**कट्टरपंथी अपने ही संप्रदाय के दुश्मन

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तनवीर जाफरी**,,

पूरी दुनिया में इन दिनों उदारवाद बनाम कट्टïरपंथ रूपी एक विश्वव्यापी बहस छिड़ी हुई है। तमाम कट्टरपंथी व रूढ़ीवादी अपने अपने स प्रदायों (धर्मों)को सर्वोच्च या सर्वोपरि बताने की होड़ में लगे हैं। वैसे तो इस बात में कोई हर्ज भी नहीं है यदि कोई व्यक्ति अपने धर्म, विश्वास अथवा संप्रदाय को उत्तम या ऊंचा बताये। परन्तु किसी दूसरे धर्म अथवा विश्वास को नीचा दिखाकर, उसका अपमान कर केवल अपने ही स प्रदाय को सर्वोच्च व ‘महान’ बताना, यह बात किसी भी धर्म व विश्वास का व्यक्ति बर्दाश्त नहीं कर सकता। दु:ख की बात यह है कि आज संसार में चारों ओर कुछ ऐसा ही घटित हो रहा है। मुस्लिम जगत का मानना है कि ईसाईयत अपनी शक्ति व छल के बल पर पूरे विश्व में अपना वर्चस्व बनाना चाहती है। पश्चिमी देश विशेषकर अमेरिका व ब्रिटेन इस ईसाईयत के अल बरदार हैं। ऐसा सोचने वाला मुस्लिम वर्ग फिलिस्तीन, अफगानिस्तान व ईराक की घटनाओं को उसी रौशनी में देखता है। दूसरी ओर कट्टïरपंथी इस्लाम परस्तों पर दुनिया का एक बड़ा वर्ग यह आरोप लगाता है कि इस्लाम मे ‘काफिर’ शब्द का प्रयोग जिन गैर इस्लामी लोगों के लिए किया गया है इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार वे सभी कथित रूप से इस्लाम के दुश्मन हैं। ऐसा प्रचारित किया जाता है कि इस्लाम इन्हें $कत्ल करने व इनके साथ ‘जेहाद’ करते रहने का हिमायती है। इसी प्रकार हमारे देश में कट्टïरपंथी हिन्दू संगठनों से जुड़े लोगों को इस बात का $खतरा सताता रहता है कि भारत में एक ओर तो ईसाई मिशनरीज द्वारा बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। दूसरी ओर उन्हीं की सोच के अनुसार देश की सरकार अल्प सं यकों का तुष्टïीकरण कर उन्हें फलने फूलने का अवसर प्रदान कर उचित कार्य नहीं कर रही है। पूर्व संघ संचालक के सुदर्शन तथा प्रधानमंत्री बनने की जुगत बिठा रहे गुजरात के मु यमंत्री नरेंद्र मोदी तो देश के मुसलमानों को ‘हम पांच हमारे पच्चीस’ जैसी व्यंग्यपूर्ण उपाधि से भी नवाज चुके हैं।

क्या इस प्रकार की कटु टिप्पणियों व विद्वेषपूर्ण शिक्षाओं के द्वारा आम लोगों की भावनाओं को भडक़ाकर केवल अपने ही धर्म के परचम को बुलन्द किया जा सकता है? क्या दुनिया का कोई भी धर्म किसी दूसरे के धर्म या विश्वास के लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की इजा$जत देता है? एक कार्यक्रम में एक पादरी साहब अपने ईसाई समुदाय की वकालत करते हुए फरमा रहे थे कि ‘मसीहा’ शब्द का प्रचलन आम होना इस बात का पु$ ता सुबूत है कि उदारता में ईसामसीह का कोई सानी नहीं था। कार्यक्रम आयोजकों ने इत्तेफाक से मुझे भी आमंत्रित कर रखा था। मैंने अपनी बात में कहा कि नि:सन्देह ह$जरत ईसा मसीह के नाम के साथ ही मसीहाई शब्द जुड़ा हुआ है। केवल ईसाई ही नहीं बल्कि सभी धर्मों व विश्वासों के लोग उनकी उदारता व मानवता प्रेम के $कायल हैं। परन्तु आज उस महापुरूष के मानने वाले पश्चिमी देश इस धरती पर क्या कर रहे हैं? नागासाकी, हीरोशिमा, वियतनाम, अफगानिस्तान, ईराक ? क्या यही पाठ पढ़ाते थे कि हजरत ईसा? हद तो यह कि स्व० पोप जॉन पाल ने भी बेगुनाहों के खून से खेलने को मना किया, परन्तु यह ‘मसीहाई’ के सौदागर लाशों के अबार लगाने में ही अपनी महानता समझते रहे और आज भी वही सब कुछ कर रहे हैं।

