कवि नीलोत्पल की तीन चुनी हुई कविताएं

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चुनी हुई मौतों के साथ

यह बार-बार दोहराता हूँ कि
मैं किसी क़ब्रिस्तान से गुज़र रहा हँू
यहाँ लोग जिन्हें देखने आते हैं
वे मुझे भी देखते हैं
लेकिन यह शांति भंग वाली स्थिति नहीं है
वे सिर्फ़ स्मृति और एहसास में प्रवेश करते हैं
मैं एकटक हूँ

कई बार मैं अपनी ज़ेबों में हाथ डालता हूँ
उनमें कुछ नहीं सिवाय फूल और चंद पत्तियों के
मैं उन्हें बाहर नहीं निकालता
झिझकता हूँ

भीतर सायरन बजता है
प्रेम और ग़ुस्से के बीच
अजीब संतुलन है
जबकि यह ज़रूरी है
हम अपनी चुनी हुई मौतों के साथ यहाँ हों

जो फूल लेकर आए
वे लौट जाते हैं
उन्हें फिर से प्रवेश करना है दुनिया में
जहाँ वे अपनी चाहत और
अनिच्छा के बीच
उद्यम करेंगे जीने का

कुछ लौटने और नहीं लौटने के बीच हैं

वे जो कहीं नहीं जाएंगे
यहीं बारिश में भींगे होंगे
क़ब्र की गीली मिट्टी के साथ

जीवन की परतों को उघाड़ने के बाद
सच वह नहीं जो हमें सौंपा गया
रास्ते भर भटकने के बाद
धूल थी हमारे नंगे बदन पर
हम अब भी वहीं धूल झाड़ रहे थे

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चंद तरह के आसमान पर

कुछ नहीं है इस तरह
कि हवाओं की रिक्तता में
उछाले गए शब्द
मिले तुम्हें
अपनी जगह पर

यहां न रक़्त लगातार है
न मौसम बदलने वाले पेड़
जब किसी तरह की सफल केमेस्ट्री बनाकर
कहा जाता है-
“ आल इज़ वेल”

मैं नहीं जानता ऐसी रोशनी को
जो गिरती हैं
चंद तरह के आसमान पर
जहां बादल छँटने के बाद
कुछ साफ़ नहीं होता
जो साफ़ है वह घिर जाता है पुनः

बातें केवल संकेत भर हैंऔर कुछ नहीं

उनके साथ या उनके खि़लाफ़
हम तैयार करते हैं
एक विकल्प अपनी भूमिका के लिए

मैं फिर दोहराता हूं
“ आल इज़ वेल ”?
जबकि गयी रात कत्ल के बाद
फ़र्श धोयी जा रही है
बातों और इशारों का दौर जारी हैं
नहीं है तो वह चीख़ और ख़ामोशी
जो कि ज़ब्त कर ली गयी है
दीवारों की ओट में

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धरती, समुंदर के लिए खोजता हूं अपनी आवाज़

सबसे ज़्यादा और सबसे अहं चीज़ों की तरह है
मेरे लिए ख़ुद के अस्तित्व से इंकार करना

मैं सिर्फ़ चीजं़े ख़ाली करता हूं
उनके बने अस्तित्व को निचोड़ता हूं

मेरे लिए ज़रूरी है ऐसे बने रहना
मैं उत्साहित हूं कि जो जिस स्थिति में है
वह एक ख़ाली मकान में
ज़रुरी और अपर्याप्त सामान के भरने जैसा है

मैं जहां रहता हूं
वह जगह नहीं है मेरी
मैं जिसे बनाता हूं
वह धरती है जो पैदल चलकर
पहंुचती है मेरे पास थकी हुई-सी
जिस पर बार-बार हल की फाल से
रोपता हूं कई तरह के बीज
जो कि मेरे नहीं हैं
मैं उन्हें देता हूं धरती की गोद
जिसका कोई नाम नहीं

मेरा अस्तित्व धरती का पतझर है
जो बार-बार बौराता है ऋतुओं में

मैं महज़ चंद कदमों से
समुंदर नहीं लांघना चाहता
यह मेरे ढंग को बदल देता है बेहिसाब तरीक़े से

मैं धरती, समुंदर के लिए
खोजता हूं अपनी आवाज़
इसके लिए मैं इंकार करता हूं
अपने ख़ाली हाथों से
जो कि उफनते हैं गर्म चट्टानों की तरह
मैं इनका नमक और शहद
रखता हूं अपनी ज़बान पर
किसी भी तरह के आकाश में
होने के बावजूद

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invcपरिचय – : नीलोत्पल

जन्म: 23 जून, 1975, रतलाम, मध्यप्रदेश.
शिक्षा: विज्ञान स्नातक, उज्जैन.

प्रकाशन: पहला कविता संकलन ‘अनाज पकने का समय‘ भारतीय ज्ञानपीठ से वर्ष 2009 में प्रकाशित. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविताएं निरंतर प्रकाशित, जिनमें प्रमुख हैं: नया ज्ञानोदय, वसुधा, समकालीन भारतीय साहित्य, सर्वनाम, बया, साक्षात्कार, अक्षरा, काव्यम, समकालीन कविता, दोआब, इंद्रप्रस्थ भारती, आकंठ, उन्नयन, दस्तावेज़, सेतु, कथा समवेत सदानीरा, इत्यादि. पत्रिका समावर्तन के “युवा द्वादश” में कविताएं संकलित !  पुरस्कार: वर्ष 2009 में विनय दुबे स्मृति सम्मान

सम्प्रति: मेडिकल रिप्रेज़ेंटेटिव

सम्पर्क: 173/1, अलखधाम नगर
उज्जैन, 456 010, मध्यप्रदेश
मो.: 0-98267-32121
0-94248-50594

ई मेल    :-  neelotpal23@gmail.com

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