इदुल-फ़ित्र इस्लामी संस्क्रति और सभ्यता की प्रतीक

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Mohd Shuaib{मुहम्मद शुऐब**,,}
हमारा देश भारत विभिन्न जातियों और धर्मों के माननेवालों का देश है। इन विभिन्न जातियों और धर्माें के माननेवाले लोगों के मध्य कुछ बातें तो सर्वसामान्य (ब्वउउवद) हैं, जैसे रहने-सहने का ढंग, खान-पान के तरीके़, विभिन्न क्षेत्रों में भाषा की समानता इत्यादि। किन्तु कुछ बातें ऐसी भी हैं कि उनमें समरूपता नहीं भी पाई जाती है। जैसे पूजा के तरीक़े, रस्म-रिवाज और त्यौहार इत्यादि। इसी लिए कहा जाता है कि भारत अनैकता में एकता (न्दपजल पद क्पअमतेपजल) रखनेवाला देश है।

हमारे देश में त्यौहार मनाने का रिवाज बहुत पुराना है। विभिन्न क्षेत्रों में रहनेवाले और विभिन्न धर्माें के माननेवाले लोग अपने-अपने तरीक़े से यहाँ त्यौहार मनाते हैं। कुछ त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाए जाते हैं और कुछ संजीदगी और शालीनता से। हर जाति और धर्म के माननेवालों के अपने कुछ विशेष त्यौहार होते हैं। वास्तविकता यह है कि ये त्यौहार किसी भी जाति या धर्म का प्रतिनिधित्त्व करते हैं। यदि किसी जाति या धर्म के बारे में जानना हो तो उसके त्यौहार को देख लीजिए। आपको उसकी गहराई का पता लग जाएगा।

त्यौहार का सम्बन्ध वास्तव में मनुष्य की भावनाओं से होता है। मनुष्य की स्वाभाविक इच्छा होती है कि वह ख़ुशी और प्रसन्नता को प्रकट करे। फिर इस प्रसन्नता को वह कभी अकेले व्यक्त करता है और कभी सामूहिक रूप से। त्यौहार वास्तव में इसी ख़ुशी और प्रसन्नता को सामूहिक रूप से प्रकट करने का दूसरा नाम है। उन भावनाओं और अनुभूतियों का सम्बन्ध, जो किसी त्यौहार की आत्मा की हैसियत रखती हैं, या तो किसी व्यक्तित्त्व से होता है या किसी विशेष मौसम या किसी विशेष ऐतिहासिक घटना से। या फिर उनके पीछे कोई परम्परा या अन्धविश्वास काम कर रहा होता है।

जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि इस देश में विभिन्न जातियाँ और क़ौमें रहती हैं जो विभिन्न धर्मों को मानती हैं। इन्हीं विभिन्न जातियों और क़ौमों में से मुसलमान भी इस देश में एक लम्बे समय से रहते चले आ रहे हैं, जिनका सम्बन्ध इस्लाम धर्म से है। इस्लाम एक सर्वव्यापक और विश्व स्तरीय धर्म की हैसियत रखता है। इस धर्म के सभी आदेशों एवं निर्देशों में सार्वभोमिकता और विश्व स्तरीय शान पाई जाती है। फिर इस्लाम एक स्वाभाविक धर्म है। चूँकि प्रसन्नता और ख्.ाुशी को प्रकट करना मनुष्य का स्वभाव है तो इस्लाम धर्म ने भी मनुष्य के इस स्वभाव का ध्यान रखते हुए दो त्यौहार रखे हैं। (यहाँ पर यह बात भी जान लेने की है कि इस्लाम में केवल दो ही त्यौहार हैं ईदुल-फ़ित्र और ईदुल-अज़हा। इनके अतिरिक्त शबेबरात, मुहर्रम और बारह वफ़ात इत्यादि सब मुसलमानों के अपने घड़े हुए हैं उनकी कोई धार्मिक हैसियत नहीं है।) ईदुल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के अनुसार रमज़ान माह के 30 या 29 रोज.े रखने के बाद शव्वाल माह की पहली तारीख़ को मानाई जाती है।

