उफ्फ ये बरात का शोर *

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{ डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी * * }
हमारे शहर की मुख्य सड़क पर आतिशबाजी, पटाखों और डी.जे. का कानफोड़ू शोर ध्वनि व वायु प्रदूषण की पराकाष्ठा की स्थिति। मैं एक किनारे खड़ा कान पर हाथ रखे देख रहा था सड़क का मंजर। मेरी जगह कोई दूसरा होता तो उसके मुँह से तारीफ ही निकलती, लेकिन मैं कानफोड़ू आवाज से खिन्न खाए खड़ा था चुप्पी मारे। जल्द नाचने, गाने वालों का हुजूम सामने से गुजरे, यही प्रतीक्षा कर रहा था। तभी एक बकचोच ने मुझे टोका बोला डाक्टर साहेब आप सड़क का मंजर बड़ी तन्मयता से देख रहे हैं, मैं तो घण्टे भर से देख रहा हूँ। क्या गजब की आतिशबाजी है, सड़क पर लड़के-लड़कियाँ डान्स कर रहे हैं, मजा आ रहा है। इसी दौरान एक बगलोल और आ गया बोला धन्नासेठ के लड़के की शादी है यह तो होना ही था। अभी देखिएगा वी.आई.पी.गण जब इधर से गुजरेंगे तब कितना मजा आएगा।
तीसरा भी उसी ब्राण्ड का आ धमका। बोला पुलिस लगी है, मंत्री लोग आने वाले हैं ये लोग यातायात व्यवस्था में लगे हैं। वाह क्या नजारा है। मेरे साथ 10 वर्षीय साहेबजादे भी कान और नाक बन्द किए खड़े थे उन्हें भी ध्वनि प्रदूषण से चिढ़ है। वह बोले पापा क्या इस पर रोक नहीं है? पुलिस वाले तो टैªफिक संभालने में बिजी हैं, प्रशासन चुप्पी मारे है। डी.जे. पर रोक क्यों नहीं लगाते ये लोग…? मैंने कहा बेटा चलो घर चलकर बताऊँगा। अभी तो बुरे फँसा हूँ। इवनिंग वाक का मजा किरकिरा हो गया है। हम पिता-पुत्र की बातों के दौरान कुछेक और ब्राण्डेड इडियट्स आ गए। वह लोग उचक-उचक कर डाँस कर रहे बारातियों को देखकर आनन्दित हो रहे थे। साहेबजादे मेरे कान में फुसफुसाकर बोले पापा यहाँ से चलिए निकल चलें- रास्ता बदलकर। मैंने कहा बेटा थोड़ा सब्र और कर लो जैसे ही हमारे सामने से डाँस करते बारातियों की टोली/डी.जे. गुजरेगा तुरन्त घर को वापस हो लेंगे।
मेरी बात सुनकर वह खामोश हो गए। हमने देखा कि उस बारात पार्टी में आतिशबाजी के साथ-साथ हर्ष फायरिंग हो रही थी। बन्दूक, राइफल और तमंचों से फायर करने वालों की संख्या कुछ अधिक ही थी। नगर भ्रमण के पूर्व बारातियों की सुख-सुविधा आवागमन में आने वाली दिक्कतों को ध्यान में रखकर पुलिस के अधिकारीगण पहले ही पेट्रोलिंग करके मुश्तैद पुलिस कर्मियों को हिदायतें दे चुकें थे। कुल मिलाकर धन्नासेठ जी की बारात का पुलिस वालों ने बड़ा ख्याल रखा था। कई दारोगा अपने हमराह आरक्षियों के साथ सड़क पर आने जाने वाले आम लोगों को रोक-रोक कर बारात के गुजर जाने की प्रतीक्षा करवा रहे थे। जिज्ञासु साहबजादे मुझसे बोले पापा क्या पुलिस का अब यही काम रह गया है? मैंने कहा वत्स पुलिस के कार्य की परिभाषा तो मैं नहीं बता पाऊँगा, लेकिन वर्तमान लोकतंत्र में यह स्थिति हास्यास्पद अवश्य है। वह बोले पापा अपने यहाँ की पुलिस बिकाऊ हो गई है, इसे आम जन की सुरक्षा की चिन्ता नहीं है, बस स्वयं की कमाई के प्रति यह ज्यादा ध्यान देती है। मैं मन ही मन खुश होता हूँ कि कम से कम इस उम्र में साहबजादे में सोचने की क्षमता तो है।
अन्ततः हम दोनों जिस जगह खड़े थे, वहाँ से बारात गुजर गई, तब हम बगैर इवनिंग वाक के ही वापस हो लिए। और फिर मैं घर पहुँचकर सोचने लगता हूँ। धन्नासेठ जी और उनके स्वजातीय मंत्रीजनों, वी.आई.पी. बाराती और पैसे का खेल तमाशा आदि मेरी जेहन में बार-बार आने लगा। वर्तमान लोकतंत्र में धन्नासेठ, नेतागण और पुलिस प्रशासन की स्थिति आदि के बारे में सोचता हुआ कब सो गया पता ही नहीं चला। बिजली नहीं थी, ठण्डक कुछ ज्यादा ही थी, रजाई ओढ़े लेटा सोच रहा था और उसी बीच नींद आ गई थी।
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Bhupendra Singh Gargvanshiडॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी

(वरिष्ठ पत्रकार/टिप्पणीकार) अकबरपुर,
अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
मो.नं. 9454908400

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*लेखक स्वतंत्र पत्रकार है ।
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी  का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं.

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