काजू : किसानों के लिए एक लाभकारी फ़सल

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राजीव जैन

काजू ग़रीब आदमी की फसल है, परंतु यह अमीर आदमी का भोज्य पदार्थ है। ग़रीब किसान के लिए काजू आय तथा आजीविका दोनों का ही स्रोत है तथा उपभोक्ता के  लिए यह अपनी हैसियत दिखाने का संकेत है। काजू गिरीदार फलों का राजा है। काजू के कुल उत्पादन के मामले में भारत दुनियाभर में अग्रणी है। भारत में किये गए शोध और विकास कार्य से देश कच्चे काजू के उतपादन के मामले में उच्च मानक बनाये रखने में रखने में समर्थ हुआ है।

उत्पादकता बढ़ाने के लिए नूतन विधियां
कच्चे काजू के उत्पादन तथा गिरी प्रसंस्करण के मामले में भारत वैश्विक बाज़ारों में सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है इस लिए यह वैश्विक काजू अर्थव्यवस्था में अग्रणी स्थान रखता है। देश में काजू का सालाना उत्पादन 1998 में 20 हज़ार टन था जो आठ गुणा बढ़कर फिलहाल एक लाख साठ हज़ार टन हो गया है (2008 में)। प्रौद्योगिकी के अनवरत विकास, गुणवत्ता पूर्ण पौध और प्रौद्योगिकी के अतंरण के लिए नई-नई विधियां अपनाने तथा अत्यधिक प्रभावी किसान और प्रशिक्षण कार्यक्रम के ज़रिए उपज में वृध्दि संभव हुई है।

काजू दुनिया की स्वास्थ्य गिरी है जो कमजोर धरती में उगाई जाती है। भूमि के  सीमांत तथा उप-सीमांत टुकड़ों जहां अन्य पौधे नही उगते, वहां काजू की खेती होती है। पारंपरिक रूप से काजू को कभी उगाया नही जाता था या खेती नही की जाती थी, उर्वरक का इस्तेमाल किया जाता था तथा न ही सिंचाई की जाती थी। लेकिन अनुसंधान से पता चला है कि खाद, सिंचाई और खरपरतवार निकालने जैसी साधरण कृषि विधियों से काजू की उपज को लगभग दो-गुणा करना संभव हो गया।

कच्चे काजू के व्यापार में भारत अपने उपलब्ध कच्चे काजू के लगभग 95 प्रतिशत का कारोबार करता है। प्रसंस्करण और स्थानीय खपत के लिए कच्चे काजू (शेष स्टॉक) की उपलब्ध्ता के मद्देनज़र पिछले दशक में भारत प्रसंस्कृत काजू गिरी का सबसे बड़ा उपभोक्ता भी बन गया है।
 
पौष्टिक गिरी
उत्पादन के क्षेत्र में भारत में अनुसंधान और विकास क्षेत्र में हुई तरक्की से देश उस स्थान पर पहुंच गया है जिसका अन्य उत्पादन देश मुकाबला नही कर सकता। पौष्टिकता के मामले में काजू सभी खाद्य पदार्थों में सर्वोच्च स्थान रखता है इसमें सेलीनियम की उच्च मात्रा होती है और पोलिअनसेचुरेटिड़ वसा तथा अन्य रसायनों के मामले में बहुत समृध्द होता है जिससे यह बहुत पसंद किया जाता है। काजू के आर्कषक स्वाद के कारण इसकी मांग और भी बढ़ जाती है।
पिछले दशक के दौरान वैश्विक काजू बाज़ार में वियतनाम का प्रवेश विख्यात हो गया है । वैश्विक बाज़ार में काजू के उत्पादन, प्रसंस्करण करने तथा निर्यात में भारत और ब्राज़ील के बाद उसका स्थान तीसरा है। अपने घरेलू उत्पादन के अनुपूरक के लिए उसने भारत के उन तरीकों को अपना लिया है जिनसे भारत अफ्रीका से कच्चे काजू की खरीद करता है।

इसके गतिशील एवं विशाल बाजार में अग्रणी स्थान बरकरार रखने पर अपना ध्यान रखते हुए घरेलू उत्पाद एवं उत्पादकता बढ़ा रहा है विशेषकर जैविक क्षेत्र में। कृषि के क्षेत्र में निजी भागीदारी बढ़ने से प्रस्तावित सेवाओं में गुणवत्ता  एवं मात्रा में भी वृध्दि होगी। काजू का उत्पादन करने वाले केरल जैसे राज्य कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहे है क्योंकि पुराने पेड़ों की उत्पादकता दिन-ब-दिन कम होती जा रही है।

प्रसंस्करण उत्पाद
भारत फलों से शराब जैसे उत्पादों को प्राप्त करने के लिए उचित तकनीक का विकास कर सकता है, संभवत: पशुओं का चारा, इससे किसानों को अतिरिक्त आय भी हो सकेगी। इस क्षेत्र में सामूहिक कार्यकलाप से इस फसल की वाणिज्यिक बढ़ोत्तारी होगी। सेब विटामिन-सी तथा प्रोटीन का एक बड़ा स्रोत है। इसे आयुर्वेद चिकित्सा पध्दति में कब्ज क़े इलाज के लिए स्थानीय महत्तव प्राप्त है।

इस सब के ऊपर भारत को जो इस क्षेत्र में श्रेष्ठता प्राप्त है, उससे सरकार-निजी भागीदारी से इस क्षेत्र में कई गुणा वृध्दि होगी। इसके बाज़ार से मध्यस्थ की भूमिका को समाप्त कर सरकार द्वारा खरीद व्यवस्था को और मज़बूत किया जाए जिससे किसान सतत् तौर पर इस फसल को उगाने के लिए प्रोत्साहित होंगे। विश्वस्तर पर बेहतरीन अवसरों की उपलब्ध्ता हो तथा किसानों को पूरी कीमत मिले इस बात को सुनिश्चित करने के लिए फिलहाल समय की सबसे बड़ी ज़रूरत किसानों, सरकार तथा प्रसंस्करण उद्योग को उत्पादन, विपणन तथा प्रसंस्करण के क्षेत्र में हाथ से हाथ मिलाकर कार्य करने की है।
(लेखक भारत सरकार में वरिष्ठ अधिकारी हैं)

2 COMMENTS

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