कहां लुप्त हो गई बाबा रामदेव की राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी?

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देश की 121 करोड़ जनता को अपना प्रशंसक व अुनयायी समझने की $गलत$फहमी पालने वाले बाबा रामदेव 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पूर्व एक बार फिर पूरी सक्रियता से राजनैतिक बयानबाजि़यां करते देखे जा रहे हैं। अपने योग प्रशिक्षण के माध्यम से नि:संदेह उन्होंने देश-विदेश में का$फी लोकप्रियता व ख्याति अर्जित की। परंतु इसी योग विद्या के कारण उनकी ओर आकर्षित होती जनता को उन्होंने भूलवश अपना अंधसमर्थक व अनुयायी भी समझना शुरु कर दिया। और योग सीखने वालों की बढ़ती भीड़ को देखकर उनके भीतर राजनैतिक महत्वाकंाक्षा भी जागने लगी। और यह महत्वाकांक्षा इस हद तक जा पहुंची कि 2009 के लोकसभा चुनाव से पूर्व उन्होंने विदेशी बैंकों में जमा भारतीय काले धन के विरुद्ध अच्छा-$खासा शोर-शराबा खड़ा कर स्वयं को देश में एक राजनैतिक विकल्प के रूप में खड़ा करने का प्रयास किया। और तभी उन्होंने पातंजलि पीठ,दिव्य $फार्मेसी और योग प्रशिक्षण के अतिरिक्त एक नया राजनैतिक झंडा बुलंद करने की घोषणा की और अपने इस स्वगठित राजनैतिक दल का नाम रखा राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी।

2009 में हुए लोकसभा चुनाव के कुछ ही समय पहले रामदेव ने अपनी इस नई-नवेली राजनैतिक पार्टी की घोषणा की थी। जहां-जहां उनके योग समर्थक अनुयायी थे उन्होंने उन्हीं के माध्यम से राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी का सदस्यता अभियान भी छेड़ा। यहां तक कि देश के तमाम मध्यम व छोटे शहरों में स्वाभिमान पार्टी की ओर से स्कूटर व कार रैलियां भी निकाली गईं। यह सारी $कवायद केवल इसीलिए चल रही थी ताकि वे यह समझ सकें कि दरअसल राजनैतिक पार्टी का संचालन राष्ट्रीय स्तर पर किया भी जा सकता है अथवा नहीं। 636 फी़ट के स्थान पर योग सीखने बैठे एक व्यक्ति के हिसाब से येाग शिविर में दूर तक नज़र आने वाली योग प्रशिक्षुओं की भीड़ को देखकर गद्गद् रहने वाले रामदेव जी अपनी पार्टी के भविष्य को तौलनेे के लिए लगभग पूरे देश में भ्रमण भी करते रहे। वे योग सीखने के बहाने लोगों को अपने शिविर में बुलाते तथा योग पर थोड़ी-बहुत चर्चा करने के अतिरिक्त पूरे समय राजनैतिक भड़ास निकालते। ग्वालियर में तो एक अर्धसैनिक बल के जवान ने उनकी इसी बात पर नाराज़ होकर उनपर जूता भी फेंका। इसके बावजूद भी 2009 में वे चुनावी घमासान में वे शिरकत नहीं कर सके। ऐसा माना जा सकता है कि समय की कमी के कारण संभवत: 2009 में उन्होंने चुनावी युद्ध में कूदने की कोशिश न की हो। परंतु उसी समय इस बात का अंदाज़ा ज़रूर लगाया जा रहा था कि यदि रामदेव 2009 में सक्रिय नहीं भी हो सके तो उनके बुलंद हौसलों व कथित रूप से 121 करोड़ देशवासियों के मध्य उनकी लोकप्रियता के दावों के चलते वे 2014 के लोकसभा चुनावों में तो अवश्य ही सक्रिय होंगे। अब 2014 के चुनाव सिर पर आ चुके हैं परंतु बाबा रामदेव की राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी की सक्रियता अभी तक तो कहीं भी देखने व सुनने को नहीं मिल रही है। हां रामदेव स्वयं कभी-कभार टी वी चैनल के माध्यम से या समाचार पत्रों में अपने बयानों के द्वारा सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह व राहुल गांधी पर अपनी भड़ास निकालते देखे जा रहे हैं।

