एक आधुनिक भगीरथ को भूल गया हरियाणा

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सरफ़राज़ ख़ान

आजादी के बाद नदी घाटी परियोजनाओं और जल संसाधनों की तकनीक विकसित करने वालों में फतेहाबाद के डॉ. कंवर सेन का नाम अग्रणी रहा है। भाखड़ा बांध का निर्माण डॉ. कंवर सेन की ही देखरेख में हुआ। राजस्थान की विश्व विख्यात इंदिरा गांधी नहर परियोजना की परिकल्पना का श्रेय डॉ. सेन को ही है। इतना ही नहीं दामोदर घाटी, कोसी नदी, नर्मदा, हीरा कुंड और राजस्थान नहर जैसी देश की न जाने कितनी ही महत्वपूर्ण परियोजनाओं को साकार करने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई, लेकिन विलक्षण मेधा के धनी इस आधुनिक भगीरथ को अपने ही प्रदेश में भुला दिया गया। हरियाणा और राजस्थान की हजारों एकड़ बंजर जमीन में आज जो खेत लहलहा रहे हैं, वो सब डॉ. सेन की ही कोशिशों का नतीजा हैं।

उनकी असाधारण जल संसाधन तकनीकी मेधा के कारण ही संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें नौ साल तक विशेषज्ञ के तौर पर रखकर उनकी सेवाओं से लाभ उठाया। डॉ. कंवर सेन ने अंतर्राष्ट्रीय परियोजना मेकोंग को साकार करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। राष्ट्र के प्रति उनकी विशिष्ट और उल्लेखनीय सेवाओं के लिए 1956 में डॉ. सेन को राष्ट्रपति ने पद्म भूषण से सम्मानित किया। उनका जन्म तत्कालीन संयुक्त पंजाब के कस्बे सुनाम में उनके नाना के घर हुआ, लेकिन उनकी शुरुआती शिक्षा उनके पैतृक कस्बे टोहाना फतेहाबद में हुई। कुछ वक्त उन्होंने हिसार के सीएवी स्कूल में भी शिक्षा ग्रहण की। लाहौर से उन्होंने दसवीं की परीक्षा में पहला स्थान हासिल किया। इसके बाद रुड़की कॉलेज से उन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की।

भारत सरकार की ओर से अप्रैल 1947 में उन्हें जल व विद्युत आयोग के मुख्य अभियंता का पदभार संभालने के लिए आमंत्रित किया गया। इस पद पर काम करते हुए डॉ. सेन को अमेरिका के ब्यूरो ऑफ रिक्लेमेशन के सहयोग से कोसी नदी पर बनाए जाने वाले बांध और भाखड़ा बांध का डिजाइन तैयार करने के लिए अमेरिका भेजा गया। वर्ष 1953 में वह केंद्रीय जल व विद्युत आयोग के अध्यक्ष भी बने। इसके साथ ही अमेरिका में उन्हें विशिष्ट परामर्श के लिए सात बार बुलाया गया। अमेरिका के अलावा डॉ. सेन को फ्रांस, जर्मनी, जापान, सोवियत संघ, फिलीपींस, युगोस्लाविया, थाईलैंड व ताइवान आदि अनेक देशों में आमंत्रित किया गया। आजादी से पहले ही भाखड़ा बांध के पानी के बंटवारे को लेकर मतभेद होने पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया। डॉ. सेन की विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए बीकानेर के महाराजा ने उन्हें अपनी रियासत में बुलवा लिया। इस पर उन्होंने बीकानेर के चीफ इंजीनियर के पद पर काम करना स्वीकार कर लिया। बीकानेर रहते हुए उन्होंने रियासत को पाकिस्तान न जाने देने में अहम भूमिका निभाई।

उस वक्त भारत सरकार के शुष्क इलाकों में सिंचाई के लिए पानी की कोई व्यवस्था नहीं थी, जबकि पाकिस्तान ने बीकानेर को नहरी पानी देने का वादा किया था। डॉ. सेन की कोशिशों से ही बीकानेर पाकिस्तान से जुडने से रह गया। यह भी उनके तर्कों का ही नतीजा था कि भाखड़ा बांध पाकिस्तान की बजाय भारत में रह गया।

संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद 71 साल की उम्र में वे दिल्ली में बस गए और बतौर सलाहकार जीवन के अंतिम क्षणों में भी जल परियोजनाओं के संबंध में अपने सुझाव देते रहे। हरियाणा में उनकी जल उत्थान योजनाओं और राजस्थान में सिंचाई संबंधी समस्याओं के बारे में दिए गए सुझावों से जनता को बहुत फायदा पहुंचा। देश की जल परियोजनाओं में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले डॉ. सेन 24 दिसंबर 1988 को इस दुनिया से विदा हो गए।

जल संसाधनों से संबंधित तकनीकी ज्ञान विकसित करने समेत डॉ. सेन ने इस विषय के पाठयक्रमों के लिए अनेक पुस्तकें भी लिखीं। अगर डॉ. सेन को भारत में नदी घाटी परियोजनाओं का जनक कहा जाए तो कतई गलत न होगा। इंदिरा गांधी नहर राजस्थान की मरु भूमि के प्रति डॉ. सेन के बेहद लगाव का ही प्रतिफल है। यह नहर यहां के किसानों की जिन्दगी में खुशहाली का पैगाम लेकर आई। इसी तरह हरियाणा में भाखड़ा नहर के कारण कृषि क्षेत्र में आई क्रांति का श्रेय भी उन्हीं को जाता है।

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