{ मनोहर श्याम जोशी } राजस्थान के हाड़ौती अंचल में बारां जिले की एक महिला ने कृषि पैदावार के बाद बचे बेकार कचरे एग्रोवेस्ट से एग्रोफ्यूल बनाने की एक अच्छी शुरूआत की है। इस उद्यम से न केवल उसे धनालाभ हो रहा है कि अपितु आसपास के किसानों को भी कृषि अपशिष्टों से अतिरिक्त आय होने लगी है। इसके अलावा इस कार्य से डेढ़ दर्जन स्थानीय लोगों को भी रोजगार मुहैया हुआ है। अंचल के बारां जिले के पचेल खुर्द गांव की उक्त महिला सुनीता मीणा की सफलता की कहानी उन्हीं की जुबानी-
बारां जिले की अंता तहसील में पचेल खुर्द मेरा गांव है। यहां से करीब दस किलोमीटर दूर इसी तहसील के ही बूंदी बिजोरा में खातेदारी की खुद की जमीन पर श्री गणेश बायो इंडस्ट्रीज के नाम से मैंने बायोकोल बनाने का उद्यम शुरू किया है। बारां जिले में यह अपनी तरह का पहला कारखाना है। कारखाना एवं मशीनरी के लिए मैंने प्रधानमंत्री ग्रामीण रोजगार योजना के तहत 23 लाख 80 हजार रूपये का ऋण बैंक ऑफ बड़ौदा से लिया है। केंद्र सरकार से आठ लाख 33 हजार सहायता राशि इस योजना के अंतर्गत अनुदान के रूप में प्राप्त हुई है।
हाईस्कूल तक पढ़ी-लिखी हूं। जिला उद्योग केंद्र बारां में इस प्रोजेक्ट के लिए जून 2012 में आवेदन करने और दो माह बाद साक्षात्कार में मेरा चयन होने के बाद बायोकोल निर्माण में दृढ़ता से लगी हुई हूं तथा व्यवस्थित तरीके से काम हो रहा है। इस प्रोजेक्ट में आयोजना, उत्पादन प्रक्रिया, तकनीक तथा विपणन के बारे में कृषि विज्ञान केंद्र अंता का भरपूर सहयोग मिला है।
खेतों में फसल की कटाई के बाद पशुओं के चारे के अलावा बचे अवशेष को पहले काश्तकार व्यर्थ में जला दिया करते थे, लेकिन मेरे द्वारा बायोकोल बनाने का काम शुरू करने से इसमें काम आने वाला एग्रोवेस्ट (कच्चा माल) पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है। वहीं किसानों को बेकार पड़़े घासफूंस से अतिरिक्त आय हो रही है। हालांकि स्वयं की 100 बीघा सिंचित जमीन है, जिस पर साल भर खेती होती है, लेकिन कोल निर्माण के लिए घरेलू घासफूंस नाकाफी है। काम में लिये जाने वाला रॉ मेटेरियल सरसों, धनिया, सोयाबीन, उड़द, तिल, चना तथा गेहूं इत्यादि का भूसा आस-पास के क्षेत्र से 125 रूपये से 150 रूपये प्रति क्विंटल में मिल जाता है। किसान स्वयं ट्रैक्टर – ट्रॉली में भूसा भरकर प्लांट तक ले जाते हैं। जिसका नकद भुगतान मिलने से वे भी खुश हैं। कोयला बनाने में करीब 100 रूपये प्रति क्विंटल उत्पादन लागत आती हैं।
अपने खेत पर साढ़े पाँच बीघा जमीन पर बनाई गई कोल निर्माण इकाई में दिन व रात्रि की तीन पारियों में कुशल व अकुशल 18 श्रमिक काम करते हैं। स्थानीय लोगों को रोजगार मिल गया है। कोल उत्पादन का कार्य अप्रैल 2013 से लगातार हो रहा है और अब तक भारी मात्रा में कोयला बनाकर 350 रूपए से 400 रूपए प्रति क्विंटल की दर से गुजरात के भड़ौच, वापी एवं महाराष्ट्र में नवी मुंबई व तारापुर की औद्योगिक इकाइयों को बेचा जा चुका है। बैंक से लिए गए त्रण को चुकता करने के लिए निर्धारित किस्त भी समय पर जमा हो रही है।
