इफ्तारनामा : ज़रूरत,धर्म के मर्म को समझने की

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– तनवीर जाफरी –

‘इफ्तार’ उस प्रक्रिया का नाम है जो मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा माह-ए-रमज़ान में रखे जाने वाले रोज़े के समापन के समय अमल में लाई जाती है। सीधे शब्दों में रोज़ा अथवा व्रत खोलने को इफ्तार कहा जाता है। भारतवर्ष चूंकि एक धर्मनिरपेक्ष देश है इसलिए यहां मुसलमानों द्वारा कठिन से कठिन मौसम व परिस्थितियों में रोज़ा रखने वाले मुसलमानों को इफ्तार पार्टी दिए जाने का सैकड़ों वर्ष पुराना एक चलन चला आ रहा है। राष्ट्रपति भवन व प्रधानमंत्री निवास से लेकर देश के विभिन्न मुख्यमंत्री आवासों,राजभवनों,सरकारी व गैर सरकारी कार्यालयों,विभिन्न राजनैतिक दलों के कार्यालयों तथा राजनेताओं द्वारा इफ्तार पार्टियां आयोजित की जाती रही हैं। इन ‘राजनैतिक इफ्तार पार्टियों’ से ऊपर उठकर कई ऐसी भी इफ्तार पार्टियां आयोजित की गई हैं जिनका मकसद देश में सांप्रदायिक सौहाद्र्र व धार्मिक सद्भाव को मज़बूत करना रहा है। अयोध्या की प्रसिद्ध हनुमानगढ़ी में पूर्व में आयोजित की गई इफ्तार पार्टियां तथा पिछले दिनों अयोध्या के ही सूर्यकुंज मंदिर के महंत श्री जुगल किशोर शरण शास्त्री द्वारा दी गई इफ्तार पार्टी ऐसे ही आयोजनों में प्रमुख हैं।



दरअसल किसी रोज़दार अर्थात् रोज़ा रखने वाले को रोज़ा खुलवाकर या इफ्तार कराकर कोई भी दूसरा व्यक्ति मात्र सद्भाव,सहिष्णुता,मानवता व भाईचारे का ही संदेश देना चाहता है। भारत में हिंदू व सिख भाईयों द्वारा दी जाने वाली इफ्तार पार्टियां हों अथवा पाकिस्तान व बंगला देश में हिंदू समुदाय के लोगों द्वारा मुसलमानों को दी जाने वाली इफ्तार पार्टी,मुंबई व गुजरात में गणेश उत्सव में मुसलमानों द्वारा गणेश चतुर्थी मनाना हो या गरबा में हिस्सा लेना,रामलीला में मुस्लिम कलाकारों का मंचन करना हो या मुस्लिम गायकों द्वारा देश में भजन या जगरात्रि में कलाम पेश करने की परंपरा या फिर देश के अनेक भागों में हिंदू भाईयों द्वारा ताजि़यादारी करने व गम-ए-हुसैन मनाने का प्रचलन, दरअसल इस प्रकार के आयोजन जो वास्तव में संबंध चाहे किसी भी धर्म से क्यों न रखते हों और इसमें शिरकत किसी दूसरे धर्म के लोगों द्वारा क्यों न की जा रही हो परंतु ऐसे आयोजनों का उद्देश्य धार्मिक कट्टरता को त्यागना तथा धर्म में समरसता को महत्व देना ही है। भारतवर्ष में कभी ऐसी खबर सुनने को नहीं मिली होगी कि किसी नेता,दल,संगठन अथवा समुदाय द्वारा रोज़ा इफ्तार का न्यौता दिया गया हो और किसी दूसरे पक्ष द्वारा उसका बहिष्कार किया गया हो। भारतीय संस्कार तथा मानवता भी इस बात की इजाज़त नहीं देती।

परंतु पिछले दिनों इफ्तार की आड़ में कट्टरता फैलाने का एक ऐसा ही संदेश दारूल उलूम देवबंद के कुछ कथित मुिफ्तयों द्वारा दिया गया। किसी व्यक्ति ने दारूल उलूम से लिखित रूप में यह जानना चाहा था कि शिया समुदाय के लोगों की ओर से दी जाने वाली इफ्तार पार्टियों में सुन्नी मुसलमानों को शामिल होना चाहिए अथवा नहीं? इसके जवाब में दारूल उलूम के तीन मुिफ्तयों ने यह फरमाया कि ‘शिया समुदाय द्वारा दी जाने वाली दावत चाहे वह इफ्तार की दावत हो या शादी की,मुसलमानों को शिया लोगों की दावत में खाने-पीने से परहेज़ करना चाहिए’। फतवा रूपी यह दिशा निर्देश अथवा सलाह ऐसे दौर में दी गई है जबकि इस्लाम धर्म आपसी खींचातानी का शिकार है और इसी प्रकार की फूट के चलते इस्लाम विरोधी शक्तियां इसका पूरा फायदा उठा रही हैं। एक ओर तो शिया आलिम मौलाना कल्बे सादिक पूरे देश में ईरानी धर्मगुरू आयतुल्ला सीसतानी का यह संदेश प्रचारित कर रहे हैं कि शिया हज़रात सुन्नी समुदाय के लोगों को अपना भाई नहीं बल्कि अपनी जान समझें। भारत सहित कई मध्य पूर्व के देशों में तथा अरब देशों में शिया-सुन्नी जमात के लोगों द्वारा संयुक्त रूप से नमाज़ अदा करने की कोशिशें की जा रही हैं। देश में विभिन्न मुस्लिम समुदाय के लोग संयुक्त रूप से इस्लाम को बदनामी व लांछन से बचाने के लिए आतंकवाद विरोधी सम्मेलन आयोजित कर रहे हैं। ऐसे में कुछ नाम निहाद मुिफ्तयों द्वारा इस प्रकार के ‘फतवे’ जारी करना निश्चित रूप से इत्तेहाद-ए-बैनुल मुसलिमीन के लिए एक बड़ा झटका है।

