आईएनवीसी ब्यूरो
नई दिल्ली. उप-राष्ट्रपति मो. हामिद अंसारी ने कहा कि अतिवादियों, रूढिवादियों और आतंकवादियों का समर्थन करने वालों की संख्या अधिक नहीं है और उन्हें उनके घृणित कृत्यों तथा विचारधाराओं के लिए न तो धार्मिक और न ही राजनीतिक समर्थन प्राप्त है। अंसारी आतंकवाद–राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय शीर्षक से जामा मस्जिद यूनाइटेड फोरम द्वारा आयोजित दूसरे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में उद्धाटन भाषण कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मानव समाज के अधिकांश लोग गरीब हैं और उनका ध्यान जीविकोपार्जन तथा अपना अस्तित्व बनाए रखने पर ही केन्द्रित रहता है । उनकी गरीबी ही इन अवांछित तत्वों की उन तक पहुंच का माध्यम बनती है और इसी के माध्यम से छोटे-मोटे अतिवादी तत्वों को अपने घृणित कार्यों को जारी रखने का अवसर प्राप्त होता है तथा राजनीतिक प्रशासन और धार्मिक तथा नैतिक नेतृत्व की असफलता से इन तत्वों को फलने-फूलने का अवसर प्राप्त होता है ।
उप-राष्ट्रपति ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की अतिवादिता वर्तमान की पैदावार नहीं है । वैश्विकरण तथा तकनीकों ने न केवल इसकी पहुंच को अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचा दिया है बल्कि इसके प्रभाव को भी अत्यंत विनाशकारी बना दिया है आज यह केवल एक देश, क्षेत्र तथा समाज तक ही सीमित नहीं रह गया है । आज शोषित ही नहीं बल्कि शोषक वर्ग ने भी इसे अपना माध्यम बना लिया है । यह न केवल आम जीवन में बाधा उत्पन्न करता है बल्कि आम निर्दोष लोग ही इसके शिकार होते हैं । इसीलिए इसे कायरता, अनैतिक तथा दुराचार की संज्ञा दी जाती है । यद्यपि इसे किसी व्यवस्था विशेष तक सीमित नहीं कहा जा सकता, फिर भी विभिन्न धर्मावलंबियों पर आतंकवाद का लेबल लगा दिया जाता है, वो लोग जो इस्लाम या किसी अन्य धर्म को आतंकवाद का उद्गम मानते हैं । वो या तो इतिहास की जानकारी नहीं रखते या पूर्वाग्रहों का प्रदर्शन करते हैं ।
उन्होंने कहा कि कोई भी मानव समाज अपने आप में परिपूर्ण नहीं है। कमियां और शिकायतें हर हाल में मौजूद रहती हैं जो कभी-कभी इतनी तीव्र हो जाती हैं कि मानवोचित संवेदनाओं को भी अपमानित कर देती हैं । दरअसल वर्तमान में राजनीतिक अतिवादी तथा रूढिवादी तत्वों को तथाकथित अवरोधक आंदोलनों और तथाकथित क्रांतियों के रूप में अपनी अवांछित गतिविधयां जारी रखने के अवसर, संपर्क और संचार माध्यामों से ही प्राप्त होते हैं । वैसे भी राजनैतिक संघर्ष के लिए अतिवादिता और विवेकहीन हिंसा का आह्वान करना आम आदमी को शिक्षा के माध्यम से अधिकारित करने और उसे उसके उद्देश्य की पूर्ति के लिए शांतिपूर्ण ढंग से समझा-बुझाकर सक्रिय करने की तुलना में आसान होता है । इसलिए जामा-मस्जिद युनाइटेड फोरम की ओर से, इस सम्मेलन के रूप में की गयी यह पहल राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद की समस्या को समझने और उसके समाधान की दिशा में सहायक सिध्द हो सकती है ।