आरटीआई से ख़त्म हो सकता है भ्रष्टाचार और लालफीताशाही : गोपाल प्रसाद

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गोपाल परसाद*,,
सरकार, सरकारी योजनाएं और तमाम सरकारी गतिविधियाँ हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. आम आदमी से जुदा कोई भी मामला हो, प्रसाशन में बैठ कर भ्रष्ट, लापरवाह या अक्षम अधिकारियों  के कारण सरकारी योजनाएं सिर्फ कागज का पुलिंदा बनकर रह जाती है. सन 1947 में मिली कल्पित आजादी के बाद से अब तक हम मजबूर थे, व्यवस्था को कोसने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते थे. परन्तु अब हम मजबूर नहीं है क्योंकि आज हमारे पास सूचना के अधिकार नामक औजार है, जिसका प्रयोग करके हम सरकारी विभागों  में अपने रुके हुए काम आसानी से करवा सकते हैं. हमें सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 की बारीकियों को पढ़ कर समझना और सामाजिक क्षेत्र में इसको अपनाना होगा. इस अधिनियम के तहत आवेदन करके हम किसी भी बिभाग से कोई भी जानकारी मांग सकते हैं और अधिकारी/विभाग मांगी गई सूचना को उपलब्ध करवाने हेतु बाध्य होगा यही बाध्यता/जवाबदेही न केवल पारदर्शिता के गारंटी है बल्कि इसमें भस्मासुर  की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार का उन्मूलन भी निहित है. यह अधिनियम आम आदमी के लिए आशा की किरण ही नहीं बल्कि आत्मविश्वास भी लेकर आया है. इस अधिनियम रूपी औजार का प्रयोग करके हम अपनी आधी- अधूरी आजादी को मुकम्मल आजादी बना सकते हैं.
             “भगत सिंह ने क्रांति को जनता के हक़ में सामाजिक एवं राजनैतिक बदलाब के रूप में देखा था. उन्होंने कहा था कि क्रांति एक ऐसा करिश्मा है जिससे प्रकृति भी स्नेह करती है . क्रांति बिना सोची समझी हत्याओं और आगजनी की दरिन्दगी भरी मुहिम नहीं है और न ही क्रांति मायूसी से पैदा हुआ दर्शन ही है. लोगों के परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग चेतना की जरूरत है.”
भगत सिंह के इन्हीं प्रेरक वाक्यों के सन्दर्भ में कहें तो यह अकाट्य सत्य है की सब जगह पारदर्शिता  हो जाए तो आधी से अधिक समस्याएँ खुद ब खुद हल हो जाएंगी , जरूरत केवल जनजागरण की है . अभी तक  आरटीआई(Right to information / सूचना का अधिकार )में ऐसा कोई मैकेनिज्म ही नहीं बनाया गया जिससे पता चल सके की किस आवेदक को सूचना मिली या नहीं मिली और न ही सम्बंधित विभाग / सेक्शन मांगी गयी सूचना के जबाब की प्रतिलिपि ही आरटीआई सेल में देने की नैतिक जिम्मेदारी ही पूरी करते हैं . अधिकांश जगह आरटीआई सेल में कर्मचारियों की भयंकर कमी है . आरटीआई के तहत आवेदनों का ढेर लगता जा रहा है, लेकिन कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने के मामले  में  प्रशासन उदासीन है , दूसरे आरटीआई की सूखी सीट पर आने को कर्मचारी तैयार ही नहीं होते और जो कर्मचारी इस सेल में आने के लिए उत्सुक भी हैं उन्हें विभिन्न  कारणों से यहाँ लगाया ही नहीं जाता . सूचना अधिकारियों के उपर भी काम का अत्यधिक बोझ है . सूचना अधिकारियों को अपने दैनिक कार्यों के साथ-साथ आरटीआई का कार्य भी देखना पड़ता है और इसी दोहरे बोझ की वजह से आरटीआई कार्य भी अत्यधिक प्रभावित होता है .आरटीआई सेल में कोई समन्वयक (को-ऑर्डिनेटर )ही नहीं है जिससे यह सुनिश्चित हो सके की आवेदक को 30 दिनों के भीतर  सही सूचना प्राप्त हुई या नहीं.
