कश्मीर: यह तो होना ही था

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– तनवीर जाफ़री –

जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन और धारा 370 के रूप में इस क्षेत्र में लागू अनुच्छेद को समाप्त करने के बाद भारत से लेकर पाकिस्तान तक हंगामा मचा हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली वर्तमान भारत सरकार के इस फ़ैसले पर भारत के अधिकांश हिस्सों में जहां ख़ुशी का इज़हार किया जा रहा है वहीं कश्मीर,पाक अधिकृत कश्मीर,पाकिस्तान व कहीं कहीं भारत के कुछ हिस्सों में भी सरकार के जल्दबाज़ी में उठाए गए इस क़दम का विरोध किया जा रहा है। इस बहस में एक पक्ष ऐसा भी है जो सरकार इस इस क़दम से सहमत तो है परन्तु इसके क्रियान्वयन के तरीक़े को पूरी तरह तानाशाहीपूर्ण, अलोकतांत्रिक व जल्दबाज़ी में उठाया गया क़दम बता रहा है। कोई क्षेत्रीय स्मिता की दुहाई दे रहा है तो कोई इसे धार्मिक रंग देने की कोशिश भी कर रहा है। कोई इस फ़ैसले से कश्मीर क्षेत्र में विकास का मार्ग प्रशस्त होने की आस लगाए बैठा है तो कोई इस फ़ैसले के बाद कश्मीर को भविष्य में "दूसरा फ़िलिस्तीन" बनते देख रहा है। कुल मिलकर सत्ताधारी दल जम्मू-कश्मीर राज्य के विभाजन और  अनुच्छेद 370 को समाप्त करने को जहाँ अपनी बड़ी जीत मान रहे हैं वहीँ अनेक राजनीतिज्ञों का मानना है कि जम्मूकश्मीर राज्य को विभाजित कर तथा राज्य के चुने हुए प्रतिनिधियों को जेल में डालकर और संविधान का उल्लंघन करके देश को एकजुट नहीं रखा जा सकता। क्योंकि देश जनता से बनता है न कि किसी भूभाग के क्षेत्रफल या उसके टुकड़ों से। इसी मत का यह भी मानना है कि सरकार द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग किया गया है जिसका राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक परिणाम हो सकता है। गोया यह  क़दम भारत की सुरक्षा पर आने वाला संभावित ख़तरा भी बताया जाने लगा है।
                                     भारत सरकार द्वारा लिए गए इस फ़ैसले के सन्दर्भ में कई बातें ऐसी भी हैं जिन पर यदि हम पूरी ईमानदारी से नज़र डालें तो इसमें न तो भाजपा की मोदी सरकार ने कुछ छुपा कर किया है न ही यह फ़ैसला अप्रत्याशित फ़ैसला है। कल की जनसंघ और आज की भारतीय जनता पार्टी और इन सब के ऊपर इनका  मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व उससे जुड़े सभी संगठन 1950 से ही कश्मीर में लागू धारा 370 के न सिर्फ़ ख़िलाफ़ रहे हैं बल्कि इसे हटाए जाने की आवाज़ भी उठाते रहे हैं। भाजपा अपने चुनाव घोषणा अथवा संकल्प पत्र में हमेशा ही कश्मीर से धारा 370 समाप्त करने,देश में समान नागरिक संहिता बनाए जाने व अयोध्या में राम मंदिर निर्माण किये जाने का संकल्प दोहराती रही है। यह और बात है की अटल बिहारी वाजपेई की सरकारों से लेकर 2014 की मोदी सरकार तक ने सत्ता में आने हेतु अपने तथाकथित धर्मनिरपेक्ष सहयोगियों को साथ लेकर बहुमत का आंकड़ा पूरा करने के लिए बार बार इन तीनों ही विवादित मुद्दों को किनारे रख दिया। परन्तु 2019 के चुनाव परिणाम ने भाजपा को 303 सीटें देकर किसी भी प्रकार का मनमानी निर्णय लेने हेतु किसी अन्य सहयोगी घटक दल का मोहताज नहीं रहने दिया।