बाबा रामदेव की संकुचित सोच का पता तो उसी समय चल गया था जबकि अन्ना हज़ारे द्वारा जनलोकपाल विधेयक संसद में पास कराए जाने की मांग को लेकर जंतरमंतर पर एक ऐतिहासिक धरना दिया गया और बाबा रामदेव ने इस मुहिम को अपना पूरा समर्थन देने के बजाए उल्टे यह महसूस करना शुरु कर दिया कि अन्ना हज़ारे ने यूपीए सरकार के विरुद्ध इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जंतरमंतर पर इक_ा कर मेरे $कद को आ$िखर कैसे छोटा कर दिया? और इसी बात ने उन्हें रामलीला मैदान पर अपना निजी ‘शो’आयोजित करने की प्रेरणा दी। उसके बाद की स्थिति क्या हुई यह भी पूरे देश ने देखा। ठीक उसी तरह जैसे कि पाकिस्तान में परवेज़ मुशर्र$फ द्वारा कराए गए आप्रेशन लाल मस्जिद के समय वहां का प्रमुख मौलवी अब्दुल अज़ीज़ न$काब पहनकर अपनी जान बचाता हुआ औरतों के बीच में घुसकर $फरार होने की कोशिश करते समय पकड़ा गया था उसी प्रकार बाबा रामदेव भी अपनी एक समर्थक महिला का वस्त्र पहनकर दिल्ली पुलिस के $कहर से बचकर भागते हुए पकड़े गए। निश्चित रूप से इस घटना ने उनके दिमा$ग से राजनीति में सक्रिय होने का नशा तो बिल्कुल उतार दिया होगा। हां इतना ज़रूर है कि रामलीला मैदान से उन्हें औरत के लिबास में पकडऩे तथा उनके शो को तितर-बितर करने के बाद उनके भीतर सत्तारुढ़ यूपीए विशेषकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी तथा कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के प्रति कटुता तथा बदला लेने की भावना और भी बढ़ गई। परिणामस्वरूप दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त की नीति पर चलते हुए इन्होंने कांग्रेस व यूपीए विरोधी दलों विशेषकर भारतीय जनता पार्टी की ओर झुकना शुरु कर दिया।

BRD2हालांकि बिना किसी लाग-लपेट के अपनी बात सा$फ शब्दों में रखने वाले दिग्विजय सिंह जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने रामदेव की राजनीति में सक्रियता के शुरुआती दौर में ही उन्हें भाजपा व आरएसएस का एजेंट व उन्हीें के लिए काम करने वाला व्यक्ति बता दिया था। परंतु उस समय दिग्विजय सिंह की बातों पर कोई इसलिए य$कीन नहीं कर रहा था क्योंकि कांग्रेस पार्टी के नेता अक्सर अपने विरोधियों पर संघ या भाजपा का एजेंट होने का लेबल लगाते रहते हैं। परंतु रामलीला मैदान से फऱार होने की घटना के बाद रामदेव ने जिस प्रकार भाजपा की भाषा बोलनी शुरु की तथा भाजपा नेताओं के प्रति उनका आकर्षण देखा जा रहा है उसे देखकर य$कीनी तौर पर अब यह कहा जा सकता है कि रामदेव शुरु से ही भारतीय जनता पार्टी व संघ के इशारों पर ही काम कर रहे थे। और अब भी वही कर रहे हैं। भाजपा के प्रति अपने प्रेम की पुष्टि उन्होंने पिछले दिनों उस समय पूरी तरह से कर डाली जबकि उन्होंने हरिद्वार में नरेंद्र मोदी को आमंत्रित कर उनकी शान में $कसीदे पढऩे शुरु कर दिए। आज बाबा रामदेव को भी देश में नरेंद्र मोदी से बेहतर प्रधानमंत्री पद का कोई दावेदार नज़र नहीं आता। जबकि नरेंद्र मोदी भाजपा के भीतरी अंतर्विरोध से लेकर देश के अन्य कई राजनैतिक दलों के कितने मुखर विरोध का सामना कर रहे हैं यह भी पूरा देश भलीभांति देख रहा है। परंतु बाबा रामदेव को नरेंद्र मोदी से बेहतर कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री पद के योग्य नज़र नहीं आता। ऐसे में पूर्व में दिग्विजय सिंह द्वारा रामदेव पर छोड़े गए बाणों को $गलत या बेबुनियाद कैसे कहा जा सकता है।

