ऐ हिन्द के मुसलमानों

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– तनवीर जाफ़री –

                               
इस समय भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कोरोना महामारी को लेकर स्थितियां असामान्य बनी हुई हैं। परन्तु हमारे देश में कोरोना से भी बड़ी ,महामारी है समाज को विभाजित करने की कोशिशों की। समाज विभाजक शक्तियां बड़े ही सुनियोजित तरीक़े से समाज को धर्म या जाति के नाम पर विभाजित करने का आसान बहाना ढूंढ लेती हैं। किसी नेता द्वारा विकास संबंधी अपनी उपलब्धियां बताकर वोट लेना मुश्किल होता है। जबकि स्वयं को हिन्दू ,मुसलमान ,सवर्ण ,पिछड़ा या दलित बताकर वोट झटकना आसान । हमारे देश में प्रायः अधिकांश राजनैतिक दल पार्टी प्रत्याशियों का टिकट वितरण भी निर्वाचन क्षेत्र में धर्म व जाति की संख्या के आधार पर ही करते हैं। आज़ादी की 73 वर्ष लम्बी यात्रा में इस समय भारत की राजनीति एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के अनेक फ़ायर ब्रांड नेता 15 प्रतिशत आबादी वाले मुस्लिम समुदाय को हाशिये पर रखने की कोशिश करते हुए कट्टर हिंदूवादी राजनीति करने का खुला सन्देश दे रहे है।केंद्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक में जो एक आध मंत्री मुस्लिम समुदाय से संबंधित नज़र भी आ रहे हैं उनका न तो  मुस्लिम समाज में कोई आधार है न ही यह भारतीय मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बल्कि यह नियुक्तियां देश और दुनिया को प्रतीकात्मक रूप से यह दिखाने के लिए की गई हैं ताकि यह नज़र आ सके कि सरकार ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे पर अमल कर रही है।
                             ऐसे में विधायक स्तर के  छोटे मोटे नेता यदि मुसलमानों से सब्ज़ी लेने के लिए मना करते दिखाई दे रहे हैं या उनका व्यवसायिक व सामाजिक बहिष्कार करते नज़र आ रहे तो इसमें आश्चर्य की करने की बात नहीं है? जब देश का प्रधानमंत्री स्वयं ‘कपड़ों से पहचान करने’ जैसी भाषा बोले,जब एक बड़े राज्य का शक्तिशाली मुख्य मंत्री भारतीय मुसलमानों को संबोधित करते हुए सार्वजनिक रूप से यह कहता सुनाई दे कि ‘1947 में भारतीय मुसलमानों ने भारत में रहने का फ़ैसला कर देश पर कोई उपकार नहीं किया ‘। ऐसे में ‘चमचों का पतीली से भी ज़्यादा गर्म होना’ स्वाभाविक है। दरअसल इस तरह की समुदाय विरोधी शिक्षा इनके संस्कारों में शामिल है। अन्यथा राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापकों में एक प्रमुख एम.एस. गोलवलकर अपनी पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स में यह कभी न लिखते कि ‘मुसलमान’, ‘ईसाइ’ और ‘कम्युनिस्ट’, राष्ट्र के लिए ‘आंतरिक ख़तरा’ हैं। आज सत्ता के विरुद्ध किसी भी तरह का आलोचनात्मक स्वर उठाने वालों को राष्ट्रविरोधी बताना,उन्हें टुकड़े टुकड़े गैंग,ख़ान मार्केट गैंग व शाहीन बाग़ ब्रिगेड का सदस्य बताना और इस तरह के नए नाम गढ़ना,देश के ग़द्दारों को गोली मारो सालों को जैसे हिंसक नारे लगवाकर हिंसा का माहौल बनाना,मीडिया सहित अनेक लोकतान्त्रिक प्रतिष्ठानों पर नियंत्रण हासिल करना और मौक़ा मिलते ही उनपर गंभीर आरोप लगाकर मुक़द्द्मे क़ायम करना, यह सब उसी सांस्कारिक नफ़रत का ही एक हिस्सा है। लिहाज़ा यह सब अनायास ही घटित  नहीं हो रहा है।
                             परन्तु इन सबके बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कई बार यह कह चुके हैं कि ‘मुसलमान भारत का नागरिक और हमारा भाई है. वह हमारे जिगर का टुकड़ा है। वे अक्सर मुस्लिम नागरिकों में पार्टी के प्रति बैठे डर को समाप्त करने व उनमें आत्मविश्वास भरने की कोशिश  करते रहते हैं। एक दूसरे केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने भी कहा, कि ‘धर्मनिरपेक्षता और सद्भाव भारतवासियों के लिए राजनीतिक फ़ैशन नहीं, बल्कि जुनून है,यह हमारे देश की ताक़त है। उन्होंने भारत को मुसलमानों व सभी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए स्वर्ग बताया।यहाँ तक कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से भी कभी कभी भारतीय मुसलमानों को तसल्ली व ढारस देने वाले बयान दिए जाते हैं। अनेक विरोधाभासों के बावजूद समय समय पर सत्ता की तरफ़ से आने वाले इस तरह के बयान भारतीय मुसलमानों के यह सोचने के लिए पर्याप्त है कि बहुसंख्य वोट हासिल करने की शातिराना कोशिश के तहत भले ही मुसलमानों के विरोध के तमाम बहाने क्यों न ढूंढें जाएं परन्तु आसानी से उनकी उपेक्षा भी नहीं की जा सकती।
