उपेक्षाओं के मध्य ‘दलित उड़ान’

0
34

– निर्मल रानी –

nirmal-raniहमारे देश के अधिकांश राजनैतिक दल,राजनेता तथा यहां का मीडिया आमतौर पर ‘इस्लामी आतंकवाद’,कश्मीरी अलगाववाद,सीमापार से होने वाली आतंकी घुसपैठ,घर वापसी,लव जिहाद,गाय,गंगा तथा हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना जैसे विषयों पर अपना ज्य़ादातर ध्यान केंद्रित रखता है। दरअसल आजकल मीडिया का लगभग व्यवसायीकरण सा हो गया है इसलिए प्रचारित व प्रसारित करने वाले विषय ज्वलंत हों,लोगों का ध्यान उनकी मूल समस्याओं की तरफ से हट सके, समाज में धर्म व जाति आधारित ध्रुवीकरण हो सके तथा ऐसे गर्मागर्म प्रसारणों के साथ उनकी टीआरपी भी बढ़ती रहे, यही मीडिया का असली मकसद रह गया लगता है? अन्यथा हमारे देश की सबसे प्राचीन,सबसे जटिल तथा देश व भारतीय समाज को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाने वाली समस्या का नाम तो दलित उत्पीडऩ अथवा दलित उपेक्षा ही है। परंतु इस विषय पर न ही कोई राजनैतिक दल,कोई राजनेता समग्र आंादोलन चलाता दिखाई देता है न ही किसी के पास इसका कोई समाधान नज़र आता है। तीन तलाक जैसे विषयों में उलझने तथा इनपर टीवी पर सीधी बहस कराने वाला मीडिया कभी दलित उत्पीडऩ की जड़ों पर चर्चा कराते नहीं देखा गया। आिखर क्यों? इसीलिए कि इस दुर्भावना,दलित उपेक्षा तथा इस समाज के अपमान की जड़ें हमारे धर्मशास्त्रों से जुड़ी हुई हैं। और धर्मशास्त्रों पर उंगली उठाने या इनमें किसी प्रकार का संशोधन करने की बात कहने का साहस न तो किसी नेता में है न ही किसी राजनैतिक दल में।

दलित समाज को जागृत करने के नाम पर मायावती तथा रामविलास पासवान जैसे और भी कई नेताओं को राजनैतिक रूप से काफी अवसर भी मिले। परंतु इन लोगों ने भी सिवाय अपनी कुर्सी व सत्ता सुरक्षित रखने,धन-संपत्ति संग्रह करने, अपने वारिसों को अपना उत्तराधिकारी बनाने के, और कुछ नहीं किया। हां इतना ज़रूर किया कि यह नेता भी महज़ अपनी राजनैतिक रोटी सेेंकने के लिए दलित समाज को उनके उपेक्षित होने का हमेशा एहसास कराते रहे जबकि इनके अपने रहन-सहन शाही अंदाज़ व शान-ो-शौकत से भरपूर हैं। परंतु बाबा साहब भीमराव अंबेडकर द्वारा न केवल दलित समाज बल्कि समस्त भारतवासियों को उनकी प्रगति तथा विकास के लिए दिखाया गया सपना शायद अब साकार रूप लेने लगा है। राजनीति में सक्रिय पाखंडी स्वयंभू दलित नेताओं के बजाए शिक्षा जगत में दलित समुदाय के लोगों ने अपनी काबिलियत का परचम लहराना शुरु कर दिया है। डा० अंबेडकर ने कहा था कि-‘जिस दिन मंदिर में जाने वाले लोगों की लंबी कतारें पुस्तकालय की ओर बढ़ेंगी उस दिन भारत को महाशक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकता’। इतना कड़वा सच बर्दाश्त करने की ताकत उन नेताओं में कहां जो मंदिर में लगने वाली लाईन को ही अपने पक्ष में मतदान करने वाली कतार समझते आ रहे हों। डा० अंबेडकर शिक्षित समाज को देश के विकास के लिए सबसे ज़रूरी समझते थे।

बहरहाल, एक ओर जहां उत्तर प्रदेश सहित देश के और भी कई राज्यों में दलितों के िखलाफ हिंसा व दमन के समाचार प्राप्त हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर दलित समाज के राजस्थान के रहने वाले होनहार छात्र कल्पित वीरवाल ने 17 वर्ष की आयु में आईआईटी जेईई में टॉप कर देश के पहले दलित आईआईटी टॉपर होने का ताज अपने  सिर पर धारण किया है। कल्पित ने 360 में 360 अंक अर्जित कर यह मुकाम हासिल किया। कल्पित ने केवल दलित वर्ग में ही नहीं बल्कि सामान्य श्रेणी में भी सर्वोच्च स्थान हासिल किया है। इस छात्र ने कोटा के जिस कोचिंग संस्थान रेजोनेंस से कोचिंग हासिल की थी इस संस्थान के प्रबंध निदेशक भी स्वयं दलित समुदाय के हैं। रामकिशन जोकि एक सरकारी इंजीनियर थे,अपनी नौकरी छोडक़र कोटा में कोचिंग चलाने लगे और उन्होंने संकल्प किया कि वे अपने ज्ञान के माध्यम से देश के लाखों युवाओं के जीवन में ज्ञान व शिक्षा का दीपक जलाकर ही दम लेंगे। आज उन्हें आईआईटी जेईई को ‘क्रेक’ कराने के पर्याय के रूप में देखा जा रहा है। अभी दो वर्ष पूर्व की ही बात है जब 2015 की संघ लोक सेवा आयोग की देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा में टीना डाबी नाम की दलित समाज की एक बेटी ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। इन्हीं दिनों महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग की परीक्षा में भी भूषण अहीरे नाम के एक दलित युवक ने परीक्षा में टॉप किया था।

