उत्‍तराखण्‍ड में जातीय समीकरण कांग्रेस के खिलाफ

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bjp,congressचन्‍द्रशेखर जोशी ,

आई एन वी सी ,

देहरादून ,

उत्‍तराखण्‍ड में ब्राहमण खेमे से यह हवा चलाई गयी है कि राहुल गांधी “ब्राह्म्ण” परस्‍त हैं इसलिए ब्राहमण मुख्‍यमंत्री की कुर्सी भयंकर हिमालयी सुनामी के बाद भी नही हिली। वही उत्‍तराखण्‍ड में भाजपा प्रदेश अध्‍यक्ष राजपूत तथा भाजपा के राष्‍टीय अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह का बडा लाभ भाजपा को मिलना तय माना जा रहा है जबकि कांग्रेस के एकमात्र बाहमण नेता एनडी तिवारी का भी आशीर्वाद लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्‍या पर उत्‍तराखण्‍ड के ब्राहमण नेता के साथ नही है, उत्‍तराखण्‍ड में 60 प्रतिशत राजपूत बिरादरी लगातार अपनी उपेक्षा से खिन्‍न होकर कांग्रेस के खिलाफ एकजुट होती जा रही है, मजे की बात यह है कि कांग्रेस की राजपूत बिरादरी को मुस्‍लिम व बाहमण वर्ग का भी पूर्ण समर्थन है, ऐसे में इस बार उत्‍तराखण्‍ड में कांग्रेस जातीय समीकरण में मात खा सकती है, क्‍योंकि कांग्रेस के ब्राहमण मुख्‍यमंत्री से जहां ब्राहमण मतदाता नहीं जुट पाये है वही राजपूत नेताओं के साथ एक मजबूत समीकरण बनकर तैयार हुआ है, इसमें देरी से कांग्रेस का उत्‍तराखण्‍ड में सूपडा साफ होना तय माना जा रहा है, इसका प्रभाव उत्‍तराखण्‍ड समेत उत्‍तर प्रदेश में भी पडना तय माना जा रहा है, वहीं उत्‍तराखण्‍ड के मुख्‍यमंत्री न तो ब्राहमण वर्ग पर ही पकड बना पाये तथा न ही सिख व मुस्‍लिम समाज पर, जिससे  जातीय समीकरण कांगेस के खिलाफ जाता दिख रहा है, सिर्फ अपने कांग्रेस विरोधी पिता की लोकप्रियता के कारण सत्‍ताशीन हुए मुख्‍यमंत्री कांग्रेस के पक्ष मे न तो ब्राहमण तथा न ही राजपूत तथा न ही मुस्‍लिम वर्ग को एकजुट कर पाये, जबकि कांग्रेस के ठाकुर  मतदाता लगातार अपनी उपेक्षा से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से लगातार छिटकते जा रहे हैं, वही  बिहार के कलमकार नवल किशोर कुमार लिखते हैं कि आज भी भारतीय समाज मनुवादी व्यवस्था के सिद्धांतों पर ही चल रहा है। कई लोग कहते है कि राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी और उनके पिता फ़िरोज गांधी पारसी थे। लेकिन इससे यह कैसे साबित होता है कि राहुल गांधी ब्राह्म्ण नहीं हैं। मूल बात तो यही है कि जो ब्राह्म्णवादी विचारों का पालन करता है अगर उसे ब्राह्म्ण नहीं कहा जाये तो क्या कहा जाये। जो लोग फ़िरोज गांधी के कारण राहुल गांधी को ब्राह्म्ण मानने से इन्कार करते हैं वे इस बात को क्यों नहीं समझना चाहते कि भारत में दो तरह के धर्म हैं। एक वे धर्म जिनका अपना अस्तित्व है और दूसरा वे धर्म हैं जिनका अपना अस्तित्व नहीं है। ऐसे धर्मों को परजीवी धर्म कहा जा सकता है। रही बात राहुल गांधी के ब्राह्म्ण होने की तो उसकी सबसे बड़ी वजह उनका और उनकी पार्टी का आचरण है। राहुल ब्राह्मण इसलिए भी हैं कि वे ब्राह्म्णवादियों के जैसे वर्चस्वता के लिए सभी प्रकार के छल करने का सामर्थ्य रखते हैं और करते भी हैं। परिवारवाद ब्राह्म्ण होने का सबसे बड़ा प्रमाण है। कभी कभी तो मैं इस निष्कर्ष पर पहूंचता हूं कि समाज में वे सारे लोग जो नई राह के बजाय सदियों से चली आ रही परंपरा को कायम रखना चाहते हैं, वे ब्राह्म्ण हैं। कहने का आशय यह कि अगर कोई धोबी जाति का व्यक्ति अपने बच्चों को धोबी का काम करने के लिए प्रेरित करे तो वह धोबी नहीं है, वह ब्राह्म्ण है। अगर वह अपनी संतान को अपने पारंपरिक कार्य से अलग और बेहतर करने का सामर्थ्य प्रदान करता है तो वह ब्राह्म्ण नहीं है। क्योंकि ऐसा कर उसने ब्राह्म्णवाद जिसका मूल आधार वर्ण आधारित कार्य व्यवस्था है उसका उल्लंघन करता है। खैर राहुल गांधी ब्राह्म्ण हैं इसका एक और प्रमाण यह भी कि वे पूंजीवादी व्यवस्था का संपोषक हैं। श्रम आधारित सामाजिक व्यवस्था का समुचित विकास उनके एजेंडे में ही नहीं है। अगर वे और उनकी पार्टी के लोग ब्राह्म्ण नहीं होते तो देश में खाद्य सुरक्षा विधेयक की नौटंकी नहीं हुई होती। सबके पास खेत होता और सब खेती करने और अपने लिए अनाज पैदा कर सकते थे। लेकिन भूमि सुधार कानून रहने के बावजूद अगर देश में भूमि सुधार लागू नहीं हो सका है तो इसकी सबसे बड़ी वजह कांग्रेस का ब्राह्म्णवादी चरित्र ही है।

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