1982 — 1990 में गोरखपुर परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक द्वारा पुलिस वेलफेयर एवार्ड ,1994 में गवर्नर एवार्ड महामहिम राज्यपाल मोती लाल बोरा द्वारा राहुल स्मृति चिन्ह 1994 में राहुल जन पीठ द्वारा राहुल एवार्ड 1994 में अमरदीप द्वारा बेस्ट पत्रकारिता के लिए एवार्ड 1995 में उत्तर प्रदेश प्रोग्रेसिव एसोसियशन द्वारा बलदेव एवार्ड स्वामी विवेकानन्द संस्थान द्वारा 1996 में स्वामी विवेकानन्द एवार्ड 1998 में संस्कार भारती द्वारा रंगमंच के क्षेत्र में सम्मान व एवार्ड 1999 में किसान मेला गोरखपुर में बेस्ट फोटो कवरेज के लिए चौधरी चरण सिंह एवार्ड 2002 ; 2003 . 2005 आजमगढ़ महोत्सव में एवार्ड 2012- 2013 में सूत्रधार संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह 2013 में बलिया में संकल्प संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन, देवभूमि खटीमा (उत्तराखण्ड) में 19 अक्टूबर, 2014 को “ब्लॉगरत्न” से सम्मानित।
प्रदर्शनी – 1982 में ग्रुप शो नेहरु हाल आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो चन्द्र भवन आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो नेहरु हल 1990 एकल प्रदर्शनी नेहरु हाल 1990 एकल प्रदर्शनी बनारस हिन्दू विश्व विधालय के फाइन आर्ट्स गैलरी में 1992 एकल प्रदर्शनी इलाहबाद संग्रहालय के बौद्द थंका आर्ट गैलरी 1992 राष्ट्रीय स्तर उत्तर – मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र द्वारा आयोजित प्रदर्शनी डा देश पांडये आर्ट गैलरी नागपुर महाराष्ट्र 1994 में अन्तराष्ट्रीय चित्रकार फ्रेंक वेस्ली के आगमन पर चन्द्र भवन में एकल प्रदर्शनी 1995 में एकल प्रदर्शनी हरिऔध कलाभवन आजमगढ़।
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