ईश निंदा कानून: इस्लामी या ग़ैर इंसानी ?

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– तनवीर जाफरी  –

पाकिस्तान का विवादित एवं बहुचर्चित ईश निंदा कानून इन दिनों एक बार फिर सुिर्खयों में छाया हुआ है। पाकिस्तान की एक ईसाई महिला आसिया बीबी पर यह आरोप था कि उसने 14 जून 2009 को अपनी एक मुस्लिम महिला मित्र से वार्तालाप के दौरान इस्लाम धर्म के आिखरी पैगंबर हज़रत मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग किया था जबकि आसिया बीबी अपने ऊपर लगने वाले इस आरोप का ज़ोरदार खंडन करती रही है। बहरहाल, आसिया के साथ काम करने वाली मुस्लिम महिलाओं द्वारा उसके विरुद्ध पैगंबर हज़रत मोहम्मद के अपमान का मामला दर्ज करा दिया गया और निचली अदालत के बाद उच्च न्यायालय ने भी इस मामले में आसिया बीबी को मौत की सज़ा सुना दी। इस सज़ा के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में आसिया की अपील मंज़ूर हो गई जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बैंच ने गत् 8 अक्तूबर को अपना फैसला सुरक्षित कर लिया। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश जस्टिस मियां सािकब मीर ने अपना अभूतपूर्व निर्णय सुनाते हुए सभी निचली अदालतों के फैसलों को रद्द करते हुए यह निर्णय सुनाया कि-‘आसिया बीबी की सज़ा वाले फैसले को नामंज़ूर किया जाता है और यदि अन्य किसी मामले में उनपर कोई मुकद्दमा नहीं है तो आसिया को फौरन रिहा किया जाए’।


आसिया बीबी के मामले में अपना फैसला देते हुए अदालत ने कुछ और ऐसी टिप्पणियां भी जोड़ी हैं जो पाकिस्तान में ईश निंदा कानून से संबंधित उग्रता,आक्रामकता,हिंसा अन्याय तथा कट्टरपंथ को उजागर करती हैं। उदाहरण के तौर पर जस्टिस आसिफ सईद खोसा ने यह तो स्वीकार किया कि पैगंबर हज़रत मोहम्मद अथवा कुरान शरीफ का अपमान करने की सज़ा उम्र कैद अथवा सज़ा-ए-मौत है। परंतु उन्होंने साथ-साथ यह भी कहा कि इस तरह का गलत व झूठा इल्ज़ाम भी लोगों पर लगा दिया जाता है। इसी प्रकार के मशाल खां व अयूब मसीह जैसे मुकद्दमों का हवाला देते हुए अदालत ने यह भी कहा कि गत् 28 वर्षों में अदालत का निर्णय आने से पूर्व ही 62 आरोपियों की इस कानून के समर्थकों द्वारा स्वयं ही हत्या कर दी गई। गौरतलब है कि ईश निंदा कानून की पुनर्समीक्षा करने के समर्थक पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तासीर की 2011 में उन्हीं के एक अंगरक्षक मुमताज़ कादरी द्वारा हत्या कर दी गई थी। वे ईश निंदा कानून के विरोधी थे। इस संदर्भ में एक बात और भी अत्यंत चिंताजनक है कि जब-जब किसी हत्यारे द्वारा ऐसे किसी व्यक्ति की हत्या की गई तब-तब उस हत्यारे को कट्टरपंथी पाक अवाम का भरपूर समर्थन हासिल हुआ है। यहां तक कि सलमान तासीर के हत्यारे मुमताज़ कादरी पर तो अदालत की पेशी के दौरान स्वयं वकीलों के एक समूह द्वारा फूलों की वर्षा तक की गई।

इस समय आसिया बीबी के संबंध में अदालती फैसला आने के बाद पूरे पाकिस्तान में एक बार फिर उबाल आया हुआ है। एक ओर तो पूरा विश्व आसिया बीबी की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। पाकिस्तान में आम लोगों को यह पता ही नहीं कि रिहाई के बाद आसिया बीबी को किस जगह पर रखा गया है। आसिया बीबी के वकील के देश छोडक़र चले जाने की खबर है। उसके पति आशिक़ मसीह द्वारा एक वीडियो संदेश में ब्रिटेन,अमेरिका व कनाडा के नेताओं से मदद मांगी जा रही है तो दूसरी ओर स्कॉटलैंड के ईसाई नेताओं द्वारा आसिया बीबी को सकॉटलैंड में शरण देने की मांग की गई है। उधर पाकिस्तान के लगभग सभी प्रमुख शहरों में कट्टरपंथी कठमुल्लों द्वारा आसिया बीबी को फांसी दिए जाने की मांग तो की ही जा रही है साथ-साथ अदालत को सार्वजनिक तौर पर लानत भी भेजी जा रही है और अदालत के फैसले को स्वीकार करने से इंकार किया जा रहा है। पाकिस्तान में बावजूद इसके कि ईश निंदा कानून व इससे संबंधित मामले चर्चा में तो ज़रूर रहते हैं। परंतु आज तक इस आरोप में किसी भी व्यक्ति को फांसी नहीं दी गई। बजाए इसके इससे संबंधित अधिकतर मामले फजऱ्ी ही पाए गए। 2016 में 40 लोगों को ईश निंदा कानून के तहत मौत या सज़ा-ए-मौत या उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई थी। हां इतना ज़रूर है कि इस कानून की आड़ में कई धर्मस्थलों को कट्टरपंथियों द्वारा तहस-नहस कर दिया गया। यहां तक कि ऐसे कई आरोपियों को भीड़ द्वारा जि़ंदा भी जला दिया गया। 1990 से लेकर अब तक ईश निंदा कानून के आरोपों का सामना करने वाले 60 से अधिक लोगों की हत्याएं हो चुकी हैं। इनमें लगभग आधे आरोपी अल्पसंख्यक समुदाय से संबंधित थे। पाकिस्तान में अब जनता से लेकर अदालत तक में यह धारणा प्रबल हो चुकी है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथी लोग ईश निंदा कानून की आड़ में आपसी दुश्मनी भी निकाल रहे हैं तथा लोगों पर झूठे आरोप लगाकर उन्हें फंसाया जा रहा है।