हमारी कोल निर्माण इकाई राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 76 पर कोटा-बारां पूर्व पश्चिम कॉरीडोर फोरलेन से जुड़ी होने से माल के परिवहन के लिए भी सहूलियत रहती है। इस फ्यूल की बड़े शहरों मुंबई, पूना, नासिक, वापी, भड़ौच, अहमदाबाद और उत्तर भारत में दिल्ली, हिमाचल, हरियाणा तथा पंजाब में काफी मांग है। कपड़ा, रबड़, सिरामिक टाइल्स, फार्मा, डेयरी प्रोडक्ट, सोया ऑयल मिलों के लिए यह खनिज कोयले का विकल्प है तथा लिगनाइट के मुकाबले काफी सस्ता है और प्रदूषण रहित र्इको फ्रेडली है।इस फ्यूल की विशेषताएं-1. खनिज कोयले की अपेक्षा 65 प्रतिशत तक सस्ता।
2. राख नहीं निकलती जिससे औद्योगिक इकाइयों को राख के निस्तारण से छुटकारा और इस पर होने वाले खर्च से मुक्ति।3. प्रदूषण रहित होने से यह फ्यूल ईको-फ्रेंडली वर्ग में आता है।
4. खनिज कोयले की उपलब्धता में कमी होने से इसे सबसे बढि़या विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।5. जलने की क्षमता 3800 से 4000 जीसीवी; ग्रोस कैलोरिक वैल्यू है।6. इसके उपयोग पर सरकार द्वारा बड़े उद्योगों को प्रदूषण मानक में प्रोजेक्ट आदि देना प्रमुख हैं। एग्रोवेस्ट से कोयला बनाने की मशीन 10 लाख से 18 लाख रूपए तक में आती है। उत्पादन की क्षमता डाया साइज एवं क्वालिटी मशीन बनाने वाली कंपनी पर निर्भर होती है। मशीन की साइज सामान्यतया 60, 70 तथा 90 एमएम की होती है, लेकिन अब कुछ मशीन निर्माता 110 एमएम साइज का प्लांट भी तैयार करने लगे हैं। राजकोट, जामनगर, लुधियाना, श्रीगंगानगर, पंजाब, दिल्ली, फरीदाबाद जैसे शहरों में इस तरह के प्लांट के कारखाने हैं इन्हीं स्थानों पर इनके स्पेयर पार्टस भी मिलते हैं।
उर्जा एवं ईंधन के सीमित स्रोतों एवं पर्यावरणीय सुरक्षा के लिहाज से मेरे द्वारा शुरू किए गए इस कार्य में मुझे अपने परिवार का पूरा सहयोग मिल रहा है। मैं समझती हूं कि मेरा यह कार्य परिवार, समाज एवं देश हित में कारगर साबित होगा तथा महिला सशक्तिकरण की शृंखला में एक कड़ी का काम करेगा।
—————————–
मनोहर श्याम जोशी (स्वतंत्र पत्रकार)
————————————-
I believe this internet web site has really superb composed subject material articles .
I’ve been browsing online more than three hours today, yet I never found any interesting article like yours. It is pretty worth enough for me. In my view, if all website owners and bloggers made good content as you did, the internet will be a lot more useful than ever before.
How can I choose how many posts shown on my blogger homepage?
Just wish to say your article is as astonishing. The clearness in your post is just cool and i could assume you are an expert on this subject. Thanks and please continue the enjoyable work.
Really informative and outstanding complex group piece of articles, at the present that’s user amiable (:.
Hi there, just became aware of your news portal through Google, and found that it’s really informative. I’m going to watch out for brussels. I’ll be grateful if you continue this in future. Lots of people will be benefited from your writing. Cheers!