इमाम अहमद बुखारी के बीच मुस्लिम नेता बनने की होड़**

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राजनाथ सिंह सूर्य*,,
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी द्वारा सत्ता संभालने के बाद जिस प्रकार की होड़ अखिलेश मंत्रिमंडल में एक मंत्री आजम खां और दिल्ली की जामा मिस्जद के इमाम अहमद बुखारी के बीच मुस्लिम नेता बनने की होड़ शालीनता की सभी सीमाएं तोड़ती हुईं आगे बढ़ती जा रही हैं उससे ऐसा लगता है कि सरकार मुसलमानों द्वारा, मुसलमानों का और मुसलमानों की भर होकर रह गई है। आजम खां और अब्दुल्ला बुखारी ने मुलायम सिंह यादव और सरकार को कैसे ही बंधक बना लिया है जैसे यूपीए द्वितीय की केंद्र सरकार को पहले डीएमके और अब ममता बनर्जी ने बना रखा है। अखिलेश मंत्रिमंडल के संसदीय कार्यमंत्री आजम खां उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल राजेश्वर राव को सरेबाजार फांसी देने लायक व्यक्ति बता रहे हैं और बुखारी यह धमकी दे रहे हैं कि यदि उनके अनुसार सरकार न चली तो उसे जैसे बैठाया है वैसे ही गिरा भी देंगे। यह शायद वह इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इस बार उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहले किसी निर्वाचन की अपेक्षा सबसे ज्यादा उनहत्तर मुस्लिम विधायक जीतकर आये हैं जिनमें छियालिस समाजवादी पार्टी के हैं। आजम खां अखिलेश यादव सरकार से सीधे यह नहीं कह रहे हैं कि उनके ड्रीम प्रोजेक्ट जौहर विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए पहल करे बल्कि यह कहकर कि पूर्ववर्ती मुलायम सिंह सरकार से पारित मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय विधेयक को जिन राज्यपाल राजेश्वर राव ने स्वीकृति नहीं प्रदान किया था उन्हें चौराहे पर फांसी दे दिया जाना चाहिए, उन्हें धमकाकर काम करवाना चाहते हैं ताकि मुसलमानों में उनकी धाक कायम हो सके। मौलाना मोहम्मद अली जौहर रामपुर के निवासी थे, बंगाल को विभाजित करने का अंग्रेजों का प्रयास जब असफल हो गया तो ाउन्होंने 1906 में ढाका के नवाब के सौजन्य से एक सम्मेलन का आयोजन कर मुस्लिम लीग की स्थापना कराई। इस सम्मेलन में मोहम्मद अली जौहर ने एक “ग्रीन चार्ट´´ पेश किया था, जो पाकिस्तान का आधार बना। उन्हें और उनके भाई शौकत अली को गांधी जी अपना दायां और बायां हाथ कहते थे और मोहम्मद अली को कांग्रेस का अध्यक्ष भी बनवाया था। लेकिन उनका कथन था कि कोई मुस्लिम गुण्डा भी गांधी के मुकाबले ज्यादा अच्छा है। गांधी से अली बंधुओं को अपना दायां और बायां हाथ बताया था आजम और बुखारी मुलायम सिंह के लिए राहु और केतु बन गए हैं। भारत को सांप्रदायिक और जातीय आधार पर विभाजित कर देश की एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने जो पहला गोलमेज सम्मेलन बुलाया था उसमें दोनों भाई “मुस्लिम प्रतिनिधि´´ के नाते शामिल होने लंदन तो पहुंच गए थे, लेकिन सम्मेलन से पूर्व मोहम्मद अली का निधन हो गया और उन्होंने भारत को अपने दफनाने लायक जमीन भी नहीं समझी थी। उनकी विरात के मुताबिक उन्हें अरब में दफनाया गया। गोलमेज सम्मेलन से पूर्व उन्होंने ब्रिटिश गृह सचिव को एक पत्र लिखकर कई मुस्लिम बहुल प्रदेश गठित करने का सुझाव दिया था, जिसमें एक प्रदेश की सीमाएं वहीं थी जिसे हरित प्रदेश के नाम पर गठित करने के नारे हर चुनाव के पहले चौधरी चरण सिंह के उत्तराधिकारी अजीत सिंह लगाने लगते हैं। आजम खां ऐसे “देशभक्त´´ के नाम पर विश्वविद्यालय बनाना चाहते हैं और उसमें बाधक बनने वालों को चौराहे पर फांसी देने का फतवा जारी करते हैं। मुलायम सिंह, अखिलेश सावधान।
