डॉ. मंजरी शुक्ल की कहानी : आखिर क्यों ?

29
30

डॉ. मंजरी  शुक्ल की कहानी : आखिर क्यों ?

– आखिर क्यों ? –

उसका याद आना  कुछ  ऐसा रहा कि लोहार ने ठन्डे लोहे को भट्टी में झोंक दिया हो , चमकते सोने को जलती आग में तपाकर कुंदन बना दिया हो और सूखी मिट्टीपर बारिश की पहली फुहारों का अनछुआ एहसास, वो सोंधी खुश्बू जिसको शब्दों में कोई भी वर्णित नहीं कर सकता हैं आखिर करे भी कैसे हवा की सरसराहट कोमहसूस करना और उसके ऊपर निबंध लिखना तो कुछ ऐसा ही हो गया कि किसी अंधे से कहे कि जरा बताओ तो इन्द्रधनुष कैसा होता हैं और उसके ना बता पानेपर हम जीवन भर व्याख्यान देते रहे, उन सात रंगों का  मिलना उस हलकी सी बारिश में सूरज का मुस्कुराना और तन मन को भिगो देने वाली उन बूंदों में बेसुधहोकर इन्द्रधनुष के ओर छोर का पता लगाने की कोशिश करते हुए नीचे से बालकनी और वहां  से छत  तक जाना और वापस हमेशा की तरह अपने पैर पटकते हुएवापस आ जाना I  कभी क्यों नहीं जाना पाया मैं कि इन्द्रधनुष का छोर कहा होता हैं उसी तरह से मेरे अंतर्मन की गहराई को आज तक कोई नहीं नाप पाया और नामैं खुद कभी अंदाजा लगा सका I  ना जाने कितने सूरज अपनी गुलाबी आभा के साथ आसमान में पूरब दिशा की ओर से निकले और दिन भर दुनिया को उसकेवजूद का एहसास कराकर पश्चिम की ओर अपने शयन कक्षा में चले गए I केलेंडर पर तारीखे बदलती जा रही थी , मंत्री बदल रहे थे , सरकार बदल रही थी पर जोनहीं बदल रहा था वो मेरी आँखों के आगे से उसका खूबसूरत गुलाबी चेहरा ..जिसे देखने के लिए मैंने बस स्टॉप की इतनी ख़ाक छानी कि मुझे लगता हैं अगर कभीमैं अँधा हो जाऊ तो भी बिना  गिरे सधे कदमो से बस स्टॉप तक जरुर पहुँच जाऊँगा I वो मुझे पहली बार तब दिखी जब मेरी दुबली पतली सी छतरी हवा के अलसातेयौवन में तेज फुहारों के साथ भीगने को बैचेन हो गई और मेरा हाथ छुड़ाकर चल दी I जैसे ही मैंने सामने देखा मुझे सामने  एक बाबा आदम के ज़माने की बिल्डिंगमें एक जंग लगी लोहे के सरिया लगी छोटी खिड़की दिखाई दी जिस के पीछे से एक बेहद हसीन चेहरा सड़क पर देखते हुए कुछ सोच रहा था I मैं जैसे अपनी सुध बुधभूल गया और मैंने यह निश्चय कर लिया कि अब चाहे जो भी हो मैं उसी लड़की से शादी करूँगा I दिन भर में उसी के ख्यालों में खोया रहा ओर जब रात में घर लौटातो  हमेशा की तरह माँ ने अपनी उम्र का हवाला देते हुए अपने पोते -पोतिओ को गोद में खिलाने की इच्छा जताई I  मैंने भी सारी शरमो- हया त्यागकर उनसे उसलड़की के बारे में बता दिया I मेरी भोली भाली माँ वैसे तो कभी कुछ नहीं कहती थी पर उस दिन दिन मेरा हाथ पकड़कर बोली -” गुड्डू, शादी ब्याह के मामलों मेंचेहरा मोहरा नहीं देखा जाता I जवानी के जोश में जो गोरी चमड़ी पर लट्टू होते हैं उन्हें तकदीर स्याह रातों के घने अंधेरों में खूब नाचती हैं I

पर इन सब किताबी बातों का मुझ पर कहाँ असर होने वाला था I सच पूछो तो मैं अपने दोस्तों को भी यह दिखाना चाहता था कि मेरे साँवले रंग रूप का वो जोमजाक उड़ाकर मेरे लिए कलि कोयल लाने की बात करते हैं उसके नसीब में तो हंसनी हैं I

