ए.ऍफ़.टी.बार लखनऊ की मांगों का दिल्ली और चण्डीगढ़ की बारों ने किया समर्थन

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Colonel-Ashok-Kumarआई एन वी सी न्यूज़

लखनऊ ,

जैसा कि विदित है ए.ऍफ़.टी. बार एसोसिएशन, लखनऊ के पूर्व-जनरल सेक्रेटरी एवं वरिष्ठ स्थायी-अधिवक्ता डी.एस.तिवारी ने अध्यक्ष कर्नल अशोक कुमार के निर्देश पर 20 सितम्बर, 2016 को मुख्य-न्यायधीश, उच्चतम-न्यायलय के समक्ष एक जनहित याचिका लेटर-पेटीशन के माध्यम दायर करते हुए मांग की थी कि; लखनऊ सहित देश के सभी सशत्र-बल अधिकरणों में न्यायिक एवं प्रशानिक सदस्यों की नियुक्ति की जाय l आज इस मांग का प्रभाव इतना व्यापक हो गया है कि इसके समर्थन में दिल्ली और चंडीगढ़ के बार एसोसिएशन मजबूती से खड़े होकर मांग उठाई l ए.ऍफ़.टी. बार लखनऊ के  जनरल-सेक्रेटरी विजय कुमार पाण्डेय ने कहा कि बेंच को निष्क्रिय किए जाने से बार का सरोकार समाज से टूट जाता है जिसका सीधा प्रभाव न्याय पाने वाले लोगों पर पड़ता है l हमारी बार के अध्यक्ष और जनरल सेक्रेटरी कर्नल अशोक कुमार और डी.एस.तिवारी ने संघर्ष प्रारम्भ किया था जिसे किसी भी कीमत पर रुकने नहीं दिया जायेगा उसके समर्थन में आने के लिए अन्य बारों से अपील की जाएगी l

पाण्डेय ने बताया कि जिस संघर्ष को हमारी बार ने अपने हाथ में लिया था आज उसकी स्वीकार्यता प्रदेश के बाहर की बारों पर दिखाई पड़ रहा है इसलिए अब इस मुहिम को सभी बारों से वार्ता करने के पश्चात् और गति प्रदान की जाएगी क्योकि, न्यायपालिका के साथ लापरवाही का विषय सशत्र-बलों से सम्बधित लोगों में निराशा का भाव जागृत करता है जिससे’ सामाजिक संरचना के बिखरने की आशंका को बल मिलता है l आज भारत यदि डिजिटल हो रहा है तो इसके साथ ही हमे त्वरित-न्याय के सोपानो को निष्क्रिय नही होने देना चाहिए l चूँकि सशत्र-बल अधिकरणों का सीधा सम्बन्ध सशत्र-बलों के साथ स्थापित होता है इसलिए इसकी संवेदनशीलता की तीव्रता काफी व्यापक हो जाती है l इस समय सभी अधिकरण लगभग निष्क्रिय अवस्था में चले गये है क्योंकि सरकार वहाँ पर समय से न्यायिक-सदस्यों की नियुक्ति नहीं कर सकी l

उन्होंने बताया कि कर्नल अशोक कुमार और डी.एस.तिवारी लगातार दिल्ली और चड़ीगढ़ की बारों से सम्पर्क बनाए हुए हैं और आगे की रणनीतियों पर गम्भीरता से विचार कर रहे है, उनका मानना है कि सरकारों की इस उदासीनता का कारण समझ से परे है, डी.एस. तिवारी ने कहा कि हमने 2016 में इस गम्भीर विषय का संज्ञान लेते हुए कदम इसलिए नहीं उठाया था कि इससे पीछे हट जायेंगे, उन्होंने के कहा हमारी बार ने मांग रखी थी कि अधिकरण में सदस्यों की नियुक्ति बार के वरिष्ठ सदस्यों में से करने पर भी विचार किया जाना चाहिए जिससे एक बेहतर “बार-बेंच’ सम्बन्ध स्थापित करने में सहायता मिल सके l

लेकिन हमारी उस मांग पर भी सरकार ने कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया ऐसे में हमारे पास लोकतान्त्रिक-पद्धति से विरोध दर्ज कराने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता, जिसके लिए अब हम अकेले नहीं है देश की अन्य बारें भी जो सशत्र-बलों से सीधा सरोकार रखती है; आज हमारी मांगों के समर्थन में साथ खड़ी है यदि, इस विषय पर अन्य बारों का सहयोग और समर्थन पहले प्राप्त हो जाता तो आज सरकार हमारी मांग स्वीकार कर चुकी होती और अदालतों को अतिरिक्त दबाव में कार्य नहीं करना पड़ता लेकिन, प्रसन्नता का विषय यह है कि आज हम संघर्ष में अकेले नहीं है कारवां बढ़ रहा है और सरकार शीघ्र ही इस विषय पर कोई सकारात्मक कदम उठाने के लिए अवश्य बाध्य होगी और हम अपने सशत्र-बलों के हितों को साधने वाली इस मुहीम में कामयाब होंगे और पुनः त्वरित न्याय प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त होगा l

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