आई एन वी सी,
चंडीगढ़,
सूचना, जनसम्पर्क एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग, हरियाणा द्वारा आयोजित किए जा रहे सांग उत्सव में आज खांडे राव परी के सांग का मंचन किया गया। इसका निर्देशन पं0 राम शरण ने किया। पं० मांगे राम द्वारा लिखे गए इस सांग की कहानी इस प्रकार है ः- मानसरोवर ताल में परम हंस रहते थे। हंसों को इन्द्र महाराज ने 12 साल का दसौटा दे दिया। हंस वहां से चलकर उजैन नगरी के राजा वीर विक्रमाजीत के राज्य में आ जाते हैं और राजा से अपनी सारी कहानी सुनाते हैं। राजा वीर विक्रमाजीत सत्यवादि और दयालु राजा थे। राजा हंसों को अपने पास रख लेता है, हंसों को रहते-रहते 11 साल 11 महीने बीत जाते हैं। जब एक महीना बाकी था, तो हंस राजा का धन्यवाद करके वापिस अपने वतन के लिए चल पड़ते हैं। हंस राज वीर विक्रमाजीत की बढ़ाई करते हुए यह कहते हुए जा रहे थे, राजा वीर विक्रमाजीत बिसवै बीस। रास्ते में इन्द्र महाराज इस बात से नाराज होकर क्रोध में हंसों की एक हंसणी खोस लेता है और कहता है कि अगर तुम्हारा राजा बिसवै बीस है तो तुम्हारी हंसणी छुड़वाकर ले जाएगा। हंस रोते पीटते वापिस उजैन नगरी में राजा वीर विक्रमाजीत के पास आते हैं और सारा हाल सुनाते हैं। राजा वीर विक्रमाजीत हंसों की हंसणी छुड़वाने के लिए चल पड़ता है, चलते-चलते तंबौल नगरी पहुंच जाता है और एक भठियारी की सराय में रूकता है। वहां के राजा शाम धाम की बेटी के पेट में सांप था, और एक किले के कमरे में बंद रहती थी। शाम धाम हर रोज राज्य के प्रत्येक घर से एक आदमी को किले की भेंट में बुलाता था, और किले में अपनी बेटी रतन कौर के कमरे में छुड़वा देता था। आधी रात के समय रतन कौर के पेट में सांप निकलता था और उस आदमी को खा जाता था। भठियारी का एक ही लड़का था उसको किले की भेंट में जाना था। राजा वीर विक्रमाजीत रोती पिटती भठियारी से सारा हाल जानता है और उसके बेटे की जान के बदले खुद भेंट में चला जाता है और सांप को मार देता है। राजा शाम धाम खुश होकर अपनी बेटी की शादी वीर विक्रमाजीत के साथ कर देता है और विक्रमाजीत वहीं रहने लग जाता है। वीर विक्रमाजीत एक दिन शहर घूमते हुए खांडे राव परी को देख लेता है और अपने ससुर व रतन कौर से कहकर खांडे राव परी से शादी कर लेता है। खांडे राव परी शर्त रखती है और शादी कर लेती है। राजा शर्तों पर खरा उतरता है। खांडे राव परी इन्द्र महाराज की कैद में थी और नाचना, गाना करती थी। राजा वीर विक्रमाजीत तबले वाला बनकर साथ गया, और इन्द्र महाराज को वचनों में लेकर खांडे राव परी व हंसणी को छुड़वा लेता है।
Puri khani nhi hai ji ye aaj hi mene isko aapne dada ji se suna hai …