जब मैं हमेशा की तरह अपनी जिद पर अड़ गया तो माँ हारकर अपनी पुश्तानी खानदानी पाजेब मुझे देते हुए बोली- ” उससे कहना कि पहली बार मेरे सामने आयेतो ये पायल पहनकर आये , इससे मेरी बहुत सी खट्टी मीठी यादे जुडी हुई हैं I ” और यह कहते हुए माँ का गला रूंध गया
मैं कुछ नहीं बोला क्योंकि मैं जानता था कि ये पायजेब  पिताजी माँ के लिए शादी कि पहली वर्षगाँठ पर लाये थे ओर यह उनकी  पहली और आखिरी निशानी थीजिसे माँ ने बरसों से अपने पास संभालकर    हनुमान       अपनी होने वाली बहु के लिए रखी थी I
मैं फिर उसके घर  की  ओर चल पड़ा और रास्ते भर सोचता रहा कि  मैं क्या सच में उस लड़की से प्यार करता हूँ  या अपने दोस्तों को नीचा दिखाने के लिए उससेशादी करना चाहता हूँ I कही  माँ सच तो नहीं कह रही थी जहाँ   दिल नहीं मिले और विचारों का आत्मा के साथ ताल   मेल न हो ….पर अचानक मैंने एक पत्थर  की  ठोकर के साथ ही तुरंत अपने विचारों को झटका दिया और तेज क़दमों  से  चल पड़ा I

पर सामने उसकी खिड़की को देखते ही फिर मेरा दिल जोरो से धड़कने लगा और मेरी साँसे तेज हो गई I मन में सोचा कि कराटे में ब्लेक-बेल्ट पाने के बावजूद भी मैंतो ऐसा काँप रहा हूँ मानो साल भर बाद किसी लम्बी बीमारी से उठा हूँ  I पर मन की शक्ति का तन से कुछ लेना – देना नहीं होता हैं यह बात मुझे उस घर की पहलीसीढ़ी पर पहला कदम रखते ही समझ में आ गईं और मैं वापस मूर्खो सा अपनी उसी जगह पर आ कर खड़ा हो गया जहाँ से मैं उसकी एक झलक पाने के लिए हाथोंमें पायजेब लिए घंटो खड़ा रहता था ताकि वो ये कुछ तो समझे  I
मेरे दोस्त मेरी दीवानगी देखकर कहते उसे भूल जा इस तरह प्यार नहीं होता अगर सभी सुन्दर चेहरों से ही लोग प्यार करते तो आधी कायनात कुँवारी ही मर जातीI

पर मुझे कुछ समझ नहीं आता था   हर पल जो ज़हन में रहता हो उसे भला कैसे भुलाया जाए काश यह कोई विद्यालय या कोई पाठशाला मुझे  सिखा सकती या फिरऐसा हो पाटा कि जब में  रोता तो मेरी आँखों से आंसुओं की जगह फूल  गिरते वो भी बेला के , जिन्हें में  उस के चरणों में  समर्पित कर देता I प्रेम कि ऐसी महँअभिव्यक्तियाँ सोचकर ही में खुश हो जाता और अपने आप को समझाता कि यही सच्चा प्रेम हैं I दोस्त तो लफंगे हैं वो भला क्या समझेंगे मेरे असीम प्यार को..उनकी तो दिवाली में कोई और तो होली में कोई और  I इन लोगो के कारन तो शहर भर कि लड़कियां मेरी भाभी बन गई थी  I

