ऐसे आयोजन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिवेश के निर्माण में महत्ती भूमिका का निर्वाह करते हैं : डॉ. शिवकांत शर्मा

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हरियाणा-साहित्य-अकादमीआई एन वी सी ,

चण्डीगढ़,

हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा साहित्यिक गतिविधियों के प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत मासिक गोष्ठी श्रृंखला की 9वीं कड़ी के रूप में पंचकूला में मासिक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन की अध्यक्षता डॉ. शिवकांत शर्मा, प्रसिद्ध छाती रोग विशेषज्ञ एवं सिद्धहस्त गीत व गज़लकार भिवानी ने की तथा श्री योगेन्द्र मौदगिल, प्रसिद्ध हास्य कवि, पानीपत ने विशेष आमंत्रित कवि के तौर पर शिरकत की।   मुख्य अतिथि डॉ. शिवकांत शर्मा ने अपने सम्बोधन में इस योजना को सराहते हुए कहा कि अकादमी का यह आयोजन आज के युग में साहित्यकारों को जोड़ने की एक अनूठी कड़ी है। ऐसे आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार के साथ युवा साहित्यकारों का परिचय भी होता है। ऐसे आयोजन प्रदेश में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिवेश के निर्माण में महत्ती भूमिका का निर्वाह करते हैं। इस अवसर पर उनके द्वारा सुनाई गई कविताओं का बानगी इस प्रकार है-

    कौओं को कोयल कहने से जीवन भर कतराये हम/इसलिए अपनों की महफिल में हुए पराये हम।

    छीन कर उनसे उन्हीं के आंगनों की धूप को/बाँटते है लोग जाकर झुग्गियों में जर्सियाँ।

    उन्होंने एक इस अवसर पर गीत सुनाया- जब मरूस्थल-सी तेरी प्यास हो/मैं उफनती-सी नदी का जल बनूँ। तुम बनो मेरे लिए शुभकामना/मैं तुम्हारी कामना मँगल बनूँ।

विशेष आमंत्रित कवि श्री योगेन्द्र मौदगिल ने अपने हास्य व्यंग्य व सामाजिक सरोकारों की कविताओं से उपस्थित सभाजनों को खिलखिलाने पर मजबूर कर दिया। उनके द्वारा प्रस्तुत कविताओं के काव्यांश देखिए- नित नये चेहरे पहन जो लोग इतराते रहे/मंच के संचालकों को वे लोग भाते रहे। एक ऐसा हादसा कल फिर शहर में हो गया/कत्ल करके लोग ईश्वर के भजन गाते रहे।

नौकरी जब न मिली तो उसने किड़नी बेच दी/दो निवाले भूखें बच्चों को खिलाने के लिए।

इस अवसर पर भिवानी से विशेष कवि के रूप में आमंत्रित प्रसिद्ध कवि, गीतकार एवं गजलगो श्री श्याम वशिष्ठ ने भी अपनी कविताओं व गजलों की प्रस्तुति दी- जाने कैसे अपने घर की बात गली तक जा पहुँची/आँगन को विश्वास बहुत था घर की इन दीवारों पर। वक्त रहते समझ लेना तेवर बर्फ का/अपने पानी में पिघलना है मुकद्दर बर्फ का।

इस अवसर पर भिवानी से ही पधारे प्रसिद्ध गीतकार डॉ. रमाकांत शर्मा ने भी अपने गीत वैसे तो मेरे गीत बहुत साधारण है, लेकिन लिखने के पीछे बहुत से कारण है और नेह में डूबा निमंत्रण भूल मत जाना नदी/मैं मरूस्थल हूँ कभी मेरे भी घर आना नदी, प्रस्तुत किया।

अकादमी निदेशक, डॉ. श्याम सखा ‘श्याम’ ने कार्यक्त्रम के आरम्भ में अतिथियों का स्वागत किया तथा सूचना दी कि अकादमी द्वारा पंचकूला को हरियाणा का मुख्य सांस्कृतिक केन्द्र बनाने की योजना हेतु एक कला भवन जिसमें आर्ट गैलरी, ग्रीनरूम सहित एमफीथियेटर, कार्यशाला सभागार होंगे के निर्माण का प्रस्ताव सरकार को भेजा है। इस कला भवन में साहित्यकार, चित्रकार, मूर्तिकार, लोककला के कलाकार, नाटककर्मी आदि को अपनी प्रतिभा के प्रर्दशन का अवसर प्रदान होगा। उन्होंने बताया कि मासिक गोष्ठियों का लेखकों और श्रोताओं द्वारा बहुत स्वागत किया गया है जिसका प्रभाव इस बात से जाहिर होता है कि गत तीन आयोजनों के दौरान सभागार में बैठने के लिए स्थान की कमी होती रही है। इस अवसर पर उन्होंने अपनी ताजा ग़ज़ल भी प्रस्तुत की- उम्र पूछी मेरे जख्मों की, और दे दिया एक जख्म ताजा भी है। मंजिले सर कर ले पर ये मत भूल आखिरी मंजिल जनाजा भी है।

इस अवसर पर स्थानीय कवियों में श्रीमती मीरा गौतम, श्री चन्द्र भार्गव, श्री प्रेम विज, श्री चमन लाल शर्मा, श्री देवी दयाल सैनी, श्री राजकुमार, सुश्री रिकूं सिंह, श्रीमती सुनीता धारीवाल, डॉ. गार्गी तिवारी ने भी कविता पाठ किया। इस अवसर पर 100 से अधिक साहित्यकार एवं साहित्य-प्रेमी श्रोताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज की।  इस अवसर पर हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष श्री कमलेश भारतीय, डॉ. एम.पी भारद्वाज, श्री राधेश्या

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