चूँकि त्यौहार सामूहिक भावनाओं और प्रसन्नताओं को व्यक्त करने का नाम है इसलिए मुसलमान ईदुल-फ़ित्र को सामूहिक रूप से मनाते हैं। चाहे किसी रंग और नस्ल के हों, कोई भाषा भी बोलते हों, दुनिया के किसी भी क्षेत्र में रहते हों, किसी क़बीले और ख़ानदान से सम्बन्ध रखते हों और चाहे किसी भी हैसियत के हों। अब चूँकि इस्लाम एक विश्व स्तरीय धर्म है तो इस त्यौहार को मनाने का तरीक़ा भी तमाम मुसलमानों का एक ही है। इस त्यौहार को मनाने में संजीदगी और शालीनता तो अद्वितीय है। किसी प्रकार का कोई शोर-गु़ल नहीं, कोई ढोल-ताशा नहीं, कोई गाना-बजाना नहीं, कोई राग-रंग नहीं। केवल ईश्वर की महान सत्ता की स्तुति और गुणगान को इसमें सम्मिलित करके मानो त्यौहार को भी पूजा और उपासना का स्थान दे दिया।

फिर हम जानते हैं कि दुनिया में जितने त्यौहार मनाए जाते हैं वे या तो किसी बड़े और महान व्यक्ति के जन्मदिन या किसी यादगार के तौर पर मनाते हैं, या मौसम में होने वाली किसी ख़ास तब्दीली या किसी राष्ट्र और क़ौम में होनेवाली किसी विशेष घटना के उपलक्ष में मनाए जाते हैं लेकिन इस्लाम ने जो त्यौहार रखे हैं वे किसी महान व्यक्ति के जन्मदिन या या किसी मौसम की तब्दीली या किसी राष्ट्र में होनेवाली किसी घटना के उपलक्ष में नहीं मनाए जाते बल्कि वास्तविकता यह है कि ये त्यौहार जगत के पालनकर्ता ईश्वर के समक्ष धन्यवाद प्रेषित करने के त्यौहार हैं। ईदुल-फ़ित्र इस बात पर धन्यवाद है कि जगत के प्रभु-पालनकर्ता ने मनुष्य के मार्गदर्शन हेतु एक पवित्र ग्रन्थ ‘कु़रआन’ प्रदान किया। एक भटके हुए इनसान के साथ यदि कोई व्यक्ति सबसे उत्तम नेकी करना चाहे तो वह नेकी वास्तव में इसके अतिरिक्त और कोई नहीं हो सकती कि उसका मार्गदर्शन उसके गन्तव्य या मंज़िल की ओर कर दिया जाए और सीधे रास्ते पर डाल दिया जाए। अतएव करुणामय और दयामय ईश्वर ने यह पुस्तक ‘क़ुरआन’ अवतरित करके मनुष्य के ऊपर महान उपकार किया है। तो क्यों न इस महान उपकार का शुक्र अदा किया जाए और प्रसन्नता व्यक्त की जाए। क़ुरआन भी इसी बात को स्पष्ट करता है कि-
‘‘कह दो, यह (क़ुरआन जो अवतरित किया गया है) अल्लाह कळ अनुग्रह और उसकी दया से है, अतः इस पर उन्हें ख़ुशियाँ मनानी चाहिएँ। (क्योंकि) यह उन सब चीज़ों से उत्तम है जिनको वे इकट्ठा करने में लगे हुए हैं।’’ (क़ुरआन, 10: 58)

