इस्लाम पर छाए संकट के काले बादल

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3{ तनवीर जाफ़री }पिछले दिनों इस्लाम धर्म का सबसे खुशियों भरा प्रसिद्ध,पवित्र व लोकप्रिय त्यौहार ईद-उल-फ़ितर पूरे विश्व में मनाया गया। परंतु इस बार की ईद गत् 1400 वर्षों में मनाए गए ईद के त्यौहार की तुलना में सबसे अधिक शोकपूर्ण,भयावह तथा अ$फसोसनाक रही। दुनिया के कई देशों से ईद के दिन भी  उपद्रव,उत्पात,कत्लोगारत,आगज़नी,आत्मघाती हमले व नमाजि़यों की हत्याएं करने जैसे समाचार सुनाई दिए। भारत में तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ,रामपुर तथा सहारनपुर जैसे शहरों में सांप्रदायिक तनाव के कारण पुलिस की कड़ी निगरानी में ईद का त्यौहार बिना किसी जान व माल की क्षति हुए संपन्न हो गया। परंतु इराक,सीरिया,नाईजीरिया,अफगानिस्तान तथा फलीस्तीन जैसे कई देशों में यह त्यौहार आतंक,तबाही व बरबादी का मंज़र बिखेरता नज़र आया। गज़ा में हमास व इज़राईली सेना के मध्य छिड़े युद्ध में इज़राईली सेना ने ईद के दिन भी अपनी बर्बरता जारी रखते हुए गज़ा के रिहाईशी इलाकों में कई हवाई हमले किए जिसमें कई नागरिक मारे गए।

इसी प्रकार नाईजीरिया में बोको हराम नामक आतंकी संगठन के आत्मघाती आतंकियों ने एक के बाद एक, शिया समुदाय की दो मस्जिदों में नमाज़ अदा कर रहे शिया मुसलमानों पर आत्मघाती हमले किए। यहां भी 6 नमाज़ी घटना स्थल पर ही शहीद हो गए जबकि दर्जनों लोग घायल अवस्था में अस्पताल पहुंचाए गए। अफगानिस्तान में राष्ट्रपति हामिद करज़ई के भाई अहमद वली करज़ई को ईद के दिन ही एक आत्मघाती हमलावर द्वारा उनसे गले मिलने के बहाने विस्फोट कर $कत्ल कर दिया गया। इन सबसे भयानक व दिल दहला देने वाला अपराध तथाकथित इस्लामिक स्टेट के आतंकियों द्वारा इरा$क के मौसूल इलाके में अंजाम दिया गया। स्वयं को इस्लामी स्टेट का स्वयंभू सैनिक बताने वाले इन स्याहपेश शैतानों ने मौसूल में दौ सौ से अधिक इसाई लोगों को गिर$फ्तार किया। फिर उन्हें जबरन इस्लाम धर्म स्वीकार करने का आदेश दिया गया। कुछ ईसाई तो ऐसे थे जो अपनी जान बचाने की $खातिर भरी भीड़ में भयवश कलमा पढक़र मुसलमान हो गए। परंतु जिन लोगों ने इन इस्लामी दुश्मन शैतानों के कहने पर कलमा नहीं पढ़ा उन इसाई पुरुषों के सिर काट दिए गए। इतना ही नहीं बल्कि उन क्रूर ज़ालिमों ने इसाई महिलाओं के साथ पहले तो बलात्कार किया उसके बाद उनकी हत्या भी कर दी। इसी तरह कथित इसलामी स्टेट के इन आतंकियों ने अपने सैकड़ों मुस्मिल विरोधियों की भी ईद के ही दिन हत्या कर उनकी लाशों को नदी में फेंक दिया। कुल मिलाकर इस वर्ष की ईद गत्1400 वर्षों की ईद की तुलना में बेहद $गमनाक रही। इसे देखकर यह कहना $गलत नहीं होगा कि इस्लाम धर्म पर इस समय संकट के काले बादल छाए हुए हैं। और इस्लाम को इस समय सबसे बड़ा $खतरा अपने किसी बाहरी दुश्मन,किसी देश अथवा दूसरे धर्म से नहीं बल्कि उन लोगों से है जो आतंक,बर्बरता,अपराध तथा $गैर इस्लामी करतूतों का पर्याय बनने के बावजूद भी स्वयं को ही सच्चा मुसलमान बता रहे हैं।और हथियार,आतंक व दहशत के बल पर दुनिया से जबरन अपनी बात व अपनी ज़हरीली विचारधारा को स्वीकार कराना चाह रहे हैं।दरअसल अल$कायदा का प्रमुख नीति निर्धारक रह चुका अबु बकर अल ब$गदादी स्वयं को इस समय $खली$फा तथा अमीर-अल- मोमनीन जैसे पद नामों से सुशोभित कर रहा है। गौरतलब है कि इस्लामी इतिहास में विश्व के सुन्नी मुसलमान केवल चार $खली$फाओं को ही मानते आ रहे हैं। यह खलीफा थे हज़रत उमर,अबुबकर,उस्मान तथा अली। हज़रत अली को शिया व सुन्नी सभी मुसलमान अमीर-अल-मोमनीन की पदवी से संबोधित करते हैं। अब ज़रा इन $खली$फाओं के जीवन चरित्र की तुलना अबूबकर अल ब$गदादी जैसे दुष्ट व क्रूर व्यक्ति से करिए तो स्वयं पता चल जाएगा कि यह व्यक्ति $खली$फा या अमीर-अल-मोमनीन कहना तो दूर एक इंसान अथवा मुसलमान कहने के योग्य भी है या नहीं? यह दुष्ट आतंकी सरगना स्वयं को खलीफा ही नहीं घोषित कर रहा बल्कि यह अपने-आप को हज़रत मोहम्मद का वंशज भी बता रहा है। इस्लाम के लिए इससे बुरा काला अध्याय और क्या हो सकता है कि अबु बकर जैसे हत्यारे व रोज़दारों व नमाजि़यों की हत्या करने को जेहाद का नाम देने वाले मानवता के सबसे बड़े अपराधी स्वयं को पैगम्बर हज़रत मोहम्मद के वंशज बताने लग जाएं? पैगंबर मोहम्मद के वंशज हज़रत अली थे, हज़रत हसन व हुसैन जैसे इमाम थे। हज़रत मोहम्मद का शजरा अजमेर के महान सूफी संत हज़रत मोईनुदीन चिश्ती व दिल्ली के निज़ामुदीन औलिया जैसे महान संतों व फकीरों से मिलता है। इन लोगों के जीवन में अबु बकर अल बगदादी जैसे नापाक इरादे और क्रूरता की झलक कहीं भी दिखाई नहीं देती।