जहां तक इस कानून की उत्पति का प्रश्र है तो सर्वप्रथम 1860 में अंग्रेज़ों द्वारा धर्म से जुड़े अपराधों को रोकने के लिए यह कानून बनाया गया था। इसके बाद जनरल जिय़ा-उल-हक की हुकूमत में ईश निंदा कानून को और अधिक सख्त बना दिया गया। 1982 में इसमें संशोधन कर पहले कुरान शरीफ के अपमान करने पर मौत की सज़ा या उम्र कैद दिए जाने का प्रावधान किया गया। उसके बाद 1986 में पैगंबर हज़रत मोहम्मद का अपमान किए जाने पर भी उम्र कैद अथवा फांसी की सज़ा तय कर दी गई। आगे चलकर 1991 में पाकिस्तान की शरीया अदालत ने हज़रत मोहम्मद के अपमान के दोषी को केवल फांसी की सज़ा दिए जाने के रूप में परिवर्तित कर दयिा गया। आज पाकिस्तान में धर्म की यही अफीम सिर चढक़र बोल रही है। इस संदर्भ में शरीया अदालतों तथा इनके माध्यमों से सुनाई जाने वाली सज़ा-ए-मौत के पैरोकारों से कुछ सवाल पूछने बेहद ज़रूरी हैं। मिसाल के तौर पर सलमान तासीर के विषय को ही लिया जए तो सलमान तासीर या शाहबाज़ भट्टी ने न तो स्वयं ईश निंदा की थी न ही वे इसके दोषी थे। ऐसे में जिन लोगों ने उनकी हत्या की क्या यह हत्या इस्लामी नियमों,सिद्धांतों या कुरान शरीफ की किसी शिक्षा पर आधारित सोच द्वारा की गई थी? क्या इस्लाम धर्म में हज़रत मोहम्मद के जीवनकाल से जुड़ी कोई ऐसी घटना का जि़क्र कहीं खलीफाओं या इमामों के दौर में दिखाई देता है जिसमें ईश निंदा करने वालों को फांसी पर लटकाया गया हो या उन्हें जि़ंदा जलाकर मारा गया हो? हज़रत मोहम्मद पर कूड़ा फेंकने वाली यहूदी बुज़ुर्ग महिला के बीमार पडऩे पर उनका उसकी खैरियत पूछने के लिए जाना व उसे स्वस्थ होने की दुआएं देने जैसी घटना हमें ईश निंदा करने वालों को जि़ंदा जलाने की ही प्रेरणा देती है?

जो इस्लाम धर्म किसी एक व्यक्ति की हत्या को पूरी मानवता की हत्या बताता हो उस इस्लाम धर्म में ईश निंदा करने वालों को फांसी की सज़ा,सज़ा-ए-मौत या जि़ंदा जलाए जाने जैसी व्यवस्था आिखर कैसे हो सकती है? दरसअल भारत व पाकिस्तान दोनों ही देशों में इस समय ऐसी कट्टरपंथी शक्तियां अपने पांव तेज़ी से पसार रही हैं जो कट्टरपंथी सोच के विस्तार में लगी हुई हें। और आम लोगों को धार्मिक भावनाओं में उलझाकर अपना जनाधार बढ़ाना चाह रही हैं। बेगुनाह लोगों की लाशों पर सवार होकर यह शक्तियां सत्ता तक पहुंचने का सफर आसान करना चाहती हें। पूरे विश्व के उदारवादी समाज को ऐसे लोगों के मानवता विरोधी प्रयासों का मुंह तोड़ जवाब देने की ज़रूरत है। अन्यथा ऐसी इंसानी दुश्मन ताकतों का तेज़ी से होता जा रहा प्रसार पूरे विश्व को बारूद के ढेर पर बिठा देगा।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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