और अब नमो को हुई मुस्लिमों की बदनामी की चिंता

0
25

images (2){निर्मल रानी**,,}
भारतीय जनता पार्टी 2004 में इंडिया शाईनिंग, 2009 में प्राईम मिनिस्टर इन वेटिंग जैसे राजनैतिक ड्रामे रचने के बाद अब गुजरात के विवादित मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर एक बार फिर उसी प्रकार के राजनैतिक ड्रामे खेलने की कोशिश कर रही है। नरेंद्र मोदी को केवल 2002 के गुजरात दंगों के लिए ही जि़म्मेदार नहीं ठहराया जा रहा बल्कि भारतीय जनता पार्टी के भीतर रहे हरेन पंडया परिवार से लेकर संजय जोशी, केशूभाई पटेल और अब लाल कृष्ण अडवाणी जैसे प्रभावित व आहत नेता तक नरेंद्र मोदी के राजनैतिक शैली,उनके स्वभाव, उनकी मंशा व हकीकत से भलीभांति वाकि़फ हो चुके हैं। पंरतु जैसाकि दशकों से विश्लेषक यह कहते आ रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी दरअसल राष्ट्रीय स्वयं संघ का एक मुखौटा राजनैतिक दल मात्र है वही बात आज अक्षरश: सामने आती दिखाई दे रही है। यानी नरेंद्र मोदी किसी को पसंद हो या न हो, उनपर कितने ही आरोप क्यों न लग रहे हों, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि कितनी ही दागदार क्यों न हो यहां तक कि पार्टी में पूर्ण रूप से उनकी स्वीकार्यता हो या न हो पंरतु यदि संघ नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार पेश किए जाने का निर्देश जारी करता है तो पार्टी के किसी नेता की जुरअत नहीं कि वह संघ के फरमान की अनदेखी कर सके। बहरहाल, संघ की पहली पसंद के रूप में नरेंद्र मोदी पार्र्टी के प्रधानमंत्री पर के दावेदार तो घोषित कर दिए गए हैं पंरतु इस घोषणा ने नरेंद्र मोदी के समक्ष राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के लिए वोट बटोरने तथा पार्टी के अधिक से अधिक प्रत्याशियों को जिताने की चुनौती भी खड़ी कर दी है।

गुजरात में हुए गोधरा कांड तथा उसके पश्चात पूरे राज्य में फैले अनियंत्रित अल्पसंख्यक विरोधी दंगों ने तथा इन दंगों में नरेंद्र मोदी की भूमिका ने उनकी पहचान देश के कट्टर हिंदुत्ववादी तथा अल्पसंख्यक विरोधी व राजधर्म का पालन न करने वाले राजनेता के रूप में स्थापित कर दी है। उनकी तजर्-ए-सियासत से देश का अल्पसंख्यक समुदाय ही मतभेद नहीं रखा बल्कि देश के बहुसंख्यक हिंदू समाज का भी एक बड़ा शिक्षित व बुद्धिजीवी,धर्मनिरपेक्ष समुदाय भी उनकी राजनैतिक शैली को स्वीकार नहीं करता। कई बुद्धिजीवियों ने तो मोदी के बारे में यहां तका कहा है कि यदि उन्हें धरती पर उपलब्ध समुद्र के समूचे पानी से भी नहला दिया जाए तो भी 2002 में उनपर पड़े पक्षपात व भेदभाव के धब्बे कभी समाप्त नहीं हो सकते। कई बुद्धिजीवी यहां तक कहते सुने जा रहे हैं कि यदि मोदी प्रधानमंत्री बन गए तो वे देश छोडक़र चले जाएंगे। परंतु इस प्रकार की आलोचना की परवाह किए बिना तथा कई बार मीडिया के सवालों का जवाब देने में स्वयं को असमर्थ महसूस करने के बावजूद मोदी प्रधानमंत्री बनने के अपने मिशन पर डटे हुए हैं। इस ‘परियोजना’ पर काम करने के लिए उनके तरकश में जो प्रमुख तीर हैं उनमें सबसे मुख्य ‘रामबाण’ है कांग्रेस,यूपीए,सोनिया गांधी व राहुल गांधी पर हर वक्त निशाना साधना, दूसरा गुजरात के अपने स्वयंभू विकास मॉडल का कुछ ऐसा बखान करना गोया गुजरात देश के ही नहीं बल्कि विश्व के सबसे अग्रणी राज्यों में शामिल हो गया हो। और इन सबकी पृष्ठभूमि में इनकी सधी-सधाई टीम जिसमें संघ परिवार से जुड़े कई संगठन शामिल हैं वह कभी परिक्रमा यात्रा के नाम पर तो कभी मंदिर के निर्माण का हवाला देकर तो कभी सांप्रदायिक दंगों व तनाव की आड़ में मोदी के मिशन को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। यदि राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो 2014 का आम चुनाव आते-आते देश का वातावरण और भी सांप्रदायिक व तनावपूर्ण होने की संभावना है।