इसका ट्रेलर भी मंत्रिमंडल के गठन के समय तब देखने को मिला जबकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सभी सहयोगी दलों ने पूरी ख़ामोशी के साथ उतने ही मंत्री बनना व वही मंत्रालय स्वीकार किये जो "प्रधानमंत्री की कृपा" से उन्हें मिले। नितीश कुमार के नेतृत्व वाले जनता दल यूनाइटेड ने अपने संख्या बल के आधार पर ज़्यादा मंत्री व मनमर्ज़ी मंत्रालय चाहे जो भाजपा ने उन्हें नहीं दिया। नतीजतन आज वे मंत्रिमंडल से बाहर भी हैं औरबाहर से समर्थन देते रहना उनकी मजबूरी भी है।
                                      यहाँ एक बात यह भी याद रखना ज़रूरी है कि भाजपा के आलोचक व भाजपा विरोधी नेता अक्सर भाजपा पर यह व्यंग्य करते रहते थे की राम मंदिर कब बनेगा ?सामान आचार संहिता कब लागू होगी और धारा 370 कश्मीर में कब समाप्त होगी ?यह व्यंग्य उस समय कसे जाते थे जब भाजपा को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए तो बहुमत मिलता परन्तु भाजपा को अकेले पूर्ण बहुमत नहीं होता था। अब अपने उन्हीं सवाल पूछने वालों का मुंह भाजपा नेतृत्व ने बंद कर दिया। अब कश्मीर पर लिए गए सरकार के इस निर्णय के बाद इस बात पर भी कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि इसी राजग 2 के शासन के दौरान ही शेष दोनों बहुप्रतीक्षित वादे भी भाजपा द्वारा पूरे कर दिए जाएं। यह भी कहा जा रहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व० अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा कश्मीरियों से वादा  किया गया था कि कश्मीर समस्या का समाधान कश्मीरियत,जम्हूरियत और इंसानियत के दायरे में हल करने की बात कही गयी थी। परन्तु मोदी सरकार ने उनके वचनों की अनदेखी करते हुए कश्मीरियत,जम्हूरियत और इंसानियत की परवाह किये बिना इतना बड़ा और ख़तरनाक क़दम उठा लिया। निश्चित रूप से इस फैसले के बाद कश्मीर के लोगों पर जो कुछ गुज़र रही है वह इंसानियत का तक़ाज़ा हरगिज़ नहीं। ख़ास तौर पर समय पूर्व अमरनाथ यात्रा रद्द करने व बक़रीद जैसे महत्वपूर्ण त्यौहार को देखते हुए। जम्हूरियत की अवहेलना का गिला शिकवा भी काफ़ी हद तक इसलिए जाएज़ कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने कश्मीर पर लिए गए इतने बड़े फ़ैसले के लिए न सिर्फ़ कश्मीर से निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की अवहेलना की बल्कि उलटे अनेक जनप्रतिनिधियों को जेल में भी डाल दिया। परन्तु यह भी सच है कि कश्मीर में कश्मीरियत से ज़्यादा बुलंद आवाज़ "मज़हबीयत" की उठने लगी थी। "आज़ादी का मतलब क्या -ला इलाहा इल्लल्लाह", यह नारा कश्मीरी मुसलमानों द्वारा लगाया जाने लगा था। यह नारा किसी धर्म विशेष के लोगों को भले ही तृप्त करता हो परन्तु कश्मीरियत,जम्हूरियत या इंसानियत से इस नारे का कोई सरोकार नहीं हो सकता।