जामा मिस्जद के इमाम अहमद बुखारी अपने पिता, अब्दुल्ला बुखारी के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। मिस्जद का इमाम वक्फ बोर्ड का कर्मचारी भर होता है। उसका दायित्व नमाज पढ़ाना और बदले में वेतन लेना होता है। अब्दुल्ला बुखारी ने न केवल जामा मिस्जद पर कब्जा कर लिया बल्कि सियासत में दखलंदाजी करने लगे हैं। पिता के समान पुत्र भी हवा का रूख के साथ चलने में माहिर है। अब्दुल्ला बुखारी ने 1977 के आम चुनाव में हिन्दीभाशी क्षेत्रों का व्यापक दौरा कर कांग्रेस को हराने का अभियान चलाया। उनका नारा था मैं केवल मुसलमानों का ही नहीं हिंदुओं का भी इमाम हूं। मोरारजी मंत्रिमंडल को वे अपने बस में नहीं कर पाये तो जनता पार्टी सरकार के विरोधी हो गए। उस मंत्रिमंडल में केवल एक सदस्य हेमवती नंदन बहुगुणा इमाम के “भक्त´´ बने रहे और एक लंबे असेZ तक वे ही मुस्लिम नेता के रूप में स्थापित रहे। अहमद बुखारी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय समाजवादी पार्टी का पल्ला थामा न केवल अपने दामा को टिकट दिलवाया बल्कि जमानत भी गंवा देने पर विधान परिशद का सदस्य बनवाकर दम लिया। साथ ही मुलायम सिंह को यह चेतावनी भी दे डाली कि यदि और मुसलमान मंत्री नहीं बनाए गए तथा महत्वपूर्ण पदों पर मुस्लिम अधिकारी नहीं नियुक्त किए गए तो वे सरकार को गिरा भी सकते हैं। अखिलेश यादव की सरकार की शुरूआत घोशणा पत्र में मुस्लिम एजेंडे से हुई है। कब्रिस्तानों की चहारदीवारी से घिरवाना और केवल मुस्लिम बालिकाअें को िशक्षा और विवाद के लिए बत्तीस हजार रूपया सालाना देने का एलान करना। अहमद बुखारी की धमकी को ध्यान में रखकर खोज-खोजकर मुस्लिम आईएएस और आईपीएस को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी जा रही है। बहुगुणा के बाद मुलायम सिंह ही मुस्लिम नेता के रूप में स्थापित हैं इसलिए उनके विरोधी उन्हें मौलाना मुलायम सिंह भी कहने लगे। एक ओर सरकार अहमद बुखारी को संतुश्ट करने में लगी हैं तो तो दूसरी ओर आजम खां अपनी स्वतंत्र सत्ता की धमक दिखाने में लगे हैं। उन्होंने हज कमेटी का गठन किया जिसमें विधान परिशद के सदस्य अलीगढ़ के ख्वाजा हलीम को शामिल कर लिया है जिन्हें चुनाव के दौरान अखिलेश ने पार्टी विरोधी गतिविधि के आरोप में निकाल दिया था। आजम खां ने ऐसा कर एक तीर से दो िशकार किया है। एक तो अखिलेश से अपनी औकात बता दिया है। दूसरी बुखारी के दामाद को कमेटी में शामिल होने से रोक दिया है क्योंकि ख्वाजा का कार्यकाल पांच मई को समापत हो जाने के बाद बुखारी का दामद विधान परिशद में सपा का अकेला प्रतिनिधि रह जाएगा। आजम खां मंत्रिमंडल के उन सदस्यों में शामिल हैं जो अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाए जाने का अंत तक विरोध करते रहे। विधान परिशद के लिए उनके नामांकन के समय भी संसदीय कार्य मंत्री भी होते हुए नदारत रहे। आजम खां और अहमद बुखारी की इस वर्चस्व की तकरार में कभी इधर और कभी उधर झुकने के कारण मुलायम सिंह एक विकट संकट में फंस गए हैं जो 2014 में मुस्लिम के मतों के सहारे प्रधानमंत्री पद पाने का सपना संजोए हुए हैं। ठीक पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री मायावती के समान। जैसे उत्तर प्रदेश के सत्ता संभालने के बाद मायावती का नारा था दिल्ली पर कब्जा करने का वैसा ही समाजवादी पार्टी का भी नारा है मुलायम को प्रधानमंत्री बनाकर दम लेंगे। आजम और अहमद की मुखरता भले ही एक दूसरे के खिलाफ हो उसने अन्य मुस्लिम संगठनों के सत्ता में हक के लिए उभारना शुरू कर दिया है। पसमांदा मुस्लिम संगठन इसमें सबसे आगे हैं। जिसका दावा है कि अस्सी प्रतिशत मुसलमान बिरादरी उसके दायरे में आती है।
