कविता या ग़जल चमत्कार करती है तब हमारे अंदर के अंधेरे को हिला देती है

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haryana sahityaआई एन वी सी,
चंडीगढ,
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा 16 वीं मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता सुप्रसिद्घ समालोचक एवं चिंतक डॉ. रमेश कुंतल मेघ, पंचकूला ने की।

        डॉ. मेघ ने मासिक गोष्ठी के आयोजन को एक बड़ी वर्कशॉप की संज्ञा देते हुए कहा कि इस आयोजन के माध्यम से नवलेखकों को एक मंच मिलता है और प्रौढ़ लेखकों के अनुभव से भी उन्हें अनुभव की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि कविता पाठ के साथ-साथ यहां पर रोहतक, कुरुक्षेत्र एवं अन्य जगहों पर शोध परक लेखकों बुलाकर साहित्य की अन्य विधाओं के बारे में भी समीक्षा की जाए। जब कविता या ़गज़ल चमत्कार करती है तब हमारे अंदर के अंधेरे को हिला देती है। इस अवसर पर डॉ. मदन कश्यप, सुपरिचित कवि, नई दिल्ली को विशेष आमंत्रित कवि के रूप में आमंत्रित किया गया। मासिक गोष्ठी का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ हुआ। अकादमी निदेशक डॉ. श्याम सखा ‘श्याम’ ने अतिथियों का स्वागत किया।

        कवि डॉ. मदन कश्यप, नई दिल्ली ने अपनी साहित्यिक रचनाओं से श्रोताओं से खूब वाहवाही लूटी। उन्होंने चाहते, गनीमत है, रफूगिरी, तमाशा, सिपाही और भीखमंगे, सपने का अन्त, हवा में पूल, शिसर आ रहा है, पुरखों का दुःख, बड़ी होती बेटी और हलफनामा आदि अनेक नई-पुरानी कविताओं से श्रोतओं को मनोरंजन करते हुए खूब वाहवाही लूटी। अपनी रचना बड़ी होती बेटी में कहा कि ‘पलकें झुकाकर, सपनों को छोटा करो मेरी बेटी-नींद को छोटा करो’ तथा हलफानामा में – ‘मुझ से ज्यादा प़ढी थी तुमने समय की किताब, फिर भी तुम्हारे कोमल मन पर-खरोंचे लगा-लगाकर मैं बनता रहा ज्ञानी’ प्रस्तुत की। इसी प्रकार पुरखों का दुःख में – ‘मगर दादी ने कभी नहीं बताया,     कि भादो में जब झ़डी लगती थी बरसात की और कोठी के पेंदे में केवल कुछ भूंसा बचा रह जाता था।

        इस अवसर पर स्थानीय कवियों में श्रीमती उर्मिला कौशिक ‘सखी’, डॉ. अनुभव नरेश, श्री चन्द्रभार्गव, डॉ. शशि प्रभा, श्रीमती निखा खोलिया, श्री केदारनाथ केदार, जानी जीरकपुरिया, बलबीर बाहरी ‘तन्हा’, अमरजीत अमर तथा सुशील हसरत नरेलवी ने कविता पाठ किया। अकादमी निदेशक ने इस अवसर पर अपनी एक नई कविता भी सुनाई इनकी कविता के कुछ अंश देखिए- अदालतें फरियाद नहीं सुनती गवाही सुनती है / अदालतें सच नहीं देखती सबूत मांगती है, अदालतें न्याय नहीं करती फैसले लिखती है / अदालतों की कलम पर वकीलों-दलीलों का पहरा है, कानून सचमुच अंधा और बहरा है।

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