इतिहास बनकर रह गया विश्व का सबसे ऊंचा रावण का पुतला

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–    निर्मल रानी –

पूरे विश्व में विशेषकर भारत में गत् विजयदशमी के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाए जाने वाले विजयदशमी के पर्व का समापन विभिन्न प्रकार तथा आकार के पुतला दहन के साथ हो गया। जम्मू-कश्मीर के उड़ी सेक्टर में भारतीय सैनिकों पर हुए आतंकी हमले का प्रभाव इस बार के दशहरा पर्व पर विशेषकर रावण के पुतलों पर अधिक देखने को मिला। देश के अधिकांश रावण के पुतले आतंकवाद के प्रतीक के रूप में बनाए गए थे। कहीं रावण के पुतलों पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए तो कहीं ओसामा बिन लाडेन,हािफज़ सईद जैसे आतंकवादियों के चित्र इन पुतलों पर लगाए गए। कहीं-कहीं रावण के पुतलों को सामाजिक चेतना के पुतले के रूप में भी बनाया गया। उदाहरण के तौर पर देश में इन दिनों फैली डेंगू,चिकनगुनिया तथा मलेरिया जैसी गंदगी से पनपने वाली बीमारियों के नाम रावण,मेघनाद व कुभकरण के पुतलों पर अंकित किए गए। परंतु इन सब पुतलों से अलग एक बार फिर पूरे देश में सबसे अधिक भीड़ अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहने वाला रावण का पुतला था हरियाणा के अंबाला जि़ले में बनाया जाने वाला विश्व का सबसे ऊंचा रावण का पुतला। गत् पांच वर्षों से अपनी ऊंचाई worlds-tallest1हेतु विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले इस विशालकाय पुतले को इस वर्ष अंतिम बिदाई दे दी गई तथा आयोजकों द्वारा भविष्य में रावण का कोई भी पुतला न बनाने की घोषणा कर दी गई। गोया विश्व का सबसे ऊंचा रावण का पुतला इतिहास बनकर रह गया।

सवाल यह है कि तीस वर्ष पूर्व अर्थात् १९८७ में गठित हुए श्री रामलीला क्लब बराड़ा ने अचानक इतना बड़ा निर्णय क्यों और कैसे ले लिया? यह पूछे जाने पर क्लब के संस्थापक अध्यक्ष राणा तेजिंद्र सिंह चौहान ने बातया कि जहां इस विशालकाय पुतले के निर्माण को लेकर अन्य कई प्रकार की छोटी-मोटी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था वहीं क्लब के समक्ष सबसे बड़ी समस्या आयोजन स्थल को लेकर थी। गत् ३० वर्षों में रावण दहन करने हेतु क्लब को कम से कम २० बार अपना स्थान भी बदलना पड़ा है। प्रत्येक वर्ष ज़मींदारों,किसानों अथवा कोलोनाईज़र्स की मिन्नतें कर रावण दहन हेतु ज़मीन हासिल कर ली जाती थी। परंतु जब से रावण के पुतले ने विश्व रिकॉर्ड बनाना शुरु किया तथा इसकी ऊंचाई बढऩी शुरु हो गई उस समय से इसकी निर्माण योजना का फैलाव बढऩा शुरु हो गया। गत् पांच वर्षों से रावण के पुतले के निर्माण का कार्य लगभग ६ से लेकर ८ महीनों तक में पूरा किया जाने लगा। इसके लिए वर्कशॉप तथा गोदाम की ज़रूरत पडऩे लगी। पुतले की लंबाई २१० फुट होने की वजह से इसका निर्माण कार्य खुले मैदान में किया जा रहा था। इसकी वजह से धूप-बारिश जैसी परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ता था। ज़ाहिर है बार-बार आयोजन स्थल का बदलना और पुतले के निर्माण में लगे कारीगारों को प्रत्येक वर्ष होने वाली परेशानी का मुख्य कारण यही था कि बराड़ा में इतने बड़े आयोजन हेतु कोई उपयुक्त मैदान नहीं था।

