**उत्तर प्रदेश में जारी शह-मात का खेल

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**निर्मल रानी

        देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा के आम चुनावों का समय जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है राज्य की राजनीति में वैसे-वैसे तेज़ी से उबाल भी आता जा रहा है। राज्य की सत्ता पर अपना परचम लहराने की फराक में लगे सभी प्रमुख राजनैतिक दल मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बड़े से बड़ा सियासी हथकंडा अपनाने में लगे हैं। क्योंकि सभी राजनैतिक दल इस बात को बखूबी समझते हैं कि 80 लोकसभा सीटों वाले इस देश के सबसे बड़े राज्य पर फतेह पाने का अर्थ होता है दिल्ली दरबार की अपनी राह आसान करना। राजनैतिक दलों द्वारा जारी शह-मात के इस खेल में ज़ाहिर है सत्तारुढ़ बहुजन समाज party अपनी चालें चलने में सबसे आगे है क्योंकि उसके पास सत्ताशक्ति, धनशक्ति होने के साथ-साथ लोकलुभावनी योजनाओं को वैधानिक रूप से क्वउछालनें व यथासंभव उन्हें लागू करने की भी ताकत है। इसके अतिरिक्त चुनावी वर्ष होने के कारण बी एस पी चुनाव तिथि घोषित होने तक दोनों हाथों से राज्य के खज़ाने को जनकल्याणकारी योजनाओं तथा बहुमूल्य विज्ञापनों के माध्यम से इन्हें प्रचारित करने के नाम पर लुटाते हुए भी देखी जा सकती है।

                अपने ऐसे ही कथित लोकलुभावने अभियान के अंतर्गत् बसपा प्रमु ा व राज्य की मु यमंत्री मायावती ने पिछले दिनों उत्तरप्रदेश को चार राज्यों में विभाजित किए जाने का नया शगूफा भी छोड़ दिया है। गोया उन्होंने ठहरे हुए पानी में पत्थर फेंकने का प्रयास किया है। उनकी इस घोषणा के पक्ष और विपक्ष में जो भी बहस छिड़ी है उसमें एक बात तो सभी ओर से सामने आ रही है कि हो न हो यह उनका महज़ एक चुनावी स्टंट है। जबकि पूरे उत्तर प्रदेश की जनता जिसकी भावनाएं एकीकृत उत्तर प्रदेश राज्य से सिर्फ इसलिए जुड़ी हुई हैं क्योंकि वे स्वयं को प्रदेश के सबसे बड़े राज्य का निवासी समझती है। ऐसे लोग राज्य के बंटवारे के पक्ष में कतई नहीं हैं। हां कुछ नाममात्र क्षेत्रीय नेता ऐसे अवश्य हैं जो अपनी राजनैतिक हैसियत को भलीभांति समझते हैं तथा यह जानते हैं कि उनमें उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में अपना प्रभाव जमा पाने या राज्यव्यापी लोकप्रियता अर्जित कर पाने की क्षमता नहीं है, वे ज़रूर राज्य के बंटवारे की बात कभी-कभार करते रहते हैं।

                जहां तक कुशल प्रशासन का प्रश्र्न है तो इस दृष्टिकोण से भी राज्य की आम जनता राज्य का बंटवारा किए जाने के पक्ष में होने के बजाए वर्तमान राजनैतिक ढांचे को ही भ्रष्टाचार मुक्त,पारदर्शी तथा çज़ मेदार देखना चाहती है। आम लोग चुस्त-दुरुस्त प्रशासनिक व्यवस्था के पक्षधर हैं। राज्य के लोग सिर्फ राज्य का विकास चाहते हैं। उनकी दिलचस्पी नए राज्यों के बजाए ऐसी राजनैतिक व प्रशासनिक व्यवस्था में है जो राज्य के प्रत्येक व्यक्ति को रोटी, कपड़ा और मकान मुहैया करा सके। सभी को रोज़गार के समान अवसर प्राप्त हो सकें तथा उत्तर प्रदेश से सांप्रदायिकता व जातिवाद का सफाया हो सके। स्वास्थय, सड़क, बिजली-पानी जैसी आम ज़रूरत की चीज़ें सभी को उपलब्ध हो सकें। उत्तर प्रदेश में नए çज़लों का सृजन करने में महारत रखने वाली मायावती द्वारा राज्य में बनाए गए कई çज़ले अभी भी ऐसे हैं जहां कि çज़ला मु यालय तक नहीं बन सका है। ऐसे में यदि केवल राजनैतिक दृष्टिकोण से राज्य को चार भागों में बांटने की घोषणा कर भी दी गई तो पहले से ही आर्थिक बोझ तले दबे इस विशाल राज्य को कितने बड़े आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा इसका अंदाज़ा स्वयं लगाया जा सकता है।

