कवि हेमचन्द्र मलिक द्वारा रचित काव्य संग्रहण ‘सपने अपनों के’ का मंत्री बिरेन्द्र सिंहने किया विमोचन

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रोहतक,
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के राधाकृष्णन सभागार में आयोजित एक कार्यक्रम में केन्द्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायत मंत्री बिरेन्द्र सिंह ने हेमचन्द्र मलिक द्वारा रचित काव्य संग्रहण ‘सपने अपनों के’ का विमोचन किया। वे मदवि में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में महान विभूति सर छोटूराम – जीवन एवं विचारधारा विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने चौ. छोटूराम को समर्पित ‘दर्द अपनों के’ सी.डी. को भी छोटूराम प्रेमियों के लिए जारी किया। पुस्तक का विमोचन करने के बाद केन्द्रीय मंत्री ने लेखक हेमचन्द्र मलिक के इस प्रयास की सराहना की। इस अवसर पर मदवि के कुलपति एच.एस. चहल, रजिस्ट्रार डॉ. एस.पी. वत्स, डॉ. डी.आर. चौधरी, चौ. चांद राम, हरियाणा अध्ययन केन्द्र के निदेशक प्रो. एस.एस. चाहर तथा सर छोटूराम चेयर के अध्यक्ष प्रो. जे.एस. धनखड़ इस संगोष्ठी के संयोजक उपस्थित थे।

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  1. स्वामी विवेकानंद जयंती विशेष : राष्ट्रीय युवा दिवस
    12 जनवरी : भारतीय नवजागरण का अग्रदूत स्वामी विवेकानंद जन्मदिन

    लेखक-युद्धवीर सिंह लांबा “भारतीय”

    स्वामी विवेकानंद जी आधुनिक भारत के एक महान चिंतक, महान देशभक्त, दार्शनिक, युवा संन्यासी, युवाओं के प्रेरणास्त्रोत और एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे । भारतीय नवजागरण का अग्रदूत यदि स्वामी विवेकानेद को कहा जाय, तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। विवेकानंद दो शब्दों द्वारा बना है। विवेक+आनंद । विवेक संस्कृत मूल का शब्द है। विवेक का अर्थ होता है बुद्धि और आनंद का शब्दिक अर्थ होता है- खुशियों

    स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी सन् 1863को कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। परन्तु उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से ही बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी।

    स्वामी विवेकानंद ने 16 वर्ष की आयु में कलकत्ता से एंट्रेस की परीक्षा पास की और कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की । स्वामी विवेकानंद (नरेन्द्र) नवम्बर,1881 ई. में रामकृष्ण से मिले और उनकी आन्तरिक आध्यात्मिक चमत्कारिक शक्तियों से नरेन्द्रनाथ इतने प्रभावित हुए कि वे उनके सर्वप्रमुख शिष्य बन गये। और स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को कलकत्ता के निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की।

    स्वामी विवेकानन्द भारतीय संस्कृति एवं हिन्दू धर्म के प्रचारक-प्रसारक एवं उन्नायक के रूप में जाने जाते हैं। विश्वभर में जब भारत को निम्न दृष्टि से देखा जाता था, ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर, 1883 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म पर प्रभावी भाषण देकर दुनियाभर में भारतीय आध्यात्म का डंका बजाया। 11 सितंबर 1893 को विश्व धर्म सम्मेलन में जब उन्होंने अपना संबोधन ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ से प्रांरभ किया तब काफी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट होती रही। स्वामी विवेकानंद के प्रेरणात्मक भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों” के साथ करने के संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।

    ‘न्यूयॉर्क हेराल्ड ने लिखा, ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि धर्मसंसद में विवेकानंद सबसे महान व्यक्तित्व हैं। उन्हें सुनकर लगता है कि भारत जैसे ज्ञानी राष्ट्र में ईसाई धर्म प्रचारक भेजना कितना मूर्खतापूर्ण है। विवेकनद की प्रशंसा में “न्यूयार्क क्रिटिक” ने लिखा “वे ईश्वरीय शक्ति प्राप्त वक्ता है l उनके सत्य वचनों की तुलना में उनका सुन्दर बुद्धिमत्तापूर्ण चेहरा पीले और नारंगी वस्तों में लिप्त हुआ कम आकर्षक नहीं l” बोस्टन इवनिंग ट्रान्सस्क्रिप्ट के मुताबिक, ‘धर्मसंसद में विवेकानंद सबसे लोकप्रिय वक्ता हैं। वे यदि केवल मंच से गुजरते भी हैं तो तालियां बजने लगती हैं।

    विश्व के अधिकांश देशों में कोई न कोई दिन युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार सन् 1985 ई. को अन्तरराष्ट्रीय युवा वर्ष घोषित किया गया। भारतीय केंद्र सरकार ने वर्ष 1984 में मनाने का फैसला किया था ।राष्ट्रीय युवा दिवस स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस (12 जनवरी) पर वर्ष 1985 से मनाया जाता है । भारत में स्वामी विवेकानन्द की जयन्ती, अर्थात 12 जनवरी को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

    सुभाषचंद्र बोस का कहना था-‘स्वामी विवेकानंद जी आधुनिक भारत के निर्माता हैं।’ नोबेल पुरस्कार सम्मानित गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था-“यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।”

    युवाओं के प्रेरणास्त्रोत, समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था:-

    “उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।”
    उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अपने लक्ष्य तक ना पहुँच जाओ।

    भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले स्वामी विवेकानंद ने भारतीय युवाओ मे स्वाभिमान को जगाया और उम्मीद की नयी किरण पैदा की । भारतीय युवा और देशवासी भारतीय नवजागरण का अग्रदूत स्वामी विवेकानंद के जीवन और उनके विचारों से प्रेरणा लें। 4 जुलाई 1902 को बेलूर में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए। उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

    भारतीय नवजागरण का अग्रदूत, भारत के युवाओ के पथ प्रदर्शक, महान दार्शनिक व चिंतक स्वामी विवेकानंद जी को शत्-शत् नमन जय हिन्द, जय भारत ! वन्दे मातरम !!

    लेखक-युद्धवीर सिंह लांबा “भारतीय”

    युद्धवीर सिंह लांबा “भारतीय ” S/o श्री सुभाष चंद
    धारौली, जिला झज्जर , हरियाणा राज्य , भारत-124109

    युद्धवीर सिंह लांबा “भारतीय” वर्तमान में हरियाणा इंस्टिटयूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, दिल्ली रोहतक रोड (एनएच -10) बहादुरगढ़, जिला. झज्जर, हरियाणा राज्य, भारत में प्रशासनिक अधिकारी के रूप में 23 मई 2012 से काम कर रहा हैं।

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