कितने अफसोस की बात है कि उत्तर भारत के अधिकांश जि़ला मुख्यालय, शहरों,कस्बों यहां तक कि अनेक गांवों तक में दशहरा ग्राऊंड अथवा रामलीला मैदान के नाम से आरक्षित कोई न कोई ग्राऊंड ज़रूर देखने को मिल जाएंगे। परंतु अंबाला के बराड़ा कस्बे में जहां बुराई के प्रतीक विश्व के सबसे ऊंचे रावण का दहन किया जाता हो और जिस आयोजन को देखने के लिए देश के विभिन्न राज्यों से लाखों लोग इक_ा होते हों, जहां रावण के उस विशालकाय पुतले के समक्ष पंाच दिवसीय बराड़ा महोत्सव का आयोजन होता हो, जिसमें साहित्य,गीत-संगीत जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम पांच दिनों तक चलते हों,जो क्लब पांच बार लिम्का रिका्र्ड अर्जित करने का गौरव रखता हो उस क्लब और बराड़ा कस्बे के पास दशहरा मनाने हेतु कोई उपयुक्त आयोजन स्थल का न होना बड़े ही आश्चर्य की बात है। गत् तीन वर्षों से जिस ग्राऊंड में बराड़ा महोतसव का आयोजन किया जा रहा था वह मैदान तीन वर्ष पूर्व लगभग २४ एकड़ क्षेत्रफल का था। परंतु गत् तीन वर्षों से उस ग्राऊंड में इतने अधिक मकान बन गए हैं कि अब उसका खाली हिस्सा मात्र लगभग १२ एकड़ ही रह गया है। ज़ाहिर है इतनी कम जगह विश्व के सबसे ऊंचे रावण के पुतले का निर्माण करना उसके दहन के अवसर पर लाखों लोगों को आने की दावत ऐसे तंग मैदान में देना ज़ाहिर है दर्शकों को खतरे में डालने वाली बात है। इन परिस्थितियों में आयोजकों के पास रावण के इस विशालकाय निर्माण की योजना को भविष्य में बंद करने की घोषणा के सिवा दूसरा और कोई चारा नहीं था।

देश-विदेश में आमतौर पर रावण के छोटे-छोटे पुतले बनाकर पुतला दहन की रस्म अदायगी की जाती है। इस प्रकार के स्थानीय कार्यक्रमों में आमतौर पर इतनी भीड़ भी नहीं होती। इसलिए छोटे व मध्यम दर्जे के आयोजन दस-पंद्रह एकड़ ज़मीन में भी संपन्न हो जाते हैं। परंतु बराड़ा के रावण के पुतले की ऊंचाई के दृष्टिगत् सुरक्षा के कई पहलूओं को देखते हुए आयोजकों को आयोजन की सरकारी मंज़ूरी दी जाती थी। इनमें एक बिंदू यह भी था कि रावण के पुतले के चारों ओर रावण की ऊंचाई के बराबर का स्थान खाली छोडऩा पड़ेगा। सुरक्षा की दृष्टि से निश्चित रूप से इस नियम का पालन करना ज़रूरी था। परंतु ऐसा करने पर लगभग ६ एकड़ ज़मीन तो अकेले रावण का पुतला ही घेर लेता था। उधर दूसरी ओर रावण के इस विशाल पुतले को देखने के लिए लोगों की संख्या प्रत्येक वर्ष लगातार बढ़ती ही जा रही थी। ऐसे में आयोजकों के पास ग्राऊंड के अभाव में विश्व के इस सबसे ऊंचे रावण के पुतले के निर्माण को बंद किए जाने की घोषणा करने के सिवा दूसरा और कोई चारा नहीं था। वैसे भी गत् दस वर्षों के दौरान ज़मीन की कीमतों में जो ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई है इसकी वजह से अब शहरी इलाकों के आसपास के ख्ेातों के मूल्य भी करोड़ों रुपये प्रति एकड़ तक पहुंच गए हैं। ऐसे में कोई बड़े से बड़ा दानी पुरुष भी अपनी बेशकीमती ज़मीन इस पुनीत कार्य हेतु देना नहीं चाहता। उधर क्लब के संस्थापक अध्यक्ष तेजिंद्र चौहान रावण का यह विशालकाय पुतला बनाकर बराड़ा व अंबाला का नाम रौशन करने हेतु अपनी लगभग १२ एकड़ ज़मीन भी गंवा चुके हैं। अब भी यदि उनके पास पर्याप्त क्षेत्रफल की अपनी ज़मीन होती तो वे ज़मीन के लिए सरकार अथवा जनता का मुंह न ताकते। और न ही रावण के पुतले के निर्माण कार्य को हमेशा के लिए बंद किए जाने की घोषणा करते।