                           परन्तु निश्चित रूप से भारतीय मुसलमानों पर भी एक बड़ी ज़िम्मेदारी है जिससे मुस्लिम समाज न तो इंकार कर सकता है न ही बच सकता है। उदाहरण के तौर पर इन दिनों कोरोना महामारी को लेकर ही तरह तरह की विरोधाभासी बातें देखने व सुनने को मिल रही हैं। कई जगह मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा कहीं स्वास्थ्य कर्मियों पर तो कहीं पुलिस कर्मियों पर पथराव किया गया। यहाँ मुसलमान यह कहकर स्वयं को बचा नहीं सकते कि ‘अमुक स्थान पर ग़ैर मुस्लिमों द्वारा भी तो स्वास्थ्य कर्मियों व पुलिस कर्मियों पर पथराव किया गया’? याद  रखें कि सत्ता से लाभ उठाने के एकमात्र मक़सद को हासिल करने वाला बिकाऊ गोदी मीडिया आपके छोटे से अपराध को चीख़ चीख़ कर,बढ़ा चढ़ाकर और नमक मिर्च लगाकर बार बार पेश करेगा। इसके लिए बाक़ायदा पूरी ‘पत्थरकार सेना ‘ तैनात है। यह वह चमचे हैं जो स्वयं को पतीली से भी गर्म दिखाना चाहते हैं। पालघर व बुलंदशहर में हुई साधुओं की हत्या और इसके टी वी कवरेज में बरता गया दोहरापन देश के सामने हैं। आज सऊदी अरब से लेकर ईरान व भारत तक जब दुनिया के बड़े से बड़े इस्लामी धर्मस्थानों को बंद किया जा चुका है। बुद्धिमान इमाम,क़ाज़ी,मौलवी मौलाना,मुफ़्ती बार बार कह रहे हैं कि चाहे रोज़ाना की नमाज़ हो,जुमा की नमाज़ हो या रोज़ा इफ़्तार व तरावीह आदि,सभी इबादतें घर पर ही रहकर करनी हैं। देश का अधिकांश मुसलमान इन बातों का पालन भी कर रहा है। परन्तु कुछ ग़ैर ज़िम्मेदार धर्मगुरु ऐसे भी हैं जो कहीं कहीं मस्जिदों में भीड़ इकट्ठी कर जमाअत में नमाज़ पढ़ा रहे हैं। इस तरह का कृत्य देश के नियमों व क़ानूनों के क़तई  ख़िलाफ़ है। यह हरकतें भारतीय मुसलमानों को कटघरे में खड़ा करने का मीडिया को व  बहाने की तलाश में बैठे लोगों को मौक़ा देती हैं। यह अपराध भी है और इन हरकतों से पूरा इस्लाम धर्म व मुस्लिम समाज बदनाम भी होता है।
                         निश्चित रूप से भारत मुसलमानों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। परन्तु यह स्वर्ग देश में व्याप्त धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के चलते है। देश के अधिकांश धर्मनिरपेक्ष बहुसंख्य हिन्दू समाज का देश को स्वर्ग बनाए रखने में सबसे अहम योगदान है। गाँधी व अंबेडकर की विचारधारा से ही इस देश को स्वर्ग बनाने की संकल्पना जुड़ी हुई है। ऐसे में कोई भी किसी भी धर्म का व्यक्ति यदि भारतीय लोकतंत्र के संयुक्त सामाजिक ताने बाने को बिगड़ना चाहता है तो वह निश्चित रूप से स्वर्ग रुपी इस देश को नर्क में बदलना चाहता है। ज़ाहिर है इनमें वे मुसलमान भी शामिल हैं जो स्वयं क़ानून की धज्जियाँ उड़ा कर मौक़े की तलाश में  बैठे लोगों को अपने विरुद्ध चीख़ने-चिल्लाने का बहाना परोस रहे हैं। ऐ हिन्द के मुसलमानों…आपको इस बात का हक़ नहीं कि आप किसी मंदिर में इकट्ठी भीड़ या येदुरप्पा की शादी में शिरकत अथवा किसी एम एल ए की बर्थ डे पार्टी का हवाला देकर मस्जिद या बाज़ार की अपने समुदाय की भीड़ को सही ठहराएं। इसके विपरीत यदि कोई धर्मगुरु आपको मस्जिद में इकठ्ठा होने,जुमे की नमाज़ में शरीक होने,ईद की नमाज़ के नाम पर इकठ्ठा होने जैसे आह्वान करे तो आप उनका कड़ा विरोध करें। ऐ हिन्द के मुसलमानों कोरोना महामारी जैसे संकटकाल में पूरे देश को एकजुट होने की ज़रुरत है और सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करना बेहद ज़रूरी है। यही मानवता का भी तक़ाज़ा है और धर्म का भी।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

 

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

 

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

 

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com

 

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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