हज़रत अली,हज़रत इमाम हसन व हुसैन जैसे हज़रत मोहम्मद के वंशजों ने जहां अपनी शहादत दे कर सारा जीवन सच्चाई के रास्ते पर चलते हुए इस्लाम धर्म के समक्ष एक आदर्श प्रस्तुत किया वहीं हज़रत निज़ामुद्दीन व हज़रत मोईनुद्दीन जैसे संतों व $फ$कीरों ने भारत जैसे $गैर इस्लामी देश में भी अपने सद्भाव,प्रेम,तपस्या व अपने बर्ताव के साथ भारतवासियों के दिलों में वह जगह बनाई कि आज भी प्रत्येक भारतवासी उनकी दरगाहों पर अ$कीदत के साथ अपना सिर झुकाता है।
दूसरी ओर स्वयं को खलीफा कहने वाला हत्यारा ब$गदादी अब तक दर्जनों दरगाहों व मज़ारों को ध्वस्त करवा चुका है। उसने सऊदी अरब में हज़रत मोहम्मद के निवास स्थान मक्का शरी$फ तथा हज स्थल को भी ध्वस्त करने की घोषणा कर रखी है। इरा$क में हज़रत अली व हज़रत इमाम हुसैन के म$कबरों व दरगाहों को भी यह दुष्ट तहस-नहस करना चाह रहा है। पै$गंबर हज़रत युनुस की दरगाह को आखिर  इस दुष्ट ने ध्वस्त करा ही दिया। आखिर  किन गुणों के आधार पर अथवा किन शिक्षाओं की बिना पर यह श$ख्स दुनिया के मुसलमानों का नेता या $खली$फा बनना चाह रहा है? यदि इसने छठी शताब्दी के आक्रमणकारी शासकों के रास्ते पर चलने की योजना बनाई है तथा आतंक के दम पर दुनिया पर राज करने की योजना बना रखी है तो यह निश्चित रूप से बहुत बड़ी भूल कर रहा है। इसका सबसे बड़ा सुबूत फ़िलहाल तो यही है कि इस ने ऊत्तरी सीरिया अलीपा से लेकर पूर्वी इरा$क के दियाला तक जिस इस्लामिक राज्य की घोषणा की है तथा उस इस्लामिक राज्य का स्वयंभु खलीफा बन बैठा है उसके उस स्वयंभू राज्य को तथा उसके $खली$फा के पद को लेकर दुनिया के किसी भी देश में समर्थन की अथवा उसे मान्यता दिए जाने की कोई भी आवाज़ सुनाई नहीं दी। संयुक्त राष्ट्र संघ भी किसी ऐसे अवैध राज्य अथवा उसकी नेता की अनदेखी कर रहा है। जबकि दृुनिया के अनेक देश उसकी बर्बरता व उसके नापाक इरादों को लेकर विचलित ज़रूर हैं।