रावण के इस विश्वविख्यात पुतले तथा पंाच दिवसीय बराड़ा महोत्सव के आयोजन का एक और सकारात्मक पहलू यह भी था कि यह आयोजन सर्वधर्म संभाव तथा सांप्रदायिक सौहाद्र्र का भी एक बहुत बड़ा प्रतीक था। इस कार्यक्रम में सभी धर्मों व सभी जातियों के लोग समान रूप से पूरे मान-सम्मान के साथ मिलजुल कर काम करते थे तथा पूरे देश के लिए भाईचारे की एक मिसाल पेश करते थे। पिछले दिनों इस दशहरे के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक स्थान से यह समाचार प्राप्त हुआ कि कुछ उपद्रवी िकस्म के सांप्रदायिक तत्वों ने िफल्म अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को रामलीला में काम करने से सिर्फ इसलिए रोक दिया क्योंकि वह मुसलमान समुदाय से संबंध रखते थे। तो दूसरी ओर श्री रामलीला क्लब बराड़ा के इस आयोजन में रावण के पुतले के निर्माण से लेकर पांच दिवसीय बराड़ा महोत्सव के आयोजन तक में राणा तेजिंद्र चौहान के मित्र प्रख्यात लेखक तथा सामाजिक कार्यकर्ता तनवीर जाफरी श्री रामलीला क्लब बराड़ा के संयोजक के रूप में अपनी पूरी जि़म्मेदारियां निभा रहे हैं। तनवीर जाफरी वैसे तो मोहर्रम के अवसर पर प्रत्येक वर्ष अपने गृहनगर जाया करते थे। परंतु गत् तीन वर्षों से दशहरा व मोहर्रम के त्यौहार एक साथ पडऩे की वजह से जाफरी ने मोहर्रम के त्यौहार में सिर्फ इसीलिए शिरकत नहीं की क्योंकि वे बराड़ा महोत्व के आयोजन में स्वयं अत्यधिक व्यस्त रहते थे।

ज़ाहिर है ज़मीन के अभाव में इतने बड़े आयोजन को बंद कर दिए जाने की घोषणा करना निश्चित रूप से सरकार की उदासीनता को दर्शाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि हरियाणा के वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पांच अक्तूबर को विश्व के इस सबसे ऊंचे रावण के पुतले को के्रन द्वारा स्थापित किए जाने से मात्र तीन दिन पूर्व बराड़ा का दौरा कर वहां एक जनसभा भी की थी। इस जनसभा में बराड़ा वासियों के समक्ष श्रीरामलीला क्लब के प्रधान राणा तेजिंद्र सिंह चौहान ने ही मुख्यमंत्री को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित भी किया था। परंतु क्लब के लोगों को उस समय और भी झटका लगा जबकि दो अक्तूबर को भी अपने संबोधन में खट्टर ने दशहरा ग्राऊंड अथवा रावण के विशालकाय पुतले तथा बराड़ा महोत्सव जैसे प्रतिष्ठित आयोजन के बारे में न तो कोई चर्चा की  न ही उन्हें क्षेत्र की ओर से अवगत कराए जाने के एजेंडे में दशहरा ग्राऊंड का जि़क्र करना मुनासिब समझा गया। ऐसे में विश्व के इस सबसे ऊंचे रावण के पुतले का इतिहास के  पन्नों में सिमटकर रह जाना वास्तव में दुखदायी तथा अफसोसनाक है।

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???????????????????????????????परिचय – :

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana ,
Email : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

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