एक ओर तो इस बार के रमज़ान में इन मुिफ्तयों का विवादित फतवा चर्चा में रहा तो दूसरी ओर दिल्ली में एक इफ्तार पार्टी यशपाल सक्सेना नामक एक ऐसे बदनसीब बाप द्वारा दी गई जिसके बेटे अंकित सक्सेना को कुछ मुस्लिम युवकों ने इस लिए मार डाला क्योंकि अंकित उनके परिवार की लडक़ी के साथ प्यार करता था। इस हत्या के बाद मामले को सांप्रदायिक रंग देने की भरपूर कोशिश की गई। स्वयंभू हिंदूवादी शक्तियों द्वारा अंकित के पिता यशपाल सक्सेना को उनके बेटे की हत्या के विरोध में होने वाले उन प्रदर्शनों में आमंत्रित करने की कोशिश की गई जिसमें कि अंकित की हत्या के लिए पूरे मुस्लिम समाज को जि़म्मेदार ठहराने जैसा राजनैतिक प्रयास किया जा रहा था। परंतु पिता यशपाल सक्सेना ने मानवता का फजऱ् निभाते हुए केवल एक ही बात कही कि अंकित की हत्या के लिए हत्यारे जि़म्मेदार हैं न कि हत्यारों का धर्म या उस धर्म से जुड़े सभी लोग। पिछले दिनों उसी महान पिता यशपाल सक्सेना द्वारा अपने घर पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को बुलाकर रोज़ा-इफ्तार भी कराया गया और उनके घर में रोज़दारों द्वारा नमाज़ भी अदा की गई। कुछ ऐसा ही अयोध्या के सूर्यकुंज मंदिर में भी हुआ था। वहां भी महंत शास्त्री ने मुस्लिम रोज़दारों को मंदिर में चढ़ाए जाने वाले  प्रसाद से रोज़ा इफ्तार कराया तथा मंदिर परिसर में ही उन्हें नमाज़ भी अदा करने की अनुमति दी।

यदि उपरोक्त रोज़ा इफ्तारों के संबंध में देवबंद के मुिफ्तयों से पूछा जाए तो शायद वह उन रोज़दारों पर तो कुफ्र का फतवा ही जारी कर देंगे जोकि इस प्रकार की सद्भावनापूर्ण इफ्तार पार्टियों में शरीक होते हैं। ऐसे मुिफ्तयों की नज़र में तो राजनैतिक दलों व राजनेताओं द्वारा दी जाने वाली इफ्तार पार्टियां भी महत्वहीन हैं जोकि धर्म निरपेक्ष भारतवर्ष में धार्मिक सद्भाव की मिसाल पेश करती हैं। इस प्रकार के फतवे कट्टर तथा संकीर्ण सोच का परिचायक हैं। भारतवर्ष एक बहुधार्मिक व बहुजातीय व्यवस्था वाला देश है। यहां कट्टरता व संकीर्णता की कोई गुंजाईश नहीं है। इस देश में मुस्लिम धर्मस्थलों में गैर मुस्लिमों का प्रवेश व हिंदू धर्मस्थानों में गैर हिंदुओं का आना-जाना व शीश झुकाना एक सामान्य सी बात है।  यदि मुस्लिम समुदाय में ही शिया-सुन्नी के स्तर पर एक-दूसरे के आयोजनों में शिरकत करने से रोकने की कोशिश की गई या इफ्तार व शादी-विवाह में खाने-पीने से परहेज़ करने की सलाह दी गई तो यह बात आसानी से सोची जा सकती है कि इनकी मानसिकता कितनी संकीण,रुग्ण तथा विक्षिप्त हो चुकी है। ऐसे मुिफ्तयों व धर्मगुरुओं को एक-दूसरे धर्म व समुदाय के लोगों को इफ्तार अथवा अन्य धार्मिक अवसरों पर आमंत्रित करने में शामिल ‘धर्म के मर्म’ को समझने की ज़रूरत है न कि अपनी खींची हुई कट्टर व संकीर्ण लकीर पर फकीर बने रहने की। सामान्य सी बात है कि सामने वाले व्यक्ति के साथ आप जिस तरह व जिस भावना से पेश आएंगे वह भी आपसे उसी अंदाज़ में मिलना व बात करना चाहेगा। उसका बर्ताव भी कमोबेश आपके प्रति वैसा ही होगा जैसाकि आपका है। लिहाज़ा वर्तमान दौर में सभी इस्लामी िफरकों को एकजुट होकर इस्लाम पर आतंकावाद व कट्टरता जैसे काले धब्बों को मिटाने की ज़रूरत है न कि इस प्रकार के गैर ज़रूरी,बेबुनियाद,अतार्किक व अमानवीय िकस्म के फतवे जारी करने की l

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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