कविता नहीं तो जीवन एक कड़वा सच रह जाएगा, कोई सपना आंखों में नहीं पल पाएगा – डा. सुषमा सिंह

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आई.एन.वी.सी,,
लखनऊ,,
                   केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के कुलसचिव निवास में आज एक काव्य-गोष्टी  का आयोजन किया गया। कोटा, राजस्थान के निवासी हिंदी के वरिष्ठ  कवि बशीर अहमद मयूख के आगरा आगमन के मौके पर यह  गोष्टी  रखी गई थी। वे  गोष्टी  के मुख्य अतिथि थे। गोष्टी की अध्यक्षता आगरा शहर की जानी-मानी कथा-लेखिका डा. शीशी गोयल ने की। उनके स्वागत-कथन से कार्यक्रम का  शुभारम्भ  हुआ। श्रीमती रमा शर्मा  ने सरस्वती वंदना कर काव्य-पाठ का सिलसिला शुरू  किया।
सर्वप्रथम बाल साहित्यकार डा. रामवीर सिंह `रवि´ ने एक मनोरंजक बालगीत का सस्वर पाठ किया। उन्होंने लोकगीत शैली  में भी एक गीत प्रस्तुत किया, जो  देश  की वर्तमान दुर्दशा से संबंधित था।  गोष्टी  में उनके गीतों को काफी सराहना मिली। कवि अशोक  अश्रु ने भी दो गीत सुनाए, जिसमें एक प्रेम कविता थी। उन्होंने सस्वर गाया-
“गीत गीत होते हैं, गीत लंपट या आवारा नहीं होते हैं।/गीत गीत होते हैं, गीत विचारधारा  नहीं होते हैं।´´
उनकी प्रेम कविता का एक टुकड़ा था –
“हार कर भी जीत लेता हूँ मैं बाजियां/तुम्हारा साथ मेरे लिए छंद-सा है।´´
अध्यापिका और युवा कवयित्री डा. सुषमा  सिंह ने कविता पर अपनी बात रखते हुए कहा कि “कविता
जीवन का स्पंदन है, क्रंदन है। कविता जीवन की लहर है, शिशु  का रूदन है। कविता नहीं तो जीवन एक कड़वा सच रह जाएगा, कोई सपना आंखों में नहीं पल पाएगा।´´
आगरा के बाहर से पधारे कवि श्री रामे’वर  शर्मा  ने अपनी चिंतनपूर्ण कविताओं से श्रोताओं का मन मोह लिया। उनकी कविताओं में वैराग्यधर्मिता और जीवन के प्रति असारता का गहरा बोध था। उन्होंने सुनाया –
 “ क्षण आएंगे जब भी अपनी पूर्ण रिहाई के/हम जाएंगे गाते अपने गीत विदाई के/ पास नहीं है एक चवन्नी,
बटुआ भी है खाली/क्या दूंगा केवट को गंगा पार कराई के।´´
केंद्रीय हिंदी संस्थान के  वरिष्ठ  प्रोफेसर देवेंद्र  शुकुल  और कुलसचिव डा. चंद्रकांत त्रिपाठी ने भी काव्य-पाठ में हिस्सा लिया। प्रो. शुकुल  की पंक्तियां थीं – “इस  शहर  में/सुबह तो होती नहीं/दोपहर में अग्निकण की बात कुछ/जमती नहीं।´´
डा. त्रिपाठी ने पढ़ा – “सोचना बुरा है तो/मैं क्यों सोचूं/सोचना मिटना है/तो क्यों मर मिटूं/पर…/सोचता हूं आखिर/मैं क्यों सोचूं \´´ गोष्टी  में उपस्थित राजेंद्र मिलन, कुसुम चतुर्वेदी, रूचि चतुर्वेदी और रमा वर्मा ने भी अपनी कविताएं पढ़ीं। आखिर में  गोष्टी  के मुख्य अतिथि और वरि”ठ कवि श्री बशीर  अहमद मयूख का ओजस्वी काव्य-पाठ हुआ। काव्य-पाठ से पहले   बशीर  साहब ने कविता पर  कहा कि कविता लिखी नहीं जाती,
वह स्वत: स्फूर्त भाव से आती है। अपनी कविता की रचना-प्रक्रिया के बारे में उन्होंने कहा कि मैं कविता लिखता नहीं, उसे देखता हूँ।
बशीर साहब ने अपनी कई कविताओं का प्रभावशाली पाठ किया। `शब्द ´ शीर्षक   एक कविता में उन्होंने कहा – “शब्द  साकार है, सृष्टि में व्याप्त है। शब्द  आत्मा में रमा, तो वही शब्द  निराकार है।´´ बशीर  जी ने अपनी कविताओं में प्राचीन भारतीय मिथकों का अत्यंत सर्जनात्मक उपयोग किया है। उनके अनेक कविता संग्रह प्रकाशित  हैं, जिनमें `स्वर्ण रेख´, `अहर्त´, `ज्योतिपथ´, अवधू अनहद नाद सुने´ प्रमुख हैं।
अंतिम संग्रह पर उन्हें बिड़ला फाउडेशन  का बिहारी पुरस्कार प्राप्त हुआ है।  बशीर जी की कविताओं में सनातन अध्यात्म-चेतना का रूहानी सौरभ व्याप्त है। उन्होंने भारतीय धर्म-दर्शन की तमाम धाराओं का बहुआयामी धरातल पर समन्वय करने की विराट चेष्टा  की है। उन्होंने )ग्वेद के )चा मंत्रों, जैन आगम सूक्तों, वेद , कुरान, गीता, उपनिषद , जैन-बौ( आगम सूक्तों तथा  गुरुग्रंथ आदि का काव्य-रूपांतर भी किया है। कार्यक्रम के अंत में माल्यार्पण एवं  शाल  ओढ़ाकर  बशीर  जी का अभिनंदन किया गया। इस अवसर पर रामेश्वर  शर्मा  के काव्य-संग्रह `क्यों बे गंगाराम´ का विमोचन  बशीर  साहब के हाथों संपन्न हुआ। यह कार्यक्रम समानांतर, आगरा की ओर से आयोजित था। संचालन किया डा. राजेंद्र मिलन ने।

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