डॉ. मंजरी शुक्ल की कहानी ” रिहाई “

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डॉ. मंजरी  शुक्ल की कहानी ” रिहाई “

– रिहाई –

बहुत बचपना था उसमें  मानो ओस की बूंद शरमाकर मिटटी की सोंधी खुशबू   लेने के लिए गीली धरती पर चुपके से मोती बन गिरी  और आसमान में  उमड़ते हुए बादल उसे देखकर पकड़ने के लिएघुमड़ता  हुआ चला आये I पर  इन सब बातों से बेखबर वो अपनी इक छोटी सी दुनिया में मस्त रहती जहाँ पर एक दियासलाई और उसकी एकमात्र पुरानी लालटेन वक्त के अँधेरे को दूर करने के अथकप्रयास में लगे रहते पर कभी कामयाब न हो पाते I   ज्योति हाँ, यहाँ नाम तो था उसका जीवन की अंधियारों  मैं भटकने के लिए नाम के अनुरूप और कुछ न था उसके पास I  जब पहली बार उसे देखातो वह शायद अपनी माँ के साथ स्कूल जा रही थी , पर कहते है उसकी माँ की एक चट्टान से गिरकर मौत हो गई थीं I   माँ के मरने के बाद मानो उसके सारे सपने और आकंशाये भी मरने चली गईऔर इस भरी दुनिया में वह अकेली रह गई  I बहुत दिनों से सब देख रहे थे कि वह दिन भर उन के गोले बनाती रहती I  उजली सुबह के साथ जब वह गुलाबी उन का गोला अपनी नाजुक पतलीउँगलियों में लपेटती   तो सामने  से गुजरने  वाले   व्यस्त राहगीर  भी एक बार रुक कर  उन जादूई   हाथों  को मन ही मन  जरूर सलाम करते  और कम से कम एक स्वेटर खरीदने  का अपने आपसे वादा करते  I  पर उसे तो जैसे इस दुनिया से कोई सरोकार ही   नहीं था   I वह तो बस अपने आप में खोई रहती I कभी पेड़ से निकलकर जब कोई नन्ही गिलहरी उसके धागे से लिपट जाती तोबच्चो सी निश्छल मुस्कान लिए वह सावधानी से उन  हटा लेती और उसे दूर तक जाते देखती  I  पर दिन बीतने के साथ ही  लोगो की आँखों में कतूहल  साफ नजर आने लगा   I अब  उन के गोले काआकार तो घटता जा रहा था पर उसके पेट का उभरा हुआ गोला साफ़ नजर आ रहा था I तमाम   बाते होने लगी केवल बाते ही  बाते   I    जैसे जुबान  मुहँ में न होकर सारे शरीर ,आत्मा और ब्रह्माण्डमें  लग गई हों  I  केवल तालू से चिपकी  जबान तो एक ही  की थी जो अपनी हिरनी जैसी आँखों  से चुपचाप ताका करती और खामोश सर्द रात जैसी अँधेरे में गुम हो जाती I पर उसकी इस ख़ामोशीको देखकर कोई चुप न हुआ  उनका बस चलता तो परिंदों से यह संदेशा दूर सदूर के देशों और प्रान्तों में भिजवा देते कि किस तरह एक कुंवारी   लड़की माँ बनने जा रही हैं   I   सारे पाप   नगण्य   होचले थे  I     चोरी ,हत्या जालसाज़ी और मारपीट को चरित्र का संवेधानिक हक़ मान लिया गया था जिसे कोई भी वक्त जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल कर  सकता था   I    पर यह तो ऐसाअशम्य  अपराध  था जिसके लिए अगर मंदिरों में आठों   प्रहर    प्राथनाएं की जाती तो भी उसका एक अंश भी कम न होता  I  आखिर जब सब्र का प्याला टूट गया तो सब उसके घर जा पहुंचे   I   वह टूटी  चारपाई के पास बेबस सी जमीं पर पड़ी हुई थी  I    चेहरे पर एक अजीब सी मुर्दनी छाई हुई थी  I    आँखों के नीचे काले स्याह घेरे ऐसे लग रहे थे मानो कोई काजल पोतकर गया हो   I   होंठ  जैसे पपड़ी हो रहे थे   I    इस भीड़   में तमाम लोग ऐसे भी थे जिन्होंने कभी उन  सुर्ख गुलाब से रसीले होठों  की कल्पना में ना जाने कितने कागज काले कर  दिए थे  I    पर आज उन्हें यहएहसास हो रहा था कि व्यर्थ ही  इतना अमूल्य समय उन्होंने यूँ ही  गवां दिया  I    अगर रत्ती भर भी पता होता तो कभी ऐसा बेवकूफी  भरा काम न करते   I    मन  ही  मन  उन्होंने भगवान से माफ़ीमांगी और अपनी आँखें दूसरी और खड़ी एक सुन्दर युवती पर गड़ा दी  I   कुछ औरतों को दया आई पर अपने पतियों की नजरो में पतिव्रता बनने का वो सुनहरा मौका किसी भी कीमत पर खोना नहींचाहती थी इसलिए पल्लू ठीक करके वे ज्योति को बस्ती से बाहर खदेड़ने के लिए आगे बड़ी    एक दबंग किस्म की महिला जो लड़कियों की दलाली का काम करती थी ,आगे बढ़ी  और उसके बालपकड़कर उसे जोर से घसीटा क्योंकि वह  चिढ़ी बैठी थी कि  ज्योति को फुसला नहीं पाई  I  पतली दुबली लड़की तिनके की तरह घिसट गई    I     दर्द और वेदना आखों के कोरो से बहने लगे जैसे सारीस्रष्टि को प्रलय में अपने साथ बहा ले जानेंगे  I   भीड़ तो यह मौका कब से तलाश   रही थी   I    नौकरी की परेशानिया ,बॉस की गालिया,पैसो की तंगी और न जाने कितनी कुंठाओं को बाहर निकालनेका एक आसान जरिया आज एक अकेली  लड़की को लातों  से  मारकर  निकालने का मौका मिला था   I    उसका गोरा शरीर लाते और घूसे खाकर नीला पड़ गया था  I     अचानक उसने रोनाबंद कर  दिया और ठहाका  मारकर हँसने लगी और चीख मारकर बेहोश हो गई     I     भीड़ को जैसे सांप सूंघ गया   I     तभी कोई चिल्लाया अरे कही मर तो नहीं गई   I    जेल का नाम सुनते ही सबका शरीर पसीने से भीग गया   I     तभी भीड़ को चीरती हुईं एक औरत आगे आई और बोली अरे ,मै अपने साथ दाई को लेकर आई हूँ जरा देखे तो कितने महीने का पाप हैं   I    बूढी दाई कीअनुभवी आँखे उसे देखकर चौंकी ,फिर उसने पास जाकर उसका हाथ अपने हाथ में लिया और पेट पर हाथ फेरने लगी  I  अचानक वह जोर से चिल्लाई और भागते हुए  बोली -“यह माँ नहीं बनने वालीहै इसके पेट मे कोई गोला हैं   I   ” यह सुनते ही  भीड़  हाड़  – मांस के लोथड़ो मे तब्दील हो गई और धीरे धीरे वहां से खिसकने लगी  I   रह गई ज्योति  और पुरानी लालटेन  जिसकी रौशनी मेबूढ़ा   कमरा अपनी गरीबी के साथ जार-जार रो रहा था

