‘आशा ने तीखी करी ‘भाषा –दो टूक कहा, मर्यादा और गरिमा की है बात, शासन भी नहीं हमारे साथ

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  • घर-घर कॉन्डम बांटने और आरोग्य केंद्र में बैठने से किया इंकार -सरकारी मुहिम को झटका
shivraj singh chauhanहेमंत पटेल ,
आई एन वी सी ,
भोपाल।
अंचलों में आशा कार्यकर्ताओं के जरिए स्वास्थ्य सेवाओं में अपनी उपलब्धि दर्द कराने वाली सरकार को बड़ा झटका लगा है। गांवों में ‘फैमिली प्लैनिंग स्कीमÓ के तहत कॉन्डम और गर्भ निरोधक गोलियों को बांटने से इंकार कर दिया है। आशाओं ने दो टूक कहा है, यह उनकी मर्यादा और गरिमा को ठेस पहुंचाता है।
भारतीय पृष्ठ भूमि ऐसी नहीं है। वहीं हेल्थ वर्करों का कहना है, हमारा फैमिली प्लानिंग के काम में किसी प्रकार की सेवाएं देने से इंकार नहीं है, सरकार इस तरह पाश्चात संस्कृति की तरफ बढ़ रही है। घर-घर जाकर कॉन्डम नहीं बांटे जा सकते। दमोह जिले में अक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट वर्कर्स एसोसिएशन (आशा) की अध्यक्ष मिथलेश विश्वकर्मा ने कहा, हमें योजनाओं से गुरेज नहीं है, कॉन्डोम बांटना किसी भी सूरत बर्दाश्त नहीं। समाज की लोक-लाज भी कोई बात होती है। भारतीय संस्कृति ऐसी ही है, ऐसे में आशा कार्यकर्ता जो खुद उसी गांव की बेटी या बहू है। वह कैसे गांव में ही घूम-घूमकर कॉन्डम बेंच सकती है। इसीलिए इसका विरोध एसोसिएशन ने किया है। उन्होंने अन्य काम जारी रखने की बात कही है।
राजगढ़ जिले के जिला प्रोग्राम मैनेजर आनंद भारद्वाज का कहना है, हेल्थ वर्करों से इस मुद्दे पर चर्चा हुई है। इसमें व्यवहारिक समस्या है। पुरुषों को भी महिलाओं से कॉन्डोम मांगना अजीब लगता है।

-प्रदेश में ८६ हजार आशाएं
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थय मिशन के तहत प्रदेश में करीब 86 हजार आशा कार्यकर्ताएं कार्यरत हैं। वहीं देश के १७ राज्यों के २३३ जिलों में पायलट स्कीम के तहत यह योजना चल रही है। मप्र के ५० में से 34 जिलों में यह पायलट स्कीम एक साथ चल रही है। आशा एवं सहायिक एकता यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष सुमन द्विवेदी का कहना है कि उनसे कार्य तो स्थाई कार्मचारी से भी ज्यादा कराया जाता है, लेकिन उनकी मेहनत के मुकाबले उन्हें बहुत ही कम पैसे दिए जाते हैं।

-नहीं होता भुगतान
सुमन द्विवेदी का कहना है, आशा कार्यकार्तओं को खास तौर पर गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए अस्पताल लाने के लिए रखा गया था, साथ इन दिन दिनों घर-घर जाकर महिलाओं को टीकारण करने आदि की जिम्मेदारी की आशा कार्यकर्ताओं को दी है। इस कार्य के लिए इन्हें 150 रुपए दिए जाते हैं। इसी के साथ बाद में आशा कार्यकर्ताओं को टीवी पेसेंट की देखरेख करने की जिम्मेदारी का काम भी सौंपा गया, मरीज की देखरेख के बदले इन्हें 250 रुपए प्रतिमाह दिए जाते हैं। आशा कार्यकर्ताओं का कहना है कि नियुक्ति के समय तो हर माह पैसे देने की बात कही गई थी, लेकिन डेढ़ से दो साल बाद भी उन्हें पैसों का भुगतान नहीं किया जाता। उनसे कार्य तो स्थाई कार्मचारी से भी ज्यादा कराया जाता है, लेकिन उनकी मेहनत के मुकाबले उन्हें बहुत ही कम पैसे दिए जाते हैं। इतने सारे काम के बाद अब उन्हें आरोग्य केंद्र में बैठने के आदेश दिए गए हैं। यूनिक का कहना है कि जब तक उन्हें अन्य शासकीय कर्मचारियों की तरह निश्चित मानदेय नहीं दिया जाता वह केंद्र में नहीं बैठेंगी।

-केवल अपना फायदा
इस योजना को शासन ने हेल्थ वर्कर्स की आमदनी को बढ़ाना का प्रमुख रास्ता बताया है। यह कॉन्डम उन्हें फ्री दिया जाता है फिर इसे 1 रुपए प्रति पैकेट की दर बेचने के लिए कहा जाता है। होशंगाबाद आशा वर्कर्स यूनियन की जिलाध्यक्ष शमा परवीन ने कहा कि फिलहाल हमें ऐसा करने के लिए नहीं कहा गया है, लेकिन कहा जाएगा तो घर-घर जाकर कॉन्डम बेचना हमारे लिए संभव नहीं हो पाएगा। अनूपपुर की अध्यक्ष अफसाना ने भी शमा परवीन की बात से सहमति जताते हुए कहा कि कॉन्डम बेचना हमारे लिए संभव नहीं है। इस सरकार प्रायोजित स्कीम के राज्य स्तरीय प्रभारी जेएल मिश्रा ने माना कि इसको लेकर समस्याएं हैं। हम आंकड़े इकठ्ठा कर रहे हैं। वहीं आशा कार्यकर्ताओं के संगठन हैं उनसे बैठकर विचार विमर्श किया जाएगा। इसके बाद ही निर्णय लिया जाएगा। वहीं आशाओं और हेल्थ वर्कर्स ने इसे सरकार का अपना फायदा करार दिया है।

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