इन्हें चाहिए सैन्य पराक्रम का श्रेय ?

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– तनवीर जाफरी –

सोशल मीडिया में पिछले दिनों एक चुटकुलाअत्यधिक वायरल हुआ जो इस प्रकार था-पिता-बेटा रिज़ल्ट कैसा रहा? पुत्र- कॉलेज में टॉप किया है पापा। पिता-अच्छा,अरे वाह। बेटा ज़रा मार्कशीट दिखाना? पुत्र- पापा आप कॉलेज के पराक्रम पर सवाल उठा रहे हैं। आप विश्वविद्यालय का मनोबल गिरा रहे हैं। आप शिक्षा जगत की छवि नष्ट कर रहे हैं। पिता- मगर बेटा एक बार मार्कशीट तो दिखाओ। बेटा- मार्कशीट चोरी हो गई। यह व्यंग्य भारतीय सेना द्वारा सीमा पार जा कर की गई सर्जिकल स्ट्राईक तथा इसके बाद भारत सरकार के प्रतिनिधियों द्वारा किए जा रहे अलग-अलग भ्रांतिपूर्ण तथा अपुष्ट दावों के संदर्भ में था। गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में एक आत्मघाती हमले में शहीद 40 अर्धसैनिक बलों की जवाबी कार्रवाई के रूप में भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा के उस पार जा कर एयर सर्जिकल स्ट्राईक अंजाम दी। भारतीय वायुसेना द्वारा की गई इस पराक्रम पूर्ण एयर स्ट्राईक के तत्काल बाद सुबह से ही भारतीय मीडिया ने तथा केंद्र सरकार के कई मंत्रियों व देश के अनेक सत्ताधारी नेताओं द्वारा यह बताया जाने लगा कि बालाकोट में की गई एयर स्ट्राईक में सैकड़ों आतंकी मारे गए। किसी ने बालाकोट में मारे गए आतंकियों की संख्या चार सौ बताई तो किसी ने 350 तो कोई इस संख्या को 250 बता रहा था। यही हाल अत्यधिक उत्साही एवं चाटुकारिता,दलाली तथा सत्ता की खुशामद में मशगूल भारतीय टीवी चैनल्स का भी था। प्रत्येक टी वी चैनल बालाकोट में मारे गए आतंकियों की संख्या अलग-अलग बता रहा था।

इसी दौरान सबसे सही व संतुलित प्रतीत होने वाला बयान वायुसेना प्रमुख की ओर से आया जिसमें यह कहा गया कि वायुसेना द्वारा अपने लक्ष्यों को भेदा गया है तथा सेना का काम हमले करना है लाशें गिनना नहीं। ज़ाहिर है सेना ने अपने लक्ष्य पर सफल निशाना साधा। परंतु चंद ही घंटों में भारतीय मीडिया तथा सत्ताधारी नेताओं को आिखर यह कैसे पता चल गया कि मारे गए आतंकी चार सौ थे तीन सौ पचास या दो सौ पचास? राजनीति के शातिर व चतुर बुद्धि खिलाडिय़ों ने इस तरह का सवाल पूछने वालों का वही हश्र करने का प्रयास किया जो उपरोक्त व्यंग्यपूर्ण चुटकुले में पुत्र ने पिता का किया। अर्थातृ सवाल पूछने वाला राष्ट्रद्रोही,भारत विरोधी,पाकिस्तान का हमदर्द,पाकिस्तान की भाषा बोलने वाला तथा देश व देशप्रेम का दुश्मन बताया जाने लगा। खासतौर पर इस प्रकार के प्रश्र यदि कांग्रेस की ओर से या किसी विपक्षी दल की तरफ से किए गए तो उस पर तो पाकपरस्त व देश विरोधी यहां तक कि सेना के मनोबल को गिराने का जि़म्मेदार बताया गया। परंतु यही प्रश्र यदि पुलवामा हमले में शहीद अर्धसैनिक बलों के परिजनों द्वारा पूछे जाएं तो उन्हें भारत विरोधी कहने का साहस न ही किसी नेता में है न ही किसी ‘भक्त’ में।