बाबा रामदेव, उनकी स्वाभिमान पार्टी व नरेंद्र मोदी से जुड़ा एक और तथ्य ऐसा है जोकि रामदेव के संघ व भाजपा समर्थक होने की पुष्टि करता है। जिस समय बाबा रामदेव ने राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी के गठन की घोषण की थी उस समय इनके राजनैतिक सलाहकारों में एक प्रमुख नाम पूर्व भाजपा नेता गोविंदाचार्य का भी था। हो सकता है राजनीति के दिग्गज रह गोविंदाचार्य उस समय स्वयं इस $गलत$फहमी में रहे हों कि रामदेव की राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी कांग्रेस व बीजेपी के विकल्प के रूप में देश में एक तीसरी शक्तिशाली पार्टी बनकर उभर सकती है और शायद इसी सोच ने गोविंदाचार्य को रामदेव का साथ देने के लिए प्रोत्साहित किया हो। परंतु रामलीला मैदान कांड के बाद बाबा रामदेव ने राजनैतिक विकल्प पेश करने के दूसरों की सोच पर तो पानी फेर ही दिया साथ-साथ भाजपा व नरेंद्र मोदी के विशेष प्रवक्ता के रूप में उनका गुणगान करना ज़रूर शुरु कर दिया। अब ज़रा $गौर कीजिए कि जिस गोविंदाचार्य को बाबा रामदेव अपना राजनैतिक सलाहकार बनाने की हैसियत वाला नेता समझने के लिए मजबूर थे वही गोविंदाचार्य आज नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य तथा 2002 के गुजरात दंगों के लिए जि़म्मेदार मान रहे हैं। परंतु बाबा रामदेव को इसके विपरीत नरेंद्र मोदी से बेहतर प्रधानमंत्री पद का दूसरा दावेदार ही नज़र नहीं आ रहा। यहां यह कहना $गलत नहीं होगा कि नरेंद्र मोदी के विषय में गोविंदाचार्य को जितनी जानकारी हैी बाबा रामदेव हो हरगिज़ नहीं।

पिछले दिनों एक समाचार यह सुनने को मिला कि रामदेव सोनिया गांधी को हराने के लिए रायबरेली में डेरा डालने की तैयारी कर रहे हैं। यह भी रामदेव का सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का एक तीसरे दर्जे का हथकंडा मात्र है। यदि उन्हें रामलीला मैदान में अपने अपमानित होने का बदला सोनिया गांधी से लेना ही है तो उन्हें राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी के किसी उम्मीदवार को अथवा स्वयं को ही रायबरेली से उम्मीदवार बनना चाहिए। इसी प्रकार गत् दिनों पाकिस्तान द्वारा भारत की सीमा में घुसकर भारतीय सैनिकों की हत्या किए जाने के विषय पर अपने बयान देते हुए बाबा रामदेव $फरमा रहे थे कि पांच सैनिकों के बदले में पांच सौ पाकिस्तानी सैनिकों के सिर काट कर लाए जाने चाहिएं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि आज नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री होते तो वह ऐसा ही करते। ऐसी भाषा आम भारतीय नागरिक के मुंह से सुनते हुए तो शायद अच्छी लगे। एक सच्चे राष्ट्रहितैषी की भाषा भी यह कही जा सकती है परंतु स्वंय को योगगुरु बताने वाला व्यक्ति और वह भी देश को दिशा देने व देश की दशा सुधारने जैसे दावे ठोंकने वाला व्यक्ति अपने मुंह से इस प्रकार की $गैरजि़म्मेदाराना बातें करे यह एक योगगुरु को $कतई शोभा नहीं देता। योगनीति तथा योगक्रिया भी इस बात की इजाज़त नहीं देती कि पांच के बदले पांच सौ व्यक्तियों की जानें ली जाएं। कहा जा सकता है कि अपनी राजनैतिक इच्छाओं की पूर्ति न हो पाने तथा उदय से पूर्व ही उनकी राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी के अस्त हो जाने की छटपटाहट के मारे हुए बाबा रामदेव अब अपने अस्तित्व को जीवित रखने के लिए कभी नरेंद्र मोदी के पिछलग्गू बनने की कोशिश कर रहे हैं तो कभी सोनिया गांधी को रायबरेली मे जाकर हराने का दावा कर रहे हैं, रामदेव नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवा पाएंगे अथवा नहीं व सोनिया गांधी को चुनाव में पराजित करवा पाएंगे या नहीं यह तो भविष्य ही बता पाएगा परंतु $िफलहाल उनकी राष्ट्रीय स्वाभिमान पार्टी चुनावी रण में ज़ोरआज़माईश करने से पूर्व ही लुप्त हो गई है।

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Nirmal Rani**निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों,
पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City 134002 Haryana
phone-09729229728
*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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