एक दिन मैं उसे बस स्टॉप पर खड़ा  अपलक निहार रहा था तभी उसने मुझे इशारे से बुलाया I ख़ुशी के मारे जैसे मैं बावरा हो उठा मैंने अपनी जेबे टटोली जिन मैंरोज पायजब  रखकर चलता था I जैसे बरसात के दिनों में लोग छाता रखकर चलते  हैं कि कहा किस मोड़ पर  इन्द्र देवता की धरती माता पर  कृपा हो जाए I जबमेरे कदम उसकी बिल्डिंग की तरफ़ बढ़े  मैंने अपने उन गोल्ड मेडल को याद किया जो मुझे कराटे  में मिले थे और ईश्वर को याद करता कांई लगी सीढिया चलतागया I घर  जितना  बाहर से गन्दा था उससे ज्यादा बूढ़ा और बदसूरत अन्दर से था I
जैसे ही मैंने दरवाजे पर हलके से धक्का दिया वो सामने बैठे हुई दिखी I किसी खूबसूरत परी की तरह या किसी कमल की तरह जो कीचड़ में खिलता हैं और उसे पानेके लिए कीचड में उतरना ही पड़ता हैं I हलके नीले सलवार सूट में वो बेहद सुन्दर लग रही थी I मैंने सरसरी तौर पर कमरे का मुआयना  करते हुए अपने सर के बालपीछे उस हाथ से  किये  जिसमे मैंने  सोने की अंगूठी और सुनहरी घड़ी पहनी हुई थी I अब मेरे पास तो उसकी तरह अपार ख़ूबसूरती तो थी नहीं इसलिए मुझे तोलक्ष्मी माँ को ही आगे करके अपने  को श्रेष्ट दिखाना था I

मैं कुछ बोलू इससे पहले ही उसकी सुरीली आवाज़ गूँजी -” अम्मा, वही  मिलने आये हैं I ”
मैंने नज़र घुमाकर देखा तो एक वृद्ध  महिला अपना चश्मा ठीक करती हुई आई और बड़े ही प्यार से बोली-” बेटा, कुमुदनी ने मुझे तुम्हारे बारे में बताया है I मैंने भीतुम्हें कई बार देखा हैं सामने से हमारी खिड़की की तरफ देखते हुए I ”
यह सुनकर मैं खिसिया गया I इतने स्पष्ट वार्तालाप की आशा तो मैंने सपने में भी नहीं की थी I
मैं उनके हाथ में पायल देते हुए धीरे से बोला -” जी, मैं इनसे शादी करना चाहता हूँ I ”
वो मुस्कुराकर बोली-” तुम खुश रखोगे मेरी कुमुदनी को ?”

बस फिर क्या था मैंने  धारा प्रवाह  अपने  रटे-रटाए जवाब देने शुरू कर दिए और सच कहता हूँ , उस दिन मुझे पहली बार लगा कि अगर मैं इतनी  लगन के साथप्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करता तो दो चार  तो आराम से निकाल ले जाता I.बहुत देर तक बोलने के बाद जब मेरे शब्दकोष के सभी शब्द मैंने कुमुदनी की  माँके कानो में डाल दिए और कहा कि मैं आपकी बेटी के लिए तो अपनी जान भी दे सकता हूँ I ” और यह कहकर मैंने कुछ गर्व से कुमुदनी तरफ़ देखा जो निर्विकारभाव से मुझे देख रही थी I

यह सुनकर वह बहुत खुश हुई और मेरे सर पे प्यार से  हाथ फेरते  हुए कुमुदनी से बोली  -” जरा  हमारे  दामाद  जी के लिए चाय  तो बना  कर लाना  I ”
दामाद जी सुनकर में ख़ुशी से फूला नहीं समाया और मैंने एक पल भी व्यर्थ ना गवाँते हुए उनके पैर छू लिए I
कुमुदनी  बिस्तर के नीचे से झुककर कुछ उठाने लगी और जब वो अपनी बैसाखी के साथ जमीन पर खड़ी हुई तो मेरा दिल दहल उठा I मेरा सारा शरीर पसीने सेनहा उठा I
“ये तो लंगड़ी हैं ” मेरे मुझ से अचानक पता नहीं कैसे निकल गया I
यह सुनकर कुमुदनी की माँ बोली- ” पर बेटा , तुम तो उसके लिए अपनी जान भी दे सकते हो ना  ,तो ये तो शादी के बाद भी हो सकता था I

” नहीं – नहीं , मैं इससे कभी शादी नहीं कर सकता कभी नहीं और यह कहते हुए मैं बाहर जाने के लिए भागा I
जैसे ही मैं जीने उतरने लगा मुझे पीछे से कुमुदनी की आवाज़ आई -“रूकिये ”
मैंने पीछे  मुड़कर देखा और मुझे लगा कि मैं गिर पडूंगा I मैं वही काई लगे गंदे जीने पर सर पकड़कर बैठ  गया I पीछे कुमुदनी खड़ी थी बिना किसी बैसाखी के I सहीसलामत अपने पैरो पर I
उसके गोरे और मासूम चेहरे पर घ्रणा  के भाव मुझे स्पष्ट नज़र आ रहे थे I वह पायजेब को ज़मीन पर रखते हुए बोली- ” आप इन्हें भूलकर जा रहे थे I