उत्तर प्रदेश के शामली के प्रदीप कुमार व मैनपुरी के राम वकील सीआरपीएफ के उन 40 जवानों में शामिल थे जो पुलवामा में शहीद हुए। इनके मां-बाप,पत्नियां-बच्चे तथा भाई न केवल भाजपा नेताओं के दावों को झूठा करार देते हैं बल्कि यह भी पूछ रहे हैंं कि-‘कोई कैसे मान ले कि हमला हुआ और आतंकवादी मारे गए? हमें सुबूत दिखाईए तभी हमें शांति मिलेगी। और हमें पता चलेगा कि मेरे भाई के खून का बदला लिया गया है। कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों को पाकपरस्त व भारतीय सेना का मनोबल गिराने वाला बताने वाले राज ठाकरे की राष्ट्रभक्ति पर सवाल क्यों नहीं उठाते जो सीधेतौर पर सीआरपीएफ के पुलवामा शहीदों को न केवल ‘राजनैतिक शिकार’ बता रहे हैं बल्कि उनके अनुसार यदि-‘राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से पूछताछ की जाए तो पुलवामा आतंकी हमले की सच्चाई सामने आ जाएगी’। ठाकरे ने सवाल किया है कि वर्तमान तनाव पूर्ण वातावरण में क्या वजह है कि डोभाल के पुत्र का व्यवसायिक हिस्सेदार एक पाकिस्तानी नागरिक है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जैसे जि़म्मेदार नेताओं व चंद भारतीय टीवी चैनल्स के बालाकोट में कथित रूप से मारे गए सैकड़ों आतंकियों के दावों की पुष्टि किसी भी अंतर्राष्ट्रीय मीडिया व एजेंसी द्वारा अभी तक नहीं की गई है। बल्कि इसके विपरीत न्यूयार्क टाईम्स,वाशिंटन पोस्ट व अलजज़ीरा जैसे अनेक प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मीडिया द्वारा अपनी रिपोर्टस   में यही लिखा गया है कि भारतीय वायुसेना ने सीमापार पाकिस्तान में घुसकर हमले तो ज़रूर किए परंतु किसी एक भी व्यक्ति के मरने का कोई प्रमाण नहीं मिला। हां कई मीडिया रिपोर्टस में बालाकोट के जंगलों में हुए पेड़ों के नुकसान का जि़क्र ज़रूर किया गया है। एक मीडिया रिपोर्ट में किसी एक ग्रामीण व्यक्ति के घायल होने का समाचार भी आया है। दावों-प्रतिदावों के बीच एक सवाल यह भी उठता है कि जब कभी भारतीय कश्मीर में किसी मुठभेड़ में कोई आतंकवादी अथवा आम कश्मीरी नागरिक मारा जाता है तो उसके जनाज़े में कितनी भीड़ उमड़ पड़ती है। सोचने की बात है कि यदि सैकड़ों आतंकी एक साथ मारे गए होते तो इन्हीं आतंकी संगठनों द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर से लेकर पूरे पाकिस्तान तक में कितना हंगामा बरपा किया गया होता। क्या इन सैकड़ों आतंकियों के जनाज़ों की शव यात्राएं वर्तमान सेटेलाईट युग में किसी की नज़रों से छुपी रह पातीं?

पुलवामा हमले के बाद हालांकि विपक्ष द्वारा इस विषय पर राजनीति न करने का फैसला लेते हुए सरकार को पूरा सहयोग व समर्थन देने का निर्णय लिया गया था। परंतु जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी ने इस पूरी जवाबी सैन्य कार्रवाई का राजनीतिकरण किया है तथा सेना के पराक्रम को अपने ढंग से परिभाषित कर इसका श्रेय लेने की कोशिश की है इसने न केवल सरकार के दावों की पोल खोल कर रख दी है बल्कि सत्तापरस्त मीडिया ने भी अपनी साख दांव पर लगा दी है। इस समय देश के अनेक वर्तमान व पूर्व आला सैन्य अधिकारी सेना के राजनीतिकरण किए जाने के इस चलन से बेहद दु:खी हैं। निर्वाचन आयोग ने भी पिछले दिनों समस्त राजनैतिक दलों को यह सलाह दी है कि वे अपने चुनाव अभियान में सैनिकों व सैन्य अभियानों की तस्वीरों का इस्तेमाल न करें। भारतीय सेना के पराक्रम का देश में पहली बार इस कद्र राजनैतिक इस्तेमाल किया जा रहा है गोया भारतीय सेना देश के लिए नहीं बल्कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के लिए ही अपना पराक्रम दिखा रही हो।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व अमित शाह द्वारा बार-बार विभिन्न तरीकों से अपनी जनसभाओं में यह समझाने की भी कोशिश की जा रही है कि पाकिस्तान में उनके नाम से दहशत छाई हुई है जबकि कांग्रेस पार्टी पाकिस्तान की चहेती पार्टी है। जनता को वे समझाते हैं कि कंाग्रेस की बढ़त से पाकिस्तान में खुशी होती है जबकि उनकी जीत से पाकिस्तान में भय फैलता है। बड़े आश्चर्य की बात है कि जनता में इस प्रकार की भ्रमपूर्ण बातें फैलाने वाले यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान के सीने पर अब तक का सबसे गहरा ज़ख्म देने वाली नेता और कोई नहीं बल्कि इंदिरा गांधी ही थीं। मोदी व शाह को यह भी याद होना चाहिए कि इसी इंदिरा गांधी को पाक-बंगलादेश विभाजन जैसे निर्णायक  फैसले के साहस के लिए ही अटल बिहारी वाजपेयी ने  संसद में उन्हें दुर्गा कहकर संबोधित किया था। इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी का ही वह शासनकाल था जब 1971 में विश्व का सबसे बड़ा सैन्य समर्पण भारतीय सेना द्वारा कराया गया था। यह ढिंढोरा उस समय आज की तरह केवल भारतीय मीडिया ने नहीं बल्कि पूरे विश्व के मीडिया ने पीटा था। 1971 में इंदिरा गांधी ने न तो सैन्य पराक्रम का श्रेय लेने की कोशिश की न ही अपने चुनाव में सैनिकों की फोटो का इस्तेमाल किया परंतु आश्चर्य की बात है कि आज के खोखले सियासतदानों को मात्र अपने राजनैतिक लाभ के लिए सैन्य पराक्रम का श्रेय चाहिए।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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