इस करण को कौनसा करण कहेंगे आप ?*

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{ वसीम अकरम त्यागी **} अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता है सबके जहन में डीएसपी जिया उल हक की कुर्बानी ताजा है। जो कुंडा के गुंडा  की साजिश के तहत शहीद हुऐ थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने उनके परिवार को 50 लाख की आर्थिक सहायता और दो नौकरियां देने का आश्वासन दिया। भाजपाईयों को मुद्दा मिल गया कि प्रदेश सरकार मुस्लिम तुष्टीकरण कर रही है, उधर से चडढीधारी गिरोह भी सक्रिय हुआ उसने भी इस फैसले का विरोध किया आखिर कार हाईकोर्ट को सरकार को नोटिस जारी करना पड़ा जिसमें पूछा गया कि दो नौकरी देने का सरकार का औचित्य क्या है ? बात सही है या गलता यह तो कोर्ट ही बेहतर जानता है। लेकिन आज के अखबारों में प्रकाशित खबर भी इस इसी से मिलती जुलती है जिसमें लिखा है कि पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने सरबजीत के परिवार को एक करोड़ रुपये की आर्थिक सहायता और सरबजीत की दोनों लड़कियों को नौकरी लगभग दे दी है जिनमें से एक तहसीलदार बनेगी और दूसरी स्कूली टीचर।

सवाल ये है  कि क्या सरबजीत कोई प्रशासनिक अधिकारी कोई जांबाज सिपाही था जो लड़ते लड़ते वीरगती को प्राप्त हो गया ? उत्तर सब जानते हैं ……….. नहीं. तो फिर इतना रहम ओ करम क्यों ? और वे राजनीतिक दल चडढीधारी गिरोह के कथित राष्ट्रवादी हिंसावादी सद्स्य अब कहां हैं वे क्यों नहीं कह रहे हैं कि आखिर उसे हीरो क्यों बनाया  जा रहा है। क्यों पंजाब सरकार कैबिनेट सहित उसके अंतिन संस्कार में जाती है ? क्यों राहुल गांधी जो कुंडा तो नहीं पहुंचे मगर पंजाब पहुंच जाते हैं ? आखिर ये माजरा क्या है, जिस दिन सरबजीत की लाश का अंतिम संस्कार हुआ उसी दिन दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद जावेद नाम के कैदी की दूसरे कैदियों ने पीट पीट कर हत्या कर दी क्या उसके लिये कुछ हक नहीं बनता इन राजनीतिक दलों का ?. क्या केवल पाकिस्तान के द्वारा मारे गये कैदियों पर ही सरकार का अब्रे करम बरसेगा ? अगर ऐसा ही है तो फिर उन जवानों को वे सुविधाऐ क्यों नहीं दी गईं जिनका सर पाकिस्तान के फौजियों ने उतार लिया था. सरबजीत पर आखिर इतनी महरबानी किस लिये ? इतना हो हल्ला तो किसी महारुष की मौत पर नहीं मचाया गया था जितना सरबजीत की मौत पर मचाया गया. देश के लगभग सभी टीवी चैनल पंजाब पहुंच गये और पल पल की जानकारी  देते रहे।

कहना सिर्फ यह है कि एक तरफ एक प्रशासनिक अधिकारी की शहादत पर भी ये सब सुविधाऐं नहीं मिल पाती और अगर इनसे आधी सुविधायें मिल भी जाती हैं तो उन पर हौ हल्ला मच जाता है पेड मीडिया के द्वारा शहीद को विधवा को बदनाम करने के तमाम हथकंडे अपनाये जाते हैं। दूसरी तरफ इतनी शान्ति आखिर ये दौगला पन नहीं तो और क्या है। एक देश का नौजवान अधिकारी है दूसरा एक देश के लिये, घुसपैठिया, रॉ का ऐजेंट, एक आतंकवादी, था। तो फिर उसे दो सम्मान यहां दिया गया क्या वह उसका सही मायने में हक़दार भी था ? क्या ये तुष्टीकरण नहीं है ? या सिर्फ तुष्टीकरण वही होता है जो मुसलमानों के साथ होता है उनकी कौम का डीएसपी भी दूसरे समुदाय के एक आम नागरिक के बराबर अहमियत नहीं रखता आखिर ये भेदभाव क्यों है ? और जिया की शहादत पर राजा के बचाव में उतरने वाले भगवा गिरोह के सांसद योगी आदित्यनाथ अब कहां है ? क्या ये तुष्टीकरण नहीं है ? पंजाब सरकार से लेकर केंद्र सरकार क्या तुष्टीकरण नहीं कर रही है ? क्या इसका सटीक जवाब है किसी के पास कि आखिर एक आम नागरिक को शहीद के दर्जे के साथ साथ एक करोड़ रुपये और दो नौकरी क्यों दी गईं हैं ? सवाल लोकतंत्र से है सवाल सरबजीत को हीरो मानने वालों से है और सवाल चडढी धारी गिरोह के साथ साथ इस तहरीर को पढ़ने वाले हर खास ओ आम नागरिक से है।

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वसीम-अकरम-त्यागी,Wasim-Akram,* वसीम अकरम त्यागी
उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में एक छोटे से गांव अमीनाबाद उर्फ बड़ा गांव में जन्म

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एंव संचार विश्विद्यलय से पत्रकारिता में स्नातक और स्नताकोत्तर

समसामायिक मुद्दों और दलित मुस्लिम मुद्दों पर जमकर लेखन। यूपी में हुऐ जिया उल हक की हत्या के बाद राजा भैय्या के लोगों से मिली जान से मारने की धमकियों के बाद चर्चा में आये ! फिलहाल मुस्लिम टूडे में बतौर दिल्ली एनसीआर संवाददता काम कर रहें हैं

9716428646. 9927972718

* *Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely

his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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