इसी प्रकार इस्लाम के तथाकथित रूढ़ीवादी ठेकेदारों का मत है कि दुनिया में इस्लाम ही सबसे अच्छा और ऊंचा मजहब है। इसी उधेड़बुन में वे अपना सब कुछ कुर्बान किए बैठे हैं। महमूद गजनवी जैसा आक्रांता, जोकि राजा न होकर एक लुटेरा था तथा इस्लाम के नाम का प्रयोग अपनी सत्ता के विस्तार के लिए करता था, कुछ मुसलमान ऐसे भी हैं जो उसके शासन करने के सांप्रदायिक व आक्रामक अंदाज़ को सही मानते हैं। मैंने अपने कई स्त भों में हजरत मोहमद के जीवन की उस महत्वपूर्ण घटना का जिक्र किया है कि जो बहुत छोटी लगने वाली परन्तु बहुत बड़ी घटना थी। मुह मद साहब के जीवन की ऐसी तमाम घटनाओं ने इस्लाम के प्रचार-प्रसार की राह को आसान किया। इतिहासकारों के अनुसार मदीने में एक टीले पर एक बुज़ुर्ग यहूदी महिला रहती थी। वह मुह मद साहब से नफरत करती थी। वह उनपर रोजाना, सुबह, सवेरे उस समय कूड़ा फेंकती थी जब वे उसके घर के सामने से होकर नियमित रूप से मस्जिद में नमाज अदा करने जाते थे। मुह मद साहब उसकी इस हरकत को रोज नजरअंदाज कर देते। एक दिन उस महिला ने हजरत मुह मद पर कूड़ा नहीं फेंका। उस दिन वे बड़े हैरान हुए। नमाज पढक़र वापस आए तथा उस बुढिय़ा के घर के पास आकर उसका हाल चाल पूछा तो पता चला कि वह बुज़ुर्ग यहूदी महिला बीमार है। ह$जरत मुह मद उसे देखने उसकी झोपड़ी में गए और सरहाने बैठ कर उसके सर पर हाथ रखकर उसके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने की खुदा से दुआ की। परिणामस्वरूप वही यहूदी बुढिय़ा जो हजरत मुह मद की सि$र्फ इसीलिए विरोधी थी कि वे इस्लाम धर्म का प्रचार-प्रसार क्यों करते हैं, उसने उनकी करुणा,उदारता व विशाल हृदय के आगे समर्पण करते हुए इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया।

ठीक इसके विपरीत दूसरी ओर हज़रत मोह मद द्वारा बताए गए इसी इस्लाम धर्म के ठेकेदारों में आप को यजीद, गजनवी, ईदी अमीन,ओसामा बिन लादेन तथा जवाहिरी जैसे तमाम लोग के नाम भी सुनाई देेते हैं जो इत्तेफाक़ से मुसलमान घरानों में जन्म लेने के कारण मुसलमान तो जरूर कहे जाते हैं परन्तु उनकी कार्यशैली, उनके द्वारा अपनी बातें ज़ोर-जबरदस्ती से मनवाने के लिए अपनाए गए हिंसक व बर्बरता पूर्ण तौर तरीके किसी भी सूरत में उस वास्तविक इस्लामी विचारधारा के कतई खिलाफ हैं जो हजरत मुहमद के वास्तविक व उदारतापूर्ण इस्लाम से जुड़ी थीं। इसी तरह विश्व शांति की जब ाी दुनिया में बात होगी, इतिहास गौतम बुद्ध जैसे महापुरूष के नाम की अनदेखी नहीं कर सकेगा। परन्तु जापान ने जिस तरह चीन के लोगों का नरसंहार किया, इतना बर्बरतापूर्ण व इतने बड़े पैमाने पर चीनी लोगों की हत्याएं कीं कि चीनी लोग आज भी उस जखम को भूलने को तैयार नहीं। अभी कुछ वर्ष पूर्व तो जापानी प्रधानमंत्री ने इस ऐतिहासिक नरसंहार के लिए जापान की ओर से क्षमा भी मांगी थी परन्तु चीन ने उस क्षमा को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि यह क्षमा उस घाव को भर पाने के लिए का$फी नहीं है। क्या बुद्ध जैसे शांति दूत व मानवता का प्रतीक समझे जाने वाले महापुरुष की शिक्षा का अनुसरण करने वालों पर ऐसी हिंसक कार्रवाईयां शोभा देती हैं?

