कलाबाजियाँ राजनीति की दूसरी परम्परा

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unnamed (1){सुरेन्द्र अग्निहोत्री**}
राजनीति में पहली परम्परा और दूसरी परम्परा का बड़ा जोर है। पहली परम्परा के नेता एक डाली पर बैठ गये, तो फिर न तो पंख फड़फड़ाते है और न ही दूसरों को डाल पर आने देते है। दूसरी परम्परा कलाबाजियाँ खाने का पड़ाव ! न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। आए हों तो गाओ, नाचो, करो सैर। अब जब मौसम है चुनावी, वोटर को ढूढ़ लाना, चुनाव की घोषणा हो गयी डर है पार्टी न छोड़ जाना। तुम को फिर पुकारते है झूठ और फरेब के सहारे, मुझको न भूल जाना …. की रट लगाये नेता जी सड़क से कच्ची पक्की सड़कों पर धूल फाकते चुनाव आयोग को मन ही मन हजारो…….. दुआये दे रहे थे। मुआ इस गर्मी में गर्म थपेड़ों के बीच जनता की जय-जय कार करबा रहा है। वोटर की ऐ खामोशी ….. चुपके से मुस्कराना, पीकर विरोधी की ….. धोका न दे जाना। चुराना न मेरे वोट को चाहे पैसे लेकर विरोधी से बदल जाना जैसे अनेक ख्याल मन ही मन लाकर मुस्करा रहे थे तभी विरोधी पार्टी के नेता ने आकर नेता जी से कहा मेरा कुर्ता तुम्हारे कुर्ता से ज्यादा सफेद क्यों है ? इस क्यों के प्रश्न ने नेता जी की रातो की नींद और दिन की चैन छीन ली। आखिर ट्विटर,फेसबुक, बुद्धूबक्से से  लेकर सब जगह पेड के बल पर मल-मल के कपड़े की तरह अपनी पार्टी के कोमल कार्यो का उद्घोष कराकर सबसे आगे हम की तोता रटन्त लगवाये  थे। गुजरात में खा खा करते खासी बाबा ने सारा गुड़ गोबर कर दिया ! अपना कुर्ता हमारे कुर्ते से ज्यादा सफेद का जुमला ऐसा मारा कि कोई जुमला काम ही नही कर रहा है। कवित्री लीलारानी शबनम के शब्दों में-

सड़क का आदमी आम आदमी होता है ।
घर में रिश्तेदारों के बीच किसी का पति,
मामा चाचा भाई सभी होता है
जब सड़क पर आता है
सिर्फ आम आदमी रह जाता है

 वह उस आम आदमी ने कलर टेलीविजन के भीतर उतर कर ड्राइंगरूम से लेकर नुक्कड़ तक कैसे पैठ बना ली है और हमे झूठी बासी भात की तरह लगा तार बदबूदार बना दिया है।  उधर आया राम -गया राम का दौर शुरू करने वाले हरियाणवी ताऊ शर्मा जी कांग्रेस को टाटा कर चुनावी घड़ी में करके हवा का रुख भांप कर प्रवासी पछियों की तरह हजंका की डाली पर दाना चुगने आ गये है। उनकी देखा देखी आन्ध्रा में पुरन्दरी, बिहार में राम कृपाल, लखनऊ में कीर्ति वर्धन सिंह जैसे दूसरी परम्परा के पंक्षी बड़ती रोशनी की चमक में चैधियाकर चमक के पीछे आने लगे है। दाना जहाँ मिलेगे प्रवासी वही मिलेगे लेकिन पुराने पंक्षी अपने आने वाले दिनों के लिए खेत जोतते रहे खाद पानी देकर फसल बो कर उम्मीद पर निगाहें टिकाये थे। अब उन्हंे कौन समझाये राजनीति की दुकान बहुमत के गणित से फलती फूलती है। बहुमत और अल्पमत का खेल एक अंक से राजा को रंक बना देता है। दिल्ली के हर्ष की तरह जो अब फर्श पर नजर आ रहे है। खांसी बाबा से बचने के लिए अभी गुंजाइश बनाये रखना है। प्रवासियों को, जिनके चप्पू के दम पर वैतरणी पार हो सके। कबीर बाबा कह गये –

हमन है इश्क मस्ताना हमन को होशियारी क्या,
रहे आजाद या जग में हमन दुनियाँ से यारी क्या।

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