ईद के दिन सभी स्त्री-पुरुष, बूढ़े-बच्चे, अमीर-ग़रीब सुब्ह को स्नान करते हैं। अच्छे-अच्छे और साफ़ कपड़े पहनकर ख़ुशबू लगाते हैं और ईदगाह जाने की तैयारी करते हैं। जिनको ईश्वर ने धन प्रदान किया है उन पर ईदगाह जाने से पूर्व अपने माल में से एक निश्चित मात्रा में ‘सदक़ा-ए-फ़ित्र’ अदा करना अनिवार्य है, ताकि वे मुसलमान भाई जो किसी कारणवश आर्थिक दौड़ में पीछे रह गए हैं, इस ख़ुशी में सम्मिलित हो सकें।(रोज़े के उद्देश्यों में से एक यह भी है कि रोज़ा रख कर इनसान को इस बात का एहसास हो कि भूख क्या चीज़ होती है और जिन लोगों को वक़्त पर खाने को नहीं मिलता है उनकी क्या दशा होती होगी?) फिर सब लोग बस्ती से बाहर ईदगाह या बस्ती के अन्दर ही बड़ी मस्जिद का रुख़ करते हैं। रास्ते में केवल एक ईश्वर की महान हस्ती का गुणगान करते हुए संजीदगी और शालीनता के साथ चलते हैं और मस्जिद में पहुँचकर नमाज. अदा करते हैं।

वास्तविकता तो यह है कि ख्.ाुशी और प्रसन्नता अपने ठीक अर्थाेें में उसी समय व्यक्त होती है जब बन्दे एक ही क़तार में खडझ्े होकर ईश्वर के समक्ष नतमस्तक होते हैं और जगत् के पालनहार का शुक्र बजा लाते हैं। नमाज़ पूर्ण हो जाने के पश्चात इमाम साहब भाषण देते हैं और मुसलमानों को अच्छी-अच्छी नसीहतें करते हैं और नैतिकता को अपनाने, ग़रीबों का ख़्याल रखने और केवल एक ईश्वर की पूजा-उपासना करने की शिक्षा देते हैं। उसके पश्चात सभी लोग उसी संजीदगी और शालीनता के साथ अपने-अपने घरों को लौट जाते हैं। घर जाकर सब एक-दूसरे के साथ मिलकर मिठाई और पकवान (सिवइँया) इत्यादि खाते-खिलाते हैं।

यह त्यौहार हमें यह सीख देता है कि सारे इनसान एक ही कुटुम्ब के सदस्य की हैसियत रखते हैं। उनमें परस्पर हमदर्दी और प्रेम का सम्बन्ध होना चाहिए। इस त्यौहार में हमदर्दी और एक-दूसरे के काम आने को बड़ा महत्त्व प्राप्त है। आदेश है कि रोज़ेदारों क रोज़े ईश्वर के यहाँ स्वीकार नहीं होते जब तक कि वे सदक़ा-ए-फ़ित्र अदा न करें।

वास्तव में यह त्यौहार अपने दामन में सारी इनसानियत को समेट लेना चाहता है। सारे इनसानों को आपस में प्रेम करनेवाले और एक-दूसरे के काम आनेवाले और प्रसन्नचित्त देखना चाहता है। यदि ध्यानपूर्वक अध्ययन किया और देखा जाए तो ईद इस्लाम के सत्य धर्म होने की पूर्ण तस्वीर प्रस्तुत करती है। इस त्यौहार से जहाँ एक ओर इस्लाम का पूर्ण प्रतिनिधित्त्व होता है वहीं अज्ञान का निषेध भी होता है। काश! हम ईदुल-फ़ित्र की अर्थवत्ता को और इसक निहित वास्तविक उद्देश्य को समझ सकें और इस सन्देश को उन लोगों तक पहुँचा सकें जो सत्य के अभिलाषी और मार्ग से भटके हुए हैं और जो वास्तविक ख़ुशी को व्यक्त करने के तरीक़े से अनभिज्ञ हैं।
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*Mohd Shuaib
9911413899
Campus Secretary
Students Islamic Organisation of India UP West
Disclaimer: The views expressed by the author in this article are her own and do not necessarily reflect the views of  INVC.

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