artical-Dr.-Manjari-shukla-announcer-Dr.-Manjari-shukla-writer-Dr.-Manjari-shukla-writer-announcer-story-teller-Dr.-Manjari-shuklastory-teller-indiainternationalnewsandviews.com-invcपरिचय -: 
डॉ. मंजरी शुक्ल
कवि व् लेखक 

स्नातक – बी.ए ,स्नातकोतर – एम. ए .बी.ऐड.,पी. एच. डी(इंग्लिश), होशंगाबाद

रुचि: पुस्तकें,पेंटिंग,मूवी देखना,साहित्यिक गतिविधि- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में कविताएँ एवं कहानिया प्रकाशित,दूरदर्शन मे बच्चो के कार्यक्रम एवं गीत लेखन ,राज्यपाल द्वारा  हित्य के क्षेत्र में सम्मान प्रेमचंद साहित्य समारोह २०१० मे “नमक का कर्ज ” कहानी को प्रथम पुरस्कार, वर्तमान में आकाशवाणी में उद्घोषक

सम्पर्क –ए-३०१,जेमिनी रेसीडेंसी,राधिका काम्प्लेक्स के पास,मेडिकल रोड,गोरखपुर,उ.प्र.,२७३००६ मोबाइल – 9616797138,

23 COMMENTS

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