पिछले दिनों राहुल गांधी ने यह बयान दिया कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई मुज़फ्फरनगर के दंगा प्रभावित युवकों से संपर्क बनाने में लगी हुई है। मुझे नहीं मालूम कि राहुल ने यह बयान किस सूचना के आधार पर दिया। परंतु 1984 के सिख विरोधी दंगों से लेकर देश में होने वाले दूसरे बड़े दंगों तक में यह ज़रूर देखा जा सकता है कि दंगा प्रभावित परिवार के सदस्यों पर देश के दुश्मनों की निश्चित रूप से नज़र रहती है और ऐसी शक्तियां प्रभावित परिवार के युवकों को अपने हथियार के तौर पर प्रयोग करना चाहती हैं। स्वयं इंदिरा गांधी व राजीव गांधी भी ऐसी ही मनोभावना का शिकार हुए। लिहाज़ा मुज़फ्फ़रनगर में ऐसा है या नहीं यह तो नहीं मालूम परंतु यदि आईएसआई द्वारा ऐसा प्रयास किया जा रहा हो तो इसमें कोई आश्चर्य की बात भी नहीं है। परंतु नरेंद्र मोदी ने राहुल गांधी के इस बयान को लेकर उनपर जिन शब्दों में निशाना साधा है उससे नरेंद्र मोदी का दोहरा चरित्र व चेहरा अवश्य दिखाई देता है। मोदी ने फरमाया कि या तो राहुल गांधी उन युवकों के नाम बताएं जो आईएसआई के संपर्क में हैं अन्यथा ऐसा कहकर राहुल गांधी एक समुदाय विशेष (मुसलमानों) को बदनाम कर रहे हैं। गोया नरेंद्र मोदी को राहुल गांधी के द्वारा मुसलमानों की की जा रही बदनामी से तकलीफ होती नज़र आ रही है। ज़ाहिर है ऐसा कहकर वे अल्पसंख्यकों के शुभचिंतक व हिमायती बनने का संदेश देना चाह रहे है। उनका अल्पसंख्यकों के प्रति इस प्रकार का हमदर्दी भरा बयान उनके स्वभाव तथा उनकी राजनैतिक सोच के अनुरूप तो नहीं है परंतु उनका यह बयान उनके लिए व$क्त की ज़रूरत अवश्य है।