अवैध इस्लामिक स्टेट के बढ़ते हुए आतंकवादी हौसले तथा उन्हें प्राप्त हो रही आर्थिक सहायता व अत्याधुनिक शस्त्र के मध्य इस विषय को लेकर भी दुनिया चिंतित है कि आखिर इन्हें आर्थिक सहायता कहां से प्राप्त हो रही है? पिछले दिनों ए$फ एस बी $फेडेरल,रूस की आतंकवाद विरोधी संगठन की एक ताज़ा रिपोर्ट में इस बात का $खुलासा किया गया कि अबु बकर अल ब$गदादी के लड़ाकों को सऊदी अरब के वहाबी शासक शाह अब्दुल्ल द्वारा आर्थिक सहायता पहुंचाई जा रही है। सऊदी अरब से यह पैसा लंदन के एक बैंक में तारि$क अल हाशिमी नामक एक व्यवसायी के खाते में जमा किया जाता है। हाशिमी इन पैसों को अज़ अलदौरी नामक व्यक्ति के खाते में अ$कलीम कुर्दिस्तान के बैंक में स्थानांतरित करता है जहां से यह पैसा तेल के पैसों की लेन-देन के नाम पर किश्तों में निकाल कर आईएसआईए के आतंकियों तक पहुंचा दिया जाता है। इसके अतिरिक्त सूत्र यह भी बताते हैं कि अमेरिका सहित कई और पश्चिमी देशों की ओर से भी आईएसआईएस के लड़ाकों को इसी प्रकार सहायता पहुचाई जा रही है। यह देश अ$कलीम कुर्दिस्तान के बैंक में रहबर बारज़ानी नामक व्यक्ति के खाते में पैसे जमा करते हैं जो बाद में दाईश आतंकियों को पहुंचा दिए जाते हैं। ज़ाहिर है मानवता के दुश्मनों को आर्थिक सहायता पहुंचाने वाले लोग भी इनके हाथों होने वाले अपराधों के भागीदार बनने से स्वंय को अलग नहीं रख सकते। सऊदी अरब के शासकों तथा अमेरिका के बीच गहरी दोस्ती के मध्य यह सवाल भी उठ रहा है कि अल$कायदा सरगना ओसामा बिन लाडेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में ढंढ कर मार गिराने वाले अमेरिाका ने 2004 में इसी स्वयंभू $खली$फा अबु बकर अल ब$गदादी को गिर$फतार करने के बावजूद आखर रिहा क्यों कर दिया था?

इस तथाकथित इस्लामिक एसटेट के बढ़ते आतंक तथा इसके स्वयंभू खलीफा अबु बकर अल बगदादी के नापाक इरादों के मद्देनज़र पूरे विश्व के सभी धर्मों व समुदायों के लोगों को मानवता के इन हत्यारों के विरुद्ध यथाशीघ्र एकजुटहोने की ज़रूरत है। राक्षसी प्रवृति के इन स्याहपोश लोगों के कारण केवल इस्लाम धर्म पर ही संकट के बादल नहीं मंडरा रहे बल्कि यह शक्तियां व ऐसी विचारधारा पूरे विश्व के लिए तथा मानवता के लिए भी एक बहुत बड़ा खतरा है।

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri –  columnist and AuthorAuthor Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.Contact Email :tanveerjafriamb@gmail.com
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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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