प्राय: मैं साफतौर से यह बात कहता रहता हूं कि सहिष्णुता में हिन्दू धर्म का कोई जवाब ही नहीं है। इस धर्म के उदारवादी लोग खुले दिल से हर सदपुरूष के आगे नतमस्तक हो जाते हैं। हिन्दू धर्म के ऐसे लोग किसी भी स प्रदाय के धर्मस्थलों या उनके कार्यक्रमों में शरीक होने में नहीं हिचकिचाते। यहां तक कि हमारे देश में तमाम धर्मस्थल ऐसे मिलेंगे जिनका वास्ता बुनियादी तौर पर हिन्दू धर्म से तो नहीं है, परन्तु उसके प्रबंधन व संचालन में हिन्दू धर्म के लोग ही सर्वे सर्वा न$जर आते हैं। मेरे एक ले ा की एक पंक्ति पर एक मुल्ला जी नाराज हो गये थे। आज मैं वह पंक्ति फिर दोहरा रहा हूं। हरियाणा व पंजाब में तमाम ऐसी दरगाहें व मजारें हैं जहां का प्रबन्ध यदि हिन्दू समुदाय के लोगों के हाथों में न हो तो शायद वहां रौशनी भी न हो सके। उन मजारों पर रौनक भी देखने योग्य होती है। शायद ऐसी कई दरगाहों से ज्य़ादा जो मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में है। हिन्दू धर्म की इसी उदारवादिता व सहिष्णुता ने इस धर्म का परचम पूरी दुनिया में बुलन्द किया है परन्तु अफसोस की बात यह है कि इसी धर्म का एक वर्ग उस उदारवादी धर्म को सीमाओं में कैद करना चाहता है। देश में धर्म के आधार पर धु्रवीकरण कराने के लिए तरह तरह की वैमनस्य पूर्ण बातें करता है। अयोध्या की घटना हो या गुजरात के दंगे या आस्ट्रेलियाई मिशनरी की हत्या इन सब घटनाओं को न केवल ऑक्सीजन देता है बल्कि अपने इसी प्रकार के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए भी प्रयासरत न$जर आता है। देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा बनती जा रही जनसं या समस्या से निपटने के लिए जहां एक ओर भारत सरकार तमाम तरह के उपायों पर कार्य कर रही है तो दूसरी तरफ सुदर्शन साहब राष्टï्र के सबसे बड़े हितैषी व सांस्कृतिक राष्ट्रवादी होने का दावा करने के बावजूद हिन्दू धर्म के लोगों का 3 शादी व 5 बच्चे पैदा करने का आवाहन करते हैं।

विभिन्न धर्मों के ऐसे स्वयंभू ठेकेदार जिनकी बातें समाज में $जहर घोलती हों, समाज में विघटन पैदा करती हों, सांप्रदायिक आधार पर एक-दूसरे में न$फरत पैदा करती हों क्या इन्हें अपने धर्म का हितैषी कहा जा सकता है? किसी भी स प्रदाय का व्यक्ति यदि हमें कट्टïरपंथ की राह पर चलाने की कोशिश करे व उसकी कोशिश दूसरे धर्म के प्रति नफरत पैदा करने की हो मेरे विचार से उसे अपने धर्म का शुभचिन्तक कतई नहीं कहा जा सकता। दरअसल ऐसे लोग अपने धर्म, संप्रदाय तथा विश्वास के शुभचिंतक या खैर वाह नहीं बल्कि उसे बदनाम करने वाले व अपने समुदाय के सबसे बड़े दुश्मन ही हैं।

**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

Tanveer Jafri ( columnist),
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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