                                      इस प्रकार की विचारधारा गत 3 दशकों में घाटी में पाली पोसी गयी। इसका भरपूर फ़ायदा सीमापार बैठे साम्प्रदायिक जेहादी तत्वों ने उठाया। और आज फिर जब भारत ने कश्मीर पर नियंत्रण और मज़बूत करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण क़दम उठाए हैं,वही शक्तियां यानी जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-झांगवी, अल-क़ायदा और आईएस समर्थक कई चरमपंथी संगठन सक्रिय हो उठे हैं तथा खुलेआम कश्मीरी मुसलमानों को कथित "जिहाद" करने हेतु उकसा रहे हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि कश्मीरियों को भड़काने वालों में पाकिस्तान के विवादित मदरसे  जामिया हफ़ज़ा का प्रमुख मौलाना अब्दुल अज़ीज़ भी शामिल है। उसने अपने एक उग्र भाषण में एक फ़तवा जारी करते हुए कहा, है कि "अब हर पाकिस्तानी मुस्लिम के लिए अनिवार्य है कि वो कश्मीर के लिए जिहाद करे". इतना ही नहीं बल्कि उसने दूसरे धर्मगुरुओं और धार्मिक संस्थाओं से भी इसी प्रकार के फ़तवे जारी करने की अपील की है और कश्मीर के मुसलमानों को कश्मीर के लिए बलिदान देने के लिए भी उकसाया है। याद रहे की यह वही तथाकथित जेहादी धर्म गुरु है जिसे 3 से 11 जुलाई  2007 के दौरान जनरल मुशर्रफ़ की सेना ने मदरसे से सैन्य कार्रवाई के दौरान बुर्क़ा पहन कर भागने के लिए मजबूर कर दिया था। गोया ख़ुद नक़ाब ओढ़ कर दुम दबा कर भागने वाले सीमापार बैठे शर पसंद लोग अब कश्मीर के सीधे व शरीफ़ मुसलमानों को जेहाद का पाठ पढ़ा रहे हैं।
                                        कश्मीर घाटी के लोगों का सबसे बड़ा नुक़्सान व तकलीफ़ उनकी हमदर्दी में घड़ियाली आंसू बहाने वाले पाकिस्तान और वहां बैठे जेहादी पाखंडी हमदर्दों की वजह से उठाना पड़ रहा है। आज भारत में हिंदुत्ववादी सरकार होने के बावजूद देश का अधिकांश हिन्दू,सिख तथा शेष सभी समुदाय के लोग कश्मीरी लोगों से ,वहां की बानी वस्तुओं से,कश्मीर वादी से तथा कश्मीरियों की मेहमाननवाज़ी से बेहद प्रभावित रहते हैं। पूरे देश में कश्मीरी लोग नौकरियां तथा व्यापर करते हैं। परन्तु कश्मीर के दुश्मन यही सीमा पर के धर्म के नाम पर पाखण्ड करने वाले लोग उन्हें भड़काते हैं। आज कश्मीर में भारत सरकार का मौजूदा विवादित फ़ैसला हो या सेना द्वारा की जाने वाली हिंसा पूर्ण कार्रवाई, इन सभी क़दमों का भारत में भारतीय नेताओं,राजनैतिक दलों,बुद्धिजीवियों व आम लोगों द्वारा लोकतान्त्रिक तरीक़े से विरोध किया जा रहा है। घाटी के लोगों को ख़ुद सोचना चाहिए कि कश्मीरियत की परिभाषा में सिर्फ़ " ला इलाहा इल्लल्लाह" ही नहीं बल्कि वे कश्मीरी ब्राह्मण व अन्य धर्मों व जातियों के लोग भी कश्मीरियत की परिभाषा में शामिल हैं जिनसे या तो कश्मीर छुड़वा दिया गया या उन्हें वापस नहीं आने दिया जा रहा है या जिनके प्रति धर्म के आधार पर नफ़रत के बीज बोए गए हैं। फ़िल्हाल की परिस्थितयों में कश्मीर घाटी के लोगों को किसी देशी विदेशी के बहकावे में आने के बजाए भारत सरकार पर ही भरोसा करना चाहिए । पाकिस्तान की शह पर आज़ादी की मांग,फ़र्ज़ी जिहाद और साम्प्रदायिकता ख़ून रेज़ी और तबाही व बर्बादी के दृश्य तो पेश कर सकती है अमन शांति और तरक़्क़ी के हरगिज़ नहीं। रहा सवाल कश्मीर पर भारत सरकार के विवादित फ़ैसले का तो भाजपा के बहुमत हासिल करने के पश्चात् यह तो होना ही था।

 
 

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

 

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

 

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

 

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

 

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