मेरी टाँगे काँप रही थी और मेरा गला भर्रा गया था बहुत मुश्किल से मैं थूक निगलते हुए पुछा -” पर ये नाटक क्यों ?”
और उसने मेरी ओर नफ़रत से देखते हुए दरवाजा बंद कर लिया …मैंने जितना  अपने आप से ” क्यों ” पूछा मैं उतना  ही उसमे  उलझता  गया और शायद  जवाबजानते  हुए भी मैं आखरी सांस  तक अपने आप से पूछता  रहूँगा ” आखिर उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया ?

artical-Dr.-Manjari-shukla-announcer-Dr.-Manjari-shukla-writer-Dr.-Manjari-shukla-writer-announcer-story-teller-Dr.-Manjari-shuklastory-teller-indiainternationalnewsandviews.com-invcपरिचय – :
डॉ. मंजरी शुक्ल 
कवि व् लेखक 
शिक्षा: प्राइमरी शिक्षा – सेंट मेरी  स्कूल, धार और  विदिशा, मध्य   प्रदेश
माध्यमिक शिक्षा – ट्रिनिटी कॉन्वेंट स्कूल, विदिशा ,  स्नातक – बी.ए ,  स्नातकोतर – एम. ए .बी.ऐड. पी. एच. डी(इंग्लिश), होशंगाबाद

साहित्यिक गतिविधि- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों  में कविताएँ एवं कहानिया प्रकाशित,दूरदर्शन मे बच्चो के कार्यक्रम एवं गीत लेखन

राज्यपाल द्वारा साहित्य के क्षेत्र में सम्मान प्रेमचंद साहित्य समारोह २०१० मे “नमक का कर्ज ” कहानी को प्रथम पुरस्कार

वर्तमान में आकाशवाणी में उद्घोषक

सम्पर्क – : ए-३०१,जेमिनी रेसीडेंसी, राधिका काम्प्लेक्स के पास मेडिकल रोड , गोरखपुर ,उ.प्र. २७३००६
9616797138

29 COMMENTS

  1. I found this post while searching google. Pretty impressive too, since google usually shows relatively old results but this one is very recent! Anyway, pretty informative, especially since this is not an issue many people can write something decent about. Take care…

  2. I just found this site a while ago when a friend of mine recommended it to me. I have been a regular reader ever since.

  3. I really enjoyed your article and would like to know if I provide a link back to your site if I can use your article on one of my sites?

  4. this was a top quality post. In theory I’d like to write like this too – taking time and real effort to make a good article… but what can I say… I keep putting it off and never seem to get something done

  5. So good to enjoy such a entertaining post that does not resort to base posturing to get the point across. Thanks for an enjoyable read.

  6. Advantageously, the post is in reality the best on this notable topic. I concur with your conclusions and will eagerly look forward to your future updates. Saying thanks will not just be enough, for the exceptional clarity in your writing. I will directly grab your rss feed to stay informed of any updates. De lightful work and much success in your business dealings!

  7. I enjoy reading what you are considering next, for the reason that your website is a nice read, you’re writing with enthusiasm.

  8. I really appreciate this post. I’ve been looking everywhere for this! Thank goodness I found it on Bing. You’ve made my day! Thanks again! “One never goes so far as when one doesn’t know where one is going.

  9. मुहब्बत का जिस्म से कोई ताअलुक नहीं है पर हर कोई वही क्यों देखा है !

  10. मंजरी जी ,आपकी जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है , आपने दिलों का हल बहुत ही ख़ूबसूरती से ब्यान किया है

  11. कहानी पढ़ कर कई किस्से याद आ गये ,अच्छी कहानी लिखी है आपने !

  12. कहानी ने मार्मिकता बनाय रखी है आपने , कहाने एक दिल की बात कहती है जो बहुत कुछ कहना चाहता है !

  13. मंजरी जी> कहानिके नायक का नायिका के साथ एक दम से प्यार हो जाना! थोडा सा हजम नही हुआ, मेरे ख़याल से इस प्रेम को थोड़ी सी जगह मिलनी चहिए थी पनपने के लिए! लेकिन कहानी का अंत इस तरह से होना एक नया ही प्रयोग किया आपने जो काबिले तारीफ है!

    Alok

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here