इस घर को आग लग गयी घर के चिराग़ से ?

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– निर्मल रानी –               

 

देश की राजधानी दिल्ली आख़िरकार अशांत हो ही गयी। दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाक़े हिंसा की भेंट चढ़ गए। इस साम्प्रदायिक हिंसा में अब तक भारत माता के ही 28 सपूत अपने जानें गंवा चुके हैं। इनमें एक पुलिसकर्मी भी अपनी ड्यूटी निभाते हुए दंगाइयों के हाथों शहीद हो गया जबकि दो आला पुलिस अधिकारी भी घायल हुए। बड़े पैमाने पर संपत्ति को भी क्षति पहुंचाई गयी है। टी वी तथा सोशल मीडिया पर अनेक ऐसे वी डी ओ वायरल हो रहे हैं जो अत्यंत ह्रदय विदारक हैं। इन वी डी ओज़ को देखकर यह तो पता चलता ही है कि राजनीतिज्ञों के चक्रव्यूह में उलझकर एक आम इंसान किस प्रकार से अपने ही देशवासियों के ख़ून  का प्यासा हो जाता है और हैवानियत की हदों को किस तरह पार कर जाता है। साथ साथ यह भी पता चलता है कि वह पुलिस जिसपर दंगाइयों को नियंत्रित करने का ज़िम्मा है वही पुलिस किस तरह दंगाइयों की भीड़ में शामिल होकर लूट पाट व हिंसा में शरीक होती है। गत दो महीने से भी अधिक समय से दिल्ली में एन आर सी व सी ए ए के विरुद्ध निरन्तर हो रहे धरने व प्रदर्शनों के बाद से ही दिल्ली के माहौल में तनावपूर्ण गर्मी पैदा होनी शुरू हो चुकी थी। पिछले दिनों हुए दिल्ली विधान सभा चुनावों के दौरान इस गर्मी की तीव्रता उस समय और अधिक बढ़ गयी जब कि चुनाव प्रचार के दौरान अशांति पसंद करने वाले कुछ फ़ायर ब्रांड नेताओं को अपने ज़हरीले भाषणों के द्वारा राजधानी को और अधिक ‘प्रदूषित’ करने का मौक़ा मिला। दिल्ली के चुनाव परिणामों को लेकर विश्लेषकों का यही मानना है कि भले ही आम आदमी पार्टी ज़ोरदार तरीक़े से सत्ता में पुनः वापिस क्यों न आ गयी हो परन्तु 2015 में 3 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी का 3 के आंकड़े से 2020 में 8 सीटों तक पहुंचना तथा गत 2015 के चुनाव की तुलना में भाजपा के मतों में  6.3 प्रतिशत की बढ़ौतरी होना इस बात का सुबूत है कि भाजपा नेताओं के फ़ायर ब्रांड भाषणों का निश्चित तौर पर कम ही सही परन्तु कुछ न कुछ प्रभाव ज़रूर हुआ है।
                     
ग़ौर तलब है कि गत 8 दिसम्बर को दिल्ली में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए। भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने इसी चुनावी वातावरण में 20 दिसंबर को एन आर सी व सी ए ए के समर्थन में एक रैली निकाली। इस रैली में वे अपने समर्थकों से नारे लगवा रहे थे कि ‘देश के ग़द्दारों को-गोली मारो सालों को’ । इसी प्रकार 27 जनवरी को दिल्ली के रिठाला विधान सभा क्षेत्र में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी वही उत्तेजना व हिंसा फैलाने वाला आपत्ति जनक नारा उपस्थित भीड़ से पुनः लगवाया। भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने इसी चुनाव के दौरान 23 जनवरी को एक अति आपत्तिजनक ट्वीट किया कि ‘8 फ़रवरी को दिल्ली में हिंदुस्तान व पाकिस्तान का मुक़ाबला होगा’। अर्थात दिल्ली के चुनाव को यह महाशय भारत-पाकिस्तान के मुक़ाबले के रूप में देख रहे थे। इन्हें प्रत्येक भाजपा विरोधी ‘पाकिस्तानी ‘ दिखाई देता है। कपिल मिश्रा के इस आपत्तिजनक ट्ववीट पर संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने उसपर 48 घंटे तक चुनाव प्रचार में भाग न लेने का प्रतिबंध भी लगा दिया था। बहरहाल चुनाव समाप्त हुए,आम आदमी पार्टी ने पुनः सत्ता संभाली परन्तु हार की कसक शायद इन आग लगाऊ नेताओं से सहन न हो सकी। नतीजतन दिल्ली को उस समय दंगों की आग में सुनियोजित तरीक़े से झोक दिया गया जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप दिल्ली में मौजूद थे।
                     
बहरहाल,जैसा कि पहले भी सांप्रदायिक इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है यहाँ भी दर्जनों ‘स्वयंभू देशभक्त दंगाई योद्धाओं’ ने कई जगहों पर एक एक व्यक्ति को घेर कर लाठी-डंडों व लोहे की रॉड आदि से इतना पीटा की उनमें से कई  बुरी तरह ज़ख़्मी लोगों ने दम तोड़ दिया। 