कितना अच्छा होता यदि मुसलमानों की फिक्र उन्हें उस समय भी हुई होती जबकि सच्चर आयोग उनसे गुजरात के अल्पसंख्यकों के विकास के बारे में बात करने गया था और उन्होंने उसे बेरंग लौटा दिया था? मोदी जी की अल्पसंख्यकों के प्रति हमदर्दी उस समय कहां चली गई थी जबकि अदालत के निर्देश के बावजूद उन्होंने 2002 में गुजरात में बरबाद किए गए सैकड़ों अल्पसंख्यक धर्मस्थलों की मुरम्मत व पुनर्निमाण करने से इंकार कर दिया था? बड़ा आश्चर्य होता है जब नरेंद्र मोदी जैसा वह नेता अल्पसंख्यकों के प्रति हमदर्दी जताता है जोकि गुजरात दंगों में मरने वालों की तुलना कार के नीचे आकर मरने वाले किसी कुत्ते से करता है? अपने सिर पर अन्य समुदायों की पगड़ी सहर्ष धारण करने वाले व किसी मुस्लिम मौलवी द्वारा भेंट की गई टोपी को सिर पर रखने से मना करने वाले देश के पहले राजनेता आज केवल प्रधानमंत्री बनने की ख़ातिर अल्पसंख्यकों के हमदर्द होने का स्वांग रचने चले हैं?
पिछले दिनों देश के एक प्रमुख धर्मगुरु मौलाना कल्बे सादिक साहब ने बिल्कुल सही फरमाया कि चूंकि इस्लाम धर्म माफ किए जाने की सीख देता है और किसी इंसान से हमेशा नफरत या बैर रखना मुनासिब नहीं होता। लिहाज़ा उस नज़रिए से नरेंद्र मोदी को भी मुसलमान माफ कर सकते हैं। परंतु ऐसा भी तभी हो सकता है जबकि मोदी को अपने किए पर पछतावा हो। वे गुजरात में 2002 में अपनी भूमिका के लिए देश से माफी मांगें? भविष्य में ऐसी पुनरावृति न होने देने का विश्वास दिलाएं। केवल अपने भाषणों के द्वारा ही नहीं बल्कि अपनी राजनैतिक गतिविधियों व शासकीय कारगुज़ारियों से भी यह साबित करें कि वे किसी एक धर्म व संप्रदाय के नहीं बल्कि पूरे देश के सभी धर्मों के समस्त भारतवासियों के रहनुमा हैं। परंतु वे ऐसा कतई नहीं कर सकते। संभव है 2014 के चुनाव आने के कुछ ही दिन पूर्व वे देश के अल्पसंख्सकों को लुभाने के लिए गुजरात दंगों से संबंधित कोई चौंकाने वाला बयान जारी करें।परंतु फिलहाल वे संघ की एक सधी-सधाई रणनीति पर अलपसंख्यकों को अलग रखकर हिंदू मतों को संगठित करने का किसी भी प्रकार से प्रयास कर रहे हैं। ज़ाहिर है संघ की इस रणनीति में अल्पसंख्यकों को लुभाने या उनसे क्षमा याचना करने की कोई गुंजाईश कतई नहीं है। ऐसे में मोदी में भी यह साहस नहीं कि उन्हें प्रधानमंत्री पद का पार्टी का दावेदार बनाने में अपनी सर्वप्रमुख भूमिका निभाने वाले संघ की दूरगामी रणनीति की वे अनदेखी करें।

बहरहाल, नमो की सियासत को परवान चढ़ाने के लिए उनके साथ कई रणनीतिकार अलग-अलग मोर्चों पर सक्रिय हैं। सार्वजनिक मंच से लेकर समाचार पत्रों तक स्तंभ तथा इंटरनेट व सोशल मीडिया के माध्यम से, कहीं जेहाद व आतंकवाद का नाम लेकर बहुसंख्यक मतों को अपने पक्ष में जुटाने की कोशिश की जा रही है तो कहीं कुछ गिने-चुने मुस्लिम चेहरों को आगे रखकर अल्पसंख्यक मतों को आकर्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। कभी राहुल के बयान पर ही अपनी राजनीति केंद्रित की जा रही है तो कहीं सत्तारुढ़ यूपीए सरकार की मंहगाई व भ्रष्टाचार जैसी नाकामियों को ही सफलता के हथियार के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है। बुंदेलखंड में मोदी साहब ने फरमाया कि वे लोगों के आंसू पोंछने आए हैं आंसू बहाने नहीं। परंतु मोदी जी यदि भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार न बनते और पार्टी को बहुमत दिलाने की जि़म्मेदारी उनपर न होती तो उन्हें बुंदेलखंड के लोगों के आंसू पोंछने की शायद अब भी ज़रूरत महसूस न होती। तीन वर्ष पूर्व जब बुंदेलखंड के लोग सूखे के कारण भूख व प्यास से तड़प रहे थे और जिस समय वास्तव में बुंदेलखंडवासियों को अपने हमदर्द राजनेता की तलाश थी उस समय मोदी ने वहां पहुंच कर लोगों के आंसू पोंछने की तकलीफ नहीं की। लोकसभा 2014 के प्रस्तावित चुनाव आते-आते राजनेताओं की ऐसी ही तमाम लफ्फाजि़यां व उनके घडिय़ाली आंसू और भी देखने को मिलेंगे। देश के मतदाताओं को इनपर नज़र रखने व इनसे सचेत रहने की ज़रूरत है।

*******

download (2)**निर्मल रानी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
1622/11 Mahavir Nagar Ambala
City 134002 Haryana
Phone-09729229728

*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here