             सामाजिक परिवर्तन सदा ही सुविधा संपन्न लोगों के दिलों में खौफ पैदा करता रहा है . आज सूचना का अधिकार भी धीरे -धीरे ही सही परन्तु लगातार सफलता की और बढ़ रहा है . पुरानी व्यवस्था से सुविधाएँ भोगने वाला तबका भी इस अधिनियम का पैनापन ख़त्म करने की कोशिश में शुरू से ही रहा है . कुछ  सूचना आयुक्तों के रवैये से ऐसा लगता है कि कहीं इस कानून की लुटिया ही न डूब जाए. कई महीने इंतजार के बाद भी मांगी गयी सूचनाएं नहीं मिलाती या फिर अधूरी और भ्रामक मिलाती है . उसके बाद भी यदि कोई आवेदक सूचना आयोग में जाने की हिम्मत भी करता है , तब भी कई आयुक्त प्रशासन के खिलाफ कोई करवाई नहीं करते . कुल मिलकर मानना ही होगा की हम तमाम कोशिशों के बाबजूद आज भी उसी जगह खड़े है , जहाँ दशक पहले खड़े थे. क्या हम मान लें की क्रांतिकारियों की कुर्बानियां बेकार हुई जिनके लिए आजाद हिंदुस्तान से आजादी के बाद वाला हिंदुस्तान ज्यादा महत्वपूर्ण था . प्रश्न है की “क्या क्रांतिकारियों को दी गयी यातनाएं उन्हें झुका पाई ? ठीक उसी तरह हमारा उत्पीडन या कोई भी असफलता हमारे इरादों को नहीं तोड़ सकती है . सूचना अधिकार से जुड़े कार्यकर्त्ता इस अधिकार का और भी मजबूती से प्रयोग करेंगे क्योंकि यह देश हमारा है , सरकार भी हमारी है , इसलिए  अपने घर को साफ रखने की जिम्मेवारी भी हमारी ही है.
             राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने कहा था की सरकारी व्यवस्था से भ्रष्टाचार  और लालफीताशाही दूर कर बेहतर शासन हासिल करना भारत का सपना रहा है और आरटीआई कानून के व्यापक एवं सजग इस्तेमाल के जरिए इसे हकीकत में बदला जा सकता है.  सरकार से सवाल पूछने का अधिकार पहले सांसदों और विधायकों को था , वह इस कानून ने हर आम नागरिक को दे दिया है. राष्ट्रपति ने कहा था की लोकतंत्र में सरकार जनता की होती है . जनता जब चाहे , उसे हर योजना की तरक्की के बरे में सही – सही जानकारी मिलनी चाहिए. आरटीआई ने यह तो मुमकिन कर ही दिया है . इस कानून के व्यापक और सजग इस्तेमाल से देश को भ्रष्टाचार और लाल फीताशाही से मुक्त करने का सपना भी पूरा हो सकता है  बशर्ते की इसका इस्तेमाल जिम्मेदारी के साथ हो.
                    आरटीआई कानून ने भारत को एक आदर्श लोकतंत्र बनने की दिशा में  गति तेज करने का कार्य किया है . भारत में यह कानून लागू होने के बाद नेपाल, बंगलादेश तथा भूटान ने भी इसे अपने यहाँ लागू किया है. लोकतंत्र में जनता की भागीदारी के लिए पारदर्शिता  एवं जबाबदेही की मांग के अभियान  को और अधिक गतिशील करने हेतु आरटीआई से सम्बंधित कई पुस्तकें अब बाजार में उपलब्ध हैं . जनहित में इसको पढ़ने, पढ़ाने एवं और अधिक प्रचारित- प्रसारित करने की आवश्यकता है .
लेखक आरटीआई के कार्यकर्त्ता हैं एवं यह उनके निजी विचार हैं.
(लेखक सूचना के अधिकार  कार्यकर्त्ता हैं )
गोपाल प्रसाद (RTI ACTIVIST)
मंडावली, दिल्ली – 92

मो० – 9289723144

EMAIL: gopal.eshakti@gmail.com

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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