सरेआम गोलियां चलाई गयीं। भीड़ में शेर बन जाने वाले ये बहादुर योद्धा भजनपुरा में एक पीर की मज़ार को भी आग लगाने से बाज़ नहीं आए। यह मज़ार हिन्दू व मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोगों के लिए आस्था का केंद्र थी। दंगाइयों ने अशोक नगर में एक मस्जिद में आग लगा दी।दंगाई भीड़ ने “जय श्री राम” और “हिंदू का हिंदुस्तान” के नारे लगाते हुए जलती हुई मस्जिद के चारों ओर परेड किया और मस्जिद के मीनार पर एक हनुमान ध्वज लगा दिया। इन दंगों में एक नई चीज़ यह दिखाई दी कि अनेक जगहों पर अनेक दंगाइ जहाँ हाथों में लाठी डंडे व रॉड आदि लिए थे वहीँ उन्होंने अपने सिरों पर  हेलमेट भी डाला हुआ था। यह हेलमेट उन  दंगाइयों को सुरक्षा तो प्रदान कर ही रहा था साथ साथ उनकी पहचान छुपाने का काम भी कर रहा था। खुले आम दंगाइयों द्वारा पेट्रोल बम का इस्तेमाल किया गया। कई पत्रकारों की पिटाई की गयी।

नके कैमरे छीने गए। दंगाई, पत्रकारों का भी धर्म पूछ रहे थे। यदि उन्हें लगता की कोई  नाम ग़लत बता रहा है तो वे उसकी पैंट उतरवाकर उसका ‘धर्म चेक’ करते। एक वीडीओ में तो यह भी देखा जा रहा है कि ज़मीन पर गिरे कुछ युवाओं पर पुलिस व कुछ युवा इकट्ठे होकर लाठियों से प्रहार कर रहे हैं तथा  उनसे देशभक्ति दिखाने व राष्ट्रगीत गाने के लिए भी कह रहे हैं। मेहनतकश लोगों की सारी उम्र की कमाई दंगाइयों ने आग की भेंट चढ़ा दी। सैकड़ों मकान व दुकानें राख के ढेर में बदल डालीं। दंगे भड़काकर अपने ही देशवासियों को जान व माल का नुक़सान पहुंचाकर इन ‘सूरमाओं’ को क्या हासिल हुआ यह तो यही जानते होंगे परन्तु एक बार फिर इन दंगों के बीच से ही शांति प्रेम सद्भाव व भाइचारे की वही ‘शम्मा’ रोशन होती नज़र आई जो भारतवर्ष में हमेशा से रोशनहोती नज़र आई है। दंगा प्रभावित क्षेत्र में कई स्थानों पर हिन्दुओं ने मुसलमानों की जान व माल की हिफ़ाज़त की तो कई जगह मुसलमानों ने अपने हिन्दू भाईयों की रक्षा की। मुसलमानों द्वारा मुस्लिम आबादी में एक मंदिर व उसके पुजारी की सारी सारी रात जागकर सुरक्षा की गयी। दोनों समुदाय के लोग दंगा प्रभावित क्षेत्रों में कई जगह शांति व एकता दर्शाने वाली मानव श्रृंखला बना कर खड़े हो गए और दंगाइयों को उनकी मंशा पूरी नहीं करने दिया।
                   
दिल्ली के इन ताज़ातरीन दंगों ने 1984 की ही तरह एक बार फिर वही सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या दिल्ली पुलिस को दंगों को नियंत्रित करने का ऐसा ही प्रशिक्षण हासिल है जैसा की उसने दंगाइयों के साथ दंगे  व आगज़नी में शामिल होकर प्रदर्शित किया है?1984 में भी यही दिल्ली पुलिस इसी भूमिका में नज़र आई थी जैसी कि पिछले दिनों पूर्वोत्तर दिल्ली के प्रभावित क्षेत्र में दिखाई दी।अब जब चारों तरफ़ से दिल्ली पुलिस की आलोचना हो रही है उस समय दिल्ली में दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभवाल द्वारा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया गया है। इन तथाकथित ‘शासकीय चौकसी’ के बीच यह सवाल ज़रूर उठता है कि क्या दंगे भड़काने वालों पर भी कोई कार्रवाई होगी ? क्या  नियंत्रित करने के बजाए दंगों व दंगाइयों को उकसाने व उसमें शरीक होने वाले पुलिसकर्मियों के विरुद्ध कोई कार्रवाई होगी ? या फिर दंगाइयों को पद व मान सम्मान देकर वैसे ही पुरस्कृत किया जाएगा जैसा कि पहले भी कई बार किया जाता रहा है। जो भी हो दंगों में हिन्दू मरे या मुसलमान, मंदिर जले या मस्जिद,आख़िरकार आहत तो मानवता ही होती है। जब भी कोई भारत माता की संतान आहत होती है तो ज़ख्म भारत माता के सीने पर ही लगता है। शायद इन्हीं हालात की तरजुमानी हुए महताब रॉय ताबां फ़रमाते हैं कि –
‘दिल के फफोले जल उठे सीने के दाग़ से’- इस घर को आग लग गयी घर के चिराग़ से’।

 
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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -: E-mail : nirmalrani@gmail.com

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