उत्तर प्रदेश की गद्दी अपने बेटे को सौंपने के पूर्व मुलायम सिंह यादव स्वयं तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उन्हें सत्ताधारी देखने की प्रबल मुस्लिम आकांक्षा हमेशा इसलिए रही है क्योंकि राजनेताओं में वही “मुस्लिम फेस´´ के रूप में पहचान बनाए हुए हैं। यही कारण है कि वे उत्तर प्रदेश की राजनीति में सत्ता खोने के बाद भी महत्वपूर्ण बने रहे। उन्होंने 2009 के लोक सभा चुनाव के समय कल्याण सिंह को साथ लेकर जो गलती की थी उसके लिए माफी मांगने के कारण आजम खां की समाजवादी पार्टी में वापसी हुई और मुस्लिम मतदाताओं ने उन्हें खुलकर समर्थन दिया। मुलायम सिंह यादव को इसका भरपूर संज्ञान है। क्योंकि उनका भी मायावती के समान यह विश्वास है कि एक वर्ग की यदि एकजुटता रही तो बाकी अपने आप साथ आ जायेंगे। मायावती ने इस विश्वास का परिणाम इस बार के चुनाव में झेला है। लेकिन मुलायम सिंह इस विश्वास का परिणाम कई बार झेल चुके हैं।“अतिशय रगड़ करै जो कोई अनल प्रगट चंदन से होई´´ मुलायम सिंह इस अतिशयवाद के बार-बार िशकार होने के बावजूद नहीं चेते हैं तो अखिलेश की सरकार को भारी संकट में डालने के कारण बनेंगे। जैसे कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की एक के बाद मांग के सामने घुटने टेकते-टेकते भारत का न केवल विभाजन करवा दिया अपितु हिंदू और मुसलमान के बीच वैमनस्य की स्थायी नींव डाल दी वैसे ही मुलायम सिंह अतिवादी मुस्लिम हितैशी बनकर उसे और मजबूत कर रहे हैं। सरकार सभी के लिए होती है ऐसा केवल कहने मात्र से काम नहीं चलता है बल्कि सरकार सबकी है वैसा आचरण से साबित करना पड़ता है। वर्ग विशेश या जाति विशेश को हितैशी साबित कर वोट बैंक बनाने की राजनीति सभी नागरिकों में समानता की भावना पैदा करने के बजाय विद्वेश को बढ़ावा देने वाली बनकर वोट बैंक के सहारे रहने वालों को चारों खाने चित भी कर देती है। समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में चुनौती विहीन सरकार चालने का अवसर मिला है लेकिन वह धमकियों के सामने झुकने लगी है। यह स्थिति प्रदेश के लिए खतरनाक तो है ही स्वयं उस दल में इतिहास से सबक लेने की क्षमता का अभाव भी दिखाई पड़ता है। पाकिस्तान बनाने का श्रेय उन राज्यों या प्रांतों की मुस्लिम जनता को नहीं जाता जहां आज उसका और बांग्लादेश का अस्तित्व है। वहां तो गैर मुस्लिम लीग की अंातरिक सरकारें थी। पाकिस्तान बनवाने का श्रेय उत्तर प्रदेश और बिहार के मुसलमानों को जाता है जिसमें अब समरसता की जो झलक देवबंद के इस नवीन फतवे में मिलती है कि भले ही इस्लाम में चार शादियों की इजाजत हो लेकिन भारत का माहौल एक शादी का ही है इसलिए मुसलमानों को भी एक ही शादी करनी चाहिए। सांस्कृतिक भारत का अंग बनने से आजम और अहमद जैसे मुसलमानों के सामने घुटने टेकने से सबसे ज्यादा बाधक है। यदि सावधान न रहे तो यह आत्मघाती साबित होगा। मुस्लिमों में पृथकता का भाव बढ़ाने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ाने का संकेत विवाह पंजीकरण कानून के संदर्भ में सरकार द्वारा नियुक्त अतिरिक्त महाधिवक्ता, बाबरी मिस्जद एक्शन कमेटी के अगुआ, मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य तथा आजम खां के हमजुल्फ जफरयाब जीलानी ने अपना मंतव्य प्रगट कर दे दिया है।
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*Rajnath Singh ‘Surya
Ex. MP (Rajya Sabha)
3/35, Patrakar Puram, Gomti Nagar, Lucknow
Phone : 0522-2392561, +91-94155-08018
*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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