कवी रामदीन की कविता -‘अर्धसत्य’ बचपन

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‘अर्धसत्य’  बचपन !
बचपन वाले दिन कोई दे दे, पचपन वाले ले ले।

मुंह मांगी कीमत दे दूंगा, शपथ पत्र चाहे ले ले।
एक रूपया पाकर घर से, रखते थे जो ताकत।
धन्ना सेठ हमीं हो जाते, थी ना कोई आफत।
गाँव हाट मेले की खातिर, दो रूपया तब मिलते।
आज लाख भी हांथ में आयें, सब फीके ही लगते।
बचपन वाली एक धराऊ हमको वापस दे दें।
अबके बारह जोड़ी कपड़े, हमसे कोई ले ले।
मुंह मांगी कीमत दे दूंगा, शपथ पत्र चाहे ले ले।
सांझ सकारे जिस खटिया पर, आंगन में हम सोते थे।
चन्दा तारे गिनते, गिनते आपस मंे लड़ जाते थे।
वही पुरानी मचमचिया ही, मेरी मुझको दे दे।
ए0एसी0, कूलर, हीटर, पंखे, सब कुछ हमसे ले ले।
मुंह मांगी कीमत दे दूंगा, शपथ पत्र चाहे ले ले ।
मेले के दिन भीड़ घनेरी बुआ वहां मिल जाती थी।
होते सांझा, साथ नन्दू की मौसी भी आ जाती थी।
उनसे मिलती एक चौअन्नी, मौच हमारी आती थी।
गुब्बारे के साथ बाँसुरी नयी खरीदी जाती थी।
एल0सी0डी0, टीवी, ट्रांजिस्टर सब कुछ हमसे ले ले।
मुंह मांगी कीमत दे दूंगा, शपथ पत्र चाहे ले ले।
होली और दीवाली की तो याद अभी भी बाकी है।
आलू, पूरी, दही,-राब की, गंध अभी तक बाकी है।
रंग टेसू के, दिये कुम्हारी, याद अभी तक बाकी है।
अब चाहुँ दिस पिचकारी, झालर चीन ही चीन तो बाकी है।
अरे, वही पुराने वापस दे दे, बनावटी सब ले ले।
बचपन वाले दिन कोई, दे दे पचपन वाले ले ले।
मुंह मांगी कीमत दे दूंगा, शपथ पत्र चाहे ले ले।*******

Ramdeen Poem,Ramdeen ,-रामदीन,
जे-431, इन्द्रलोक कालोनी,
कृष्णानगर, लखनऊ-23
मो0नं0- 9412530473

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