ज़ाहिर है दलित समाज के होनहार युवक-युवतियों की ओर से इस प्रकार की खबरें आने के बाद इस समाज के लोगों में काफी उत्साह दिखाई दे रहा है। दलित समाज के एक प्रमुख लेखक व चिंतक कांचा इल्लैया ने तो दलितों में शिक्षा के बढ़ते स्तर से उत्साहित होकर यहां तक कहा है कि-‘दलित और ओबीसी छात्रों में समझ का स्तर स्वर्णों से कहीं ज़्यादा है। उनका दृष्टिकोण ज़्यादा गहरा होता है। इन्हें मौका मिले तो वे स्वर्णों की बराबरी ही नहीं बल्कि उन्हें पीछे छोड़ देंगे। वह वक्त दूर नहीं जब किसी दलित को नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा’। यहां यह बात काबिलेगौर भी है कि भारत में दलित समाज,अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोग तथा आदिवासी व पिछड़े ग्रामीण इलाकों के दबे-कुचले लोग जोकि स्वर्ण जातियों की उपेक्षा का शिकार रहते आए हैं और आज भी देश के अनेक क्षेत्रों से यहां तक कि विश्वविद्यालयों,महाविद्यालयों,स्कूल, पंचायत तथा ग्रामीण स्तर पर उनके अपमान,तिरस्कार तथा उनपर ज़ुल्म व अत्याचार के तमाम िकस्से सुनाई देते हैं। यह त्रासदी किसी एक राज्य विशेष की नहीं बल्कि पूरे भारत की है और निश्चित रूप से इस गैर बराबरी के लिए हमारे धर्मशास्त्र तथा हमारी वह धार्मिक शिक्षाएं व संस्कार जि़म्मेदार हैं जिनके बारे में हम उस स्तर पर व उस अंदाज़ से चर्चा करना ही नहीं चाहते जैसेकि तीन तलाक तथा गौ हत्या जैसे विषयों पर अथवा मंदिर-मस्जिद निर्माण जैसे विषय पर करते आ रहे हैं।

कहने को तो भारतीय जनता पार्टी सामाजिक समरसता की बड़ी दुहाई देती रहती है और इस विषय पर बड़े से बड़े काम करने का दिखावा भी करती है। गत् वर्ष उज्जैन(मध्यप्रदेश)में आयोजित सिंहस्थ महाकुंभ के अवसर पर सरकार व पार्टी द्वारा समरसता स्नान के नाम का एक आयोजन भी किया गया जिसमें प्रतीकस्वरूप सभी जातियों के लोग बिना किसी भेदभाव के एक ही घाट पर स्नान करने का प्रदर्शन करते देखे गए। परंतु इस प्रकार के आयोजन दरअसल केवल मीडिया के समक्ष प्रतीक स्वरूप किए जाते हैं जिसका ज़मीनी स्थिति से कोई लेना-देना नहीं होता। वास्तविकता तो यह है कि इसी मध्यप्रदेश राज्य से ही आए दिन ऐसी खबरें आती रहती हैं जबकि किसी दलित दूल्हे को घोड़ी पर बैठने से मना कर दिया जाता है। पूरी की पूरी दलित बारात हिंसा का शिकार होती है तथा उन्हें अपमान का सामना करना पड़ता है। अभी पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मालवा जि़ले के एक गांव में ऐसी शर्मनाक घटना घटी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। एक दलित परिवार ने अपनी बेटी की शादी में बैंड पार्टी आमंत्रित कर ली यह बात उस गांव के स्वर्ण लोगों को इतनी नागवार गुज़री कि स्वर्णों ने पहले से ही दलितों के लिए अलग बनाए गए पानी के कुंए में ढेर सारा मिट्टी का तेल डाल दिया ताकि वे उस कुंए का पानी न पी सकें। आिखरकार गांव से दूर गड्ढा खोदकर दलितों को अपने पीने के लिए ज़मीन के नीचे से कीचड़ भरा पानी निकालना पड़ा। दूसरी ओर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने-आप को मध्यप्रदेश का बेताज बादशाह साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। देश में खोखले राष्ट्रवाद की बातें करने वाले, बाबा साहब के उस कथन की अनदेखी नहीं कर सकते कि-‘राष्ट्रवाद तभी औचित्य ग्रहण कर सकता है जब लोगों के बीच जाति,नस्ल या रंग का अंतर भुलाकर उसमें सामाजिक भ्रातृत्व को सर्वोच्च स्थान दिया जाए। समरसता की इन्हीं उम्मीदों के साथ अनेक उपेक्षाओं के बावजूद दलित युवाओं में ऊंची उड़ान भरने का सिलसिला जारी है

______________

???????????????????????????????परिचय –

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 134003 , Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here