                छोटे राज्यों के गठन की वकालत करने वाले कुछ लोग हरियाणा,छत्तीसगढ़ तथा उत्तरांचल जैसे राज्यों के विकास का उदाहरण पेश करते हैं। जहां तक हरियाणा का प्रश्र्न है तो इसके विकास में क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों का बहुत बड़ा योगदान है। कुछ ऐसी ही स्थिति उत्तराखंड की भी है। परंतु यदि हम छत्तीसगढ़ की बात करें तो उस राज्य में अपने अस्तित्व में आने के 11 वर्षों के भीतर जहां विकास संबंधी तमाम कार्य हुए हैं वहीं यह राज्य नक्सली समस्या से भी इस कद्र जूझ रहा है कि देश का सबसे बड़ा नक्सल प्रभावित राज्य कहा जाने लगा है। इसी प्रकार झारखंड राज्य को देखें तो इस राज्य ने भी राजनैतिक पतन की सारी सीमाएं लांघते हुए देश के इतिहास में पहली बार राज्य को मधुकौड़ा जैसा भ्रष्ट, लुटेरा व अपराधी प्रवृति का मु यमंत्री दिया है। उत्तराखंड में भी भ्रष्टाचार के तमाम कस्से मुख्यमंत्री स्तर पर सुने जाते हैं। लिहाज़ा यह कहना कि राज्य के बंटवारे से राज्य का विकास सुनिश्चित होता है तथा प्रशासनिक व्यवस्था सुदृढ़ होती है, केवल यही तथ्य सही नहीं है बल्कि इसके कई नकारात्मक परिणाम भी सामने आते हैं जिनमें सबसे बड़ा बोझ तो तत्काल पड़ने वाले आर्थिक संकट का ही होता है। बहरहाल, मायावती को उत्तर प्रदेश को चार राज्यों में बांटने की अपनी इच्छा ज़ाहिर करने पर राज्य के अन्य किसी दल के किसी नेता का समर्थन भले ही न मिला हो परंतु पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आवाज़ समय-समय पर बुलंद करने वाले चौधरी अजीत सिंह जोकि अभी कुछ दिन पहले कांग्रेस party से हाथ मिला बैठे थे उन्होंने मायावती की इस घोषणा का ज़रूर स्वागत किया है।

                उत्तर प्रदेश में राजनैतिक दलों के मध्य जारी शह-मात के इसी खेल में जहां इस बात के कयास लगाए जा रहे हैं कि मायावती प्रदेश में ब्राह्मण मतों को लुभाने के सभी हथकंडे अपनाने के बाद अब मुस्लिम मतों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए मुस्लिम आरक्षण का क्वकार्डं खेल सकती है। परंतु उनकी ऐसी किसी संभावित चाल से पहले ही समाजवादी party ने आज़म खान को राज्य का मु यमंत्री बनाए जाने की घोषणा कर मुस्लिम मतों को आकर्षित करने की चाल चल दी है। प्रदेश के पूर्व मु यमंत्री तथा 6 दिसंबर 1992 की बाबरी मçस्जद विध्वंस की घटना के प्रमुख çज़ मेदार समझे जाने वाले कल्याण सिंह से क्षणिक मित्रता गांठने के बाद मुलायम सिंह यादव की समाजवादी party को राज्य के मुस्लिम मतदाताओं के कोपभाजन का जिस प्रकार शिकार होना पड़ा था तथा पिछले संसदीय चुनाव में उन्हें उसका नतीजा भुगतना पड़ा था अब उसी सपा का यह आंकलन है कि संभवतज् आज़म खान को अपनी party की ओर से राज्य का अगला मु यमंत्री घोषित करने के बाद मुस्लिम मतदाताओं की क्षति की भरपाई की जा सकेगी।

                उधर कांग्रेस party ने अपने युवराज को ही सीधे तौर पर राज्य के चुनाव अभियान की बागडोर सौंप दी है। कांग्रेस party का यह अंदाज़ा है कि देश की राजनीति का भविष्य समझे जाने वाले राहुल गांधी देश के भावी प्रधानमंत्री होने के नाते राज्य के मतदाताओं को अपनी ओर बखूबी आकर्षित कर सकेंगे। परंतु राजनैतिक अनुभव की कमी के चलते कई बार उनके मुख से कुछ ऐसे शब्द निकलते सुने जा रहे हैं जिसका कि विपक्षी दल अर्थ का अनर्थ बनाकर प्रचारित करने में देर नहीं लगाते। लिहाज़ा जनता के बीच लाख आकर्षण होने के बावजूद उन्हें अपनी वाणी को काफी संयमित व जनता को अपनी ओर आकर्षित करने वाली रखना चाहिए। बेहतर होगा कि वे फलहाल जनता के मध्य अपनी माता सोनिया गांधी की ही तरह नपा-तुला लिखित भाषण लेकर जाया करें। बहरहाल, मायावती सरकार में खामियां निकालना तथा मनरेगा जैसी केंद्र सरकार की लोकहितकारी योजना में कथित रूप से राज्य सरकार की मिलीभगत से होने वाले व्यापक भ्रष्टाचार को उजागर करना कांग्रेस party का प्रमुख हथियार है।

                इसी प्रकार भारतीय जनता party भी राज्य में भ्रष्टाचार, अराजकता तथा प्रशासनिक विफलताओं को अपना चुनावी मुद्दा बना रही है। भाजपा की भी नज़रें राज्य के अल्पसं यक मतदाताओं पर टिकी हैं। इस सिलसिले में लाल कृष्ण अडवाणी द्वारा निकाली गई जनचेतना यात्रा जहां अयोध्या से होकर नहीं गुज़री, वहीं इस बात के भी समाचार मिल रहे हैं कि भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी समेत कई शीर्ष party नेता गुजरात के विवादित मु यमंत्री नरेंद्र मोदी को राज्य के चुनाव प्रचार में बुलाने के पक्ष में नहीं हैं। उधर पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े एक अल्पसं यक मोर्चे द्वारा लखनऊ में एक ऐसा स मेलन बुलाया गया जिसमें कई प्रमुख मुस्लिम नेताओं को भी आमंत्रित किया गया तथा भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की गई। बहरहाल, चुनाव का समय करीब आते आते अभी सत्ता के सभी दावेदार राजनैतिक दलों की ओर से और भी न जाने क्या-क्या शगूफे छोड़े जाएंगे और शह-मात की ऐसी और भी न जाने कितनी चालें चली जाएंगी।

**निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer)
1622/11 Mahavir Nagar
Ambala City  134002
Haryana
phone-09729229728

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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